Diary Ke Panne

शनिवार, 26 अगस्त 2017

रोम जलता रहा .........




                       रोम के बारे में कहा जाता है कि जब पूरा रोम जल रहा था, तब सत्तासीन मूर्ख सम्राट नीरो बाँसुरी बजा रहा था. 1453 (ईसा पूर्व) यूरोप के रोम नगर में केन्द्रित एक साम्राज्य था. रोमन साम्राज्य में अलग-अलग स्थानों पर लातिन और यूनानी भाषाएँ बोली जाती थी और सन् 130 में इसने ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया था. यह विश्व के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था. ऑक्टेवियन ने जूलियस सीज़र के सभी संतानों को मार दिया. इसके बाद ऑक्टेवियन को रोमन सीनेट ने ऑगस्टस का नाम दिया. ऑगस्टस के बाद टाइबेरियस सत्तारूढ़ हुआ और उसके बाद  कैलिगुला आया जिसकी सन् 41 में हत्या कर दी गई फिर परिवार का एक मात्र वारिस क्लाउडियस शासक बना.  इसके  बाद नीरो का शासन आया जिसके शासन काल में रोम पूरी तरह से बर्बाद हो गया और नीरो अपनी भोग विलासिता में व्यस्त रहा  .....
                        
                       यह घटना कहावतों में बदल चुकी है. लेकिन ऐसा नहीं हैं कि नीरो, रोम और अकेले रोम में ही पैदा होते हों. नीरो तो समान परिस्थिति वाले किसी भी देशकाल में पैदा हो सकता है. मनोहर खट्टर को हरियाणा का नीरो ही कहना उचित होगा.... जिस तरह से हरियाणा जलता रहा और पहले से यह पता होने के बावजूद कि निर्णय गुरमीत (बाबा और राम रहीम कहने में मुझे आपत्ति है इसीलिए केवल गुरमीत) के खिलाफ आने की स्थिति में माहौल बिगड़ सकता है... यह सब होने दिया गया ... मनोहर खट्टर नीरो से भी आगे निकल गए....

                        अभी 15 अगस्त को ही जब गुरमीत का जन्मदिन था, के  समारोह में मनोहर खट्टर की पूरी कैबिनेट उसे जन्मदिन की बधाई देने पहुंची और राज्य सरकार की ओर से रुपये 51 लाख भेंट में दिए. हद तो ये है की ये सारे संगठन टैक्स के दायरे में भी नहीं आते ... प्रश्न उठता है कि एक पंथ निरपेक्ष राज्य का मुख्य मंत्री किसी तथाकथित आरोपी बाबा के चरणों में जनता का पैसा रख आया और सब चुप्पी साधे हुए हैं.   

                        कुछ लोग मनोहर खट्टर के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. लेकिन इससे भी क्या होगा??  क्या हमारे पास मनोहर खट्टर का कोई विकल्प है? कांग्रेस हो या बीजेपी सभी सत्ताधीश इस ढोंगी बाबा के सामने हाथ पसारे खड़े रहे हैं... क्या न्याय पालिका के शासन जैसी कोई व्यवस्था हो सकती है?? क्या सत्ता, न्याय पालिका को कुछ समय के लिए सौंपी जा सकती है?? कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर तलाशने होंगे....

                      इस पुरे मामले में सीबीआई ने 7 पीड़ित महिलाओं (जो यौन शोषण का शिकार हुई थी) के बयानों के आधार पर मामला बनाया था जिसमें से पांच, धमकियों और दबावों के आगे टूट गईं. लेकिन दो महिलायें पीछे नहीं हटी और उनकी 15 वर्षों की लड़ाई की परिणीती आखिर उनके जीत के रूप में हुई.... दोनों शक्ति स्वरूपा महिलाओं को प्रणाम ....

                      दूसरी महती भूमिका न्याय पालिका ने निभाई .... हाई कोर्ट लगातार मामले पर नज़र बनाए हुए था और सीबीआई के विशेष न्यायाधीश श्री जगदीप सिंह ने साहस के साथ मामले की सुनवाई की और निर्णय तक पहुंचे......  Do you understand section 144? हाई कोर्ट के जज ने सख्त लहजे में हरियाणा के DGP से पूछा. Yes your honour, DGP ने जवाब दिया..  हाई कोर्ट जज ने टिप्पणी की, अगर धारा 144  लागू है तो फिर ये लाखों लोग पंचकुला में कैसे इकट्ठे हो गए 

                    क्या हुआ होगा जब गुरमीत सिंह अपने काफिले के साथ कोर्ट के लिए रवाना हुआ होगा... लाखों लोगों व सरकारों का खुला समर्थन, विभिन्न मठाधीशों व केंद्र की सरकार का मौन समर्थन उसके साथ था. वहीँ एक साधारण जज एक असाधारण कार्य के लिए किस दृढ़ता से तैयार हुआ होगा? बिना किसी काफिले के वह अपने ऑफिस पहुंचा होगा.... उसकी मनः स्थिति क्या रही होगी?? कितने दबावों से वह गुजरा होगा?? रात भर नींद आई होगी या नहीं ??? जो निर्णय दिया उससे उसके अद्वितीय साहस का पता चलता है..... हमने साहस और वीरता के बहुत ही क्षुद्र प्रतिमान गढ़ रखे हैं. बहरहाल लगातार सख्त होते हाई कोर्ट और सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने अपने निर्णय से न्याय का गर्भपात होने से बचा लिया... अब इंतज़ार है सजा सुनाये जाने के दिन का ... देखना ये है कि न्याय होता है या  होते हुए दीखता भी है .....
    
                     न्याय के संबंध में शुरुआती विवरण प्राचीन यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिकमें मिलता है. प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक रिपब्लिकमें विभिन्न व्यक्तियों के मध्य हुए लम्बे संवादों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि हमारा न्याय से सरोकार होना चाहिए. रिपब्लिक के केंद्रीय प्रश्न व उपशीर्षक न्याय से ही सम्बंधित हैं, जिनमें वह न्याय की स्थापना हेतु व्यक्तियों के कर्तव्य-पालन पर जोर देते हैं.

                     प्लेटो कहते हैं कि मनुष्य की आत्मा के तीन मुख्य तत्त्व हैं – 1) तृष्णा  2) साहस 3) बुद्धि. यदि किसी व्यक्ति की आत्मा में इन सभी तत्वों को समन्वित कर दिया जाए तो वह मनुष्य न्यायी बन जाएगा। ये तीनों गुण कुछेक मात्रा में सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं लेकिन प्रत्येक मनुष्य में इन तीनों गुणों में से किसी एक गुण की प्रधानता रहती है। न्यायाधीश में ये तीनों ही गुण होने चाहिए. फिलहाल न्यायाधीश श्री जगदीप सिंह इस परिभाषा में खरे उतरते नजर आ रहे हैं.....

                                         मनमोहन जोशी "Mj"

2 टिप्‍पणियां:

  1. sir is desh ne jaha raja Harischandra ke Styavadita ko ... ek tane ya majak ka roop de diya .... "Jyada Raja harischandra na bano " jaise vakyansh logo ki sacchai ko girane ke liye taiyaar ho.... salaam hai in judge sahab aur naari shakti ko.....

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