Diary Ke Panne

शनिवार, 26 अगस्त 2017

रोम जलता रहा .........




                       रोम के बारे में कहा जाता है कि जब पूरा रोम जल रहा था, तब सत्तासीन मूर्ख सम्राट नीरो बाँसुरी बजा रहा था. 1453 (ईसा पूर्व) यूरोप के रोम नगर में केन्द्रित एक साम्राज्य था. रोमन साम्राज्य में अलग-अलग स्थानों पर लातिन और यूनानी भाषाएँ बोली जाती थी और सन् 130 में इसने ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया था. यह विश्व के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था. ऑक्टेवियन ने जूलियस सीज़र के सभी संतानों को मार दिया. इसके बाद ऑक्टेवियन को रोमन सीनेट ने ऑगस्टस का नाम दिया. ऑगस्टस के बाद टाइबेरियस सत्तारूढ़ हुआ और उसके बाद  कैलिगुला आया जिसकी सन् 41 में हत्या कर दी गई फिर परिवार का एक मात्र वारिस क्लाउडियस शासक बना.  इसके  बाद नीरो का शासन आया जिसके शासन काल में रोम पूरी तरह से बर्बाद हो गया और नीरो अपनी भोग विलासिता में व्यस्त रहा  .....
                        
                       यह घटना कहावतों में बदल चुकी है. लेकिन ऐसा नहीं हैं कि नीरो, रोम और अकेले रोम में ही पैदा होते हों. नीरो तो समान परिस्थिति वाले किसी भी देशकाल में पैदा हो सकता है. मनोहर खट्टर को हरियाणा का नीरो ही कहना उचित होगा.... जिस तरह से हरियाणा जलता रहा और पहले से यह पता होने के बावजूद कि निर्णय गुरमीत (बाबा और राम रहीम कहने में मुझे आपत्ति है इसीलिए केवल गुरमीत) के खिलाफ आने की स्थिति में माहौल बिगड़ सकता है... यह सब होने दिया गया ... मनोहर खट्टर नीरो से भी आगे निकल गए....

                        अभी 15 अगस्त को ही जब गुरमीत का जन्मदिन था, के  समारोह में मनोहर खट्टर की पूरी कैबिनेट उसे जन्मदिन की बधाई देने पहुंची और राज्य सरकार की ओर से रुपये 51 लाख भेंट में दिए. हद तो ये है की ये सारे संगठन टैक्स के दायरे में भी नहीं आते ... प्रश्न उठता है कि एक पंथ निरपेक्ष राज्य का मुख्य मंत्री किसी तथाकथित आरोपी बाबा के चरणों में जनता का पैसा रख आया और सब चुप्पी साधे हुए हैं.   

                        कुछ लोग मनोहर खट्टर के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. लेकिन इससे भी क्या होगा??  क्या हमारे पास मनोहर खट्टर का कोई विकल्प है? कांग्रेस हो या बीजेपी सभी सत्ताधीश इस ढोंगी बाबा के सामने हाथ पसारे खड़े रहे हैं... क्या न्याय पालिका के शासन जैसी कोई व्यवस्था हो सकती है?? क्या सत्ता, न्याय पालिका को कुछ समय के लिए सौंपी जा सकती है?? कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर तलाशने होंगे....

                      इस पुरे मामले में सीबीआई ने 7 पीड़ित महिलाओं (जो यौन शोषण का शिकार हुई थी) के बयानों के आधार पर मामला बनाया था जिसमें से पांच, धमकियों और दबावों के आगे टूट गईं. लेकिन दो महिलायें पीछे नहीं हटी और उनकी 15 वर्षों की लड़ाई की परिणीती आखिर उनके जीत के रूप में हुई.... दोनों शक्ति स्वरूपा महिलाओं को प्रणाम ....

                      दूसरी महती भूमिका न्याय पालिका ने निभाई .... हाई कोर्ट लगातार मामले पर नज़र बनाए हुए था और सीबीआई के विशेष न्यायाधीश श्री जगदीप सिंह ने साहस के साथ मामले की सुनवाई की और निर्णय तक पहुंचे......  Do you understand section 144? हाई कोर्ट के जज ने सख्त लहजे में हरियाणा के DGP से पूछा. Yes your honour, DGP ने जवाब दिया..  हाई कोर्ट जज ने टिप्पणी की, अगर धारा 144  लागू है तो फिर ये लाखों लोग पंचकुला में कैसे इकट्ठे हो गए 

