Diary Ke Panne

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

गोलकोंडा - इमारत जो बात करती है













आज 19 अप्रैल है  you tube fanfest में शामिल होने के लिए हैदराबाद आया हूँ. सुबह 9.25 की  फ्लाइट से हैदराबाद पहुँचता हूँ . हैदराबाद मैं पहले भी कई बार जा चुका हूँ.
  
याद आता है मैं तब कॉलेज फर्स्ट इयर में रहा होऊंगा उस समय तबला सीखता था और लगातार मंचीय कार्यक्रमों में व्यस्त रहता था. रविवार की एक दोपहर दूरदर्शन में उस्ताद जाकिर हुसैन का एक इंटरव्यू आ रहा था जिसमें उन्होंने बताया कि वे हैदराबाद के अकबर मियाँ हैदराबादी के यहाँ से तबला बनवाते हैं.
  
फिर क्या था एक मित्र थे उधौ उनको फ़ोन लगाया पूछा हैदराबाद चलोगे ? उन्होंने पूछा कब? मैंने कहा आज शाम को चलते हैं. वो भी मेरी ही तरह आधे पागल थे, सो तैयार हो गए. और मैं पहली बार हैदराबाद पहुंचा.

 बहुत मजेदार यात्रा थी... अकबर मियाँ को ढूंढने से लेकर हैदराबाद में घुमने तक की. ये कहानी फिर कभी...

 फिलहाल वापस आते हैं 2019 में ...........

fanfest का पहला दिन व्यस्तताओं से भरा हुआ है.....  और शाम बेहद खूबसूरत. बहुत कुछ सीख रहा हूँ.......  बहुत कुछ जान रहा हूँ ( इस पर जल्द ही विस्तार से लिखूंगा).
दुसरे दिन सुबह मैं खुद के साथ निकल गया गोलकोंडा के किले को महसूस करने... मेरे साथ थे मैं और मेरे ड्राईवर श्रीनिवास्लू....       
  
भीतर जाने के लिए टिकट लेकर मैंने एक गाइड को अपने पास बुलाया कहा चलो भाई घुमाओ हमें किला और बताते रहना इसका भुगोल और इतिहास.
  
गाइड का नाम अब्दुल है और वह हमें किले के भीतर लिए चलता है और उसकी बातों को सुनते हुए लगता है कि हम खो गए हैं किले में कहीं और कर रहे हैं समय कि यात्रा...
  
अब्दुल बताता है इस किले को  गोलकोंडा और गोल्ला कोंडा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के दक्षिण में बना यह एक किला और गढ़ है. गोलकोंडा कुतब शाही साम्राज्य (C. 1518-1687) के मध्यकालीन सल्तनत की राजधानी थी. इतिहास जिस तरह से अब्दुल को याद हैं लगता है बिलकुल सही गाइड चुना है.....
  
वह बताता चलता है कि यह किला हैदराबाद के दक्षिण से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है. भारत के तेलंगना राज्य के हैदराबाद में बना यह किला काफी प्रसिद्ध है. वहा का साम्राज्य इसलिये भी प्रसिद्ध था क्योकि उन्होंने कई बेशकीमती चीजे देश को दी थी जैसे की कोहिनूर हीरा.
  
  उसके अनुसार इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14 वी शताब्दी के कराया था. बाद में यह बहमनी राजाओ के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा.


1512 ई. में यह कुतुबशाही राजाओ के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा. फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया. यह ग्रेनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमे कुल आठ दरवाजे है और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है.
  
गोलकोंडा किले  को 17 वी शताब्दी तक हीरे का एक प्रसिद्ध बाजार माना जाता था. इससे दुनिया को कुछ सर्वोत्तम हीरे मिले, जिसमे कोहिनूर शामिल है. इसकी वास्तुकला के बारीक़ विवरण और धुंधले होते उद्यान, जो एक समय हरे भरे लॉन और पानी के सुन्दर फव्वारों से सज्जित थे, आपको उस समय की भव्यता में वापिस ले जाते है.

तक़रीबन 62 सालो तक कुतुब शाही सुल्तानों ने वहा राज किया. लेकिन फिर 1590 में कुतुब शाही सल्तनत ने अपनी राजधानी को हैदराबाद में स्थानांतरित कर लिया था.
  
