Diary Ke Panne

सोमवार, 30 जनवरी 2017

ग़ालिब - ए -खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं.......

30- January- 2017




                          एक समय की बात है किसी राज्य में एक प्रतापी राजा  हुए ........ एक फ़कीर से उन्हें बड़ा प्रेम था और  फकीर भी राजा का बड़ा सम्मान करता था...........फकीर  अपनी मस्ती में देश दुनिया में घूमता रहता .... राजा  को लगता कि यदि ये मेरे राज्य में बस जाए तो ठीक हो..... प्रेम वश राजा  जब भी उस फकीर से मिलता तो आग्रह करता कि आप मेरे साथ चलें और राज महल में रहें....... फकीर भी घुमक्कड़ी से थक चुका  था ....... उसने राजा  का आग्रह मान लिया.....

                          फकीर के आने के बाद राजा का साम्राज्य कई गुना बढ़ा ......फकीर घूम-घूम कर प्रवचन करते और प्रवचन में राजा और उसके साम्राज्य की ही चर्चा होती.... राजा  की कीर्ति दूर दिगंत तक फैलती चली गई......राजा  इस कीर्ति का हक़दार भी था......लेकिन फकीर की फक्कड़ी से कुछ दरबारी परेशान थे.....वे लगातार राजा  के कान भरते और फकीर तथा उसकी नीतियों की आलोचना करते ..... राजा को बार-बार ये एहसास करवाया जाता था कि उसकी कीर्ति के पीछे  तो उसकी क्षमता और दरबारियों का हाथ है फकीर तो आराम से बैठ कर पैसे बना रहा है ......... फ़कीर ने भी कभी किसी बात का श्रेय लेने की होड़ नहीं दिखाई......

                        एक दिन कुछ ऐसा घटा..... किसी बात पर चर्चा के दौरान राजा ने फकीर से कहा.... तुममें, मुझमें और बाकी दरबारियों में क्या फर्क है.... इस प्रश्न का कारण था कि इन कुछ वर्षों में घुमक्कड़ फकीर ने भी स्वयं के लिए महल बनवा लिया था... और रथ भी खरीद ली थी..... राजा के मन में प्रश्न का उठना स्वाभाविक था..... फकीर मुस्कुराया उसने कहा महाराज आप अपने ख़ास दरबारियों को लेकर कल मेरे साथ राज्य की सीमा तक चलें तो शायद मैं फर्क बता सकूँ.

                     अगले दिन राजा अपने ख़ास दरबारियों और फकीर के साथ राज्य की सीमा की ओर चल पड़ा........ सीमा पर पहुँच कर फकीर ने कहा.... मैं यहाँ से वापस नहीं लौटना चाहता ... क्या आपमें से किसी में हिम्मत है कि  मेरे साथ अनजाने अनंत की यात्रा पर चल सके बिना किस भविष्य निधि और सुरक्षा के...... सभी चौंके!! सभी ने कहा नहीं हम वर्तमान पद ,प्रतिष्ठा और संपत्ति को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते ..... फकीर ने कहा यही फर्क है ... फकीर चल पड़ा अपने सामर्थ्य और इश्वर पर विश्वास के भरोसे अनजाने भविष्य की ओर अनंत की यात्रा पर .....

"ग़ालिब - ए -खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं.......

रोइए जार जार क्या कीजिये हाय हाय क्यूँ??"

                                          -  मन मोहन जोशी "मन"

शनिवार, 28 जनवरी 2017

और न कोई सुन सके ......

27 January 2017



   
                भक्त या धार्मिक व्यक्ति दो तरह के होते हैं -  एक जो शंख और घंटे की ध्वनि करते रहते हैं और जोर से मंत्रोचारण करते हैं ..... इससे आस पास के लोगों को पता चलता रहता है कि पूजा पाठ चल रही है और पंडित जी भक्ति भाव वाले धार्मिक व्यक्ति  हैं ..... दुसरे वो जिनके बारे में कबीर ने कहा :

           “सब रग तंत रबाब तन , विरह बजावे नित्त .
           और न कोई सुन सके कह साईं के चित्त..””
            
               अर्थात : मेरा शरीर ही रबाब ( एक तरह का वाद्य यन्त्र ) बन गया है और रग-रग उसके तार ....... विरह इस वाद्य यन्त्र को निरंतर  बजा रहा है..... ये जो जप है, इस तरह का जो ईश्वर का स्मरण है वो केवल भक्त के मन से निकलता है और केवल उसके ईश्वर को ही सुनाई  पड़ता है. 

                ठीक उसी तरह  कार्य क्षेत्र में भी दो तरह के कर्मचारी होते हैं  : पहले वो जो काम एक करते हैं और दस जगह गिनाते फिरते हैं और दुसरे वो जो चुपचाप काम करते रहते हैं ये सोचकर कि उसके इमीडियेट बॉस को जानकारी है कि क्या हो रहा है.... कौन ठीक है??  इस पर हम सब की अपनी – अपनी राय हो सकती है......