                    क्या हुआ होगा जब गुरमीत सिंह अपने काफिले के साथ कोर्ट के लिए रवाना हुआ होगा... लाखों लोगों व सरकारों का खुला समर्थन, विभिन्न मठाधीशों व केंद्र की सरकार का मौन समर्थन उसके साथ था. वहीँ एक साधारण जज एक असाधारण कार्य के लिए किस दृढ़ता से तैयार हुआ होगा? बिना किसी काफिले के वह अपने ऑफिस पहुंचा होगा.... उसकी मनः स्थिति क्या रही होगी?? कितने दबावों से वह गुजरा होगा?? रात भर नींद आई होगी या नहीं ??? जो निर्णय दिया उससे उसके अद्वितीय साहस का पता चलता है..... हमने साहस और वीरता के बहुत ही क्षुद्र प्रतिमान गढ़ रखे हैं. बहरहाल लगातार सख्त होते हाई कोर्ट और सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने अपने निर्णय से न्याय का गर्भपात होने से बचा लिया... अब इंतज़ार है सजा सुनाये जाने के दिन का ... देखना ये है कि न्याय होता है या  होते हुए दीखता भी है .....
    
                     न्याय के संबंध में शुरुआती विवरण प्राचीन यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिकमें मिलता है. प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक रिपब्लिकमें विभिन्न व्यक्तियों के मध्य हुए लम्बे संवादों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि हमारा न्याय से सरोकार होना चाहिए. रिपब्लिक के केंद्रीय प्रश्न व उपशीर्षक न्याय से ही सम्बंधित हैं, जिनमें वह न्याय की स्थापना हेतु व्यक्तियों के कर्तव्य-पालन पर जोर देते हैं.

                     प्लेटो कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा के तीन मुख्य तत्त्व हैं – 1) तृष्णा  2) साहस 3) बुद्धि. यदि किसी व्यक्ति की आत्मा में इन सभी तत्वों को समन्वित कर दिया जाए तो वह मनुष्य न्यायी बन जाएगा। ये तीनों गुण कुछेक मात्रा में सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं लेकिन प्रत्येक मनुष्य में इन तीनों गुणों में से किसी एक गुण की प्रधानता रहती है। न्यायाधीश में ये तीनों ही गुण होने चाहिए. फिलहाल न्यायाधीश श्री जगदीप सिंह इस परिभाषा में खरे उतरते नजर आ रहे हैं.....

                                         मनमोहन जोशी "Mj"

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

गजाननं भूतगणाधिसेवितम् - घरेलु गणेशोत्सव


"गजाननं भूतगणाधिसेवितम् ,कपित्थ-जम्बू-फल-चारु-भक्षणम् |
उमासुतं शोक-विनाश-कारकम्
,नमामि विघ्नेश्वर-पाद-पङ्कजम् ||"

            वैसे तो बचपन में सभी त्यौहार हमें प्रिय थे (अभी भी हैं) लेकिन गणेशोत्सव उन सबमें प्रमुख था...... मैं विभिन्न प्रबंधकीय पदों पर रहा हूँ और प्रबंधन में मास्टर्स डिग्री भी की है. लेकिन लगता है की प्रबंधन का जो प्रैक्टिकल नॉलेज गणेशोत्सव के प्रबंधन में बचपन में मिला वही अभी तक काम आ रहा है.... MBA की पढाई के दौरान जो सैद्धांतिक जानकारी मिली उसके बीज बचपन में बोये जा चुके थे .

            गणेशोत्सव की तैयारियां बहुत ही पहले से शुरू हो जाती थी... एक उच्च शक्ति प्राप्त कमिटी का गठन किया जाता था जिसका नाम होता था “घरेलु गणेश उत्सव समिति” अध्यक्ष होते थे बड़े भैया और वो ही अन्य पदों का बंटवारा करते थे...... हम चंदे से लेकर स्पोंसर तक का प्रबंध कर लेते थे.... गणेश विग्रह के स्पोंसर होते थे पापा, प्रसाद मम्मी तैयार कर देती थी, और सजावटी सामान के स्पोंसर होते थे बाबा ( ताऊ जी ) .....

           हमारा गणेश उत्सव “पोला” से शुरू होता था और अनंत चौदस तक चलता था (शायद भारत का सबसे लम्बा चलने वाला गणेशोत्सव).

