Diary Ke Panne

मंगलवार, 29 जनवरी 2019

"असतो मा सद्गमय" और धर्मनिरपेक्षता



                                   
  सन्दर्भ जिस पर यह आलेख आधारित है.

                  आज सुबह-सुबह मित्र श्री ऋषि माथुर जी ऑफिस में आये और कहा की सुप्रीम कोर्ट ने असतो मा सद्गमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय॥ मृत्योर्मामृतम् गमय॥“  इस संस्कृत श्लोक को  स्कूलों में विशेषतः केन्द्रीय विद्यालय में प्रातः प्रार्थना के रूप में गवाये जाने के विरुद्ध लगाई गई याचिका को स्वीकार कर लिया है. आप इस मुद्दे पर कुछ लिखते क्यूँ नहीं?? मैंने कहा इन दिनों मेरे पास लिखने को तो बहुत कुछ है लेकिन कुछ मुद्दों पर इस लिए नहीं लिखता कि  किसके लिए लिखूं कौन समझने को तैयार है?? और कुछ मुद्दों पर समायाभाव के कारण भी नहीं लिख पाता हूँ.
  
लेकिन अभी इस मुद्दे पर लिखने बैठा हूँ और मुझे नहीं पता इस एक लेख के माध्यम से किस-किस की अवमानना होने वाली है. (आगे स्वयं के रिस्क पर पढ़ें, इस आलेख में व्यक्त सभी विचारों के लिए मैं पूर्णतः ज़िम्मेदार हूँ.)  
  
 बृहदारण्यक उपनिषद् से लिए गए इस श्लोक "असतो मा सद्गमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥" का अर्थ है -
  
"(हमें) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥"
  
In English:- “Lead us from falsehood to truth, from darkness to light,  from death to the immortality.”
  
क्या खूबसूरत प्रार्थना है! क्या बेहतरीन शब्द हैं! क्या शानदार सोच है!! जब कुछ बुद्धिमान  इन्हें साम्प्रदायिक बताने में लगे हैं तो कुछ महा बुद्धिमान ऐसे भी आ जाएंगे जो कहेंगे इन श्लोकों का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं है ये तो मानव मात्र की भलाई के लिए हैं.
  
अरे चतुर सुजानों यह स्वीकार करने में क्या शर्म है की इसका सम्बन्ध हिन्दू धर्म से है. और शायद हर किसी को इस बात पर गर्व होना चाहिए की कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जो मनुष्यता के बारे में सोच रहे थे जो ज्ञान के बारे में सोच रहे थे.
  
वैसे तो मुझे इन श्लोकों को पढ़ते हुए यही लगता है कि धर्म, सम्प्रदाय, जाति, लिंग जैसे विभेदों से बहुत ऊपर मानवमात्र के उत्थान के लिए सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करने वाले वाक्य हैं ये. वसुधैव कुटुंबकम के मूलमंत्र को अपने जीवन में उतारने वाली सनातन संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों में इस तरह की अनेक प्रार्थनायें बार-बार मिलती हैं.
   
परन्तु अब स्वतंत्रता के कई वर्षों बाद हमें ये बताया जा रहा है कि हमारे जीवन दर्शन का आधार रहे ये सूत्र देश की धर्मनिरपेक्षता पर चोट करते हैं क्योंकि ये एक धर्म विशेष के प्राचीन ग्रंथ से लिए गए हैं. क्या मुर्खता है????
  
आश्चर्य इस पर नहीं कि किसी बुद्धिमान को इस तरह की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगाने की सूझी क्योंकि इस देश की प्राचीन सांस्कृतिक विरासतमूल्यों, परम्पराओं और हर उस बात को  हानि पहुँचाने के लिए न जाने कितने ही लोग दिन रात एक किये हुए हैं. आश्चर्य न्याय के उस मंदिर में बैठे स्वघोषित भगवानों पर है जिनके समक्ष ऐसी याचिका आई और उन्होंने इसे खारिज कर देने के बजाय इसकी सुनवाई के लिए एक पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ बीठा दिया है.
  
वह सर्वोच्च न्यायालय जहां  1 नवम्बर 2017 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 55,259 मामले लंबित थे. जहाँ से न्याय पाने की उम्मीद में देश के आम आदमी की पीढ़ियाँ गुज़र जाती हैं. वहाँ इस बात की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ का गठन किया जाना, मेरे देखे जनता के पैसे की बर्बादी है और यह न्याय  तथा न्यायिक हितों का गर्भपात ही है.
  
