मेघों से मेरा प्रेम काफी पुराना है. जब कभी आकाश में बादल घिर आएं
तो मन मयूर नाचने लगता है. और शीत के दिनों में जो सफ़ेद बादल आसमान में पैटर्न
बनाते हैं उनके तो क्या ही कहने !
जब पहली बार बादलों के ऊपर से उड़ान भरी थी तो मन एक अजीब किस्म की
बेचैनी और उत्साह से भरा हुआ था.
और अब, जब कभी बादलों के ऊपर से उड़ता हूँ तो मनुष्य मन की अथाह क्षमता
के प्रति मन कृतज्ञ हो उठता है.
मैंने बादलों को छू कर और हाथों में लेकर देखा है. उस समय मन होता है
कि खुद ही बादल हो रहूँ . उड़ता रहूँ इस उन्मुक्त गगन में. क्षितिज के एक और से
दुसरे ओर. और जब कभी मन हो बरस जाऊं धरा पर, फिर
अल्हड़ नदी बन विचरूं वनों और पहाड़ों में कंदराओं से होते हुए.
रविन्द्र नाथ ने अपने एक कविता में लिखा है -
"मेघेर परे मेघ जमेछे आँधार करे आसे.........."
इस कविता का हिंदी अनुवाद कुछ ऐसा होगा –
“बादल पर बादल उड़ते आते हैं हो जाता है सघन अँधियार ।
अपने ठौर पर मैं एकाकी बैठा हूँ और है यहाँ एकाकी द्वार ।।
न अपनी छवि दिखलाई , अगर की मेरी अवहेला ।
बताओ काटूँगा कैसे , मैं ये बादल-बेला ।।“
अपने ठौर पर मैं एकाकी बैठा हूँ और है यहाँ एकाकी द्वार ।।
न अपनी छवि दिखलाई , अगर की मेरी अवहेला ।
बताओ काटूँगा कैसे , मैं ये बादल-बेला ।।“
कालिदास अपने अमर साहित्य मेघदूत में लिखते हैं :-
"धूमज्योति: सलिलमरुतां संनिपात: क्व मेघ:
संदेशार्था: क्व पटुकरणै: प्राणिभि:
प्रापणीया:।
इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन्गुह्यकस्तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनुषु।।"
इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन्गुह्यकस्तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनुषु।।"
अर्थात : धुएँ, पानी, धूप
और हवा का जमघट बादल कहाँ? कहाँ सन्देश की वे बातें जिन्हें इन्द्रियोंवाले
प्राणी ही पहुँचा पाते हैं? लेकिन यक्ष ने मेघ से अपनी प्रिया तक
सन्देश पहुंचाने की प्राथना की. जो प्रेम में होते हैं, वे
जैसे चेतन के समीप वैसे ही अचेतन के समीप. उन्हें चेतन अचेतन में भेद समझ नहीं आता या ये कहूं तो बेहतर होगा की
वे अचेतन में भी चेतन को देखने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं.
सोचता हूँ महाकवि कहीं उस दौर में क्लाउड मेसेंजर की परिकल्पना तो नहीं कर रहे थे.
खैर एक बहुत प्रचलित वक्तव्य है कि प्रेम अंधा होता है . लेकिन मेरा अनुभव कहता है इस अंधे जगत में केवल प्रेम के पास ही तो आँखें हैं.
बादलों की बात चले और मणिकौल साहब की फिल्म "बादल द्वार" की चर्चा न करूँ तो बात अधूरी रह जायेगी. यह एक अद्भुत इरोटिक फिल्म है जिसे देखते हुए आप महसूस कर सकेंगे की आप एक संगीत के बादल पर सवार हैं. जायसी के "पद्मावत" और भास के "अविमारक" के अंशों पर आधारित इस फिल्म का नाम बादल द्वार ठीक ही रखा गया है. पार्श्व में उस्ताद फरीदुद्दीन डागर की रूद्र वीणा का अहर्निश नाद चलता रहता है जो अपने आप में काफी है, किसी को भी इस दुनिया से बाहर ले जाने के लिए.
विज्ञान की बात करूँ तो मुख्यतः बादल हवा के रूद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठण्डे होने तथा उसके तापमान के ओसांक बिन्दु तक गिरने के परिणामस्वरूप निर्मित होते हैं.
बादल कई प्रकार के होते हैं. जैसे:-
# सिरस : - ऊँचाई पर उड़ने
वाले सबसे सामान्य बादल “सिरस” कहलाते
हैं. इसका अर्थ होता है “गोलाकार”. इन्हें
लगभग रोज़ आसमान में देखा जा सकता है. ये बादल हल्के और फुसफुसे होते हैं.
# क्युमुलस:- “क्युमुलस” का अर्थ होता है “ढेर”. अपने
नाम के अनुरूप ही ये बादल रूई के ढेर की तरह दिखाई देते हैं.
# क्युमुलोनिंबस :- लैटिन भाषा में क्युमुलोनिंबस का अर्थ होता है -
"पानी से भरा हुआ बादल". गहरे रंग के बड़े बादल क्युमुलोनिंबस कहलाते हैं.
ये बादल एवरेस्ट पर्वत से दुगुने ऊँचे हो सकते हैं और अक्सर उनमें लाखों टन से
ज्यादा पानी होता है.
# स्ट्रेटस :- “स्ट्रेटस” का अर्थ है “फैला हुआ”. अपने नाम के अनुरूप ये बादल काफ़ी नीचे होते
है और पूरे आकाश को घेर लेते है. आदि .
अगली बार आप जब किसी पहाड़ी इलाके में जाएँ या बादलों के ऊपर से उड़ान
भरें इन बादलों को ध्यान से देखें उनसे बात करें. यकीन माने आपका मन बादल होकर
उड़ान भरने लगेगा.
✍️MJ
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