           गणपति के जन्म के सम्बन्ध में अनेक आख्यान पढ़े हैं . गीता प्रेस गोरख पुर द्वारा प्रकाशित गणेश अंक गणेश जी के बारे में सम्पूर्ण प्रकाश डालता है . एक अप्रचलित आख्यान के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जल कर भस्म हो गया. 'मेरा पुत्र!' जगदम्बा का स्नेह रोष में परिणत हो गया. पुत्र का शव देखकर माता कैसे शान्त रहे.  दुःखी पार्वती से ब्रह्मा ने कहा जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो. देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की.  एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय. उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया. अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में  एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।

           गणेश भारत के अति प्राचीन देवता हैं। ऋग्वेद व यजुर्वेद में गणपति शब्द का उल्लेख मिलता है । अनेक पुराणों में गणेश की विरुदावली वर्णित है। पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

           पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।

           लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था।

            पंच देवोपासना में भगवान गणपति प्रमुख  हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण भारत में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। मंगलमूर्ति सिद्धिसदन बहुत अल्पश्रम से द्रवित होते हैं।

          पहले  हम हिंदी वर्णमाला की किताब में “गणेश” के “ग” पढ़ते थे कालांतर में गणेश को सांप्रदायिक कहकर पाठ्य पुस्तक से हटा दिया गया और उनकी जगह बच्चे पढने लगे “गधे” का “ग". परसाई जी ने कहीं लिखा है कि इस बदलाव से यह बोध होता है कि गणेश साम्प्रदायिक हैं और गधे सेक्युलर .....

                        - मन मोहन जोशी Mj”

 


गुरुवार, 24 अगस्त 2017

निजता का अधिकार : ऐसी भी अदालत है जो रूह परखती है...



               आज कल इतना कुछ घट रहा है (निजी जीवन और देश काल में भी) कि लिखने को बहुत कुछ है...आज सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर अपना बहु प्रतीक्षित फैसला सुना दिया. मेरे लिए ये निर्णय यूँ ख़ास है कि मैं लगातार इस मुद्दे पर लिखता और बोलता रहा हूँ... जस्टिस खेहर सिंह कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले हैं, लगता है वो, जाने से पहले सारे विवादित मामले निपटा कर जाना चाहते  हैं.....

                              बहरहाल निजता के अधिकार का मुद्दा केंद्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए आधार को अनिवार्य करने संबंधी कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठा था.

               केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह सवाल उठा कर सबको चौंका दिया कि क्या निजता का अधिकार मूल अधिकार है ? यह सवाल इसलिए भी व्यर्थ है, क्योंकि सुप्रीमकोर्ट ने अपनी कई व्याख्याओं में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों के तहत माना है | केंद्र सरकार  “आधार”  को अनिवार्य करने के  चक्कर में तरह - तरह की दलीलें दिए जा रही है.

                   केंद्र सरकार की ओर से “ आधार “ को आधार प्रदान करने के लिए बहस करते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत में कहा कि संविधान निजता के अधिकार को मान्यता नहीं देता. उन्होंने इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट को उन फैसलों पर पुनर्विचार करने को कहा जिनमें निजता के अधिकार को मूल अधिकार के तौर पर परिभाषित किया गया है. उल्लेखनीय है कि बिना संसद की मंज़ूरी और शीर्ष अदालत की मुहर के UPA सरकार ने “आधार” को लागू करने की हड़बड़ी दिखाई और उसी सरपट चाल को मोदी सरकार भी पकड़े हुए है. जबकि इसी वर्ष 16 मार्च को सुप्रीमकोर्ट इसकी अनिवार्यता पर रोक लगा चुकी है.

                हद तो ये है कि  कुछ ईष्ट देवों के अतिरिक्त जानवरों के भी आधार कार्ड  बन चुके हैं और कुछ सीनियर सिटीजन के हाथ के निशान घिस जाने या कैमरे पर न आने के कारण उनके “आधार” बनाने से इन्कार कर दिया गया है.

               शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही फैसला करना चाहिए और मुख्य न्यायमूर्ति  इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे. इसके बाद, मुख्य न्यायमूर्ति  के सामने इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी.

               हालांकि, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी. संविधान पीठ के सामने विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्रमश: खड़ग  सिंह (1962 )और एम पी शर्मा (1954) के मामलों में में दी गयी व्यवस्थाओं की विवेचना के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का फैसला किया गया.

                मुख्य न्यायमूर्ति  की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी. सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गईं. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस आर एफ नरिमन, जस्टिस ए एम सप्रे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे.

                 संविधान पीठ ने दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रखते हुये सार्वजनिक दायरे में आयी निजी सूचना के संभावित दुरूपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा एक हारी हुयी लडाई है. इससे पहले, 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि निजता का अधिकार मुक्म्मल नहीं हो सकता और सरकार के पास इस पर उचित प्रतिबंध लगाने के कुछ अधिकार हो सकते हैं.