सर्वोच्च न्यायालय में बैठे न्याय के इन देवताओं को ये पता होना चाहिए कि अगर केवल हिन्दू धर्म के किसी ग्रन्थ का भाग होने एवं संस्कृत में होने के कारण असतो मा सद्गमय”  जैसा श्लोक देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर चोट पहुँचाने वाला माना जाएगा और उसके केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना में शामिल होने पर प्रश्न खड़े किये जाएंगे तो केरल शासन, बेहरामपुर विश्वविद्यालय उड़ीसा, उस्मानिया विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश, कन्नूर विश्वविद्यालय केरलराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान श्रीनगर, आईआई टी कानपुर और सी बी एस ई आदि अनेक संस्थाओं पर भी बैन लगा देना होगा क्योंकि इन सभी के आदर्श वाक्य भी उपनिषदों से ही लिए गए हैं.
  
उदाहरण के लिए भारतीय गणतंत्र का सत्यमेव जयतेमुंडकोपनिषद से लिया गया है. केरल शासन का ध्येय वाक्य तमसो मा ज्योतिर्गमयबृहदारण्यक उपनिषद् से लिया गया है. गोवा शासन का ध्येय वाक्य सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्‌भवेत्”  गरुड़ पुराण से लिया गया  है.
  
भारतीय नौसेना का ध्येय वाक्य शं नो वरुणःतैत्तिरीय उपनिषद से लिया गया है. भारतीय वायुसेना  का ध्येय वाक्य नभः स्पृशं दीप्तम्”  भगवद्गीता से लिया गया है. भारतीय तटरक्षक बल का ध्येय वाक्य वयं रक्षामः”  बाल्मीकि रामायण से लिया गया है. रिसर्च एन्ड एनालिसिस विंग (रॉ)  का ध्येय वाक्य धर्मो रक्षति रक्षितःमनुस्मृति से लिया गया है.
  
लोक तंत्र के पवित्र मंदिर संसद भवन की बात करें तो वह तो ऐसे श्लोकों से पटा पड़ा है कुछ उदाहरण देखिये:
  
संसद के मुख्य द्वार पर लिखा है:-
 लो ३ कद्धारमपावा ३ र्ण ३३
 पश्येम त्वां वयं वेरा ३३३३३
 (हुं ३ आ) ३३ ज्या ३ यो ३
 आ ३२१११ इति।

 यह छान्द्योग्योप्निषद से लिया गया है जिसका अर्थ है-
 "द्वार खोल दो, लोगों के हित में ,
 और दिखा दो झांकी।
 जिससे प्राप्ति हो जाए,
 सार्वभौम प्रभुता की।"

 लोक सभा अध्यक्ष के आसन के ऊपर अंकित है.
 धर्मचक्र-प्रवर्तनायअर्थात- धर्म परायणता के चक्रावर्तन के लिए.
  
 संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष के द्वार के ऊपर अंकित है:-
 अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
 उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
 यह पंचतंत्र से लिया गया है और इसका हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह है :-
 "यह मेरा है , वह पराया है  ऐसा सोचना संकुचित विचार है। उदारचित्त वालों के लिए सम्पूर्ण विश्व ही परिवार है।"

  आगे जाने पर लिफ्ट संख्या 1 के निकटवर्ती गुम्बद पर महाभारत का एक श्लोक अंकित है :-
 न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा,
 वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्।
 धर्म स नो यत्र न सत्यमस्ति,
 सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति।।
  
इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है:-
 "वह सभा नहीं है जिसमें वृद्ध न हों,
 वे वृद्ध नहीं है जो धर्मानुसार न बोलें,
 जहां सत्य न हो वह धर्म नहीं है,
 जिसमें छल हो वह सत्य नहीं है।"
  
ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं ऐसे अनगिनत संस्थान और संगठन हैं जो या जिनका ध्येय वाक्य भारत की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा हो सकता है. लेकिन मेरे देखे ऐसी किसी याचिका को ग्रहण करने से पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं का ध्येय वाक्य एक बार देख लेना चाहिए था जो है यतो धर्मस्ततो जय:यह भी हिन्दुओं के ही ग्रन्थ महाभारत से ही लिया गया है.
  
