Diary Ke Panne

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

गोलकोंडा - इमारत जो बात करती है













आज 19 अप्रैल है  you tube fanfest में शामिल होने के लिए हैदराबाद आया हूँ. सुबह 9.25 की  फ्लाइट से हैदराबाद पहुँचता हूँ . हैदराबाद मैं पहले भी कई बार जा चुका हूँ.
  
याद आता है मैं तब कॉलेज फर्स्ट इयर में रहा होऊंगा उस समय तबला सीखता था और लगातार मंचीय कार्यक्रमों में व्यस्त रहता था. रविवार की एक दोपहर दूरदर्शन में उस्ताद जाकिर हुसैन का एक इंटरव्यू आ रहा था जिसमें उन्होंने बताया कि वे हैदराबाद के अकबर मियाँ हैदराबादी के यहाँ से तबला बनवाते हैं.
  
फिर क्या था एक मित्र थे उधौ उनको फ़ोन लगाया पूछा हैदराबाद चलोगे ? उन्होंने पूछा कब? मैंने कहा आज शाम को चलते हैं. वो भी मेरी ही तरह आधे पागल थे, सो तैयार हो गए. और मैं पहली बार हैदराबाद पहुंचा.

 बहुत मजेदार यात्रा थी... अकबर मियाँ को ढूंढने से लेकर हैदराबाद में घुमने तक की. ये कहानी फिर कभी...

 फिलहाल वापस आते हैं 2019 में ...........

fanfest का पहला दिन व्यस्तताओं से भरा हुआ है.....  और शाम बेहद खूबसूरत. बहुत कुछ सीख रहा हूँ.......  बहुत कुछ जान रहा हूँ ( इस पर जल्द ही विस्तार से लिखूंगा).
दुसरे दिन सुबह मैं खुद के साथ निकल गया गोलकोंडा के किले को महसूस करने... मेरे साथ थे मैं और मेरे ड्राईवर श्रीनिवास्लू....       
  
भीतर जाने के लिए टिकट लेकर मैंने एक गाइड को अपने पास बुलाया कहा चलो भाई घुमाओ हमें किला और बताते रहना इसका भुगोल और इतिहास.
  
गाइड का नाम अब्दुल है और वह हमें किले के भीतर लिए चलता है और उसकी बातों को सुनते हुए लगता है कि हम खो गए हैं किले में कहीं और कर रहे हैं समय कि यात्रा...
  
अब्दुल बताता है इस किले को  गोलकोंडा और गोल्ला कोंडा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के दक्षिण में बना यह एक किला और गढ़ है. गोलकोंडा कुतब शाही साम्राज्य (C. 1518-1687) के मध्यकालीन सल्तनत की राजधानी थी. इतिहास जिस तरह से अब्दुल को याद हैं लगता है बिलकुल सही गाइड चुना है.....
  
वह बताता चलता है कि यह किला हैदराबाद के दक्षिण से 11 किलोमीटर दुरी पर स्थित है. भारत के तेलंगना राज्य के हैदराबाद में बना यह किला काफी प्रसिद्ध है. वहा का साम्राज्य इसलिये भी प्रसिद्ध था क्योकि उन्होंने कई बेशकीमती चीजे देश को दी थी जैसे की कोहिनूर हीरा.
  
  उसके अनुसार इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14 वी शताब्दी के कराया था. बाद में यह बहमनी राजाओ के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा.


1512 ई. में यह कुतुबशाही राजाओ के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा. फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया. यह ग्रेनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमे कुल आठ दरवाजे है और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है.
  
गोलकोंडा किले  को 17 वी शताब्दी तक हीरे का एक प्रसिद्ध बाजार माना जाता था. इससे दुनिया को कुछ सर्वोत्तम हीरे मिले, जिसमे कोहिनूर शामिल है. इसकी वास्तुकला के बारीक़ विवरण और धुंधले होते उद्यान, जो एक समय हरे भरे लॉन और पानी के सुन्दर फव्वारों से सज्जित थे, आपको उस समय की भव्यता में वापिस ले जाते है.