               मेरे देखे अपनी ड्यूटी को निभाते रहना, बिना इस बात का ढोल पिटे कि क्या काम किया जा रहा है उच्च कोटि के कर्मचारी का गुण है....... बस इमीडियेट बॉस को ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे कर्मचारियों के लिए कार्यक्षेत्र में अनुकूल माहौल बना रहे और ऐसी परिस्थितियाँ न पैदा हों कि अपने वास्तविक कार्य को छोड़ वे भी ढोल पीटने में लग जाएँ.........


                   -मन मोहन जोशी “मन”

बुधवार, 25 जनवरी 2017

कर्म क्षेत्रे

25 जनवरी 2017

डिस्क्लेमर : डायरी के इस पन्ने का सम्बन्ध किसी जीवित या मृत व्यक्ति से  हो सकता है .... आप चाहे तो इस उद्धरण को अपने  कर्म क्षेत्र से जोड़ कर भी देख सकते हैं ...

         


           रात के १०.३० बजे हैं गीता का अध्याय तीन पढ़ रहा हूँ ....कमाल का  संवाद है कृष्ण और अर्जुन के मध्य ... जितनी  बार पढो कुछ नया ही मिलता है....... पढ़ते हुए ख़याल आता है  कि हर दौर के कर्म क्षेत्र में एक दुर्योधन होता है जो सरे आम भरी सभा में व्यवस्था का चीर हरण करता है .........सोचता हूँ दोषी कौन है क्या दुर्योधन? मेरे देखे दुर्योधन दोषी नहीं है..... मुझे लगता है कि वह किसी तरह की हीन भावना से ग्रस्त है अर्थात बीमार है उसे तो इलाज की ज़रूरत है........

 तो फिर चीर हरण के लिए दोषी कौन है???.....

           सबसे पहला दोष ध्रितराष्ट्र का है मेरे देखे ध्रितराष्ट्र का पात्र शारीरिक रूप से अँधा नहीं है शायद उसे इसीलिए अँधा बताया गया है क्यूंकि वह गलतियों को देखते - जानते भी उनके विरुद्ध कोई निर्णय नहीं लेता या शायद वो कान से देखता हो??? कान से देखना मतलब केवल सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करना . 

और

 दूसरा दोष भीष्म का है जो बेकार की प्रतिज्ञा से बंधे हुए हैं.... या इस राजव्यवस्था को आप अलाइंस की सरकार मानो.........
                  
           जो भी हो अगर ध्रितराष्ट्र समय पर आँख खोल लें या भीष्म अपनी प्रतिज्ञा से बाहर आ जाएँ तो सरे आम व्यवस्था रुपी बहु का चीर हरण करने का दुस्साहस किसी दुर्योधन में न हो......
                             
           बहरहाल क्या श्री कृष्ण भी किसी तरह से दोषी हैं..... शायद हाँ वे हथियार न उठाने के दोषी हैं.... लेकिन फिर प्रश्न ये उठता है कि कौरव पांडव की इस लड़ाई से कृष्ण का क्या लेना देना.....आवेदन कोई दे रहा है........... सभा में निर्णय बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर  से आ रहा है.... जुआ कोई खेल रहा है ... लोग अपनी  सहमती से दांव लगा रहे हैं..... 

          इन सब में कृष्ण कहाँ से दोषी हो गए???????  घूम फिर कर हर बार महाभारत का केंद्र कृष्ण कैसे बन जाते हैं??...... सोचता हूँ  कृष्ण हर महाभारत का केंद्र इसी लिए बन जाते हैं क्यूंकि कृष्ण कहते हैं - “ हे अर्जुन  इस संसार का कारक  तत्त्व मैं हूँ और  मुख्य कार्यपालन अधिकारी होने के नाते  जो कुछ भी यहाँ घट रहा है उसका कारक तू मुझे ही जान......लेकिन अर्जुन, संसार का कारक तत्त्व  होने के बाद भी कर्म बंधन मुझे नहीं लिप्त करते  और न ही मैं कर्म बंधनों से बंधता हूँ......

          खैर जो भी हो सारे छिछालेदर की जिम्मेदारी मुख्य कार्यपालक होने के नाते कृष्ण की है वही ज़िम्मेदार हैं........ कब तक साड़ी की लम्बाई बढ़ाई जाती रहेगी???...... मेरे देखे अब कृष्ण को हथियार उठा लेना चाहिए या फिर किसी वन में जा कर अंगद के पुनर्जन्म की प्रतीक्षा करनी चाहिए .

