Diary Ke Panne

शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

गजाननं भूतगणाधिसेवितम् - घरेलु गणेशोत्सव


"गजाननं भूतगणाधिसेवितम् ,कपित्थ-जम्बू-फल-चारु-भक्षणम् |
उमासुतं शोक-विनाश-कारकम्
,नमामि विघ्नेश्वर-पाद-पङ्कजम् ||"

            वैसे तो बचपन में सभी त्यौहार हमें प्रिय थे (अभी भी हैं) लेकिन गणेशोत्सव उन सबमें प्रमुख था...... मैं विभिन्न प्रबंधकीय पदों पर रहा हूँ और प्रबंधन में मास्टर्स डिग्री भी की है. लेकिन लगता है की प्रबंधन का जो प्रैक्टिकल नॉलेज गणेशोत्सव के प्रबंधन में बचपन में मिला वही अभी तक काम आ रहा है.... MBA की पढाई के दौरान जो सैद्धांतिक जानकारी मिली उसके बीज बचपन में बोये जा चुके थे .

            गणेशोत्सव की तैयारियां बहुत ही पहले से शुरू हो जाती थी... एक उच्च शक्ति प्राप्त कमिटी का गठन किया जाता था जिसका नाम होता था “घरेलु गणेश उत्सव समिति” अध्यक्ष होते थे बड़े भैया और वो ही अन्य पदों का बंटवारा करते थे...... हम चंदे से लेकर स्पोंसर तक का प्रबंध कर लेते थे.... गणेश विग्रह के स्पोंसर होते थे पापा, प्रसाद मम्मी तैयार कर देती थी, और सजावटी सामान के स्पोंसर होते थे बाबा ( ताऊ जी ) .....

           हमारा गणेश उत्सव “पोला” से शुरू होता था और अनंत चौदस तक चलता था (शायद भारत का सबसे लम्बा चलने वाला गणेशोत्सव).

           गणपति के जन्म के सम्बन्ध में अनेक आख्यान पढ़े हैं . गीता प्रेस गोरख पुर द्वारा प्रकाशित गणेश अंक गणेश जी के बारे में सम्पूर्ण प्रकाश डालता है . एक अप्रचलित आख्यान के अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जल कर भस्म हो गया. 'मेरा पुत्र!' जगदम्बा का स्नेह रोष में परिणत हो गया. पुत्र का शव देखकर माता कैसे शान्त रहे.  दुःखी पार्वती से ब्रह्मा ने कहा जिसका सिर सर्वप्रथम मिले उसे गणेश के सिर पर लगा दो. देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की.  एक गजराज का नवजात शिशु मिला उस समय. उसी का मस्तक पाकर वह बालक गजानन हो गया. अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में  एक दाँत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदन्त हैं।

           गणेश भारत के अति प्राचीन देवता हैं। ऋग्वेद व यजुर्वेद में गणपति शब्द का उल्लेख मिलता है । अनेक पुराणों में गणेश की विरुदावली वर्णित है। पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

           पद्म पुराण के अनुसार एक बार श्री पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया। गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया।

           लिंग पुराण के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिये वर माँगा। आशुतोष शिव ने 'तथास्तु' कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया। समय आने पर गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था।

            पंच देवोपासना में भगवान गणपति प्रमुख  हैं। प्रत्येक कार्य का प्रारम्भ 'श्रीगणेश' अर्थात उनके स्मरण-वन्दन से ही होता है। उनकी नैष्ठिक उपासना करने वाला सम्प्रदाय भी था। दक्षिण भारत में भगवान गणपति की उपासना बहुत धूम-धाम से होती है। 'कलौ चण्डीविनायकौ।' जिन लोगों को कोई भौतिक सिद्धि चाहिये, वे इस युग में गणेश जी को शीघ्र प्रसन्न कर पाते हैं। मंगलमूर्ति सिद्धिसदन बहुत अल्पश्रम से द्रवित होते हैं।

          पहले  हम हिंदी वर्णमाला की किताब में “गणेश” के “ग” पढ़ते थे कालांतर में गणेश को सांप्रदायिक कहकर पाठ्य पुस्तक से हटा दिया गया और उनकी जगह बच्चे पढने लगे “गधे” का “ग". परसाई जी ने कहीं लिखा है कि इस बदलाव से यह बोध होता है कि गणेश साम्प्रदायिक हैं और गधे सेक्युलर .....

                        - मन मोहन जोशी Mj”

 


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