जहां एक ओर दुनिया इन श्लोकों और ज्ञान की मुरीद हो रही है (गूगल करके देखें) दुनियां भर में जापान से लेकर अमेरिका तक और चाइना से लेकर स्पेन तक स्कूलों में संस्कृत सीखाया और पढ़ाया जा रहा है . रूस में तो भगवद गीता स्कूलों में अनिवार्य विषय की तरह शामिल किया जा चुका है और हम हैं की निरी मूर्खताओं में पड़े हुए हैं.
  
सुप्रीम कोर्ट को ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने से बचना चाहिए जिससे जनता के समय और पैसे की बर्बादी हो. कुछ लोग केवल ओछी लोकप्रियता के ऐसे मामले कोर्ट तक लेकर आते हैं.
   
मेरा सोचना यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को ऐसी बातों पर ध्यान देना चाहिए? क्या ये बात देश और समाज हित में इतने महत्वपूर्ण हैं ?? क्या इन श्लोकों को न गाने से मानव जीवन में परिवर्तन हो जाएगा??
  
इंतज़ार करते हैं उच्चतम न्यायलय के इस मुद्दे पर निर्णय का.

-    मनमोहन जोशी
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शनिवार, 19 जनवरी 2019

"उड़ी" और "ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड"



उड़ी, भारत के जम्मू एवं कश्मीर राज्य के बारामूला ज़िले में झेलम नदी के किनारे स्थित एक खूबसूरत शहर है. यह जगह पाक-अधिकृत कश्मीर के साथ सटी हुई नियंत्रण रेखा से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

19वीं शताब्दी के एक ब्रिटिश यात्री के अनुसार इस स्थान पर "रालन" जिसका साइंटिफिक नाम "सेसलपिनिया डेकापेटाला" ( Caesalpinia decapetala) के पेड़ों की भरमार थी जिसे कश्मीरी भाषा में "उड़ी" कहते हैं. और सम्भव है कि इन्हीं के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा है.

सन् 1947 में भारत विभाजन से पहले उड़ी तहसील मुज़फ़्फ़राबाद ज़िले का हिस्सा हुआ करती थी. 1947 के भारत-पाक युद्ध के बाद उस ज़िले का अधिकतर हिस्सा पाक-अधिकृत कश्मीर में पड़ा और उड़ी तहसील को बारामूला ज़िले में शामिल कर लिया गया.

18 सितम्बर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ, एक आतंकी हमला था, जिसमें 18 जवान शहीद हो गए. सैन्य बलों की कार्रवाई में सभी चार आतंकियों को मार गिराया गया था.  

इसका बदला लेने  के लिए ही साल 2016 भारतीय सेना की एक टुकड़ी ने  पाकिस्तान में घुसकर 'सर्जिकल स्ट्राइक' को अंजाम दिया था जो आज भी दुनिया की जुबान पर है. उडी फिल्म की कहानी इसी घटना पर आधारित है.

मित्रों की सलाह पर कल इस फिल्म को सपरिवार देखने पहुंचा. बेहतरीन अदाकारी, कसी हुई स्टोरी, शानदार सिनेमेटोग्राफी, जोश से भरे हुए डायलाग और किरदारों का चुनाव आपको आखिरी तक बांधे रखता है. फिल्म का निर्देशन आदित्य धर ने किया हैं. इसे रोनी स्क्रूवाला के बैनर तले बनाया गया है.

 इस सर्जिकल स्ट्राइक में योगदान के लिए पूर्व नगरोटा कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र निंबोरकर को सम्मानित भी किया गया था .

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद  लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र निंबोरकर ने एक  इंटरव्यू में ने बताया था कि पाकिस्तान की सीमा में 15 किलोमीटर अंदर जाने के बाद भारतीय सेना ने तेंदुए के मल-मूत्र का इस्तेमाल किया था, ताकि कुत्तों को शांत रखा जाए. सीमा पर आसपास के जंगलों में सेना ने देखा  कि तेंदुए अक्सर कुत्तों पर हमला करते हैं और इन हमलों से खुद को बचाने के लिए कुत्ते रात को बस्ती में ही रहते हैं.