     "कलम के जिस्म भी चुप हों तो हम चुप रह नहीं सकते,

      कला की की किस्म भी चुप हो तो हम चुप रह नहीं सकते|
           भरे दरबार में लज्जा उघाड़ी जाए जो घर की,                              पितामह भीष्म भी चुप हों तो हम चुप रह नहीं सकते||"



                      -      मनमोहन जोशी “Mj”

सोमवार, 23 जनवरी 2017

बालाजी दर्शन व चूड़ा कर्म

१८ जनवरी 2017





                                       सुबह के 8.00 बजे हैं..... आज बालाजी के दर्शन के लिए जाना है.... बड़े भैया कल शाम को ही धोती और दिव्य दर्शन के टिकट ले आये थे ...भैया ने बताया की ९.३० से १०.०० के बीच मुंडन करवाने जाना है फिर एक बजे दर्शन के लिए लाइन में लगेंगे ...... पापा कहते हैं कोई पुस्तक जिसमें तिरुपति बालाजी का महात्म्य दिया हो खरीद लेते तो ठीक रहता .... मैं कहता हूँ  चलो सब बैठ जाओ तो मैं बालाजी का महात्म्य पढ़ कर सुनाता हूँ....... गूगल बाबा से पूछ कर मैं भगवान् व्यंकटेश का महात्म्य पढ़ने लगता हूँ...... पापा बीच में उठ कर चले जाते हैं, उन्हें बच्चों के लिए दलिया बनवाना है........ मानो इश्वर बच्चों में ही है........भगवान् व्यंकटेश का महात्म्य पढ़ने पर रहस्य की कई परतें खुलने लगती हैं जैसे:

 1. इस मंदिर में वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे हुए बाल उनके असली बाल हैं। ऐसा कहा जाता है कि ये बाल कभी उलझते नहीं है और हमेशा इतने ही मुलायम रहते हैं।

2. वेंकटेश्वर स्वामी यानी बालाजी की मूर्ति का पिछला हिस्सा हमेशा नम रहता है। यदि ध्यान से कान लगाकर सुनें तो सागर की आवाज सुनाई देती है।

3. मंदिर के दरवाजे कि दायीं ओर एक छड़ी रहती है। माना जाता है इस छड़ का उपयोग भगवान के बाल रूप को मारने के लिए किया गया था। तब उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी। जिसके कारण बालाजी को चंदन का लेप ठोड़ी पर लगाए जाने की शुरुआत की गई।

4. सामान्य तौर पर देखने में लगता है कि भगवान की मूर्ति गर्भ गृह के बीच में है, लेकिन वास्तव में, जब आप इसे बाहर से खड़े होकर देखेंगे, तो पाएंगे कि यह मंदिर के दायीं ओर स्थित है।

 5. मूर्ति पर चढ़ाए जाने वाले सभी फूलों और तुलसी के पत्तों को भक्तों में न बांटकर, परिसर के पीछे बने पुराने कुएं में फेंक दिया जाता है।

6. गुरूवार के दिन, स्वामी की मूर्ति को सफेद चंदन से रंग दिया जाता है। जब इस लेप को हटाया जाता है तो मूर्ति पर माता लक्ष्मी के चिन्ह बने रह जाते हैं।

7. मंदिर के पुजारी, पूरे दिन मूर्ति के पुष्पों को पीछे फेंकते रहते हैं और उन्हें नहीं देखते हैं, दरअसल इन फूलों को देखना अच्छा नहीं माना जाता है।

8. कहा जाता है 18 वी शताब्दी में, इस मंदिर को कुल 12 वर्षों के लिए बंद कर दिया गया था। उस दौरान, एक राजा ने 12 लोगों को मौत की सजा दी और मंदिर की दीवार पर लटका दिया। कहा जाता है कि उस समय वेंकटेश्वर स्वामी प्रकट हुए थे।

9. इस मंदिर में एक दीया कई सालों से जल रहा है किसी को नहीं ज्ञात है कि इसे कब जलाया गया था।

10. बालाजी की मूर्ति पर पचाई कर्पूरम चढ़ाया जाता है जो कर्पूर मिलाकर बनाया जाता है। यदि इसे किसी साधारण पत्थर पर चढाया जाए, तो वह कुछ ही समय में चटक जाता है, लेकिन मूर्ति पर इसका प्रभाव नहीं होता है।

                          भगवान वेंकटेश्वर के भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहां आकर अपने बाल अर्पण करके जाते हैं। ऐसा कर वे भगवान विष्णु के अवतारवेंकटेश्वर की आर्थिक सहायता करते हैं ताकि वे धन कुबेर से लिया गया उधार चुका सकें। बड़े भैया मज़ाक में कहते हैं कि शायद लोगों  ने "कैश" को "केश" समझ लिया होगा......


                         बहरहाल हम सब दर्शन की लाइन में ठीक समय पर पहुँच जाते हैं ..... आज इस बात का साक्षात् एहसास होता है की देश की आबादी सवा सौ करोड़ से ज्यादा  हो गई है.... शायद यही जनसँख्या विस्फोट है जिसके बारे में हम बचपन से पढ़ लिख रहे हैं.......खैर तीन से चार घंटे लाइन में खड़े रहने के बाद बालाजी के दर्शन होते हैं कुछ सेकंड्स के लिए..... और लोग बाहर धकेल दिए जाते हैं......


खैर कुछ सेकंड्स का ही सही लेकिन  दिव्य दर्शन....अहा ! हम सब जोर से  एक साथ जयकारा लगाते हैं ग़ोविन्दा गोविंदा.....



