Diary Ke Panne

मंगलवार, 8 मई 2018

उफ़्फ़ ये खबरें......


                       
                                   

                 टीवी पर ख़बरें देखना छोड़ चुका हूँ या ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि खबरें देखना छुट सा गया है. पहले रवीश की रिपोर्ट देख लिया करता था या फिर प्राइम टाइम की कोई बहस. लेकिन वहाँ भी केवल अनर्गल वार्तालाप ही हाथ लगे.  पिछले कुछ दिनों से अखबार भी नहीं पढ़ रहा था. ख़बरों के लिए इन्टरनेट के माध्यम का ही इन दिनों उपयोग करता रहा. 

                बहुत दिनों बाद आज का दैनिक भास्कर खोला तो फ्रंट पेज पर बलात्कार की खबर थी. सीधे आखरी पेज पर पहुंचा तो वहाँ भी बलात्कार की ही खबर. तो क्या इन दिनों भारत में केवल बलात्कार ही हो रहे हैं???? और अचानक से बच्चों से बलात्कार ही होने लगे हैं??? सोचा इन खबरों की पड़ताल अपने आलेख में करूँ....
                  
                   पिछले दिनों एक मित्र मिलने आये जो एक प्रख्यात सामाजिक संगठन के लिए काम करते हैं और मुझसे स्नेह भी रखते हैं.... उन्होंने बताया कि उनका संगठन बलात्कार के विरुद्ध एक जागरूकता रैली कर रहा है जिसमें मुझे वो मुख्य वक्ता के रूप में बुलाना चाहते हैं.

मैं: किसको जागरूक करना है??
मित्र : लड़कियों को.
मैं:
4 महीने की बच्ची को कैसे जागरूक करेंगे???
वो: नहीं, उनसे बड़े उम्र के लोगों को तो जागरूक कर सकते हैं.
मैं : चार- पांच साल की बच्चियों को क्या जागरूक करोगे?
??
                          
                      मुझे लगता है अगर किसी को जागरूक करने की आवश्यकता है तो वो है मीडिया के लोग और सोशल मीडिया के लड़ाके.... हाँ मैंने लड़ाके ही लिखा है मतलब fighters. खबर छपती है की फलां रिश्तेदार ने बच्ची का बलात्कार किया. अगर मीडिया ही ये तय कर रही है तो फिर पुलिस किस बात का इन्वेस्टीगेशन कर रही है और कोर्ट का क्या काम रह गया है????? नहीं, अपराधों का मीडिया में तय होना भयावह है. इस मीडिया ट्रायल को रोकना होगा. ऐसी ख़बरों को पढ़ कर कोई जागरूक नहीं हो रहा बल्कि मेरे देखे एक भय का माहौल चारों और व्याप्त हो गया है. लोग रिश्तों को ग़लत नज़रों से देखने लगे हैं और नई पीढ़ी हर किसी पर शक करने लगी है.

                       दूसरी और सोशल मीडिया के लड़ाके बलात्कार की खबरों को पीडिता की फोटो और नाम के साथ वायरल करने में लगे हैं. अरे मूढ़ मतों ये भी एक अपराध है. IPC की धारा 228 A बलात्कार पीडिता की पहचान जारी करने को दंडनीय अपराध बनाती है.
                           
                   एक आवश्यकता सरकार को भी जगाने की है क्यूंकि लगातार कानून में परिवर्तन कर जनता को मुर्ख बनाने से कोई बदलाव नहीं आयेगा. जैसा की अध्यादेश के माध्यम से सरकार ने 12 वर्ष से कम आयु की पीड़िताओं के साथ हुए अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान कर दिया है लेकिन यही सरकार बलात्कार मामले में अपराधियों को फांसी नहीं दे रही है... बलात्कार के मामलों में फांसी की कई दया याचिकाएं लंबित पड़ी हैं जिनको खारिज कर तत्काल अपराधियों को फांसी पर चढ़ाया जाना चाहिए.
                           
                    इन सब के परे एक बात स्पष्ट कर दूं कि देश का माहौल इतना ख़राब भी नहीं है, सारे पुरुष बलात्कारी या लम्पट नहीं हैं, रिश्तों में पवित्रता और शुद्धता बची हुई है, भूमिगत जल स्तर भले ही नीचे जा रहा है लेकिन आंखों का पानी अभी भी सूखा नहीं है. आवश्यकता है तो केवल इन्हें देखने की, महसूस करने की.

-मनमोहन जोशी “MJ”                     

3 टिप्‍पणियां:

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  2. आपके सारे लेखन पर रहे हैं बहुत अच्छा लग रहा है

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  3. आपके सारे लेख हम पढ़ रहे हैं बहुत अच्छा लग रहा है

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