 निंबोरकर ने बताया था कि 'रणनीति बनाते वक्त सेना को पता था कि रास्ते के गांवों से निकलते वक्त कुत्ते भौंकना शुरू कर सकते हैं और सेना पर हमला कर सकते हैं. इससे निपटने के लिए भारतीय सेना तेंदुए का मल-मूत्र अपने साथ लेकर गई थी. उसे गांव के बाहर छिड़क दिया गया, जिससे कुत्ते भौंके नहीं और सेना आसानी से सीमा पार कर सके.'

हमले से पहले भारतीय सेना सुरक्षित जगह पर पहुंच गई और मौका देखते ही आतंकियों पर हमला बोल दिया. सेना ने इस हमले में 29 आतंकियों को मार गिराया था और आतंकियों के लॉन्च पैड्स और ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था. हमले को अंजाम देने के बाद सेना वापस सुरक्षित अपनी सीमा में पहुंच गई. यह पूरी कार्रवाई सेना ने इतनी सफाई से की थी कि पाकिस्तानी सेना हक्की-बक्की रह गई थी.

फिल्म में आप नरेन्द्र मोदी , मनोहर पर्रीकर , अजीत डोभाल , राजनाथ सिंह आदि को बड़ी ही आसानी से पहचान सकते हैं. एक सीन में सर्जिकल स्ट्राइक से सम्बंधित मीटिंग के दौरान अजीत डोभाल मम्यूनिख ओलिंपिक में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हैं.

 1972 में ओलंपिक खेलों का आयोजन जर्मनी के म्यूनिख शहर में हुआ था. दुनियाभर के तमाम देशों के खिलाड़ी इसमें हिस्सा लेने आए थे. खेल शुरू हुए एक हफ्ते से ज्यादा वक्त बीत चुका था. कोई नहीं जानता था कि आने वाले दिनों में ओलंपिक गेम्स विलेज में कुछ ऐसा होने वाला है, जो खेलों के इतिहास का सबसे काला अध्याय बन जाएगा.

तारीख थी 5 सितंबर 1972. खिलाड़ियों की तरह ट्रैक सूट पहने 8 अजनबी लोहे की दीवार फांदकर ओलंपिक विलेज में घुसने की कोशिश कर रहे थे.  तभी वहां कनाडा के कुछ खिलाड़ी पहुंच गए. दीवार फांदने वाले अजनबी सहम गए, कनाडा के खिलाड़ियों ने उन्हें किसी दूसरे देश का खिलाड़ी समझा और फिर दीवार फांदने में उनकी मदद की.  लोहे की दीवार पार करने के बाद कनाडा के खिलाड़ी अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए.  दूसरी तरफ ट्रैक सूट पहने अजनबी उस इमारत के बाहर पहुंच गए जहां इजरायली खिलाड़ियों को ठहराया गया था.

अगले दिन ये खबर सनसनी बनकर पूरी दुनिया में फैल गई कि फलस्तीनी आतंकवादियों ने जर्मनी के म्यूनिख शहर में 11 इजरायली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है. अब तक बाहर वालों को ये पता नहीं था कि दो खिलाड़ी पहले ही मारे जा चुके हैं. आतंकियों ने मांग रखी कि इजरायल की जेलों में बंद 234 फलस्तीनियों को रिहा किया जाए, लेकिन इजरायल ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि आतंकियों की कोई मांग नहीं मानी जाएगी. इसके बाद आतंकियों ने दो खिलाड़ियों के शवों को हॉस्टल के दरवाजे से बाहर फेंक दिया, वो ये संदेश देना चाहते थे कि यही हाल बाकी खिलाड़ियों का भी होगा लेकिन इजरायल का इरादा नहीं बदला.

इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर के सख्त तेवर देखकर दुनिया दंग थी. लोगों को लग रहा था कि इजरायल ने अपने खिलाड़ियों को आतंकियों के भरोसे छोड़ दिया है. लेकिन हकीकत ये है कि इजरायल जर्मनी को इस बात के लिए राजी करने में जुटा था कि वो म्यूनिख में अपने स्पेशल फोर्सेस भेज सके, लेकिन जर्मनी इसके लिए तैयार नहीं हुआ.

