Diary Ke Panne

गुरुवार, 31 मई 2018

सफ़र की शुरूआत




23 मई 2018  


                    वर्ष 2007 में जब मैं जोधपुर में था तब मन में पहली बार लद्दाख यात्रा का ख़याल आया. तमन्ना थी की लद्दाख को नजदीक से देखूं, चप्पा- चप्पा, जैसे राजस्थान देखा है. वैसे जीवन में तमन्नाएं मैंने कम ही पाली हैं लेकिन जो भी कुछ शिद्दत से चाहा है वह पाया है.
        
                   अभी नए ज़माने के एक बाबा जो आज- कल  बहुत सुने जा रहे हैं, नाम है जग्गी वासुदेव, बुद्धिमान आदमी जाने जाते हैं, उनका एक इंटरव्यू कुछ दिनों पहले मैं देख रहा था. किसी जिज्ञासु ने पूछा कि क्या लॉ ऑफ़ अट्रैक्शनकाम करता है??  उन्होंने व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ कहा "so u read foreign writers a lot, hmm". सब हंस पड़ते हैं और वो स्पष्ट कहते हैं "No it won't work." शायद उन्हें कहना चाहिए था "I don't know"  या  " आई डोंट हैव एनी एक्सपीरियंस ऑफ दिस." क्योंकि ये विदेशी अवधारणा नहीं है. यही तो धम्मपद का सार है. यही तो बुद्ध की देशना है. यही तो उपनिषदों में है. ये तो मेरा अनुभव है. कभी इस पर विस्तार से लिखूंगा. मुझसे पूछो की लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन काम करता है क्या ?? तो कहूंगा हाँकाम करता है. और ये भी बता सकूंगा कैसे???

                     बहरहाल मैं बात कर रहा था मेरी लद्दाख यात्रा के बारे में. तो मेरा विवाह भी एक घुमक्कड़ी से हुआ है. और विवाह के वर्ष से ही हम लेह जाने की प्लानिंग में हैं. सबसे पहले तो हम बाइक से जाने कि प्लानिंग में थे. 2007 में जब मैंने सबसे पहले लद्दाख जाने के बारे में सोचा तो हमारी प्लानिंग थी कि हम जयपुर से दिल्ली होते हुए लद्दाख पहुंचेंगे. कुछ ऐसा रूट था जयपुर- दिल्ली-मनाली - रोहतांग- कोकसर- टाण्डी - केलांग-  जिस्पा - दारचा - जिंगजिंगबार-  बारालाचा ला - सरचू -  गाटा लूप-  नकीला - लाचुलुंग ला-  पांग - मोरे मैदान- तंगलंग ला - उप्शी-  कारु और कारू से लेह. लेकिन टीम कभी एक साथ तैयार नहीं हो पाई.एक बार तो हमने टीम बना कर सारी तैयारियां कर ली लेकिन फिर किसी कारण से यात्रा टल गई.

                    कुछ वर्ष पहले हम मनाली गए थे. प्लानिंग ये थी कि मनाली से बाइक रेंट पर लेकर लद्दाख निकल जाएंगे लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए.  पिछले वर्ष सोचा कि अब फ्लाइट से चलेंगे और वहीँ बाइक रेंट पर ले कर विश्व के सबसे ऊंचे रास्तों को नापेंगे. तो सोच तो हर वर्ष रहा हूँ बस प्लान एक्सीक्यूट नहीं हो पा रहा है. लेकिन कुछ सप्ताह पहले मई के शुरूआती दिनों में जयपुर से एक पुराने मित्र का कॉल आया कि हम एक ग्रुप में लद्दाख जा रहे हैं, चलो. 24 मई की सुबह दिल्ली एयरपोर्ट पर मिलेंगे.