                 अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आता  क्योंकि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है. केन्द्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था

                 इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुडे अनेक सवाल पूछे . इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार, “जीने की स्वतंत्रता” के अधिकार में ही समाहित है.  

                निजता को संविधान में मौलिक अधिकार का दर्जा दिलाने के खिलाफ अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम और राकेश द्विवेदी और अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहस की। इन वकीलों ने निजता को मौलिक अधिकार बनाए जाने की वकालत कर रहे गोपाल सुब्रमण्यम, कपिल सिब्बल, श्याम दीवान, सजन पवय्या, आनन्द ग्रोवर और मीनाक्षी अरोरा का विरोध किया।

                अनुभवी और दिग्गज वकीलों के पेश होने के बाद अर्घ्य सेनगुप्ता और गोपाल शंकरनारायणन ने बहस की। हल्की-फुल्की वकालत पृष्ठभूमि की वजह से जिरह के लिए उन्हें केवल 15 मिनट का समय दिया गया था। लेकिन इन युवा वकीलों ने जिस तरह से देश के बाहर निजता के अधिकार की संवैधानिक स्थिति का विश्लेषण किया, खासकर अमेरिका में निजता के अधिकार पर गहराई से प्रकाश डाला, उससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। जब दोनों ने अपने कोटे का समय खत्म कर लिया तो जस्टिस नरीमन ने कहा कि दोनों युवा वकीलों ने उम्मीद से कहीं ज्यादा शानदार वकालत की। निजता के संवैधानिक दर्जा देने के पक्षकार सुब्रमण्यन जैसे ही जवाब देने के लिए उठे, जस्टिस नरीमन ने उनसे कहा कि पहले इन युवा वकीलों को बधाई दीजिए।

                 अमेरिका में निजता के अधिकार को लेकर लम्बा आन्दोलन चला है ....अमेरिकी अदालतों ने इस अधिकार की रक्षा 19 वीं सदी के अंत तक नहीं की क्योंकि कॉमन लॉ ने इसे मान्यता नहीं दी थी. इसे मान्यता तब मिली जब चार्ल्स वारेन तथा लूई ब्रैंडाइस ने हार्वाड लॉ रिव्यू (1890) में एक ऐतिहासिक लेख लिखा- “द राइट टू प्राइवेसी”. निजता के अधिकार से संबंधित सैकड़ों मामले अमेरिकी अदालतों के समक्ष आये.  पहली बार इस मामले में न्यूयॉर्क अपीलेट कोर्ट ने रॉबर्सन बनाम रोचेस्टर फोल्डिंग बॉक्स कम्पनी (1908 )  में इस पर विचार किया और प्रतिवादी को इस अधिकार के उल्लंघन के लिए दोषी करार दिया।

                    फिर ग्रिसवर्ल्ड मामले (1965)  में जस्टिस डगलस ने कहा कि भले ही बिल ऑफ राइट्स में इस अधिकार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है लेकिन निजता का अधिकार  अन्य अधिकारों में निहित है । जस्टिस डगलस को ही निजता के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में स्थापित करने का श्रेय जाता है.

                    शंकरनारायणन ने कोर्ट में कहा कि अगर निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया तो सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को यूजर्स से निजी जानकारी लेने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा क्योंकि सोशल प्लैटफॉर्म और यूजर्स के बीच निजता का अनुबंध होगा।

                     सेनगुप्ता ने कहा, किसी व्यक्ति की कुछ करने या ना करने की स्वतंत्रता ही निजता है। निजता कई मायनों में असीमित है। अमेरिका जैसे विकसित देश में निजता को संवैधानिक दर्जा दिया गया है, फिर भी वहां सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन और एलजीबीटी जैसे अधिकारों की वैधता की जांच करने के लिए 'राइट टु प्रिवेसी' को हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया है।
                    सभी दलीलों को सुनने के उपरांत संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत मिले प्राण और देह की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया है. यानी अब किसी की निजी जानकारी पर सरकार का हक नहीं होगा. सर्वोच्‍च अदालत की 9 जजों की बेंच ने इस पर मामले पर एक मत से फैसला सुनाया. आधार से जुड़े मामले में कोर्ट बाद में सुनवाई करेगी.

                    सुप्रीम कोर्ट के एक के बाद एक शानदार निर्णयों को पढ़ कर “आलोक” जी का एक शेर याद आता है:

“ऐसी भी अदालत है जो रूह परखती है,
महदूद नहीं रहती वो सिर्फ़ बयानों तक. “ 


                                 - मनमोहन जोशी "Mj"

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

तीन तलाक - 395 पन्नों पर न्याय...


