Diary Ke Panne

सोमवार, 23 जनवरी 2017

सोलह संस्कार एवं तिरुपति यात्रा

17 Jan 2017


                         सुबह टेम्पो ट्रैवलर मंगवा लिया गया है 12 सीटर.... पूरा जोशी परिवार इसमें सवार  हो जाता है .... दोपहर के 12.00 बजे हैं.....हम चल पड़े हैं तिरुपति की ओर.... दोनों बड़े भाइयों के बच्चों स्निग्धा , वैवश्वत और शाश्वत का चूड़ा  कर्म संस्कार है 

                         हिन्दू धर्म में कुल सोलह संस्कार माने गए हैं जो इस प्रकार हैं:  १.गर्भाधान 2. पुंसवन 3. सीमांतोन्नायन 4. जातक्रम 5. नामकरण  6. निष्क्रमण 7. अन्नप्राशन 8. चूड़ाकर्म  9. कर्णवेध 10. यज्ञोपवीत 11. वेदारंभ  12. केशांत 13. समावर्तन 14. विवाह 15. आवसश्याधाम 16.श्रोताधाम  .

                         चूड़ा  कर्म संस्कार आठवां संस्कार है  चूड़ाकर्म को मुंडन संस्कार भी कहा जाता है। भारतीय मनीषियों ने  बच्चे के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। इस संस्कार के पीछे शुाचिता और बौद्धिक विकास की परिकल्पना हमारे मनीषियों के मन में रही  होगी। मुंडन संस्कार का अभिप्राय  जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यह संस्कार सम्पन्न होता है।

                         हम ठीक बारह बजे तिरुमाला पहाड़ी की ओर श्री व्यंकटेश बालाजी के  दर्शन हेतु निकल पड़ते हैं चेन्नई से तिरुमाला तक की यात्रा कुल 4 घंटों में पूरी होनी है......  वैवश्वत की तबीअत थोड़ी नासाज़ है....... तमिल गानों का आनंद लेते भीड़ भरे रास्ते से होते हुए हम तिरुमाला पहाड़ी तक पहुंचते हैं। ...... सब कुछ दिव्य मालूम पड़ता है.... हमारे रूकने का इन्तेजाम व्यंकटेश मंदिर के ठीक सामने लक्ष्मी नारायण मठ में है........ मठ में पहुँचते ही मंदिर के दिव्य दर्शन होते हैं..... अहा ! क्या सुखद अनुभूति है.... चेन्नई के उलट यहाँ मौसम ठंडा है........

                         वेन्कटेशवर मन्दिर तिरुपति मे स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थिम तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं।

                         तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रुप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।

                         इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिर‍ि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।

                        वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।

                      माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँच‍ीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 वीं  सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 वीं  सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।

                     बहरहाल शाम को हम लोग शॉपिंग काम्प्लेक्स में कुछ सामन खरीदने पहुंचे। वापस  आकर मठ के पास ही ट्रेडिशनल भोजन का आनंद लिया। 

मन में सुबह बालाजी के दर्शन का भाव लिए मैं सोने चला.

                                    - मन मोहन जोशी   "मन"

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