                                                                   

                                                         -  मनमोहन जोशी “Mj”

सोलह संस्कार एवं तिरुपति यात्रा

17 Jan 2017


                         सुबह टेम्पो ट्रैवलर मंगवा लिया गया है 12 सीटर.... पूरा जोशी परिवार इसमें सवार  हो जाता है .... दोपहर के 12.00 बजे हैं.....हम चल पड़े हैं तिरुपति की ओर.... दोनों बड़े भाइयों के बच्चों स्निग्धा , वैवश्वत और शाश्वत का चूड़ा  कर्म संस्कार है 

                         हिन्दू धर्म में कुल सोलह संस्कार माने गए हैं जो इस प्रकार हैं:  १.गर्भाधान 2. पुंसवन 3. सीमांतोन्नायन 4. जातक्रम 5. नामकरण  6. निष्क्रमण 7. अन्नप्राशन 8. चूड़ाकर्म  9. कर्णवेध 10. यज्ञोपवीत 11. वेदारंभ  12. केशांत 13. समावर्तन 14. विवाह 15. आवसश्याधाम 16.श्रोताधाम  .

                         चूड़ा  कर्म संस्कार आठवां संस्कार है  चूड़ाकर्म को मुंडन संस्कार भी कहा जाता है। भारतीय मनीषियों ने  बच्चे के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। इस संस्कार के पीछे शुाचिता और बौद्धिक विकास की परिकल्पना हमारे मनीषियों के मन में रही  होगी। मुंडन संस्कार का अभिप्राय  जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यह संस्कार सम्पन्न होता है।

                         हम ठीक बारह बजे तिरुमाला पहाड़ी की ओर श्री व्यंकटेश बालाजी के  दर्शन हेतु निकल पड़ते हैं चेन्नई से तिरुमाला तक की यात्रा कुल 4 घंटों में पूरी होनी है......  वैवश्वत की तबीअत थोड़ी नासाज़ है....... तमिल गानों का आनंद लेते भीड़ भरे रास्ते से होते हुए हम तिरुमाला पहाड़ी तक पहुंचते हैं। ...... सब कुछ दिव्य मालूम पड़ता है.... हमारे रूकने का इन्तेजाम व्यंकटेश मंदिर के ठीक सामने लक्ष्मी नारायण मठ में है........ मठ में पहुँचते ही मंदिर के दिव्य दर्शन होते हैं..... अहा ! क्या सुखद अनुभूति है.... चेन्नई के उलट यहाँ मौसम ठंडा है........

                         वेन्कटेशवर मन्दिर तिरुपति मे स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थिम तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं।

                         तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रुप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।

                         इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिर‍ि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।

                        वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।

                      माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँच‍ीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 वीं  सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 वीं  सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।

                     बहरहाल शाम को हम लोग शॉपिंग काम्प्लेक्स में कुछ सामन खरीदने पहुंचे। वापस  आकर मठ के पास ही ट्रेडिशनल भोजन का आनंद लिया। 

मन में सुबह बालाजी के दर्शन का भाव लिए मैं सोने चला.

                                    - मन मोहन जोशी   "मन"

समंदर की लहरें और हम

17- Jan- 2017

                         हम चेन्नई में हैं ...  दोनों बड़े भाइयों के बच्चों  स्निग्धा , वैवश्वत और शाश्वत के चूड़ा कर्म संस्कार के लिए हमें तिरुपति  जाना है... कार्यक्रम १८ जनवरी को है उसके पहले हम चेन्नई  के बीच रिसोर्ट में छुट्टियां मना  रहे हैं........

                        सुबह के  5.50 बजे हैं... पत्नी उठाती है उठो - उठो  क्या आज सूरज को नहीं उगाना है?... कहती है मैं तैयार हूँ... चलो जल्दी उठो.... जागते ही मैं दोनों बड़े भाइयों को फ़ोन लगाता हूँ वैसे हमारे कमरे आजू -बाजू हैं लेकिन फ़ोन लगाना ही सुविधाजनक लगा.... मझले भैया तैयार हैं..... बड़े भैया फ़ोन नहीं उठाते तो दुबारा नहीं लगाता .... सोचता हूँ शायद कल घुमने के बाद ज्यादा थक गए होंगे......

                     भैयामैं और मेरी अर्धांगिनी   हम तीनों हम सागर किनारे आ गए हैं..... बादल  छाये हैं... सूरज का कोई नामो निशान नहीं है..... पत्नी सागर की आती जाती लहरों से खेलने लगती है .... मैं और भैया तौलिया  बिछा कर बैठ जाते हैं ..... शुरू होती है ज्ञान चर्चा .... ब्रम्ह , परमात्मा, संसार , सृष्टि रचनाविज्ञान, आध्यात्म , ज्योतिष और बहुत सारा मौन..........