                    बारिश की तेज़ आवाज़ कानों पर पड़ती है .... उठ कर देखता हूँ तो सुबह के 6:30 बज रहे हैं..... बालकनी में जा कर बैठता हूँ.... और बारिश को निहारता रहता हूँ... इस बार यूँ तो बारिश कम हुई है लेकिन जब कभी सुबह के समय बारिश होती है बहुत खूबसूरत मालूम पड़ती है....

                  9:00 बजे ऑफिस पहुँचता हूँ... लगातार meetings और क्लासेज का दौर... और इस बीच में ऑफिस बॉय आकर कहता है, “सर, मीडिया वाले आये हैं... सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय पर आपकी राय जानना चाहते हैं..” तब पता चलता है कि बहुप्रतीक्षित तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है... मैं लगातार इस मामले को फॉलो करता  रहा हूँ | केस की सुनवाई  के दौरान किये गए कई मुर्खता पूर्ण बातों और दिए गए विद्वत्ता पूर्ण तर्कों का मैं साक्षी रहा हूँ |

                 तो प्रश्न है मेरी राय क्या है??? कठिन प्रश्न है क्यूंकि मेरी राय से हो सकता है कई लोगों कि भावनाए आहत हो जाएँ.... चलिए फिर भी राय रखते हैं....

                 अव्वल तो ये कि बार– बार ये पढने में आ रहा था कि जो पीठ मामले कि सुनवाई कर रही हैं उनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले जज शामिल हैं जो हैं : चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर । मेरे देखे ये कोरी मुर्खता है क्यूंकि न्यायाधीश केवल न्यायाधीश होता है वह धर्म, जाति , सम्प्रदाय, लिंग, वंश  के परे अपना निर्णय सुनाता है, जो केवल और केवल सुसंगत तथ्यों पर आधारित होता है...

                तकरीबन 22 मुस्लिम देश, जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं, अपने यहां सीधे-सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से तीन तलाक की प्रथा खत्म कर चुके हैं.

               मिस्र पहला देश था जिसने 1929 में इस विचार को कानूनी मान्यता दी. वहां कानून के जरिए घोषणा की गई कि तलाक को तीन बार कहने पर भी उसे एक ही माना जाएगा और इसे वापस लिया जा सकता है. लेकिन लगातार तीन तूहरा  (जब बीवी का मासिक चक्र न चल रहा हो) के दौरान तलाक कहने से तलाक अंतिम माना जाएगा. 1935 में सूडान ने भी कुछ और प्रावधानों के साथ यह कानून अपना लिया. आज ज्यादातर मुस्लिम देश ईराक से लेकर संयुक्त अरब अमीरात, जॉर्डन, कतर और इंडोनेशिया तक ने तीन तलाक के मुद्दे पर तैमिया के विचार को स्वीकार कर लिया है.

              ट्यूनीशिया तो तैमिया के विचार से भी आगे निकल चुका है. 1956 में बने कानून के मुताबिक वहां अदालत के बाहर तलाक को मान्यता नहीं है. ट्यूनीशिया में बाकायदा पहले तलाक की वजहों की पड़ताल होती है और यदि जोड़े के बीच सुलह की कोई गुंजाइश न दिखे तभी तलाक को मान्यता मिलती है. अल्जीरिया में भी तकरीबन यही कानून है.

               वहीं तुर्की ने मुस्तफा कमाल अतातुर्क के नेतृत्व में 1926 में स्विस सिविल कोड अपना लिया था. यह कानून प्रणाली यूरोप में सबसे प्रगतिशील और सुधारवादी मानी जाती है और इसके लागू होने का मतलब था कि शादी और तलाक से जुड़े इस्लामी कानून अपने आप ही हाशिये पर चले गए. हालांकि 1990 के दशक में इसमें कुछ संशोधन जरूर हुए लेकिन जबर्दस्ती की धार्मिक छाप से यह तब भी बचे रहे. बाद में साइप्रस ने भी तुर्की में लागू कानून प्रणाली अपना ली.

              पाकिस्तान में तीन तलाक के नियम पर दोबारा विचार की शुरुआत एक विवाद के चलते हुई. 1955 में वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा ने अपनी बीवी को तलाक दिए बिना सेक्रेटरी से शादी कर ली थी. इसपर पाकिस्तान के संगठन ऑल पाकिस्तान वूमैन एसोसिएशन ने आंदोलन छेड़ दिया और सरकार को शादी और पारिवारिक कानूनों पर एक सात सदस्यीय आयोग बनाना पड़ा.

