17- Jan- 2017
हम चेन्नई में हैं ... दोनों बड़े
भाइयों के बच्चों स्निग्धा , वैवश्वत
और शाश्वत के चूड़ा कर्म संस्कार के लिए हमें तिरुपति जाना है... कार्यक्रम १८ जनवरी को है उसके पहले
हम चेन्नई के बीच रिसोर्ट में छुट्टियां मना रहे हैं........
सुबह
के 5.50 बजे हैं... पत्नी उठाती है उठो -
उठो क्या आज सूरज को नहीं उगाना है?... कहती
है मैं तैयार हूँ... चलो जल्दी उठो.... जागते ही मैं दोनों बड़े भाइयों को फ़ोन लगाता हूँ वैसे हमारे कमरे आजू -बाजू हैं लेकिन फ़ोन लगाना ही सुविधाजनक लगा.... मझले भैया
तैयार हैं..... बड़े भैया फ़ोन नहीं उठाते तो दुबारा नहीं लगाता .... सोचता हूँ शायद
कल घुमने के बाद ज्यादा थक गए होंगे......
भैया, मैं और मेरी अर्धांगिनी हम तीनों हम सागर किनारे आ गए हैं..... बादल छाये हैं... सूरज का कोई नामो निशान नहीं
है..... पत्नी सागर की आती जाती लहरों से खेलने लगती है .... मैं और भैया
तौलिया बिछा कर बैठ जाते हैं ..... शुरू
होती है ज्ञान चर्चा .... ब्रम्ह ,
परमात्मा,
संसार ,
सृष्टि रचना, विज्ञान, आध्यात्म ,
ज्योतिष और बहुत सारा मौन..........
मैं सागर को एक टक निहारता रहता हूँ......स्कूल में पढ़ा था कि सागर के पानी
की विशेषता इसका खारा या नमकीन होना है। पानी को यह खारापन मुख्य रूप से ठोस
सोडियम क्लोराइड द्वारा मिलता है,
लेकिन पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम के क्लोराइड के अतिरिक्त
विभिन्न रासायनिक तत्व भी होते हैं जिनका संघटन पूरे विश्व मे फैले विभिन्न सागरों
में बमुश्किल बदलता है। हालाँकि पानी की लवणता में भीषण परिवर्तन आते हैं, जहां
यह पानी की ऊपरी सतह और नदियों के मुहानों पर कम होती है वहीं यह गहराइयों में अधिक होती है।
सागर की सतह पर उठती लहरें
इनकी सतह पर बहने वाली हवा के कारण बनती है। भूमि के पास उथले पानी में पहुँचने पर
यह लहरें मंद पड़ती हैं और इनकी ऊँचाई में वृद्धि होती है, जिसके
कारण यह अधिक ऊँची और अस्थिर हो जाती हैं और अंतत: सागर तट पर झाग के रूप में
टूटती हैं।
बैठे- बैठे मैं सोचता हूँ, क्या लहरों का भी ईगो होता होगा?.....
बड़ी लहर इस बात का घमंड करती होगी की वो बड़ी है... और छोटी लहर इस बात से डिप्रेशन
में होगी की वो छोटी है और कम समृद्ध है...... फिर उन्हें दिखता होगा कि जीवन तो
क्षणिक है......शायद तट से टकराने से पहले लहरों को यह ज्ञान भी होता हो कि सागर तट से टकरा कर मर जाना ही उनकी नियति है ....... काश कोई
उन्हें ये बता सकता कि वे ही सागर हैं...... उनका अस्तित्व ही पानी है .......फिर
कैसा जन्म और कैसी मृत्यु.... संसार रुपी इस सागर में हम भी ऐसी ही लहरों के सामान
हैं और जन्म - मरण केवल तब तक है जब तक हमने ये नहीं जाना की हम ही सागर हैं........
कहने को तो हूँ मैं आंसू का कतरा एक,
सागर जैसा स्वाद है तू चख कर के तो देख ||
- मन मोहन जोशी "मन"
3 टिप्पणियां:
Boy - आज मेरे Dil का Operation है.
Dost - पता है यार डरता Q है मैं हूं ना...
Boy - I Love u....
Dost - मै भी बहुत प्यार करता हूं तुझसे.
Operation के बाद जब लडके को होश आया तो सिर्फ उसका बाप खडा था.
Boy - मेरा दोस्त कहां है...
.
Father - तुझे नही पता तुम्हे Dil किसने दिया ???? उसी ने.
Boy - what ! और जोर जोर से रोने लगा
.
तब Dil से आवाज आयी ...
''रो मत मेरे यार मैं तो तेरे सीने मे हमेशा के लिए जिंदा हूं !''
वंदेमातरम्
Kya baat hai sir
Aise hi hame Apni Diary ke panne ke Apne Anubhabo se Hume Alankrit kare
Thanx a lot Narendra.. keep reading.
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