घूमते हुए मुझे प्यास लग आई है और अब्दुल पानी कि एक बोतल खरीद लाता है. इसकी कीमत 40 रूपए हैं. अब्दुल बताता है कि खाली बोटल वापस करने पर 20 रुपये वापस मिल जायेंगे. ऐसा पर्यावरण संरक्षण के लिए किया गया है. मुझे ये कांसेप्ट अच्छा लगता है.
  
हम किले में आगे बढ़ते हैं और साथ ही आगे बढती हैं अब्दुल कि बातें ....... गोलकोंडा किले को आर्कियोलॉजिकल ट्रेजर के स्मारकों की सूचिमें भी शामिल किया गया है. असल में गोलकोंडा में 4 अलग-अलग किलो का समावेश है जिसकी 10 किलोमीटर लंबी बाहरी दीवार है, 8 प्रवेश द्वार है और 4 उठाऊ पुल है. इसके साथ ही गोलकोंडा में कई सारे शाही अपार्टमेंट और हॉल, मंदिर, मस्जिद, पत्रिका, अस्तबल इत्यादि है.
  
बाला हिस्सार गेट गोलकोंडा का मुख्य प्रवेश द्वार है जो पुर्व दिशा में बना हुआ है. दरवाजे की किनारों पर बारीकी से कलाकारी की गयी है. और साथ ही दरवाजे पर एक विशेष प्रकार का ताला और गोलाकार फलक लगा हुआ है. दरवाजे के उपर अलंकृत किये गये मोर बनाये गये है. दरवाजे के निचले ग्रेनाइट भाग पर एक विशेष प्रकार का ताला गढ़ा हुआ है. मोर और शेर के आकार को हिन्दू-मुस्लिम की मिश्रित कलाकृतियों के आधार पर बनाया गया है.
  
किले के प्रवेश द्वार के सामने ही बड़ी दीवार बनी हुई है. अब्दुल बताता है कि  यह दीवार किले  को सैनिको और हाथियों के आक्रमण से बचाती है.
  
गोलकोंडा किला चमत्कारिक ध्वनिक सिस्टम (acoustic)  के लिये प्रसिद्ध है. किले का सबसे उपरी भाग बाला हिसारहै, जो किले से कई किलोमीटर दूर है. इसके साथ ही किले का वाटर सिस्टम रहबानआकर्षण का मुख्य केंद्र है.
   
अब्दुल हमें आगे लिए चलता है जहां गोलकोंडा किले Golconda Fort के बाहरी तरफ बने हुए दो रंगमंच आकर्षण का मुख्य केंद्र है. यह रंगमंच चट्टानों पर बने हुए है. किले में कला मंदिरभी बना हुआ है. इसे आप राजा के दरबार से भी देख सकते है जो की गोलकोंडा किले की ऊँचाई पर बना हुआ है.
  
एक जगह दीवार को इतनी खूबसूरती के साथ बनाया गया है कि आप दीवार में एक और फुस्फुसाएं तो दूर कि दीवार पर कोई व्यक्ति कान लगा कर उस फुसफुसाहट को सुन  सकता है. मुझे लगता है यहीं से कहावत बनी होगी कि दीवारों के कान भी होते हैं. 

एक बेहतरीन खूबसूरत अनुभव साथ लिए जा रहा हूँ जिसे ता उम्र दिल में संजोये रखूँगा......

-To be continued  

✍️मनमोहन जोशी


शनिवार, 27 अप्रैल 2019

Random Thoughts....




बहुत दिनों के बाद इस प्लेटफार्म पर वापस लौटा हूँ . इन दिनों जीवन इस त्वरा से गतिमान है कि हर एक जगह उपस्थिति दर्ज करवा पाना संभव भी नहीं हो पा रहा है.... ऐसा नहीं है कि इन दिनों लिख पढ़ नहीं रहा हूँ.... लेकिन निजी जीवन के अनुभवों को सार्वजनिक रूप से दर्ज नहीं कर रहा हूँ. 