                       मैं सागर को एक टक निहारता रहता हूँ......स्कूल में पढ़ा था कि सागर के पानी की विशेषता इसका खारा या नमकीन होना है। पानी को यह खारापन मुख्य रूप से ठोस सोडियम क्लोराइड द्वारा मिलता है, लेकिन पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम के क्लोराइड के अतिरिक्त विभिन्न रासायनिक तत्व भी होते हैं जिनका संघटन पूरे विश्व मे फैले विभिन्न सागरों में बमुश्किल बदलता है। हालाँकि पानी की लवणता में भीषण परिवर्तन आते हैं, जहां यह पानी की ऊपरी सतह और नदियों के मुहानों पर कम होती है वहीं यह गहराइयों में अधिक होती है।

                        सागर की सतह पर उठती लहरें इनकी सतह पर बहने वाली हवा के कारण बनती है। भूमि के पास उथले पानी में पहुँचने पर यह लहरें मंद पड़ती हैं और इनकी ऊँचाई में वृद्धि होती है, जिसके कारण यह अधिक ऊँची और अस्थिर हो जाती हैं और अंतत: सागर तट पर झाग के रूप में टूटती हैं।

                          बैठे- बैठे मैं सोचता हूँ, क्या लहरों का भी ईगो होता होगा?..... बड़ी लहर इस बात का घमंड करती होगी की वो बड़ी है... और छोटी लहर इस बात से डिप्रेशन में होगी की वो छोटी है और कम समृद्ध है...... फिर उन्हें दिखता होगा कि जीवन तो क्षणिक है......शायद तट से टकराने से पहले लहरों को यह  ज्ञान भी होता हो कि सागर तट से टकरा कर मर जाना ही उनकी नियति है ....... काश कोई उन्हें ये बता सकता कि वे ही सागर हैं...... उनका अस्तित्व ही पानी है .......फिर कैसा जन्म और कैसी मृत्यु.... संसार रुपी इस सागर में हम भी ऐसी ही लहरों के सामान हैं और जन्म - मरण केवल तब तक है जब तक हमने ये नहीं जाना  की हम ही सागर हैं........

                कहने को तो हूँ मैं आंसू का कतरा एक,
               सागर जैसा स्वाद है तू चख कर के तो देख ||
                      
                                                                                                - मन मोहन जोशी "मन"




रविवार, 22 जनवरी 2017

Chennai days पार्ट -2

       16- Jan -2017    

                       
    


                          गोल्डन बीच रिसोर्ट चेन्नई........सुबह के 5.30 बजे हैं....खुशनुमा सुबह .... पंछियों का कलरव , मंद मंद बहती मदहोश कर देने वाली हवा.....मझले भैया को फ़ोन लगता हूँ.... चलें क्या सूरज को उगाने .....भैया कहते हैं चल पांच मिनट में आता हूँ .... बड़े भैया को फ़ोन लगता हूँ ...कहते हैं तुम लोग पहुँचो मैं बीच पर मिलता हूँ......

                         6.00 बज गए हैं....बीच पर हम तीनों भाई हैं पानी की उठती लहरों और विशाल समंदर के साथ.... जीवन रुपी खेल में पारंगत होने का सबसे बढ़िया तरीका है अपने बड़े भाइयों के साथ समय बीताएं... इस मामले में मैं खुशकिस्मत हूँ की मेरे दो बड़े भाई हैं और दोनों ही विद्वान एवं बेहतरीन इंसान....मेरे व्यक्तित्व का जो भी उजला पक्ष है वह मेरे माता- पिता और भाइयों की देन  है... हाँ बुराइयों का कोई भागीदार नही...मैं अकेला ही उसका कारक हूँ......

                        बहरहाल गूगल बाबा  से जानकारी मिलती है कि सूरज 6.35 am को उगेगा..... सोचता हूँ क्या मुर्खता है... ब्रूनो , कोपोर्निकस, गैलेलियो
 आदि न जाने कितने ही खगोल शास्त्रियों ने अपना जीवन केवल यह बताने में खपा दिया की सूरज कहीं से नहीं निकलता न ही कहीं डूबता है...केवल पृथ्वी की गति के कारण ऐसा प्रतीत होता है...फिर भी वर्तमान समय में हम यही पढ़-पढ़ा रहे हैं की सूरज पूर्व से निकलता है और  पश्चिम में अस्त होता है...मनुष्य की मुर्खता की कोई सीमा नहीं है | अरस्तु ने ठीक ही कहा था "Folly is perennial." अर्थात मुर्खता शाश्वत है ... बुद्धिमान को ही सूर्य की रौशनी में मशाल लेकर ढूँढना होता है....

                       खैर कुछ प्रतीक्षा के  बाद सूर्य देव के दर्शन होते हैं.... मन ही मन सूर्य देव को प्रणाम करता हूँ

यही सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशो जगत्पते |
अनुकाम्प्याम मा भक्त्याम गृहणार्घ्य: दिवाकरः||”

                    दो Bikes मंगवा ली गई हैं thunder bird और Royal Enfield Himalayan...... संगीता नामक रेस्टोरेंट में ट्रेडिशनल तमिल फ़ूड का आनंद लेने के बाद  हम चेन्नई घुमने निकल पड़ते हैं..