तक़रीबन 62 सालो तक कुतुब शाही सुल्तानों ने वहा राज किया. लेकिन फिर 1590 में कुतुब शाही सल्तनत ने अपनी राजधानी को हैदराबाद में स्थानांतरित कर लिया था.
  
घूमते हुए मुझे प्यास लग आई है और अब्दुल पानी कि एक बोतल खरीद लाता है. इसकी कीमत 40 रूपए हैं. अब्दुल बताता है कि खाली बोटल वापस करने पर 20 रुपये वापस मिल जायेंगे. ऐसा पर्यावरण संरक्षण के लिए किया गया है. मुझे ये कांसेप्ट अच्छा लगता है.
  
हम किले में आगे बढ़ते हैं और साथ ही आगे बढती हैं अब्दुल कि बातें ....... गोलकोंडा किले को आर्कियोलॉजिकल ट्रेजर के स्मारकों की सूचिमें भी शामिल किया गया है. असल में गोलकोंडा में 4 अलग-अलग किलो का समावेश है जिसकी 10 किलोमीटर लंबी बाहरी दीवार है, 8 प्रवेश द्वार है और 4 उठाऊ पुल है. इसके साथ ही गोलकोंडा में कई सारे शाही अपार्टमेंट और हॉल, मंदिर, मस्जिद, पत्रिका, अस्तबल इत्यादि है.
  
बाला हिस्सार गेट गोलकोंडा का मुख्य प्रवेश द्वार है जो पुर्व दिशा में बना हुआ है. दरवाजे की किनारों पर बारीकी से कलाकारी की गयी है. और साथ ही दरवाजे पर एक विशेष प्रकार का ताला और गोलाकार फलक लगा हुआ है. दरवाजे के उपर अलंकृत किये गये मोर बनाये गये है. दरवाजे के निचले ग्रेनाइट भाग पर एक विशेष प्रकार का ताला गढ़ा हुआ है. मोर और शेर के आकार को हिन्दू-मुस्लिम की मिश्रित कलाकृतियों के आधार पर बनाया गया है.
  
किले के प्रवेश द्वार के सामने ही बड़ी दीवार बनी हुई है. अब्दुल बताता है कि  यह दीवार किले  को सैनिको और हाथियों के आक्रमण से बचाती है.
  
गोलकोंडा किला चमत्कारिक ध्वनिक सिस्टम (acoustic)  के लिये प्रसिद्ध है. किले का सबसे उपरी भाग बाला हिसारहै, जो किले से कई किलोमीटर दूर है. इसके साथ ही किले का वाटर सिस्टम रहबानआकर्षण का मुख्य केंद्र है.
   
अब्दुल हमें आगे लिए चलता है जहां गोलकोंडा किले Golconda Fort के बाहरी तरफ बने हुए दो रंगमंच आकर्षण का मुख्य केंद्र है. यह रंगमंच चट्टानों पर बने हुए है. किले में कला मंदिरभी बना हुआ है. इसे आप राजा के दरबार से भी देख सकते है जो की गोलकोंडा किले की ऊँचाई पर बना हुआ है.
  
एक जगह दीवार को इतनी खूबसूरती के साथ बनाया गया है कि आप दीवार में एक और फुस्फुसाएं तो दूर कि दीवार पर कोई व्यक्ति कान लगा कर उस फुसफुसाहट को सुन  सकता है. मुझे लगता है यहीं से कहावत बनी होगी कि दीवारों के कान भी होते हैं. 

एक बेहतरीन खूबसूरत अनुभव साथ लिए जा रहा हूँ जिसे ता उम्र दिल में संजोये रखूँगा......

-To be continued  

✍️मनमोहन जोशी


शनिवार, 27 अप्रैल 2019

Random Thoughts....




बहुत दिनों के बाद इस प्लेटफार्म पर वापस लौटा हूँ . इन दिनों जीवन इस त्वरा से गतिमान है कि हर एक जगह उपस्थिति दर्ज करवा पाना संभव भी नहीं हो पा रहा है.... ऐसा नहीं है कि इन दिनों लिख पढ़ नहीं रहा हूँ.... लेकिन निजी जीवन के अनुभवों को सार्वजनिक रूप से दर्ज नहीं कर रहा हूँ. 