रविवार कि इस सुबह मोबाइल से दूर चाय के कप और लैपटॉप  के साथ बैठे - बैठे सोच रहा हूँ कि ये जीवन है क्या ?? आम धारणा के अनुसार हमारे जन्म से मृत्यु के बीच तक की कालावधि ही जीवन कहलाती है ? मैं जीवन कि इस परिभाषा से सहमत नहीं हूँ. मेरे देखे जीवन तो वह है जिसमें जीवन्तता हो.

 हमारा जन्म क्या हमारी इच्छा से होता है? नहीं, यह तो प्रकृति की व्यवस्था का ही परिणाम है. लेकिन जन्म के बाद जीवन्तता का होना हमारी इच्छा और बुद्धिमता का ही परिणाम कहा जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त जीवन का मुख्य अंग एक चेतन तत्त्व है जो जीवन की सभी क्रियाओं का साक्षी होता है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन का तात्पर्य अस्तित्व की उस अवस्था से है जिसमे वस्तु या प्राणी के अन्दर चेष्टा, उन्नति और वृद्धि के लक्षण दिखायी दें. अगर कोई वस्तु चेष्टारहित है तो फिर उसे सजीव या जीवनयुक्त नहीं माना जाना चाहिए.

मेरे देखे जीवन का संबंध जीने से है, सिर्फ अस्तित्व का विद्यमान होना ही जीवन का चिन्ह नहीं है.

वैज्ञानिक नियम अनुसार, जीवन जिसमें ब्रह्मांड, आकाश गंगा, सौर मण्डल, ग्रह और तारे हैं.... और जो निरंतर  अंतरिक्ष में गतिमान हैं. आकाश गंगा एक दूसरे का चक्कर लगा रहे है.....तारे आकाशगंगा के केन्द्र का चक्कर लगा रहे हैं तो ग्रह तारों का चक्कर लगा रहे हैं और उपग्रह ग्रह का चक्कर लगा रहे हैं.  ये सब मुझे किसी भ्रम का ही विस्तार मालूम पड़ते हैं.

मेरे देखे मानव मन ही वह अंतरिक्ष है जहां भ्रम का निर्माण होता है इसमें ही ब्रह्मांड समाया हुआ है और हम इस भ्रम को  ही सत्य मान बैठे हैं.

फिर सत्य क्या है?? मेरी समझ में सत्य भी निरपेक्ष नहीं है. हर किसी का अपना अपना सत्य है. हर कोई अपनी समझ को सच मान कर बैठा है और वास्तविक सत्य का किसी को पता ही नहीं या ये कहूं तो बेहतर होगा कि वास्तविक सत्य जैसा कुछ भी विद्यमान नहीं है. या बेहतर परिभाषा हो सकती है कि प्रेम ही सत्य है...

फिर प्रश्न उठता है प्रेम क्या है?? हम जिसे प्रेम समझ कर बैठे हैं वह स्वार्थ का ही तो एक रूप है... हमें प्रेम उससे ही है जो हमारे किसी फायदे का है. लाभ ख़त्म प्रेम ख़त्म।।

 क्या प्रेम भी निरपेक्ष हो सकता है? या यह भी सापेक्ष ही होता है?? क्या हम एक बार जीते हैं एक बार मरते हैं और एक ही बार प्रेम होता है?? मेरे देखे असली प्रेम तो वही है जो किसी चीज़ का मोहताज नहीं.जो फायदे नुकसान के परे हो...क्या ऐसा प्रेम अस्तित्वमान है शायद हाँ लेकिन यह बताने का कम और महसूसने का विषय ज्यादा है. हर किसी के अपने अनुभव हो सकते हैं.. लेकिन समस्याओं का जन्म होता है अपने अनुभव को ही सच मान लेने से.

मेरे देखे हर दिन एक नया जीवन है इसे बेहतर करते जाना ही मानव मात्र का लक्ष्य होना चाहिए.... सोचते रहें... कुछ नया सीखते रहें.... प्रेम बांटते रहें....