              श्रीलंका जहां तक़रीबन  10  प्रतिशत मुस्लिम आबादी रहती है, का शादी और तलाक अधिनियम, 1951 जो 2006 में संशोधित हुआ था, तुरंत तलाक वाले किसी नियम को मान्यता नहीं देता. इसके मुताबिक शौहर को तलाक देने से पहले काजी को इसकी सूचना देनी होती है. नियमों के मुताबिक अगले 30 दिन के भीतर काजी मियां-बीवी के बीच सुलह करवाने की कोशिश करता है. इस समयावधि के बाद ही तलाक हो सकता है लेकिन वह भी काजी और दो चश्मदीदों के सामने होता है. इस्लामाबाद की इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ मुहम्मद मुनीर अपने एक शोधपत्र में बताते हैं कि श्रीलंका में तीन तलाक के मुद्दे पर बना कानून एक आदर्श कानून है.

               इस सूची में तुर्की और साइप्रस भी शामिल हैं जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष पारिवारिक कानूनों को अपना लिया है; ट्यूनीशिया, अल्जीरिया और मलेशिया के सारावाक प्रांत में कानून के बाहर किसी तलाक को मान्यता नहीं है; ईरान में शिया कानूनों के तहत तीन तलाक की कोई मान्यता नहीं है. कुल मिलाकर यह अन्यायपूर्ण प्रथा इस समय भारत और दुनियाभर के सिर्फ सुन्नी मुसलमानों में बची हुई है.

                सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में लिली थॉमस मामले में कहा था कि समान नागरिक संहिता क्रमिक तरीके से ही लागू होना चाहिए. मुस्लिम पर्सनल लॉ को आधुनिक समाज में महिलाओं की समानता के अनुसार कानूनबद्ध करके अदालतों में न्याय की व्यवस्था होने से इसकी शुरुआत हो सकती है. मुस्लिम महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून का लाभ मिलता है. व्हॉट्सएप्प, ट्विटर, ई-मेल द्वारा आधुनिक तकनीक से दिए गए तीन तलाक को मानने वाले मुस्लिम संगठन विवाह की न्यूनतम आयु एवं पंजीकरण के आधुनिक कानून पर सहमत क्यों नहीं होते? सोती हुई पत्नी को पति द्वारा तीन बार तलाक बोलने से होने वाले तलाक को शिया भी स्वीकार नहीं करते और पाकिस्तान समेत 22 इस्लामिक मुल्क इसे बैन कर चुके हैं.

               2008 के एक मामले में फैसला देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज बदर दुरेज अहमद ने कहा था कि भारत में तीन तलाक को एक तलाक (जो वापस लिया जा सकता है) समझा जाना चाहिए |

सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला :

मामले के पक्षकार : 
    
     1)   केंद्र सरकार : इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के ह्यूमन राइट्स से जुड़ा मुद्दा बताता है। ट्रिपल तलाक का सख्त विरोध करता है।
     2)   पर्सनल लॉ बोर्ड : इसे शरीयत के मुताबिक बताते हुए कहता है कि मजहबी मामलों से अदालतों को दूर रहना चाहिए।
 3जमीयत-ए-इस्लामी हिंद: ये भी मजहबी मामलों में सरकार और कोर्ट की दखलन्दाजी का विरोध करता है। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़ा है।

    4) मुस्लिम स्कॉलर्स: इनका कहना है कि कुरान में एक बार में तीन तलाक कहने का जिक्र नहीं है।

                  1400 साल पुरानी तीन तलाक की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट के  5 जजों की बेंच ने 3:2 की मेजॉरिटी से कहा कि तीन तलाक शून्य, असंवैधानिक और गैरकानूनी है। 

                चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस नजीर ने अपने निर्णय में लिखा : “तीन तलाक मुस्लिम धर्म की रवायत है, इसमें ज्यूडिशियरी को दखल नहीं देना चाहिए। अगर केंद्र तीन तलाक को खत्म करना चाहता है तो 6 महीने के भीतर इस पर कानून लेकर आए और सभी पॉलिटिकल पार्टियां इसमें केंद्र का सहयोग करें|”

               जस्टिस जोसफ ने लिखा : मैं मुख्य न्यायमूर्ति से सहमत नहीं हूँ | तीन तलाक कभी भी इस्लाम के मूल में नहीं रहा... कोई प्रथा केवल इसीलिए वैध नहीं ठहराई  जा सकती क्यूंकि वो लम्बे समय से चली आ रही है.... (क्या ! बुद्धिमानी पूर्ण बात कही विद्वान न्यायमूर्ति ने वाह...)