ओलंपिक खेलों के दौरान खिलाड़ियों को बंधक बनाना और मोलभाव करना. पूरी दुनिया टकटकी लगाकर इजरायल की ओर देख रही थी. लोग सांसें थामे इंतजार कर रहे थे कि आखिर इजरायली खिलाड़ियों का क्या होगा. इसी बीच आतंकियों ने एक नई मांग रखी और जर्मन सरकार ने वो मांग मान भी ली. आतंकियों ने मांग रखी कि उन्हें यहां से निकलने दिया जाए, वो बंधक इजरायली खिलाड़ियों को अपने साथ ले जाना चाहते थे. जर्मन सरकार की रणनीति थी कि इसी बहाने आतंकी और खिलाड़ी बाहर निकलेंगे और एयरपोर्ट पर आतंकियों को निशाना बनाना आसान होगा.

 पूरी दुनिया अपने टीवी स्क्रीन पर इस मंजर को लाइव देख रही थी. खिलाड़ियों को बस से उतारकर हेलीकॉप्टर में बिठाया गया. इसके कुछ ही सेकेंड बाद शार्प शूटरों ने आतंकियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. खुद को चारों तरफ से घिरता देख आतंकियों ने निहत्थे खिलाड़ियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. एक हेलीकॉप्टर को बम से उड़ा दिया गया. फिर दूसरे हेलीकॉप्टर में बैठे खिलाड़ियों को भी गोलियों से भून दिया गया। कुछ ही मिनटों में एयरबेस पर मौजूद हर आतंकी मारा गया. लेकिन इजरायल के 9 खिलाड़ी भी आतंकियों की गोलियों के शिकार बन गए.

 इसके बाद इजरायल शांत नहीं बैठा उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद से उन सभी लोगों के कत्ल की योजना बनाई, जिनका वास्ता ऑपरेशन ब्लैक सेंप्टेंबर से था. इस मिशन को नाम दिया गया  "रैथ ऑफ गॉड" यानी ईश्वर का कहर.

म्यूनिख नरसंहार के दो दिन के बाद इजरायली सेना ने सीरिया और लेबनान में मौजूद फलस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन के 10 ठिकानों पर बमबारी की और करीब 200 आतंकियों और आम नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर इतने भर से रुकने वाली नहीं थीं। उन्होंने इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ गुप्त मीटिंग की और उनसे एक ऐसा मिशन चलाने को कहा जिसके तहत दुनिया के अलग-अलग देशों में फैले उन सभी लोगों के कत्ल का निर्देश दिया, जिनका वास्ता ब्लैक सेप्टेंबर से था।

इसके बाद जो हुआ वो इतिहास में दर्ज है इस्राइल ने दुनिया भर में फैले उन आतंकियों को चुन चुन कर मारा जिनका सम्बन्ध म्यूनिख हमले से था.

तो अगर आपने “उड़ी” देख ली है तो “हाउ इस द जोश” का उत्तर नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें और नहीं देखि है तो देख कर आएं और फिर लिखें....
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    - मनमोहन जोशी     

मंगलवार, 15 जनवरी 2019

मकर संक्रांति और पतंग.......


बड़े भैया के साथ बचपन की यादें ताज़ा करते हुए

डेढ़ दशक से भी ज्यादा पुरानी चक्री जो पापा ने भेंट दी थी और बेहद खूबसूरत होने की कारण कभी उपयोग में नहीं लाई गई. अब जा कर उपयोग में आई. क्या खूबसूरती से संभाल कर रखा था मम्मी ने.   

 
वो काटा 



भगवान् सूर्य नारायण अस्ताचल में रुके कर पतंगबाजी का आनंद लेते हुए 




सूर्य की गति पर आधारित मकर संक्रांति का यह उत्सव भारतीय मनीषा को रेखांकित करता है. मकर संक्रांति में “मकर” शब्द आकाशमें स्थित एक तारामंडल का नाम है जिसे मकर राशी कहा जाता है.  सूर्य के इस राशी में प्रवेश से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला यह  उत्सव सूर्य का उत्तरायण में स्वागत उत्सव है.

उत्तरायण का अर्थ है पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के सापेक्ष में स्थित आकाश का भाग अर्थात उत्तरी अयन. जब सूर्य उत्तरायण में आता है तो इसकी किरणें पृथ्वी पर क्रमशः सीधी होने लगती है. जिससे धीरे धीरे गर्मी बढ़ने लगती है. यह शीत  ऋतु का अंत माना जाता है.