-MJ

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

सीखना ही जीवन है।।





आज छिंदवाड़ा से नागपुर जाते हुए बांस के इस वन से जब गुजरना हुआ तो गाड़ी रोक कर इनके साथ समय बिताने से खुद को रोक नहीं पाया।।

घास और बांस दोनों ही हरे होते हैं लेकिन इन दोनों में एक गजब का अंतर होता है।।

घास बहुत जल्दी बढ़ती है और धरती को बहुत ही कम समय में हरा भरा कर देती है , लेकिन बांस का बीज जल्दी नहीं बढ़ता। 

लगभग  पांच साल लगते हैं बांस के बीज से एक छोटा-सा पौधा अंकुरित होने में।

 घास की तुलना में यह बहुत छोटा और कमजोर होता है। लेकिन केवल 6 माह के भीतर ही  यह छोटा-सा पौधा कई फीट लंबा हो जाता है। 

इसका कारण यह है कि पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो जाती है यह कि 100 फिट से ऊंचे बांस को संभाल सके।

बांस से हम यह सीख सकते हैं कि जब भी जीवन में संघर्ष करना पड़े तो इसका इतना सा मतलब है कि जड़ मजबूत हो रही है।

 संघर्ष व्यक्तित्व को मजबूती देता है जिससे हम आने वाली सफलता की आंधी को थाम सकें उसका आनंद ले सकें।।


- MJ

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

"असतो मा सद्गमय" और धर्मनिरपेक्षता



                                   
  सन्दर्भ जिस पर यह आलेख आधारित है.

                  आज सुबह-सुबह मित्र श्री ऋषि माथुर जी ऑफिस में आये और कहा की सुप्रीम कोर्ट ने असतो मा सद्गमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय॥ मृत्योर्मामृतम् गमय॥“  इस संस्कृत श्लोक को  स्कूलों में विशेषतः केन्द्रीय विद्यालय में प्रातः प्रार्थना के रूप में गवाये जाने के विरुद्ध लगाई गई याचिका को स्वीकार कर लिया है. आप इस मुद्दे पर कुछ लिखते क्यूँ नहीं?? मैंने कहा इन दिनों मेरे पास लिखने को तो बहुत कुछ है लेकिन कुछ मुद्दों पर इस लिए नहीं लिखता कि  किसके लिए लिखूं कौन समझने को तैयार है?? और कुछ मुद्दों पर समायाभाव के कारण भी नहीं लिख पाता हूँ.
  
लेकिन अभी इस मुद्दे पर लिखने बैठा हूँ और मुझे नहीं पता इस एक लेख के माध्यम से किस-किस की अवमानना होने वाली है. (आगे स्वयं के रिस्क पर पढ़ें, इस आलेख में व्यक्त सभी विचारों के लिए मैं पूर्णतः ज़िम्मेदार हूँ.)  
  
 बृहदारण्यक उपनिषद् से लिए गए इस श्लोक "असतो मा सद्गमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥" का अर्थ है -
  
"(हमें) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥"
  
In English:- “Lead us from falsehood to truth, from darkness to light,  from death to the immortality.”
  
क्या खूबसूरत प्रार्थना है! क्या बेहतरीन शब्द हैं! क्या शानदार सोच है!! जब कुछ बुद्धिमान  इन्हें साम्प्रदायिक बताने में लगे हैं तो कुछ महा बुद्धिमान ऐसे भी आ जाएंगे जो कहेंगे इन श्लोकों का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं है ये तो मानव मात्र की भलाई के लिए हैं.
  
अरे चतुर सुजानों यह स्वीकार करने में क्या शर्म है की इसका सम्बन्ध हिन्दू धर्म से है. और शायद हर किसी को इस बात पर गर्व होना चाहिए की कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जो मनुष्यता के बारे में सोच रहे थे जो ज्ञान के बारे में सोच रहे थे.
  
वैसे तो मुझे इन श्लोकों को पढ़ते हुए यही लगता है कि धर्म, सम्प्रदाय, जाति, लिंग जैसे विभेदों से बहुत ऊपर मानवमात्र के उत्थान के लिए सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करने वाले वाक्य हैं ये. वसुधैव कुटुंबकम के मूलमंत्र को अपने जीवन में उतारने वाली सनातन संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों में इस तरह की अनेक प्रार्थनायें बार-बार मिलती हैं.
   