                   चेन्नई बंगाल की खाड़ी पर कोरोमंडल तट  पर स्थित तमिलनाडु की राजधानी है, भारत का पाँचवा बड़ा नगर तथा तीसरा सबसे बड़ा बन्दरगाह है । इसकी जनसंख्या 43 लाख 40 हजार है। यह शहर अपनी संस्कृति एवं परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। ब्रिटिश लोगों ने 17 वीं शताब्दी में एक छोटी-सी बस्ती मद्रासपट्ट्नम का विस्तार करके इस शहर का निर्माण किया था।

                   चेन्नई में ऑटोमोबाइल, प्रौद्योगिकी, हार्डवेयर उत्पादन और स्वास्थ्य सम्बंधी उद्योग हैं। यह नगर सॉफ्टवेर व इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी सम्बंधी उत्पादों में भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक शहर है। चेन्नई एवं इसके उपनगरीय क्षेत्र में ऑटोमोबाइल उद्योग विकसित है। चेन्नई मंडल तमिलानाडु के GDP का 39% और देश के ऑटोमोटिव निर्यात में ६०% का भागीदार है। इसी कारण इसे दक्षिण एशिया का detrayat भी कहा जाता है।

                   चेन्नई दक्षिण भारत का एक प्राचीन शहर है जिसे पहले मद्रास  के नाम से जाना जाता था....मद्रास शब्द पोर्तुगाली phrase “mae de dues”  से बना है जिसका अर्थ है  “mother of God”...... कुछ विद्वानों का मानना है की यह संस्कृत शब्द मधुरस (maduras)” से बना है |1996 में इसका नाम बदल कर चेन्नई कर दिया गया......चेन्नई का सम्बन्ध थिरूवल्लूर से भी है जो एक जुलहा कवि  थे | यदि आपने कलाम साहब के भाषणों को सुना है तो आप ज़रूर इस नाम से परिचित होंगे... वे अक्सर तिरुवल्लुर की कविताएँ अपने भाषण में शामिल करते रहे थे .... Archaeological survey of India के अनुसार चेन्नई के पास पल्लावरम नमक जगह में पाषाण युग के प्रमाण मिले हैं .

                इस शहर की पहचान हैं:- 1644 में बना सेंट जोर्ज फोर्ट जो अब एक म्यूजियम का रूप ले चूका है, प्राचीनतम कपालीश्वर मंदिर, मरीना बीच, 17 वीं सदी में बना St. Mary’s angelica church और आज कल चेन्नई की पहचान है जल्ली कट्टु...2011 की जनगणना के अनुसार चेन्नई भारत का छठा सबसे बड़ा शहर है और शहरी आबादी के मामले में भारत का चौथा सबसे बड़ा शहर |

                चेन्नई के बारे में लिखने और यहाँ देखने को बहुत कुछ है... हम केवल दो दिनों के लिये यहाँ हैं ..... लगता है दस दिन भी यहाँ रहे तो कम होगा......

आज के लिए इतना ही .


                                        - मन मोहन जोशी "मन"

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

Chennai Days पार्ट-1

 15 Jan 2017



                         शाम 5.00  बजे हम चेन्नई के "के. कामराज" एअरपोर्ट पर जेट एयरवेज की फ्लाइट से लैंड करते हैं....इंदौर के मौसम के विपरीत यहाँ गर्मी है ... तापमान 32 डिग्री .... थोड़ी ही देर में पापा-मम्मी तथा भैया- भाभी भी दूसरी फ्लाइट  से आ जाते हैं.... ये लोग विशाखापतनम से चेन्नई पहुंचे हैं .... इंतज़ार की घड़ियाँ समाप्त ......पहली बार जोशी परिवार एक साथ है...... ख़ुशी के क्षण ....

                   कामराज एअरपोर्ट तमिलनाडु के पूर्व सी. एम. के कामराज के नाम पर है जो मीनामबक्कम , पल्लावरम और तिरुसलम तक फैला हुआ है.... ये दिल्ली , मुंबई और बेंगलुरु के बाद भारत का सबसे व्यस्ततम एअरपोर्ट है..... हम एअरपोर्ट के बाहर टैक्सी में सवार हो कर चल देते हैं गोल्डन बीच रिसोर्ट की ओर जो एअरपोर्ट से लगभग 45 की मी की दूरी पर है....

                 रास्ते में हम आड्यार चेन्नई से होकर गुजरते हैं यह नाम जाना पहचाना है... याद आता है मैंने कॉलेज के दिनो में एक पुस्तक पढ़ी थी " At the feet of the master" यह  एक पुस्तिका है जो १४ वर्ष के बालक जे. कृष्णमूर्ति को समर्पित है..... यह कृष्णमूर्ति को विश्व मसीहा के रूप में स्थापित करने का एक प्रयास मालूम पड़ता है.... अब मैं कृष्णमूर्ति के बारे में और जानना चाहता हूँ..... एक और पुस्तिका  मेरे हाथ लगती है इसका नाम है " लाइट ऑन दी पाथ" लेखिका का नाम मेबल  कॉलिंस है....एक ही बैठक में पूरी किताब पढ़ जाता हूँ....कमाल की पुस्तिका है यह.... अ मस्ट रीड बुक ............मैडम Blavatsky और थियोसोफिकल सोसाइटी ( जिसका मुख्यालय आड्यार, चेन्नई है ) के बारे में जो कुछ भी मिलता है उसे पढ़ जाता हूँ..... और  इस तरह से मेरा परिचय Aadyar  चेन्नई से होता है..... फिर कभी किसी फोरम पे theosophy के बारे में लिखा जाएगा......

