Diary Ke Panne

बुधवार, 6 सितंबर 2017

विध्वंस और निर्माण जिसकी गोद में खेलते हैं......


                                                       05 September 2017


                रात के 10 बज कर 55  मिनट हो रहे हैं... आज दो कारणों से दिन विशेष रहा एक तो गणपति जी  की विदाई, अनंत चौदस के रूप में और दूसरा शिक्षक दिवस... मेरे कई कार्य रूपों में से एक महत्वपूर्ण रूप शिक्षक का भी है.

              शिक्षण कार्य कब से कर रहा हूँ ठीक ठीक याद कर पाना कठिन है.... लेकिन याद आता है कि जब मैं कक्षा 5 में पढता था , श्री गुप्ते सर हमारे क्लास टीचर हुआ करते थे और वो मेथमेटिक्स पढ़ाते  थे..... अक्सर वो क्लास मेरे भरोसे छोड़ जाते थे कि ये वाला चैप्टर मन मोहन समझा देगा..... या हिंदी वाली मैडम ये कह कर क्लास के बाहर चली जाती थी की प्रश्नोत्तर लिखवा देना.... फिर मैंने जैसे ही स्कूल की पढ़ाई पूरी की और बीएससी में दाखिला लिया, खुद का कोचिंग इंस्टिट्यूट MM Tutorials शुरू कर लिया था...... लगभग 6 वर्ष फाइनेंसियल  सेक्टर में जॉब करने के बाद  वापस से एजुकेशन फील्ड ज्वाइन करना शायद मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन निर्णयों में से एक रहा है......

             कौटिल्य ने कहा है, “शिक्षा और शिक्षक दोनों ही साधारण नहीं होते .. विध्वंस और निर्माण दोनों शिक्षक की गोद में खेलते हैं ”.  शिक्षण-कार्य की प्रक्रिया का विधिवत अध्ययन शिक्षाशास्त्र या शिक्षणशास्त्र  कहलाता है. शिक्षण एक सजीव गतिशील प्रक्रिया है. इसमें अध्यापक और शिक्षार्थी के मध्य अन्त:क्रिया होती रहती है और सम्पूर्ण अन्त:क्रिया किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है. शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षाशास्त्र के आधार पर एक दूसरे के व्यक्तित्व से लाभान्वित और प्रभावित होते रहते हैं और यह प्रभाव किसी विशिष्‍ट दिशा की और स्पष्ट रूप से अभिमुख होता है. बदलते समय के साथ सम्पूर्ण शिक्षा-चक्र गतिशील है. उसकी गति किस दिशा में हो रही है? कौन प्रभावित हो रहा है? इस दिशा का लक्ष्य निर्धारण शिक्षाशास्त्र करता है.

              प्रत्येक शिक्षक की हार्दिक इच्छा होती है कि उसका शिक्षण प्रभावपूर्ण हो. इसके लिये शिक्षक को कई बातों को जानकर उन्हे व्यवहार में लाना पड़ता है, जैसे -  आरम्भ कहां से करना है , कैसे करना है , छात्र इसमें रुचि ले रहे हैं या नहीं , अर्जित ज्ञान को छात्रों  के लिये उपयोगी कैसे बनाया जाय, आदि.
शिक्षण के अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किये गए है जैसे :

1. क्रिया द्वारा सीखने का सिद्धान्त
2. जीवन से सम्बद्धता का सिद्धान्त
3. कार्य कारण का सिद्धान्त
4. चुनाव का सिद्धान्त
5. विभाजन का सिद्धान्त
6 . पुनरावृत्ति का सिद्धान्त

कुछ शिक्षा शास्त्रियों ने शिक्षण के सूत्र भी प्रतिपादित किये हैं जिनमें से कुछ विशेष जो मुझे प्रिय हैं इस प्रकार हैं :

1. ज्ञात से अज्ञात की ओर चलो
2. सरल से कठिन की ओर चलो
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलो
4. अनुभव से तर्क की ओर चलो
5. पूर्ण से अंश की ओर चलो
6. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर चलो

             साधारणतः शिक्षक और गुरु को एक ही अर्थ में लिया जाता है लेकिन मेरे देखे गुरु ज्यादा व्यापक व सम्मान पूर्ण शब्द है. शिक्षक की तुलना में कहीं बड़ा. वस्तुतः शिक्षक और शिक्षार्थी में मात्रा या जानकारी का ही भेद होता है जबकि गुरु और शिष्य में गुण का. गुरु गीता नामक ग्रंथ में विस्तार से गुरु का महत्व और महिमा पर चर्चा की गई है . इसके रचयिता वेद व्यास माने जाते हैं..... वास्तव में यह स्कन्द पुराण का एक भाग है जिसमें कुल 352  श्लोक हैं.

              वेद व्यास ने बड़ी सहजता से  शिव -पार्वती के संवाद के माध्यम से  गुरु कौन है?  उसका महत्व क्या है? कौन गुरु हो सकता है? उसकी कैसी महिमा है?, शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि प्रश्नों पर विस्तार से चर्चा की है .... मेरे देखे इसे बीएड या एमएड  के पाठ्यक्रम में जोड़ा जाना चाहिए...

                गुरु गीता में विभिन्न प्रकार के गुरुओं का वर्णन है जैसे - 'सूचक गुरु', 'वाचक गुरु', बोधक गुरु', 'निषिद्ध गुरु', 'विहित गुरु', 'परम गुरु' आदि.

गुरुगीता के 34 वें श्लोक के अनुसार :

गुकारश्चान्धकारस्तु रुकारस्तन्निरोधकृत् |
अन्धकारविनाशित्वात् गुरुरित्यभिधीयते
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अर्थात :गु कार अंधकार है और उसको दूर करनेवा ल रु कार है. जो अज्ञानता के अन्धकार को नष्ट कर दे वही गुरु है.

                                             - मनमोहन जोशी "Mj"

2 टिप्‍पणियां:

  1. मनमोहन वैसे तो मै तुम्हारे फेसबुक पजे को काम ही देख पता हूँ,, पर जब भी देखता हूँ बड़ा गर्व होता है. सदा आगे बढ़ते रहो

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