सूर्य की बारह महीनों में कुल बारह संक्रांति होती है. सूर्य एक राशी के सामने एक महीना रहता है फिर दूसरे महीने दूसरी राशि के सामने चला जाता है. इस प्रकार पूरे एक वर्ष में बारह महीनों में बारह राशियों का भ्रमण करते हुए सूर्य अपना एक वर्ष पूर्ण कर लेता है.

कभी कभी यह सोच कर मन आश्चर्य से भर जाता है की भारत में छः ऋतुओं की पूरी परिकल्पना  पञ्चाङ्ग में मिल जाती है. प्रकृति में घटने वाली एक एक घटना चाहे वो पृथ्वी पर घटित हो या ब्रह्मांड में उन सब का विवरण पञ्चाङ्ग में मिल जाता है .

भारत के बहुत बड़े हिस्से में इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है. आसाम में इसे बिहू कहा जाता है. आसाम के कुछ क्षेत्रों में इसे माघ बिहू भी कहा जाता है. कुछ क्षेत्रों में इसे भोगाली बिहू भी कहते हैं. तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है. कर्नाटक के किसानों का यह सुग्गी उत्सव है. कर्नाटक में इसे किछु हाईसुवुडडू के रूप में भी मनाया जाता है. हिमाचल प्रदेश में शिमला के आसपास इसे माघ साज्जि कहा जाता है. कुमाऊं क्षेत्र में इस उत्सव को घुघुटिया के रूप में मनाया जाता है. उड़ीसा में इसे मकर बासीबा कहकर मनाया जाता है. बंगाल में इसे मागे सक्राति के रुप में मनाते हैं. गोआ और महाराष्ट्र में हल्दी कुमकुम मनाया जाता है.

आश्चर्य होता है कि कैसे एक त्यौहार जिसमें फसल चक्र से लेकर अर्थ चक्र और स्वास्थ्य चक्र से लेकर आयुषचक्र तक का चिंतन भी समाहित है सैकड़ों हज़ारों वर्ष पूर्व गढ़ दिया गया था. इस सम्पूर्ण वांग्मय के समक्ष पूरा विश्व और वैश्विक ज्ञान बौना मालूम पड़ता है.

संक्रांति और पतंग का एक अटूट रिश्ता है. जनवरी मध्य की गुनगुनी धूप हो, हाथ में तिल-गुड़ हो और नज़र उठा कर आसमान को देखें तो नीला आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भरा दीखता है. मानो रंग बिरंगी पतंग से हम उत्तरायण होते सूर्य नारायण की अगवानी करने आकाश के द्वार पर पहुँचते हों.

कल शाम ऑफिस की छत पर ही पतंग उड़ाने का आयोजन किया गया. अभिषेक और रोहित पतंग और माँजा ले आये थे कुछ पतंग और बरेली मांजा मैंने भी किशोर से मंगवा लिए थे. 

लेक्चर्स और ज़रूरी मीटिंग्स के बाद लगभग पांच बजे हम छत पर पहुंचे.  थोड़ी देर बाद माथुर जी, गुप्ता जी, बड़े भैया और सुनील भाई भी छत पर आ गए. अंकित, बलबीर, कमल, कमलेश और बाकी टीम भी छत पर जमी थी. कमाल ये था कि  सूर्य देव अस्ताचल पर ठिठक गए थे इस पतंगोत्सव को देखने. (ऊपर के चित्रों में देखें)
  
बड़े भैया ने अपनी पतंग की स्किल दिखाई दूर छत पर बैठे कबूतरों को उड़ा कर. उनकी स्किल तो इतनी शानदार रही है की पेड़ पर लगा आम मांझे से काट दें.... और फिर दौर शुरू हुआ पेंच लड़ाने का.       

गौर करें तो हमारा जीवन भी पतंग की मानिंद है. सुंदर, हल्का और उम्मीदों से भरा. हमारा मन आकाश छू लेना चाहता है अपनी इच्छाओं की डोर के सहारे. उम्र के हर पड़ाव पर इच्छाएं जन्म लेती हैं. हर प्रयास उन्हें पूरा होते देखना चाहता है. एक सपना सदा साथ रहता है, आसमान की पतंग सा. जो हर मुश्किल परिस्थिति को हवा की मानिंद चीरता हुआ विचरता फिरता है सफलता के अनंत आकाश में.