                रात का खाना हो गया है....11.00 बज रहे हैं और अब डायरी बंद कर मैं सोने जा रहा हूँ...........

सुबह सूरज को उगाने जो जाना है.

                                                 - मन मोहन जोशी "मन"


पतंगोत्सव

14 Jan 2017                       
                                  सुबह 3.00 बजे सागर ( मध्य प्रदेश का एक शहर ) से लौटा हूँ..... बिस्तर पर लेटते ही याद आया की आज मकर संक्रांति है ..... पतंग उड़ाने का दिन ....... सोचता हूँ कि क्या पतंग उड़ाने का भी कोई दिन मुक़र्रर हो सकता है.... बचपन में हम पतंग तब उड़ाते थे जब बसंती पवन बहने लगे....... साल में एक दिन पतंग उड़ाने का ट्रेडिशन तब शुरू हुआ जब मैं घर छोड़ काम के लिए शहर से बाहर निकला..... लेकिन तब भी मैंने पतंग उडाना नहीं छोड़ा.....

                                      वसंत मेरा प्रिय मौसम है ... वसंत के आगमन को मैं बिना कैलंडर के महसूस कर सकता हूँ ..... और बिना मौसम वसन्त को अनुभव करना हो तो प. जसराज का गया "और राग सब बने बाराती दूल्हा राग वसंत " सुन लेता हूँ ..... यादें बचपन की और लौट रही हैं .... मैंने पतंग उडाना बड़े भैया से सीखा .... वो पतंग उड़ाते और मैं उनकी चक्री पकड़ता और न जाने कब पतंग उड़ाना सीख गया... मेरे देखे पतंग उडाना एक कला है...... हम मांजा भी खुद कातते और पतंग भी खुद बनाते थे .... सब कुछ होम मेड ..... एक महत्वपूर्ण बात ये है कि मुझे पतंग लड़ाना ( जिसे पेंच लड़ाना भी कहते हैं ) कभी पसंद नहीं रहा. मुझे केवल पतंग को आकाश की उंचाइयां छूते देखना ही अच्छा लगता है......लेकिन ऐसा भी नहीं की कोई पेंच लड़ाने आये और मैं डर कर भाग गया हूँ .... बाबा (ताऊ जी ) कहते थे -" पहले लगना नहीं और बाद में छोड़ना नहीं " इस बात को जीवन पथ पर भी कभी नहीं भुला ....... पिछले वर्ष इंदौर पतंगोत्सव में भाग लेने का अवसर मिला.... मैं अपने सहयोगी "हर्ष" के साथ उसमें शामिल हुआ ........ हमने कुल पांच पतंग काटे ..... हमने पहल नहीं की लेकिन बाद में छोड़ा भी नहीं.....
        
                                       याद आया कि पापा एक बार कानपुर गए थे तो मेरे लिए पीतल की बनी चक्री लेकर आये थे  जिसमें कांच के पहिये लगे थे .... वो इतनी खूबसूरत  थी कि मैंने उसे हमेशा संभाल कर रखा..... कभी इस डर से इस्तेमाल नहीं किया कि खराब न हो जाए ...... सुबह उठते ही मम्मी को फ़ोन करता हूँ .... मम्मी से ये सुन  कर अच्छा लगा की वो चक्री अभी भी ( लगभग 20-22 वर्षों बाद भी) वैसे ही रखी है..... कहता हूँ अबकी इंदौर आओ तो उसे लेते आना .... इस बार पीतल की चक्री पे मांजा लपेट कर पतंग उड़ाई जाएगी .
         
                                       सुबह के 10.00 बज चुके हैं..... ऑफिस में बहुत सारे काम पेंडिंग पड़े हैं .... इम्पोर्टेन्ट लेक्चर्स , मीटिंग्स , और बहु सारे काम ..... काम करते हुए सोचता हूँ शाम को घर जाते वक़्त पतंग और मांजा खरीद कर ले चलूँगा....  4.00 बजे पत्नी का फ़ोन आता है .... भूल गए क्या कल चेन्नई की फ्लाइट पकडनी है?? .... शॉपिंग और दूसरी तैयारियां बाकी हैं जल्दी आओ.......

                                      बाज़ार से लौट कर डायरी लिखने बैठा हूँ ... रात के 9.00 बजे हैं.... पतंग उडाना रह गया..... फिर सोचता हूँ मैं ही तो वो पतंग हूँ जिसकी साँसों की डोर उस परम पिता के हाथों में है और उड़ा जा रहा हूँ जीवन के उन्मुक्त आकाश में .......

                             -मन मोहन जोशी "मन"

वर्ष का अंतिम ....

  31 DEC 2016 & 01 Jan 2017
               



आज वर्ष का अंतिम दिन है...