                   लद्दाख शब्द का अर्थ है ऊंचे दर्रों वाली भूमि. लद्दाख, उत्तरी जम्मू और कश्मीर में, काराकोरम और हिमालय पर्वत श्रेणी के बीच स्थित है. यह भारत के सबसे विरल जनसंख्या वाले भागों में से एक है. लद्दाख जिले का क्षेत्रफल 97,776 वर्ग किलोमीटर है. इसके उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमाएँ हैं. बॉर्डर एरिया होने के कारण सामरिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है. यह  उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है, जहाँ का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है. यहाँ की जलवायु अत्यंत शुष्क एवं कठोर है. नदियाँ वर्ष में कुछ ही समय प्रवाहित हो पाती हैं, शेष समय में बर्फ जमी रहती है. सिंधु मुख्य नदी है. जिले की राजधानी एवं प्रमुख नगर लेह है, जिसके उत्तर में कराकोरम पर्वत तथा दर्रा है. अधिकांश जनसंख्या घुमक्कड़ है, जिनकी प्रकृति, संस्कार एवं रहन-सहन तिब्बत एवं नेपाल से प्रभावित है. पूर्वी भाग में अधिकांश लोग बौद्ध हैं और हेमिस गोंपा बौंद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान है.

                    बहरहाल मन में एक प्रश्न उठा कि क्या लद्दाख जाने के लिए ये ठीक समय है??  कई लोग लोग अक्सर पूछते रहते हैंकि फलां जगह जाने के लिए कौन सा महीना अच्छा है? और फिर ज्ञानी जन ज्ञान बांटते हुए फलां मौसम या महीने का नाम बताते हैं. मेरे देखे ये प्रश्न गलत ही गलत हैपूछना तो ये चाहिए कि ठंड, बारिश या गर्मी में से जो भी मौसम आपको पसंद है, वो मौसम फलां जगह पर कौन से महीनों में मिलेगा और गूगल इस बारे में लगभग सटीक जानकारी उपलब्ध करवा देगा.

                     मेरे देखे कहीं भी घुमने के लिए समय वो बढ़िया है जब आपके पास पैसा, मन और छुट्टियां तीनों एक साथ हों. लेकिन अंग्रेजी में एक कहावत है जो बिल्कुल सटीक है "you cannt find time and money for anything. If you want you must make it". अतः मन का होना सबसे महत्वपूर्ण है. मौसम तो सारे ही अच्छे होते हैं. वैसे लद्दाख के बारे में यह नहीं कहा जा सकता क्यूंकि आपको ये भी देखना होता है कि साल के कौन से महीनों में बर्फ बारी के कारण रस्ते बंद होते हैं. तो लद्दाख जाने के लिए मार्च से लेकर मई तक के महीने सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं. क्यूंकि इस समय वहाँ का मौसम सबसे खुशनुमा होता है. लेकिन पीक सीजन होने के कारण सभी चीज़ों के दाम बढे हुए होते हैं.

                     जैसे ही श्रीमती जी को पता चला हम लेह जाने वाले हैं वो तैयारियों में जुट गई. गर्म कपड़े, जीन्स, टी शर्ट, दवाइयों आदि की सूची बना ली गई. जो चीजें घर में नही थी उनकी शॉपिंग शुरू हो गई. 

                    क्यूंकि दिल्ली से हमारी फ्लाइट कल यानी 24 मई की सुबह 8:40 की है, हमें एक दिन पहले दिल्ली पहुंचना पड़ा. और आज 23 मई की रात 12:00 बजे हम दिल्ली एअरपोर्ट के टर्मिनल 1 पर बैठे इंतज़ार कर रहे हैं कि कब सुबह हो और लेह के लिए फ्लाइट पकड़ी जाए.

                                                               ---------------- क्रमशः

-मन मोहन जोशी

      

शनिवार, 12 मई 2018

अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा !!!