रविवार कि इस सुबह मोबाइल से दूर चाय के कप और लैपटॉप  के साथ बैठे - बैठे सोच रहा हूँ कि ये जीवन है क्या ?? आम धारणा के अनुसार हमारे जन्म से मृत्यु के बीच तक की कालावधि ही जीवन कहलाती है ? मैं जीवन कि इस परिभाषा से सहमत नहीं हूँ. मेरे देखे जीवन तो वह है जिसमें जीवन्तता हो.

 हमारा जन्म क्या हमारी इच्छा से होता है? नहीं, यह तो प्रकृति की व्यवस्था का ही परिणाम है. लेकिन जन्म के बाद जीवन्तता का होना हमारी इच्छा और बुद्धिमता का ही परिणाम कहा जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त जीवन का मुख्य अंग एक चेतन तत्त्व है जो जीवन की सभी क्रियाओं का साक्षी होता है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन का तात्पर्य अस्तित्व की उस अवस्था से है जिसमे वस्तु या प्राणी के अन्दर चेष्टा, उन्नति और वृद्धि के लक्षण दिखायी दें. अगर कोई वस्तु चेष्टारहित है तो फिर उसे सजीव या जीवनयुक्त नहीं माना जाना चाहिए.

मेरे देखे जीवन का संबंध जीने से है, सिर्फ अस्तित्व का विद्यमान होना ही जीवन का चिन्ह नहीं है.

वैज्ञानिक नियम अनुसार, जीवन जिसमें ब्रह्मांड, आकाश गंगा, सौर मण्डल, ग्रह और तारे हैं.... और जो निरंतर  अंतरिक्ष में गतिमान हैं. आकाश गंगा एक दूसरे का चक्कर लगा रहे है.....तारे आकाशगंगा के केन्द्र का चक्कर लगा रहे हैं तो ग्रह तारों का चक्कर लगा रहे हैं और उपग्रह ग्रह का चक्कर लगा रहे हैं.  ये सब मुझे किसी भ्रम का ही विस्तार मालूम पड़ते हैं.

मेरे देखे मानव मन ही वह अंतरिक्ष है जहां भ्रम का निर्माण होता है इसमें ही ब्रह्मांड समाया हुआ है और हम इस भ्रम को  ही सत्य मान बैठे हैं.

फिर सत्य क्या है?? मेरी समझ में सत्य भी निरपेक्ष नहीं है. हर किसी का अपना अपना सत्य है. हर कोई अपनी समझ को सच मान कर बैठा है और वास्तविक सत्य का किसी को पता ही नहीं या ये कहूं तो बेहतर होगा कि वास्तविक सत्य जैसा कुछ भी विद्यमान नहीं है. या बेहतर परिभाषा हो सकती है कि प्रेम ही सत्य है...

फिर प्रश्न उठता है प्रेम क्या है?? हम जिसे प्रेम समझ कर बैठे हैं वह स्वार्थ का ही तो एक रूप है... हमें प्रेम उससे ही है जो हमारे किसी फायदे का है. लाभ ख़त्म प्रेम ख़त्म।।

 क्या प्रेम भी निरपेक्ष हो सकता है? या यह भी सापेक्ष ही होता है?? क्या हम एक बार जीते हैं एक बार मरते हैं और एक ही बार प्रेम होता है?? मेरे देखे असली प्रेम तो वही है जो किसी चीज़ का मोहताज नहीं.जो फायदे नुकसान के परे हो...क्या ऐसा प्रेम अस्तित्वमान है शायद हाँ लेकिन यह बताने का कम और महसूसने का विषय ज्यादा है. हर किसी के अपने अनुभव हो सकते हैं.. लेकिन समस्याओं का जन्म होता है अपने अनुभव को ही सच मान लेने से.

मेरे देखे हर दिन एक नया जीवन है इसे बेहतर करते जाना ही मानव मात्र का लक्ष्य होना चाहिए.... सोचते रहें... कुछ नया सीखते रहें.... प्रेम बांटते रहें....

-MJ