             जस्टिस नरीमन ने स्वयं का और यू यू ललित साहब का फैसला पढ़ते हुए कहा: “तीन तलाक 1934 के कानून का हिस्सा है। उसकी संवैधानिकता को जांचा जा सकता है। तीन तलाक असंवैधानिक है|”

               इस मामले में एक लड़ाई भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व अनुच्छेद 25 के बीच भी थी.... न्याय पीठ ने बहुमत से फैसला किया की अनुच्छेद 25 धर्म से सम्बंधित है और अनुच्छेद 14 का सम्बन्ध मानवीयता से है और इन दोनों में अनुच्छेद 14 को वरीयता दी जानी चाहिए....
    
                मेरे देखे तलाक का अधिकार होना ही चाहिए लेकिन एक सम्यक कानूनी प्रक्रिया के तहत ..... सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ नया नहीं है... कोर्ट ने 2002 में लिली थॉमस मामले में दिए गये स्वयं के निर्णय को ही दोहराया है... एक तरह से कोर्ट ने इस मामले में निर्णय देने से अपने आप को दूर कर लिया है और केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर कानून बनाने के लिए दिशा निर्देशित किया है देखें अब छः माह के भीतर सरकार क्या करती है??

               रात के 9 :40 हो रहे हैं श्रीमती जी दो बार खाने के लिए  आवाज़ लगा चुकी हैं...
                                        -      मनमोहन जोशी “MJ” 

पुनश्च : क्या कहता है शर्रियत तलाक के बारे में? जानने के लिए इसी ब्लॉग में पढ़ें : "दुनिया मेरे आगे "

रविवार, 20 अगस्त 2017

कल रात जहां मैं था .......




“ले चल मुझे भुलावा दे कर मेरे नाविक धीरे-धीरे
जिस निर्जन में सागर लहरी, अम्बर के कानों में गहरी
निश्चल प्रेम कथा कहती हो तज कोलाहल की अवनि रे”
                                     - जयशंकर प्रसाद

              सुबह के 9.00 बज रहे हैं....सुबह 6.00 बजे जागने वाला मैं अब तक सोया पड़ा हूँ….. आँख खोलता हूँ तो पलकें भारी लगती हैं ... शायद  कल शाम का नशा उतरा नहीं है..... ये गीत और कविता का खुमार है उतरने में समय लगेगा.... न ही उतरे तो ठीक है......  खुमार के इस माध्यम के बारे में विभिन्न विद्वानों ने बहुत कुछ कहा है...

             आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार जब कवि "भावनाओ की प्रसव" से गुजरते है तो कविताए प्रस्फूटित होती हैं । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का एक निबंध कभी पढ़ा था जिसका शीर्षक है  "कविता क्या है ?" इसमें उन्होंने  कविता को "जीवन की अनुभूति" कहा है।

             आचार्य विश्वनाथ का कहना है, “वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्”  यानि रस की अनुभूति करा देने वाली वाणी काव्य है। तो पंडितराज जगन्नाथ का मानना है , “रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्”  यानि सुंदर अर्थ को प्रकट करने वाली रचना ही काव्य है। वहीँ पंडित अंबिकादत्त व्यास का मत है, “लोकोत्तरानन्ददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातुयानि लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है। आचार्य श्रीपति के शब्दों में  -

“शब्द अर्थ बिन दोष गुण, अंहकार रसवान
ताको काव्य बखानिए श्रीपति परम सुजान”

             संस्कृत के विद्वान आचार्य भामह के अनुसार "कविता शब्द और अर्थ का उचित मेल" है। "शब्दार्थो सहितों काव्यम्" | महादेवी वर्मा ने कविता का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा कि - "कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है।"

              कल की शाम इस साहित्य यज्ञ का आयोजन किया गया “रंग देस” के नाम से | कौटिल्य एकेडमी के toppers को सम्मानित करने के साथ ही युवा पीढ़ी को साहित्य की इस विधा से से परिचित करवाना इस आयोजन का उद्देश्य था........ मंच पर कविता तिवारी जी (अद्भुत कवियित्री ) से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा “मैं कुछ समय पहले ही यहाँ आई थी, इसी सभागृह में आयोजन हुआ था पर न तो इतने श्रोता थे और न ही इतना जोश |" कार्यक्रम जिसका आयोजन कौटिल्य एकेडमी के बैनर तले किया गया था की सफलता के पीछे कई कारक थे –

प्रथम – अग्रज श्रीद्धांत जोशी सर का अद्भुत प्रबंधकीय कौशल.... जब कार्यक्रम की रूप रेखा बनाई गई थी उसी समय उनके मस्तिष्क में एक कार्य योजना थी कि इसे कैसे सफल बनाना है... उन्हें पता होता है कि कौन सा काम किसे सौंपना है और बस फिर सब आसान हो जाता है.... वो अपने आप में ही एक आईआईएम हैं....