PC: Random click by Bade Bhaiya S. Joshi 


                               एक पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने जबलपुर आया हुआ हूँ. यात्रा करते हुए मुझे मौन रहना ही अच्छा लगता है. सहयात्रियों से अनर्गल वार्तालाप करना या देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करना मुझे बिलकुल भी नहीं भाता. ऐसा नहीं की अभी ऐसा हुआ है हमेशा से ही ऐसा है. कल ट्रेन में चढ़ते ही एक शख्स से मुलाकात हुई. चढ़ते ही उन्होंने इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया. आपका सीट कौनसा है?? कहाँ जा रहे हो?? इंदौर में क्या करते हो?? जबलपुर किस सिलसिले में जा रहे हो वगैरह वगैरह?? लेकिन जैसे ही उन्होंने पूछा क्या लगता है 2019 के चुनावों के क्या परिणाम होंगे??? मैंने अपना हेड फ़ोन ऑन किया और हॉलीवुड मूवीज के अपने खजाने से निकाल ली एक खतरनाक मूवी, जो Robert A. Heinlein  की शोर्ट स्टोरी  All You Zombies” पर बनाई गई है. नहीं ये भूत वाली फिल्म नहीं है एक साइंस फिक्शन है.  

                              मैं पहले भी कई बार इस फिल्म को देखने की कोशिश कर चुका हूँ लेकिन हमेशा आधे में बंद कर देता हूँ. सोचा आज ख़त्म कर के सोता हूँ. इसकी कहानी को समझाना आसान नहीं है. खुद देखें और समझने की कोशिश करें. इतना बता सकता हूँ की यह टाइम ट्रेवल पर बेस्ड एक ऐसी फिल्म है जो आपका दिमाग घुमा देगी. फिल्म की शुरुआत में तीन लोग बैठ कर बात करते दिखाई देंगे. आगे आपको पता चलेगा की ये तीनों एक ही व्यक्ति है. भूत, भविष्य और वर्तमान जो टाइम ट्रेवल करते हुए समय के एक मोड़ पर आकर मिल गए हैं. खतरू कहानी है. दिमाग की चक्कर घिन्नी बन जाएगी.

                            लेकिन मेरे घुमक्कड़ मन में जो विचार आया वह यह है कि क्या समय की यात्रा संभव है ?? टाइम ट्रेवल पर बहुत सारी फ़िल्में बनी हैं लेकिन मेरी पसंदीदा है स्टीवन स्पीलबर्ग की “back to the future” ये फिल्म तीन पार्ट में बनी है. एक रोज़ मैंने और श्रीमती जी ने तीनों पार्ट एक के बाद एक देख डाली थी. कमाल की फिल्म और बेहतरीन स्टोरी.                 
टाइम ट्रेवल पर जो बेहतरीन साहित्य उपलब्ध है वो है एच जी वेल्स का उपन्यास द टाईम मशीन. यह टाइम ट्रेवल पर आधारित एक महान साहित्य माना जाता है.

                          वैज्ञानिक समय यात्रा को असंभव मानते रहे हैं. न्युटन ने समय को एक सीधी रेखा में चलने वाले बाण के जैसा माना है
, जिसे एक बार छोड़ दिया तब वह एक सीधी रेखा मे चलता जाता है. आइंसटाईन के अनुसार समय एक नदी के प्रवाह के जैसा है जो सितारों व आकाशगंगाओ के घुमावो से बहता है, इसकी गति इन पिंडो के पास से बहते हुये कम ज्यादा होती रहती है. ब्रह्मांड मे फैली हुयी घड़ियाँ अपनी अपनी गति से चलती रहती हैं. लेकिन आइंस्टाइन के मित्र कर्ट गोएडल ने आईन्स्टाईन के समीकरणों का एक ऐसा हल निकाला जो समय यात्रा को संभव बनाता है. गोयेडल का दिया गया सिद्धांत शानदार है.  यह एक ऐसे ब्रह्मांड की कल्पना करता है जो एक घूर्णन करते हुये द्रव से भरा है. कोई भी इस द्रव के घूर्णन की दिशा मे चलता जायेगा अपने आपको प्रारंभिक बिन्दू पर पायेगा, भूतकाल में.