परन्तु अब स्वतंत्रता के कई वर्षों बाद हमें ये बताया जा रहा है कि हमारे जीवन दर्शन का आधार रहे ये सूत्र देश की धर्मनिरपेक्षता पर चोट करते हैं क्योंकि ये एक धर्म विशेष के प्राचीन ग्रंथ से लिए गए हैं. क्या मुर्खता है????
  
आश्चर्य इस पर नहीं कि किसी बुद्धिमान को इस तरह की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगाने की सूझी क्योंकि इस देश की प्राचीन सांस्कृतिक विरासतमूल्यों, परम्पराओं और हर उस बात को  हानि पहुँचाने के लिए न जाने कितने ही लोग दिन रात एक किये हुए हैं. आश्चर्य न्याय के उस मंदिर में बैठे स्वघोषित भगवानों पर है जिनके समक्ष ऐसी याचिका आई और उन्होंने इसे खारिज कर देने के बजाय इसकी सुनवाई के लिए एक पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ बीठा दिया है.
  
वह सर्वोच्च न्यायालय जहां  1 नवम्बर 2017 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 55,259 मामले लंबित थे. जहाँ से न्याय पाने की उम्मीद में देश के आम आदमी की पीढ़ियाँ गुज़र जाती हैं. वहाँ इस बात की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ का गठन किया जाना, मेरे देखे जनता के पैसे की बर्बादी है और यह न्याय  तथा न्यायिक हितों का गर्भपात ही है.
  
सर्वोच्च न्यायालय में बैठे न्याय के इन देवताओं को ये पता होना चाहिए कि अगर केवल हिन्दू धर्म के किसी ग्रन्थ का भाग होने एवं संस्कृत में होने के कारण असतो मा सद्गमय”  जैसा श्लोक देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर चोट पहुँचाने वाला माना जाएगा और उसके केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना में शामिल होने पर प्रश्न खड़े किये जाएंगे तो केरल शासन, बेहरामपुर विश्वविद्यालय उड़ीसा, उस्मानिया विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश, कन्नूर विश्वविद्यालय केरलराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान श्रीनगर, आईआई टी कानपुर और सी बी एस ई आदि अनेक संस्थाओं पर भी बैन लगा देना होगा क्योंकि इन सभी के आदर्श वाक्य भी उपनिषदों से ही लिए गए हैं.
  
उदाहरण के लिए भारतीय गणतंत्र का सत्यमेव जयतेमुंडकोपनिषद से लिया गया है. केरल शासन का ध्येय वाक्य तमसो मा ज्योतिर्गमयबृहदारण्यक उपनिषद् से लिया गया है. गोवा शासन का ध्येय वाक्य सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्‌भवेत्”  गरुड़ पुराण से लिया गया  है.
  
भारतीय नौसेना का ध्येय वाक्य शं नो वरुणःतैत्तिरीय उपनिषद से लिया गया है. भारतीय वायुसेना  का ध्येय वाक्य नभः स्पृशं दीप्तम्”  भगवद्गीता से लिया गया है. भारतीय तटरक्षक बल का ध्येय वाक्य वयं रक्षामः”  बाल्मीकि रामायण से लिया गया है. रिसर्च एन्ड एनालिसिस विंग (रॉ)  का ध्येय वाक्य धर्मो रक्षति रक्षितःमनुस्मृति से लिया गया है.
  
लोक तंत्र के पवित्र मंदिर संसद भवन की बात करें तो वह तो ऐसे श्लोकों से पटा पड़ा है कुछ उदाहरण देखिये:
  
संसद के मुख्य द्वार पर लिखा है:-
 लो ३ कद्धारमपावा ३ र्ण ३३
 पश्येम त्वां वयं वेरा ३३३३३
 (हुं ३ आ) ३३ ज्या ३ यो ३
 आ ३२१११ इति।

 यह छान्द्योग्योप्निषद से लिया गया है जिसका अर्थ है-
 "द्वार खोल दो, लोगों के हित में ,
 और दिखा दो झांकी।
 जिससे प्राप्ति हो जाए,
 सार्वभौम प्रभुता की।"

 लोक सभा अध्यक्ष के आसन के ऊपर अंकित है.
 धर्मचक्र-प्रवर्तनायअर्थात- धर्म परायणता के चक्रावर्तन के लिए.
  
 संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष के द्वार के ऊपर अंकित है:-
 अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
 उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
 यह पंचतंत्र से लिया गया है और इसका हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह है :-
 "यह मेरा है , वह पराया है  ऐसा सोचना संकुचित विचार है। उदारचित्त वालों के लिए सम्पूर्ण विश्व ही परिवार है।"

  आगे जाने पर लिफ्ट संख्या 1 के निकटवर्ती गुम्बद पर महाभारत का एक श्लोक अंकित है :-
 न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा,
 वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्।
 धर्म स नो यत्र न सत्यमस्ति,
 सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति।।
  
इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है:-
 "वह सभा नहीं है जिसमें वृद्ध न हों,
 वे वृद्ध नहीं है जो धर्मानुसार न बोलें,
 जहां सत्य न हो वह धर्म नहीं है,
 जिसमें छल हो वह सत्य नहीं है।"
  
ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं ऐसे अनगिनत संस्थान और संगठन हैं जो या जिनका ध्येय वाक्य भारत की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा हो सकता है. लेकिन मेरे देखे ऐसी किसी याचिका को ग्रहण करने से पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं का ध्येय वाक्य एक बार देख लेना चाहिए था जो है यतो धर्मस्ततो जय:यह भी हिन्दुओं के ही ग्रन्थ महाभारत से ही लिया गया है.
  
जहां एक ओर दुनिया इन श्लोकों और ज्ञान की मुरीद हो रही है (गूगल करके देखें) दुनियां भर में जापान से लेकर अमेरिका तक और चाइना से लेकर स्पेन तक स्कूलों में संस्कृत सीखाया और पढ़ाया जा रहा है . रूस में तो भगवद गीता स्कूलों में अनिवार्य विषय की तरह शामिल किया जा चुका है और हम हैं की निरी मूर्खताओं में पड़े हुए हैं.
  
सुप्रीम कोर्ट को ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने से बचना चाहिए जिससे जनता के समय और पैसे की बर्बादी हो. कुछ लोग केवल ओछी लोकप्रियता के ऐसे मामले कोर्ट तक लेकर आते हैं.
   
मेरा सोचना यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को ऐसी बातों पर ध्यान देना चाहिए? क्या ये बात देश और समाज हित में इतने महत्वपूर्ण हैं ?? क्या इन श्लोकों को न गाने से मानव जीवन में परिवर्तन हो जाएगा??
  
इंतज़ार करते हैं उच्चतम न्यायलय के इस मुद्दे पर निर्णय का.

-    मनमोहन जोशी
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शनिवार, 19 जनवरी 2019

"उड़ी" और "ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड"



उड़ी, भारत के जम्मू एवं कश्मीर राज्य के बारामूला ज़िले में झेलम नदी के किनारे स्थित एक खूबसूरत शहर है. यह जगह पाक-अधिकृत कश्मीर के साथ सटी हुई नियंत्रण रेखा से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

19वीं शताब्दी के एक ब्रिटिश यात्री के अनुसार इस स्थान पर "रालन" जिसका साइंटिफिक नाम "सेसलपिनिया डेकापेटाला" ( Caesalpinia decapetala) के पेड़ों की भरमार थी जिसे कश्मीरी भाषा में "उड़ी" कहते हैं. और सम्भव है कि इन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा है.

सन् 1947 में भारत विभाजन से पहले उड़ी तहसील मुज़फ़्फ़राबाद ज़िले का हिस्सा हुआ करती थी. 1947 के भारत-पाक युद्ध के बाद उस ज़िले का अधिकतर हिस्सा पाक-अधिकृत कश्मीर में पड़ा और उड़ी तहसील को बारामूला ज़िले में शामिल कर लिया गया.

18 सितम्बर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ, एक आतंकी हमला था, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए. सैन्य बलों की कार्रवाई में सभी चार आतंकियों को मार गिराया गया था.  