मन और आत्मा रुपी दो खपच्चियों से शरीर रुपी कागज़ साधा हुआ है. इसमें कर्म की ज्योत ठीक से बाँध दी जाए और रिश्तों के धागों को मजबूती के साथ थामें रखें तो हमें सुख और सफलता के आकाश में विचरने से कोई नहीं रोक सकता.

-मनमोहन जोशी    

सोमवार, 14 जनवरी 2019

राइट टू डिसकनेक्ट....




मेरे कार्मिक जीवन की शुरुआत तभी हो गई थी जब मैं कक्षा 10 में था. जीवन के शरुआती दौर में ही में यह सीख चुका था कि ज़िम्मेदारी उठाना आपको सीखने की दिशा में आगे बढ़ाता है ज़िम्मेदारियों से बचना नहीं.

या तो आप काम का आनंद ले सकते हैं या फिर टेंशन. या तो आप काम की ज़िम्मेदरी ले लीजिए या फिर आपको प्रेसराइज़ किया जायेगा. वो एक पुरानी कहावत है ना "there is no free lunch in this world" इस कहावत को जीवन के शुरुआती दौर में ही जी रहा था समझ चुका था.

जॉब प्राइवेट हो या सरकारी टेंशन हर जगह होती है. 9 से 10 घंटे की शिफ्ट करने के बाद भी ऑफिशियल फोन और मेल का जवाब देना पड़ता है. लगातार काम करने की वजह से आजकल लोगों का निजी जीवन प्रभावित हो रहा है. कर्मचारियों को इस समस्या से बचाने के लिए हाल ही में  फ्रांस में एक कानून लागू किया गया है जिसके अनुसार किसी भी कर्मचारी को ऑफिस आवर्स के बाद फ़ोन उठाने  या मेल का जवाब देने के लिए विवश करना अपराध की कोटि में आएगा.

भारत में भी नौकरीपेशा लोगों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल को पेश किया.

इस बिल को ही "राइट टू डिसकनेक्ट" नाम दिया गया है. इसमें ऐसा प्रावधान है जिसके मुताबिक, नौकरी करने वाले लोग अपने ऑफिस आवर्स के बाद कंपनी से आने वाले फोन कॉल्स और ईमेल का जवाब न देने का अधिकार हासिल कर लेंगे. इस विधेयक में प्रावधान है कि एक कर्मचारी कल्याण प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी, जिसमें आईटी, कम्युनिकेशन और लेबर मंत्री शामिल होंगे.

'द राइट टू डिस्कनेक्ट' बिल कर्मचारियों के स्ट्रेस और टेंशन को कम करने की सोच के साथ लाया गया है. इससे कर्मचारी के पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच के तनाव को कम करने में मदद मिलेगी.

इस बिल के अध्ययन के लिए कल्याण प्राधिकरण का गठन किया जाएगा. इस प्राधिकरण में सूचना तकनीक, संचार और श्रम मंत्रियों को रखा जाएगा. बिल का अध्ययन करने के बाद एक चार्टर भी तैयार किया जाएगा.

- मनमोहन जोशी


रविवार, 13 जनवरी 2019

बादल पुराण....







  
मेघों से मेरा प्रेम काफी पुराना है. जब कभी आकाश में बादल घिर आएं तो मन मयूर नाचने लगता है. और शीत के दिनों में जो सफ़ेद बादल आसमान में पैटर्न बनाते हैं उनके तो क्या ही कहने !

जब पहली बार बादलों के ऊपर से उड़ान भरी थी तो मन एक अजीब किस्म की बेचैनी और उत्साह से भरा हुआ था.
और अब, जब कभी बादलों के ऊपर से उड़ता हूँ तो मनुष्य मन की अथाह क्षमता के प्रति मन कृतज्ञ हो उठता है.   

मैंने बादलों को छू कर और हाथों में लेकर देखा है. उस समय मन होता है कि खुद ही बादल हो रहूँ . उड़ता रहूँ इस उन्मुक्त गगन में. क्षितिज के एक और से दुसरे ओर. और जब कभी मन हो बरस जाऊं धरा पर, फिर अल्हड़ नदी बन विचरूं वनों और पहाड़ों में कंदराओं से होते हुए.