                        लेकिन बिग-बैंग थ्योरी कहती है की ब्रह्माण्ड अपना विस्तार कर रहा है घूर्णन नहीं. अगर ब्रह्माण्ड घूर्णन कर रहा होता तो शायद समय यात्रा संभव हो सकती थी. स्टीफन हांकिन्ग ने भी शुरुआती दौर में समय यात्रा की अवधारणा का विरोध किया था. स्टीफन हाकिंग ने कहा था की यदि समय यात्रा संभव होती तो भविष्य के यात्री हमसे मिलते, वो कहाँ हैं ??? लेकिन बाद में उन्होंने अपना मत बदल दिया. उनके अनुसार समय यात्रा संभव है लेकिन प्रैक्टिकल नहीं है.

                       मेरे देखे समय यात्रा संभव है. लेकिन केवल भूतकाल की. भविष्य की नहीं. क्योंकि भविष्य का मतलब ही है, वह जो नहीं है.... और हम जब  भूतकाल की यात्रा करेंगे तो हम वहाँ कुछ भी बदलाव नहीं कर पायेंगे.  हम सब रोजाना यह यात्रा कर रहे हैं. उदाहरण के लिए जब आप अपनी शादी की विडियो रिकॉर्डिंग देख रहे होते हो तो शायद आप उस समय में पहुँच जाते हो यात्रा करते हुए. आप सारी चीज़ों को फिर से होते हुए देखते हो. स्वयं से दूर खड़े हो कर स्वयं को. लेकिन कुछ भी बदल नहीं सकते. मुझे लगता है शायद यही टाइम ट्रेवल है.  आप को क्या लगता है ?????

-       -मनमोहन जोशी “MJ”       

मंगलवार, 8 मई 2018

उफ़्फ़ ये खबरें......


                       
                                   

                 टीवी पर ख़बरें देखना छोड़ चुका हूँ या ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि खबरें देखना छुट सा गया है. पहले रवीश की रिपोर्ट देख लिया करता था या फिर प्राइम टाइम की कोई बहस. लेकिन वहाँ भी केवल अनर्गल वार्तालाप ही हाथ लगे.  पिछले कुछ दिनों से अखबार भी नहीं पढ़ रहा था. ख़बरों के लिए इन्टरनेट के माध्यम का ही इन दिनों उपयोग करता रहा. 

                बहुत दिनों बाद आज का दैनिक भास्कर खोला तो फ्रंट पेज पर बलात्कार की खबर थी. सीधे आखरी पेज पर पहुंचा तो वहाँ भी बलात्कार की ही खबर. तो क्या इन दिनों भारत में केवल बलात्कार ही हो रहे हैं???? और अचानक से बच्चों से बलात्कार ही होने लगे हैं??? सोचा इन खबरों की पड़ताल अपने आलेख में करूँ....
                  
                   पिछले दिनों एक मित्र मिलने आये जो एक प्रख्यात सामाजिक संगठन के लिए काम करते हैं और मुझसे स्नेह भी रखते हैं.... उन्होंने बताया कि उनका संगठन बलात्कार के विरुद्ध एक जागरूकता रैली कर रहा है जिसमें मुझे वो मुख्य वक्ता के रूप में बुलाना चाहते हैं.

मैं: किसको जागरूक करना है??
मित्र : लड़कियों को.
मैं:
4 महीने की बच्ची को कैसे जागरूक करेंगे???
वो: नहीं, उनसे बड़े उम्र के लोगों को तो जागरूक कर सकते हैं.
मैं : चार- पांच साल की बच्चियों को क्या जागरूक करोगे?
??
                          
