30- January- 2017
एक समय की बात है किसी राज्य में एक प्रतापी राजा हुए ........ एक फ़कीर से उन्हें बड़ा प्रेम था और फकीर भी राजा का बड़ा सम्मान करता था...........फकीर अपनी मस्ती में देश दुनिया में घूमता रहता .... राजा को लगता कि यदि ये मेरे राज्य में बस जाए तो ठीक हो..... प्रेम वश राजा जब भी उस फकीर से मिलता तो आग्रह करता कि आप मेरे साथ चलें और राज महल में रहें....... फकीर भी घुमक्कड़ी से थक चुका था ....... उसने राजा का आग्रह मान लिया.....
फकीर के आने के बाद राजा का साम्राज्य कई गुना बढ़ा ......फकीर घूम-घूम कर प्रवचन करते और प्रवचन में राजा और उसके साम्राज्य की ही चर्चा होती.... राजा की कीर्ति दूर दिगंत तक फैलती चली गई......राजा इस कीर्ति का हक़दार भी था......लेकिन फकीर की फक्कड़ी से कुछ दरबारी परेशान थे.....वे लगातार राजा के कान भरते और फकीर तथा उसकी नीतियों की आलोचना करते ..... राजा को बार-बार ये एहसास करवाया जाता था कि उसकी कीर्ति के पीछे तो उसकी क्षमता और दरबारियों का हाथ है फकीर तो आराम से बैठ कर पैसे बना रहा है ......... फ़कीर ने भी कभी किसी बात का श्रेय लेने की होड़ नहीं दिखाई......
एक दिन कुछ ऐसा घटा..... किसी बात पर चर्चा के दौरान राजा ने फकीर से कहा.... तुममें, मुझमें और बाकी दरबारियों में क्या फर्क है.... इस प्रश्न का कारण था कि इन कुछ वर्षों में घुमक्कड़ फकीर ने भी स्वयं के लिए महल बनवा लिया था... और रथ भी खरीद ली थी..... राजा के मन में प्रश्न का उठना स्वाभाविक था..... फकीर मुस्कुराया उसने कहा महाराज आप अपने ख़ास दरबारियों को लेकर कल मेरे साथ राज्य की सीमा तक चलें तो शायद मैं फर्क बता सकूँ.
अगले दिन राजा अपने ख़ास दरबारियों और फकीर के साथ राज्य की सीमा की ओर चल पड़ा........ सीमा पर पहुँच कर फकीर ने कहा.... मैं यहाँ से वापस नहीं लौटना चाहता ... क्या आपमें से किसी में हिम्मत है कि मेरे साथ अनजाने अनंत की यात्रा पर चल सके बिना किस भविष्य निधि और सुरक्षा के...... सभी चौंके!! सभी ने कहा नहीं हम वर्तमान पद ,प्रतिष्ठा और संपत्ति को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते ..... फकीर ने कहा यही फर्क है ... फकीर चल पड़ा अपने सामर्थ्य और इश्वर पर विश्वास के भरोसे अनजाने भविष्य की ओर अनंत की यात्रा पर .....
"ग़ालिब - ए -खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं.......
रोइए जार जार क्या कीजिये हाय हाय क्यूँ??"
- मन मोहन जोशी "मन"
एक समय की बात है किसी राज्य में एक प्रतापी राजा हुए ........ एक फ़कीर से उन्हें बड़ा प्रेम था और फकीर भी राजा का बड़ा सम्मान करता था...........फकीर अपनी मस्ती में देश दुनिया में घूमता रहता .... राजा को लगता कि यदि ये मेरे राज्य में बस जाए तो ठीक हो..... प्रेम वश राजा जब भी उस फकीर से मिलता तो आग्रह करता कि आप मेरे साथ चलें और राज महल में रहें....... फकीर भी घुमक्कड़ी से थक चुका था ....... उसने राजा का आग्रह मान लिया.....
फकीर के आने के बाद राजा का साम्राज्य कई गुना बढ़ा ......फकीर घूम-घूम कर प्रवचन करते और प्रवचन में राजा और उसके साम्राज्य की ही चर्चा होती.... राजा की कीर्ति दूर दिगंत तक फैलती चली गई......राजा इस कीर्ति का हक़दार भी था......लेकिन फकीर की फक्कड़ी से कुछ दरबारी परेशान थे.....वे लगातार राजा के कान भरते और फकीर तथा उसकी नीतियों की आलोचना करते ..... राजा को बार-बार ये एहसास करवाया जाता था कि उसकी कीर्ति के पीछे तो उसकी क्षमता और दरबारियों का हाथ है फकीर तो आराम से बैठ कर पैसे बना रहा है ......... फ़कीर ने भी कभी किसी बात का श्रेय लेने की होड़ नहीं दिखाई......
एक दिन कुछ ऐसा घटा..... किसी बात पर चर्चा के दौरान राजा ने फकीर से कहा.... तुममें, मुझमें और बाकी दरबारियों में क्या फर्क है.... इस प्रश्न का कारण था कि इन कुछ वर्षों में घुमक्कड़ फकीर ने भी स्वयं के लिए महल बनवा लिया था... और रथ भी खरीद ली थी..... राजा के मन में प्रश्न का उठना स्वाभाविक था..... फकीर मुस्कुराया उसने कहा महाराज आप अपने ख़ास दरबारियों को लेकर कल मेरे साथ राज्य की सीमा तक चलें तो शायद मैं फर्क बता सकूँ.
अगले दिन राजा अपने ख़ास दरबारियों और फकीर के साथ राज्य की सीमा की ओर चल पड़ा........ सीमा पर पहुँच कर फकीर ने कहा.... मैं यहाँ से वापस नहीं लौटना चाहता ... क्या आपमें से किसी में हिम्मत है कि मेरे साथ अनजाने अनंत की यात्रा पर चल सके बिना किस भविष्य निधि और सुरक्षा के...... सभी चौंके!! सभी ने कहा नहीं हम वर्तमान पद ,प्रतिष्ठा और संपत्ति को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते ..... फकीर ने कहा यही फर्क है ... फकीर चल पड़ा अपने सामर्थ्य और इश्वर पर विश्वास के भरोसे अनजाने भविष्य की ओर अनंत की यात्रा पर .....
"ग़ालिब - ए -खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं.......
रोइए जार जार क्या कीजिये हाय हाय क्यूँ??"
- मन मोहन जोशी "मन"
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