25 जनवरी 2017
डिस्क्लेमर : डायरी के इस पन्ने का सम्बन्ध किसी जीवित या मृत व्यक्ति से हो सकता है .... आप चाहे तो इस उद्धरण को अपने कर्म क्षेत्र से जोड़ कर भी देख सकते हैं ...
जो भी हो अगर ध्रितराष्ट्र समय पर आँख खोल लें या भीष्म अपनी प्रतिज्ञा से बाहर आ जाएँ तो सरे आम व्यवस्था रुपी बहु का चीर हरण करने का दुस्साहस किसी दुर्योधन में न हो......
डिस्क्लेमर : डायरी के इस पन्ने का सम्बन्ध किसी जीवित या मृत व्यक्ति से हो सकता है .... आप चाहे तो इस उद्धरण को अपने कर्म क्षेत्र से जोड़ कर भी देख सकते हैं ...
रात के १०.३० बजे हैं गीता का अध्याय तीन पढ़ रहा हूँ ....कमाल का
संवाद है कृष्ण और अर्जुन के मध्य ... जितनी बार पढो कुछ नया ही मिलता
है....... पढ़ते हुए ख़याल आता है कि हर
दौर के कर्म क्षेत्र में एक दुर्योधन होता है जो सरे आम भरी सभा में व्यवस्था का चीर
हरण करता है .........सोचता हूँ दोषी कौन है क्या दुर्योधन? मेरे देखे दुर्योधन
दोषी नहीं है..... मुझे लगता है कि वह किसी तरह की हीन भावना से ग्रस्त है अर्थात
बीमार है उसे तो इलाज की ज़रूरत है........
तो फिर चीर हरण के लिए दोषी कौन
है???.....
सबसे पहला दोष ध्रितराष्ट्र का है मेरे देखे ध्रितराष्ट्र का पात्र
शारीरिक रूप से अँधा नहीं है शायद उसे इसीलिए अँधा बताया गया है क्यूंकि वह
गलतियों को देखते - जानते भी उनके विरुद्ध कोई निर्णय नहीं लेता या शायद वो कान से
देखता हो??? कान से देखना मतलब केवल सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करना .
और
दूसरा
दोष भीष्म का है जो बेकार की प्रतिज्ञा से बंधे हुए हैं.... या इस राजव्यवस्था को
आप अलाइंस की सरकार मानो.........
जो भी हो अगर ध्रितराष्ट्र समय पर आँख खोल लें या भीष्म अपनी प्रतिज्ञा से बाहर आ जाएँ तो सरे आम व्यवस्था रुपी बहु का चीर हरण करने का दुस्साहस किसी दुर्योधन में न हो......
बहरहाल क्या श्री कृष्ण भी किसी तरह से दोषी हैं..... शायद हाँ वे हथियार न
उठाने के दोषी हैं.... लेकिन फिर प्रश्न ये उठता है कि कौरव पांडव की इस लड़ाई से
कृष्ण का क्या लेना देना.....आवेदन कोई दे रहा है........... सभा में निर्णय बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर से आ रहा है.... जुआ कोई खेल रहा है ... लोग
अपनी सहमती से दांव लगा रहे हैं.....
इन सब में कृष्ण कहाँ से दोषी हो गए??????? घूम फिर कर हर बार महाभारत का केंद्र कृष्ण कैसे बन जाते हैं??...... सोचता हूँ कृष्ण हर महाभारत का केंद्र इसी लिए बन जाते हैं क्यूंकि कृष्ण कहते हैं - “ हे अर्जुन इस संसार का कारक तत्त्व मैं हूँ और मुख्य कार्यपालन अधिकारी होने के नाते जो कुछ भी यहाँ घट रहा है उसका कारक तू मुझे ही जान......लेकिन अर्जुन, संसार का कारक तत्त्व होने के बाद भी कर्म बंधन मुझे नहीं लिप्त करते और न ही मैं कर्म बंधनों से बंधता हूँ......
इन सब में कृष्ण कहाँ से दोषी हो गए??????? घूम फिर कर हर बार महाभारत का केंद्र कृष्ण कैसे बन जाते हैं??...... सोचता हूँ कृष्ण हर महाभारत का केंद्र इसी लिए बन जाते हैं क्यूंकि कृष्ण कहते हैं - “ हे अर्जुन इस संसार का कारक तत्त्व मैं हूँ और मुख्य कार्यपालन अधिकारी होने के नाते जो कुछ भी यहाँ घट रहा है उसका कारक तू मुझे ही जान......लेकिन अर्जुन, संसार का कारक तत्त्व होने के बाद भी कर्म बंधन मुझे नहीं लिप्त करते और न ही मैं कर्म बंधनों से बंधता हूँ......
खैर जो भी हो सारे छिछालेदर की जिम्मेदारी मुख्य कार्यपालक होने के नाते कृष्ण की है वही ज़िम्मेदार हैं........
कब तक साड़ी की लम्बाई बढ़ाई जाती रहेगी???...... मेरे देखे अब कृष्ण को हथियार उठा लेना
चाहिए या फिर किसी वन में जा कर अंगद के पुनर्जन्म की प्रतीक्षा करनी चाहिए .
"कलम के जिस्म भी चुप हों तो हम चुप रह नहीं सकते,
कला की की किस्म भी चुप हो तो हम चुप रह नहीं सकते|
भरे दरबार में लज्जा उघाड़ी जाए जो घर की, पितामह भीष्म भी चुप हों तो हम चुप रह नहीं सकते||"
"कलम के जिस्म भी चुप हों तो हम चुप रह नहीं सकते,
कला की की किस्म भी चुप हो तो हम चुप रह नहीं सकते|
भरे दरबार में लज्जा उघाड़ी जाए जो घर की, पितामह भीष्म भी चुप हों तो हम चुप रह नहीं सकते||"
- मनमोहन जोशी “Mj”
6 टिप्पणियां:
Bilkul sahi Ab shri krishan ke hatiyar uthane ka time aa chuka hai
Hathiyar means hani agar hathiyar kisi rup me uthe to hani hi hogi
यही सोचकर कृष्ण ने भी हथियार नहीं उठाया था........ हर समझदार इंसान यही सोचता है..... लेकिन नीच इसे उसकी कमजोरी समझ लेते हैं ..... और परिणामतः महाभारत होता है.......
हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है नरेन्द्र...
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