                      मुझे लगता है अगर किसी को जागरूक करने की आवश्यकता है तो वो है मीडिया के लोग और सोशल मीडिया के लड़ाके.... हाँ मैंने लड़ाके ही लिखा है मतलब fighters. खबर छपती है की फलां रिश्तेदार ने बच्ची का बलात्कार किया. अगर मीडिया ही ये तय कर रही है तो फिर पुलिस किस बात का इन्वेस्टीगेशन कर रही है और कोर्ट का क्या काम रह गया है????? नहीं, अपराधों का मीडिया में तय होना भयावह है. इस मीडिया ट्रायल को रोकना होगा. ऐसी ख़बरों को पढ़ कर कोई जागरूक नहीं हो रहा बल्कि मेरे देखे एक भय का माहौल चारों और व्याप्त हो गया है. लोग रिश्तों को ग़लत नज़रों से देखने लगे हैं और नई पीढ़ी हर किसी पर शक करने लगी है.

                       दूसरी और सोशल मीडिया के लड़ाके बलात्कार की खबरों को पीडिता की फोटो और नाम के साथ वायरल करने में लगे हैं. अरे मूढ़ मतों ये भी एक अपराध है. IPC की धारा 228 A बलात्कार पीडिता की पहचान जारी करने को दंडनीय अपराध बनाती है.
                           
                   एक आवश्यकता सरकार को भी जगाने की है क्यूंकि लगातार कानून में परिवर्तन कर जनता को मुर्ख बनाने से कोई बदलाव नहीं आयेगा. जैसा की अध्यादेश के माध्यम से सरकार ने 12 वर्ष से कम आयु की पीड़िताओं के साथ हुए अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान कर दिया है लेकिन यही सरकार बलात्कार मामले में अपराधियों को फांसी नहीं दे रही है... बलात्कार के मामलों में फांसी की कई दया याचिकाएं लंबित पड़ी हैं जिनको खारिज कर तत्काल अपराधियों को फांसी पर चढ़ाया जाना चाहिए.
                           
                    इन सब के परे एक बात स्पष्ट कर दूं कि देश का माहौल इतना ख़राब भी नहीं है, सारे पुरुष बलात्कारी या लम्पट नहीं हैं, रिश्तों में पवित्रता और शुद्धता बची हुई है, भूमिगत जल स्तर भले ही नीचे जा रहा है लेकिन आंखों का पानी अभी भी सूखा नहीं है. आवश्यकता है तो केवल इन्हें देखने की, महसूस करने की.

-मनमोहन जोशी “MJ”                     

सोमवार, 7 मई 2018

इन दिनों ......








आज बहुत दिनों बाद लौटा हूँ इस ब्लॉग पर..... ऐसा नहीं की लिखता नहीं रहा.... लेकिन इन दिनों, बहुत कुछ आक्रोश की बातें और बेहद निजी बातें लिखी हैं जो कभी उचित समय पर प्रकाशित की जायेंगी. न भी प्रकाशित हों तो किसी को क्या फर्क पड़ता है.  वैसे भी लगातार नहीं लिखा इन दिनों. जब कभी समय मिला तो you tube चैनल के लिए कुछ रिकॉर्ड कर लिया या फिर पढने बैठ गया. 

                पिछले कुछ दिनों में कुछ कमाल का साहित्य पढ़ गया हूँ. जॉन सी मैक्सवेल की “Winning Attitude”, मेल्कम ग्लेडवेल की “आउटलायर्स”, और ब्रायन ट्रेसी की “eat that frog” पढ़ी. साथ ही मेरे प्रिय लेखक रस्किन बांड की भी कुछ किताबें पढ़ गया. कुछ महीने पहले इंदौर में बुक फेयर लगा था जहां से कुछ किताबें खरीद लाया था. एक पुस्तक रस्किन ने भी स्वयं अपने ऑटोग्राफ के साथ मुझे भिजवाई थी. “रूम ओन द रूफ”, “नाईट एट देओली”, और “एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी”. जब इतना शानदार साहित्य पढने के लिए उपलब्ध हो तो क्या लिखा जाए और कौन तो लिखे.

               सही बताऊँ तो इन दिनों लिखने में आलस्य भी आने लगा है. और कुछ लोग इस लेखनी से नाराज़ भी हैं. जो नाराज़ हैं वो होते रहें. वैसे भी आप हर किसी को खुश नहीं कर सकते और मैं किसी को भी खुश करने के लिए भी नहीं लिखता.
        