इसका बदला लेने  के लिए ही साल 2016 भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने  पाकिस्तान में घुसकर 'सर्जिकल स्ट्राइक' को अंजाम दिया था जो आज भी दुनिया की जुबान पर है. उडी फिल्म की कहानी इसी घटना पर आधारित है.

मित्रों की सलाह पर कल इस फिल्म को सपरिवार देखने पहुंचा. बेहतरीन अदाकारी, कसी हुई स्टोरी, शानदार सिनेमेटोग्राफी, जोश से भरे हुए डायलाग और किरदारों का चुनाव आपको आखिरी तक बांधे रखता है. फिल्म का निर्देशन आदित्य धर ने किया हैं. इसे रोनी स्क्रूवाला के बैनर तले बनाया गया है.

 इस सर्जिकल स्ट्राइक में योगदान के लिए पूर्व नगरोटा कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र निंबोरकर को सम्मानित भी किया गया था .

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद  लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र निंबोरकर ने एक  इंटरव्यू में ने बताया था कि पाकिस्तान की सीमा में 15 किलोमीटर अंदर जाने के बाद भारतीय सेना ने तेंदुए के मल-मूत्र का इस्तेमाल किया था, ताकि कुत्तों को शांत रखा जाए. सीमा पर आसपास के जंगलों में सेना ने देखा  कि तेंदुए अक्सर कुत्तों पर हमला करते हैं और इन हमलों से खुद को बचाने के लिए कुत्ते रात को बस्ती में ही रहते हैं.

 निंबोरकर ने बताया था कि 'रणनीति बनाते वक्त सेना को पता था कि रास्ते के गांवों से निकलते वक्त कुत्ते भौंकना शुरू कर सकते हैं और सेना पर हमला कर सकते हैं. इससे निपटने के लिए भारतीय सेना तेंदुए का मल-मूत्र अपने साथ लेकर गई थी. उसे गांव के बाहर छिड़क दिया गया, जिससे कुत्ते भौंके नहीं और सेना आसानी से सीमा पार कर सके.'

हमले से पहले भारतीय सेना सुरक्षित जगह पर पहुंच गई और मौका देखते ही आतंकियों पर हमला बोल दिया. सेना ने इस हमले में 29 आतंकियों को मार गिराया था और आतंकियों के लॉन्च पैड्स और ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था. हमले को अंजाम देने के बाद सेना वापस सुरक्षित अपनी सीमा में पहुंच गई. यह पूरी कार्रवाई सेना ने इतनी सफाई से की थी कि पाकिस्तानी सेना हक्की-बक्की रह गई थी.

फिल्म में आप नरेन्द्र मोदी , मनोहर पर्रीकर , अजीत डोभाल , राजनाथ सिंह आदि को बड़ी ही आसानी से पहचान सकते हैं. एक सीन में सर्जिकल स्ट्राइक से सम्बंधित मीटिंग के दौरान अजीत डोभाल मम्यूनिख ओलिंपिक में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हैं.

 1972 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी के म्यूनिख शहर में हुआ था. दुनियाभर के तमाम देशों के खिलाड़ी इसमें हिस्सा लेने आए थे. खेल शुरू हुए एक हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत चुका था. कोई नहीं जानता था कि आने वाले दिनों में ओलंपिक गेम्स विलेज में कुछ ऐसा होने वाला है, जो खेलों के इतिहास का सबसे काला अध्याय बन जाएगा.

तारीख थी 5 सितंबर 1972. खिलाड़ियों की तरह ट्रैक सूट पहने 8 अजनबी लोहे की दीवार फांदकर ओलंपिक विलेज में घुसने की कोशिश कर रहे थे.  तभी वहां कनाडा के कुछ खिलाड़ी पहुंच गए. दीवार फांदने वाले अजनबी सहम गए, कनाडा के खिलाड़ियों ने उन्हें किसी दूसरे देश का खिलाड़ी समझा और फिर दीवार फांदने में उनकी मदद की.  लोहे की दीवार पार करने के बाद कनाडा के खिलाड़ी अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए.  दूसरी तरफ ट्रैक सूट पहने अजनबी उस इमारत के बाहर पहुंच गए जहां इजरायली खिलाड़ियों को ठहराया गया था.