द्वितीय – भाई विनीत शुक्ल द्वारा चुने गए अद्भुत रचनाकार --

शुरुआत भाई निवेश साहू के काव्य पाठ से हुआ और कहते हैं न “माहौल लूट लेना” निवेश ने वही किया.... निवेश की एक ग़ज़ल की पंक्तियों "जाओ कोई तारा वारा नहीं गिरता | हम ही छत से जुगनू फेंका करते थे |" के बाद दस मिनट तक तालियाँ ही बजती रहीं ..... ये था आगाज़.... 


फिर अनुज रचित दीक्षित ने समा बाँधा...... बहुत तालियाँ और वाह वाही बंटोरी | लेकिन मुझे लगता है की रचित जितना बुद्धिमत्ता पूर्ण लिखते हैं उस हिसाब से तालियाँ कम थीं....... मुझे याद आता है जब पहली बार मैंने रचित को live सुना था तो उनकी एक कविता पर टिप्पणी करते हुए मैंने कहा था कि ये कुछ अधूरी मालूम पड़ती है.... विद्वान कवि रचित ने मुझे  वो कविता भेजी और कहा भैया बताइये इसमें क्या सुधार कर सकता हूँ ??.... तब मैंने जवाब में लिखा था  कि मैं  कविता , साहित्य, गीत या ग़ज़ल का जानकार नहीं हूँ .... अपितु ये कहना भी गर्वोक्ति होगी की मैं कविता या साहित्य की समझ भी रखता हूँ.... मैं तो केवल साहित्य प्रेमी हूँ मैं विद्वानों को क्या सीख दूँ.....

फिर धीरज चौहान .... मेरे प्रिय गीतकार अमन और युवा शायर माध्यम सक्सेना ने अपना जादू बिखेरा.... इन लोगों को पूरी रात सुना जा सकता है... एक रोज़ तो देर रात तक मैं अमन को you tube पर सुनता रहा और आधी रात के बाद जब मैंने अमन को मेसेज भेजा "अमन यू आर  ग्रेट" .... भाई जाग रहा था मानो मेरे ही मेसेज की प्रतीक्षा कर रहा हो ... तुरंत ही रिप्लाई आया .......

कविता तिवारी तो अपने आप में ही अद्भुत हैं उन्हें you tube पर खूब सुना है.... कल के कार्यक्रम में वो पढ़ कम रही थीं और तालियाँ ज्यादा आ रहीं थीं... वस्तुतः तालियों के कारण उन्हें पढने का अवसर ही नहीं मिल रहा था.... अद्भुत.....

तृतीय : My FM और कौटिल्य टीम का ग़ज़ब का समन्वय...... मैनेजमेंट की पूरी  ज़िम्मेदारी भाई सुनील तिवारी ने हर्षदीप खनुजा के साथ अपने कंधों पर ले रखी थी... हम सुबह के 7 बजे से संपर्क में थे...... दोपहर 12:30 बजे सुनील तिवारी सर का कॉल आया बोले , “सर मौसम ख़राब हो गया है... बारिश हो रही है क्या करें??” मैंने कहा कार्यक्रम के पहले बंद हो जायेगी और कार्यक्रम शानदार होगा भरोसा रखो..... ग़ज़ब की ऊर्जा के साथ भाई सुनील तिवारी व टीम ने हजारों श्रोताओं को संभाला.... कार्यक्रम की सफलता के लिए लिए MY FM के विनोद जी, आकाश जी, RJ नवनीत , RJ अंजलि और टीम कौटिल्य के सभी सदस्य  बधाई के पात्र हैं.....

अंतिम : last but not the least..... डॉ कुमार विश्वास का जादू..... कुमार जी के बारे में इतना कुछ लिखने को है कि शायद एक किताब लिखी जा सकती है .... उनका होना ही किसी भी कार्यक्रम के  सफलता की गारंटी है....... 

बकौल "खालिद" साहब :

हर गोशा गुलिस्ताँ था कल रात जहाँ मैं था
इक जश्न-ए-बहाराँ था कल रात जहाँ मैं था

नग़में थे हवाओं में जादू था फ़िज़ाओं में
हर साँस ग़ज़लख्वाँ था कल रात जहाँ मैं था


                                                  - मनमोहन जोशी "मन"