              बहरहाल मैं बात कर रहा था लिखने पढने के बारे में. तो इन दिनों कमाल का खाजाना हाथ लगा है. राहुल सांकृत्यान का सम्पूर्ण वांग्मय “मेरी जीवन यात्रा” मंगवा ली गई है. अमेज़न से यह पार्सल मेरे पास पहुंचा और मैं इसे पढने में लग गया हूँ. राधा कृष्ण प्रकाशन की यह कृति कुल 11 खण्डों में विभाजित है. जिसको पढ़ते हुए मैं घुमक्कड़ी का विकट स्वाद ले पाऊंगा ऐसी उम्मीद है.

               मैं लम्बे समय से यात्रा वृत्तान्त पर कुछ अच्छा साहित्य पढना चाह रहा था और राहुल संकृत्यायन के साथ घुमक्कड़ी का मज़ा अब कई गुना होने वाला है. यायावरी मुझे हमेशा से पसंद रही है , स्वभाव से मैं घुमक्कड़ ही हूँ और घुमक्कड़ी के बारे में राहुल संकृत्यायन के विचार पढ़कर अपने घुमक्कड़ होने पर गर्व होने लगा है. और सोच रहा हूँ कि जीवन का अधिकतम समय घुमक्कड़ी में बिताऊं.

 राहुल जी के शब्दों में :

 
“दुनिया के अधिकांश मनीषी घुमक्कड़ रहे हैं ।  आचार-विचार
, बुद्धि और तर्क तथा सहृदयता में सर्वश्रेष्‍ठ महात्मा बुद्ध घुमक्कड़-राज थे। यद्यपि वह भारत से बाहर नहीं गये, लेकिन वर्षा के तीन मासों को छोड़कर एक जगह रहना वह पाप समझते थे। वह स्वयं ही घुमक्कड़ नहीं थे, बल्कि आरंभ ही में अपने शिष्‍यों को उन्‍होने कहा था - ''चरथ भिक्‍खवे!'' जिसका अर्थ है - भिक्षुओ! घुमक्कड़ी करो, चलते रहो । बुद्ध के भिक्षुओं ने अपने गुरु की शिक्षा को कितना माना, क्या इसे बताने की आवश्‍यकता है

क्या उन्‍होंने पश्चिम में मकदूनिया तथा मिश्र से पूरब में जापान त‍क, उत्तर में मंगोलिया से लेकर दक्षिण में बाली और बांका के द्वीपों तक को रौंदकर रख नहीं दिया? जिस बृहत्तर-भारत के लिए हरेक भारतीय को उचित अभिमान है, क्या उसका निर्माण इन्‍हीं घुमक्कड़ों की चरण-धूलि ने नहीं किया? केवल बुद्ध ने ही अपनी घुमक्कड़ी से प्रेरणा नहीं दी, बल्कि घुमक्कड़ों का इतना जोर बुद्ध से एक दो शताब्दियों पूर्व ही था, जिसके ही कारण बुद्ध जैसे घुमक्कड़-राज इस देश में पैदा हो सके। उस वक्त पुरुष ही नहीं, स्त्रियाँ तक जम्‍बू-वृत्त की शाखा ले अपनी प्रखर प्रतिभा का जौहर दिखातीं, बाद में कूपमंडूकों को पराजित करती सारे भारत में मुक्‍त होकर विचरा करतीं थीं ।“ उनके अनुसार : ‘‘समदर्शिता घुमक्कड़ का एकमात्र दृष्टिकोण है और आत्मीयता उसके हरेक बर्ताव का सार।’’                 

मैं तो चला राहुल संकृत्यायन के साथ समय और विश्व की यात्रा पर. 

बरबस ही ख्वाजा मीर याद आ रहे हैं :
“सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ”

-मन मोहन जोशी “MJ“