अगले दिन ये खबर सनसनी बनकर पूरी दुनिया में फैल गई कि फलस्तीनी आतंकवादियों ने जर्मनी के म्यूनिख शहर में 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है. अब तक बाहर वालों को ये पता नहीं था कि दो खिलाड़ी पहले ही मारे जा चुके हैं. आतंकियों ने मांग रखी कि इजरायल की जेलों में बंद 234 फलस्तीनियों को रिहा किया जाए, लेकिन इजरायल ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि आतंकियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी. इसके बाद आतंकियों ने दो खिलाड़ियों के शवों को हॉस्टल के दरवाजे से बाहर फेंक दिया, वो ये संदेश देना चाहते थे कि यही हाल बाकी खिलाड़ियों का भी होगा लेकिन इजरायल का इरादा नहीं बदला.

इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर के सख्त तेवर देखकर दुनिया दंग थी. लोगों को लग रहा था कि इजरायल ने अपने खिलाड़ियों को आतंकियों के भरोसे छोड़ दिया है. लेकिन हकीकत ये है कि इजरायल जर्मनी को इस बात के लिए राजी करने में जुटा था कि वो म्यूनिख में अपने स्पेशल फोर्सेस भेज सके, लेकिन जर्मनी इसके लिए तैयार नहीं हुआ.

ओलंपिक खेलों के दौरान खिलाड़ियों को बंधक बनाना और मोलभाव करना. पूरी दुनिया टकटकी लगाकर इजरायल की ओर देख रही थी. लोग सांसें थामे इंतजार कर रहे थे कि आखिर इजरायली खिलाड़ियों का क्या होगा. इसी बीच आतंकियों ने एक नई मांग रखी और जर्मन सरकार ने वो मांग मान भी ली. आतंकियों ने मांग रखी कि उन्हें यहां से निकलने दिया जाए, वो बंधक इजरायली खिलाड़ियों को अपने साथ ले जाना चाहते थे. जर्मन सरकार की रणनीति थी कि इसी बहाने आतंकी और खिलाड़ी बाहर निकलेंगे और एयरपोर्ट पर आतंकियों को निशाना बनाना आसान होगा.

 पूरी दुनिया अपने टीवी स्क्रीन पर इस मंजर को लाइव देख रही थी. खिलाड़ियों को बस से उतारकर हेलीकॉप्टर में बिठाया गया. इसके कुछ ही सेकेंड बाद शार्प शूटरों ने आतंकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. खुद को चारों तरफ से घिरता देख आतंकियों ने निहत्थे खिलाड़ियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. एक हेलीकॉप्टर को बम से उड़ा दिया गया. फिर दूसरे हेलीकॉप्टर में बैठे खिलाड़ियों को भी गोलियों से भून दिया गया। कुछ ही मिनटों में एयरबेस पर मौजूद हर आतंकी मारा गया. लेकिन इजरायल के 9 खिलाड़ी भी आतंकियों की गोलियों के शिकार बन गए.

 इसके बाद इजरायल शांत नहीं बैठा उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद से उन सभी लोगों के कत्ल की योजना बनाई, जिनका वास्ता ऑपरेशन ब्लैक सेंप्टेंबर से था. इस मिशन को नाम दिया गया  "रैथ ऑफ गॉड" यानी ईश्वर का कहर.

म्यूनिख नरसंहार के दो दिन के बाद इजरायली सेना ने सीरिया और लेबनान में मौजूद फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के 10 ठिकानों पर बमबारी की और करीब 200 आतंकियों और आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर इतने भर से रुकने वाली नहीं थीं। उन्होंने इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ गुप्त मीटिंग की और उनसे एक ऐसा मिशन चलाने को कहा जिसके तहत दुनिया के अलग-अलग देशों में फैले उन सभी लोगों के कत्ल का निर्देश दिया, जिनका वास्ता ब्लैक सेप्टेंबर से था।

इसके बाद जो हुआ वो इतिहास में दर्ज है इस्राइल ने दुनिया भर में फैले उन आतंकियों को चुन चुन कर मारा जिनका सम्बन्ध म्यूनिख हमले से था.

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    - मनमोहन जोशी