               कल रात जब मैं सोने गया तो अनायास ही पूरा वर्ष रिवाइंड फॉर्मेट में मेरे सामने था, क्या खोया क्या पाया वाले अंदाज़ में ..... मैंने देखा की बीते हुए वर्ष मैं कई नए जगहों पर गया , नए लोगों से मिला, नयी किताबें पढ़ी... बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ सीखा.... खोने जैसा इसीलिए कुछ नहीं है क्यूंकि खाली हाथ ही तो इस दुनिया में आये थे....... देखता हूँ कि पूरे वर्ष भर मैंने सकारात्मकता को अपनाया और नकारात्मक विचारों और लोगों से अपने आप को दूर रखने की पूरी कोशिश की.... सोचता हूँ इस वर्ष वह कोशिश भी छूट जाए ......क्यूंकि मेरी सकारात्मकता यदि किसी नकारात्मक क्यक्ति के साथ होने से खंडित होती है तो शायद ऐसी सकारात्मकता दो कौड़ी की है.....
              
               कुछ दिनों पहले मैंने अपना नाम ऐसे व्यक्ति समूह के बीच पाया शायद जहां मैं अपने आपको नहीं देखना चाहता... क्या किसी समूह विशेष के बीच नाम का उल्लेख मेरे व्यक्तित्व पर प्रभाव डाल सकता है?? इतनी छोटी सी बात कैसे मुझे उद्विग्न कर सकती है?? क्या मैं श्रेष्ठ लोगों के बीच होना चाहता हूँ ?? नहीं.... क्या मैं श्रेष्ठ होना चाहता हूँ ?? नहीं... फिर सोचता हूँ मुझे क्या चाहिए ?? नाम?? नहीं....... बहुत पैसा, धन दौलत?? नहीं...... इसी उधेड़बुन के बीच बिस्तर के पास राखी किताबों में से एक को उठाकर पढ़ने लगता हूँ ... नज़रें सीधे कबीर दास के एक पद पर जाती है-

चाह गई चिंता मिटी , मनवा बेपरवाह |
जिनको कछु नहीं चाहिए , ते शाहन पति शाह ||"....... गहरी निद्रा.

               आज सुबह उठते ही लापरवाही के चलते दरवाजा खुला रह जाता है और ... प्रिय तोता (मानु) उड़ जाता है .... दुःख के क्षण.... जाते जाते वो भी एक सीख दे जाता है कि एक दिन हमें भी यह देह रुपी पिंजरा छोड़ कर अनंत की यात्रा पर निकल जाना होगा...... तो जब तक हैं प्यार बांटते रहें , खुश रहें , मस्त रहें, स्वस्थ रहें.

आज हमारे बचे हुए शेष जीवन का पहला दिन है|
              

                               आज वर्ष का अंतिम दिन है...

               कल रात जब मैं सोने गया तो अनायास ही पूरा वर्ष रिवाइंड फॉर्मेट में मेरे सामने था, क्या खोया क्या पाया वाले अंदाज़ में ..... मैंने देखा की बीते हुए वर्ष मैं कई नए जगहों पर गया , नए लोगों से मिला, नयी किताबें पढ़ी... बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ सीखा.... खोने जैसा इसीलिए कुछ नहीं है क्यूंकि खाली हाथ ही तो इस दुनिया में आये थे....... देखता हूँ कि पूरे वर्ष भर मैंने सकारात्मकता को अपनाया और नकारात्मक विचारों और लोगों से अपने आप को दूर रखने की पूरी कोशिश की.... सोचता हूँ इस वर्ष वह कोशिश भी छूट जाए ......क्यूंकि मेरी सकारात्मकता यदि किसी नकारात्मक क्यक्ति के साथ होने से खंडित होती है तो शायद ऐसी सकारात्मकता दो कौड़ी की है.....
              
               कुछ दिनों पहले मैंने अपना नाम ऐसे व्यक्ति समूह के बीच पाया शायद जहां मैं अपने आपको नहीं देखना चाहता... क्या किसी समूह विशेष के बीच नाम का उल्लेख मेरे व्यक्तित्व पर प्रभाव डाल सकता है?? इतनी छोटी सी बात कैसे मुझे उद्विग्न कर सकती है?? क्या मैं श्रेष्ठ लोगों के बीच होना चाहता हूँ ?? नहीं.... क्या मैं श्रेष्ठ होना चाहता हूँ ?? नहीं... फिर सोचता हूँ मुझे क्या चाहिए ?? नाम?? नहीं....... बहुत पैसा, धन दौलत?? नहीं...... इसी उधेड़बुन के बीच बिस्तर के पास राखी किताबों में से एक को उठाकर पढ़ने लगता हूँ ... नज़रें सीधे कबीर दास के एक पद पर जाती है-

चाह गई चिंता मिटी , मनवा बेपरवाह |
जिनको कछु नहीं चाहिए , ते शाहन पति शाह ||"....... गहरी निद्रा.

               आज सुबह उठते ही लापरवाही के चलते दरवाजा खुला रह जाता है और ... प्रिय तोता (मानु) उड़ जाता है .... दुःख के क्षण.... जाते जाते वो भी एक सीख दे जाता है कि एक दिन हमें भी यह देह रुपी पिंजरा छोड़ कर अनंत की यात्रा पर निकल जाना होगा...... तो जब तक हैं प्यार बांटते रहें , खुश रहें , मस्त रहें, स्वस्थ रहें.

आज हमारे बचे हुए शेष जीवन का पहला दिन है|
              
                                -मन मोहन जोशी "MJ"