31 DEC 2016 & 01 Jan 2017
आज वर्ष का अंतिम
दिन है...
कल रात जब मैं सोने गया तो अनायास
ही पूरा वर्ष रिवाइंड फॉर्मेट में मेरे सामने था, क्या खोया क्या पाया वाले अंदाज़ में ..... मैंने देखा की
बीते हुए वर्ष मैं कई नए जगहों पर गया , नए लोगों से मिला, नयी किताबें
पढ़ी... बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ सीखा.... खोने जैसा इसीलिए कुछ नहीं है क्यूंकि
खाली हाथ ही तो इस दुनिया में आये थे....... देखता हूँ कि पूरे वर्ष भर मैंने
सकारात्मकता को अपनाया और नकारात्मक विचारों और लोगों से अपने आप को दूर रखने की
पूरी कोशिश की.... सोचता हूँ इस वर्ष वह कोशिश भी छूट जाए ......क्यूंकि मेरी
सकारात्मकता यदि किसी नकारात्मक क्यक्ति के साथ होने से खंडित होती है तो शायद ऐसी
सकारात्मकता दो कौड़ी की है.....
कुछ दिनों पहले मैंने अपना नाम
ऐसे व्यक्ति समूह के बीच पाया शायद जहां मैं अपने आपको नहीं देखना चाहता... क्या
किसी समूह विशेष के बीच नाम का उल्लेख मेरे व्यक्तित्व पर प्रभाव डाल सकता है??
इतनी छोटी सी बात कैसे मुझे उद्विग्न कर सकती
है?? क्या मैं श्रेष्ठ लोगों
के बीच होना चाहता हूँ ?? नहीं.... क्या
मैं श्रेष्ठ होना चाहता हूँ ?? नहीं... फिर
सोचता हूँ मुझे क्या चाहिए ?? नाम?? नहीं....... बहुत पैसा, धन दौलत?? नहीं...... इसी
उधेड़बुन के बीच बिस्तर के पास राखी किताबों में से एक को उठाकर पढ़ने लगता हूँ ...
नज़रें सीधे कबीर दास के एक पद पर जाती है-
“ चाह गई चिंता
मिटी , मनवा बेपरवाह |
जिनको कछु नहीं
चाहिए , ते शाहन पति शाह ||".......
गहरी निद्रा.
आज सुबह उठते ही लापरवाही के चलते
दरवाजा खुला रह जाता है और ... प्रिय तोता (मानु) उड़ जाता है .... दुःख के
क्षण.... जाते जाते वो भी एक सीख दे जाता है कि एक दिन हमें भी यह देह रुपी पिंजरा
छोड़ कर अनंत की यात्रा पर निकल जाना होगा...... तो जब तक हैं प्यार बांटते रहें ,
खुश रहें , मस्त रहें, स्वस्थ रहें.
आज हमारे बचे हुए
शेष जीवन का पहला दिन है|
आज वर्ष का अंतिम
दिन है...
कल रात जब मैं सोने गया तो अनायास
ही पूरा वर्ष रिवाइंड फॉर्मेट में मेरे सामने था, क्या खोया क्या पाया वाले अंदाज़ में ..... मैंने देखा की
बीते हुए वर्ष मैं कई नए जगहों पर गया , नए लोगों से मिला, नयी किताबें
पढ़ी... बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ सीखा.... खोने जैसा इसीलिए कुछ नहीं है क्यूंकि
खाली हाथ ही तो इस दुनिया में आये थे....... देखता हूँ कि पूरे वर्ष भर मैंने
सकारात्मकता को अपनाया और नकारात्मक विचारों और लोगों से अपने आप को दूर रखने की
पूरी कोशिश की.... सोचता हूँ इस वर्ष वह कोशिश भी छूट जाए ......क्यूंकि मेरी
सकारात्मकता यदि किसी नकारात्मक क्यक्ति के साथ होने से खंडित होती है तो शायद ऐसी
सकारात्मकता दो कौड़ी की है.....
कुछ दिनों पहले मैंने अपना नाम
ऐसे व्यक्ति समूह के बीच पाया शायद जहां मैं अपने आपको नहीं देखना चाहता... क्या
किसी समूह विशेष के बीच नाम का उल्लेख मेरे व्यक्तित्व पर प्रभाव डाल सकता है??
इतनी छोटी सी बात कैसे मुझे उद्विग्न कर सकती
है?? क्या मैं श्रेष्ठ लोगों
के बीच होना चाहता हूँ ?? नहीं.... क्या
मैं श्रेष्ठ होना चाहता हूँ ?? नहीं... फिर
सोचता हूँ मुझे क्या चाहिए ?? नाम?? नहीं....... बहुत पैसा, धन दौलत?? नहीं...... इसी
उधेड़बुन के बीच बिस्तर के पास राखी किताबों में से एक को उठाकर पढ़ने लगता हूँ ...
नज़रें सीधे कबीर दास के एक पद पर जाती है-
“ चाह गई चिंता
मिटी , मनवा बेपरवाह |
जिनको कछु नहीं
चाहिए , ते शाहन पति शाह ||".......
गहरी निद्रा.
आज सुबह उठते ही लापरवाही के चलते
दरवाजा खुला रह जाता है और ... प्रिय तोता (मानु) उड़ जाता है .... दुःख के
क्षण.... जाते जाते वो भी एक सीख दे जाता है कि एक दिन हमें भी यह देह रुपी पिंजरा
छोड़ कर अनंत की यात्रा पर निकल जाना होगा...... तो जब तक हैं प्यार बांटते रहें ,
खुश रहें , मस्त रहें, स्वस्थ रहें.
आज हमारे बचे हुए
शेष जीवन का पहला दिन है|
-मन मोहन जोशी "MJ"
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