Diary Ke Panne

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

विध्वंस और निर्माण किसकी गोद में खेलते हैं ????





                      कुछ माह पूर्व एक विश्व स्तरीय सौन्दर्य प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व कर रही मानुषी छिल्लर को जब आखिरी राउंड में यह पूछा गया कि आपके अनुसार वह कौन सा प्रोफेशन है जिसे सबसे अधिक वेतन और सुविधाएं मिलनी चाहिए?? तो मानुषी ने जो उत्तर दिया उसकी चहुँ ओर प्रसंशा हुई और उसके उत्तर को नेशनल एंड इंटरनेशनल न्यूज़ में जगह मिली. लेकिन अगर मैं चयन समीति में होता तो केवल इस उत्तर के लिए ही मानुषी को या तो बॉटम में रखता या रिजेक्ट कर देता.

                 तो क्या था प्रश्न?? क्या उत्तर दिया था मानुषी ने?? और आज शिक्षक दिवस के ठीक एक दिन पूर्व इन बातों का उल्लेख करने का तुक क्या है ?? समझते हैं इस आलेख में....


                  मानुषी को पूछा गया था कि वह कौन सा प्रोफेशन है जिसे सबसे ज्यादा वेतन मिलना चाहिए?? मानुषी का उत्तर था “माँ”. क्या माँ होना कोई प्रोफेशन है?? क्या माँ को वेतन दिया जा सकता है ?? कौन देगा वेतन?? फिर पिता, चाचा, चाची , दादा , दादी आदि  ने क्या बिगाड़ा है ?? और यदि माँ होना एक प्रोफेशन है तो वकील , डॉक्टर, CA और शिक्षक  ये सब शायद रिश्तेदारियां हैं?? 

                   आज शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या को मैं इस प्रश्न और उत्तर का छिद्रान्वेषण कर रहा हूँ क्यूंकि मेरे देखे शिक्षण कार्य ही वह वृत्ति है जिसे सबसे ज्यादा वेतन और सुविधाएं मिलनी चाहिए. क्यूँ?? इसका उत्तर मैं आगे पैराग्राफ में देता हूँ.

                  मेरे देखे शिक्षा के क्षेत्र में भारत में क्रांति की आवश्यकता है. शिक्षक, जीवन में चूके हुए लोग नहीं हो सकते. शिक्षक होने का अधिकार तो केवल उन्हें होना चाहिए जिन्होंने जीवन को वास्तविकता, पूर्णता और जागरूकता के साथ जिया है. जिनके पास अनुभव का गांडीव और ज्ञान की प्रत्यंचा है और जो सामर्थ्य रखते हैं अपनी मेधा से ज्ञान रुपी मछली की आँख को भेदने का. 
                  आचार्य कौटिल्य ने कहा है , “विध्वंस और निर्माण दोनों शिक्षक की गोद में खेलते हैं. शिक्षा और शिक्षक कभी साधारण नहीं होते”. क्या वर्तमान समय में ऐसा दिखाई पड़ रहा है ?? अजी नहीं साहब विध्वंस और निर्माण केवल नेताओं और माफियाओं  की गोद में खेल रहे हैं. अधिकतर शिक्षकों के पास न तो वह  मेधा ही बची है और न ही वह सामर्थ्य. आचार्य कौटिल्य कृपया आकर देखिये वर्तमान में सबसे साधारण वर्ग शिक्षक ही दीख रहा है. आपकी बात में बल नहीं रहा.  

वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में अधिकतर जीवन से चूके हुए लोग ही आ रहे हैं . संविदा शिक्षक, शिक्षा कर्मी या अतिथि शिक्षक के रूप में ये किसी संस्थान में पिछले दरवाजे से घुस जाना चाहते हैं और फिर मुख्य दरवाजे से (परमानेंट शिक्षक के रूप में ) जब निकलना चाहते हैं तो सरकार डंडे का ऐसा उपयोग करती है कि कई दिन तक शिक्षक को क्लास में खड़े होकर ही पढ़ाना पड़ता है.
मेरे देखे समाज में तब तक क्रांति नहीं आएगी जब तक शिक्षा और शिक्षक को वो मान नहीं मिलेगा जिसके वे हक़दार हैं.

कुछ सुझाव:
1. स्टेट एजुकेशन सर्विसेज के नाम से एक संवैधानिक संस्था का गठन होना चाहिए जो योग्य शिक्षकों की तलाश कर सके.
2. विकट  मेधा के लोगों को परीक्षा में आगे जाने का अवसर मिलना चाहिए.
3. लिखित परीक्षा के साथ ही कठिनतम साक्षात्कार होना चाहिए. जिसमें सामूहिक चर्चा , तात्कालिक भाषण , लेक्चरेट, आदि शामिल किये जाने चाहिए.
4. चुने हुए प्रतिभागियों को उच्च स्तरीय ट्रेनिंग से होकर गुजारना चाहिए.
5.  शिक्षा और शिक्षण कार्य में किसी भी तरह के आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.
6.  सर्वाधिक वेतन और सुविधाएं इन शिक्षकों को मिलने चाहिए.
7.  शिक्षकों का कोड ऑफ़ कंडक्ट तैयार किया जाना चाहिए ता कि उच्च चरित्र के लोग सेवा में आएं और चरित्र वान बने रहें.

                         अगर इन कुछ बातों को लागू कर दिया जाए तो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति की आशा की जा सकती है. जब तक अच्छे शिक्षक नहीं होंगे सभ्य समाज का निर्माण नहीं हो सकता . यदि समाज सभ्य नहीं होगा तो देश में समता और विधि के शासन की अपेक्षा नहीं की जा सकती. यदि देश में विधि का शासन न हो तो वैश्विक शांति की स्थापना असंभव है.                                    
                          कल पांच सितम्बर शिक्षक दिवस है. केवल उन शिक्षक मित्रों को ही शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ जो शिक्षक होने पर गर्व करते हैं और जो शिक्षक हो जाने के बाद कुछ और हो जाना नहीं चाहते.

अस्तु !!
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-    -मनमोहन जोशी