रविन्द्र नाथ  ने अपने एक कविता में लिखा  है - 

"मेघेर परे मेघ जमेछे आँधार करे आसे.........."
इस कविता का हिंदी अनुवाद कुछ ऐसा होगा –

“बादल पर बादल उड़ते आते हैं हो जाता है सघन अँधियार ।
अपने ठौर पर मैं एकाकी बैठा हूँ  और है यहाँ एकाकी द्वार ।।
न अपनी छवि दिखलाई , अगर की मेरी अवहेला ।
बताओ काटूँगा कैसे
,
मैं ये बादल-बेला ।।“

कालिदास अपने अमर साहित्य मेघदूत में लिखते हैं :-
"धूमज्‍योति: सलिलमरुतां संनिपात: क्‍व मेघ:
      संदेशार्था: क्‍व पटुकरणै: प्राणिभि: प्रापणीया:।
इत्‍यौत्‍सुक्यादपरिगणयन्‍गुह्यकस्‍तं ययाचे
      कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्‍चेतनाचेतनुषु।।"

अर्थात : धुएँ, पानी, धूप और हवा का जमघट बादल कहाँ? कहाँ सन्‍देश की वे बातें जिन्‍हें इन्द्रियोंवाले प्राणी ही पहुँचा पाते हैं? लेकिन यक्ष ने मेघ से अपनी प्रिया तक सन्देश पहुंचाने की प्राथना की. जो प्रेम में होते हैं, वे जैसे चेतन के समीप वैसे ही अचेतन के समीप. उन्हें चेतन अचेतन में भेद समझ नहीं आता या ये कहूं तो बेहतर होगा की वे अचेतन में भी चेतन को देखने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं.

सोचता हूँ महाकवि कहीं उस दौर में क्लाउड मेसेंजर की परिकल्पना तो नहीं कर रहे थे.

खैर एक बहुत प्रचलित वक्तव्य है कि  प्रेम अंधा होता है . लेकिन मेरा अनुभव कहता है इस अंधे जगत में केवल प्रेम के पास ही तो आँखें हैं.  


बादलों की बात चले और मणिकौल साहब की फिल्म "बादल द्वार" की चर्चा न करूँ तो बात अधूरी रह जायेगी. यह एक अद्भुत इरोटिक फिल्म है जिसे देखते हुए आप महसूस कर सकेंगे की आप एक संगीत के बादल पर सवार हैं. जायसी के "पद्मावत" और भास के "अविमारक" के अंशों पर आधारित इस फिल्म का नाम बादल द्वार ठीक ही रखा गया है. पार्श्व में उस्ताद फरीदुद्दीन डागर की रूद्र वीणा का अहर्निश नाद चलता रहता है जो अपने आप में काफी है, किसी को भी इस दुनिया से बाहर ले जाने के लिए.  
  
 विज्ञान की बात करूँ तो मुख्यतः बादल हवा के रूद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठण्डे होने तथा उसके तापमान के ओसांक बिन्दु तक गिरने के परिणामस्वरूप निर्मित होते हैं.

बादल कई प्रकार के होते हैं. जैसे:-

# सिरस : -  ऊँचाई पर उड़ने वाले सबसे सामान्य बादल “सिरस” कहलाते हैं. इसका अर्थ होता है “गोलाकार”.  इन्हें लगभग रोज़ आसमान में देखा जा सकता है. ये बादल हल्के और फुसफुसे होते हैं.
 # क्युमुलस:-  “क्युमुलस” का अर्थ होता है “ढेर”.  अपने नाम के अनुरूप ही ये बादल रूई के ढेर की तरह दिखाई देते हैं.
# क्युमुलोनिंबस :- लैटिन भाषा में क्युमुलोनिंबस का अर्थ होता है - "पानी से भरा हुआ बादल". गहरे रंग के बड़े बादल क्युमुलोनिंबस कहलाते हैं. ये बादल एवरेस्ट पर्वत से दुगुने ऊँचे हो सकते हैं और अक्सर उनमें लाखों टन से ज्यादा पानी होता है.
# स्ट्रेटस :- “स्ट्रेटस” का अर्थ है “फैला हुआ”. अपने नाम के अनुरूप ये बादल काफ़ी नीचे होते है और पूरे आकाश को घेर लेते है.  आदि .

अगली बार आप जब किसी पहाड़ी इलाके में जाएँ या बादलों के ऊपर से उड़ान भरें इन बादलों को ध्यान से देखें उनसे बात करें. यकीन माने आपका मन बादल होकर उड़ान भरने लगेगा.

✍️MJ