Diary Ke Panne

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

The Idea Of Justice



                          सुबह के 5:30 हो रहे हैं... सुबह जल्दी उठ कर एक खूबसूरत पहाड़ी पर पहुँच गया हूँ..  मंद मंद पवन बह रही है.... पंछियों के कलरव से वातावरण गुंजायमान है.... सूर्योदय होने के करीब है.... पहाड़ी पर केफलस, सुकरात और मैं "न्याय" पर चर्चा कर रहे हैं. मैं पूछता हूँ  "न्याय क्या है?" इस पर पहली प्रतिक्रिया केफलस की ओर से ही आती है. उसके अनुसार न्याय का अर्थ है—"अपने कथन और कर्म में सच्चा रहना तथा मनुष्यों एवं देवताओं के प्रति ऋण चुकाना." 

                 सुकरात इस परिभाषा से संतुष्ट नहीं होता . उसके अनुसार सत्य सापेक्षिक होता है. यानी एक व्यक्ति के लिए जो सत्य है, आवश्यक नहीं कि दूसरे व्यक्ति की परिस्थितियों में भी ठीक वैसा ही सत्य स्वीकार्य हो. इसलिए केफलस के विचारों की आलोचना वह यह कहकर करता है कि विशेष परिस्थितियों में सत्य और समुचित व्यवहार को न्याय माना जा सकता है. परंतु उसे सार्वभौमिक सत्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. परिस्थिति चाहे जो भी हो, शुभ यदि अशुभ का जन्मदाता अथवा उसे प्रोत्साहित करता हैतो वह न्याय नहीं माना जा सकता. न्याय की कसौटी उसकी सार्वभौमिकता में है. वही न्याय है जो अधिकतम व्यक्तियों को स्वीकार्य हो और अधिकतम परिस्थितियों में न्याय-संगत सिद्ध हो.

                        सुकरात के इन विचारों से मैं सहमत नहीं होता. मैं कहता हूँ न्याय का  सर्व स्वीकार्यता से क्या लेना देना. न्याय का सम्बन्ध तो अपराधी को दण्डित कर पीड़ित को राहत प्रदान करने  से है.

                       मैं कहता हूँ अभी जब गुरमीत (बाबा या राम रहीम कहने में मुझे ऐतराज़ है. ) को सजा हुई थी तो अधिकतम लोगों को नहीं जंची. लाखों लोग सड़क पर आ गए और एक संसद सदस्य साक्षी महाराज ने तो ये तक कह दिया कि जो कुछ गड़बड़ी हुई है उसकी ज़िम्मेदार कोर्ट है .... देश ऐसे मूर्खों से पटा पड़ा है.....

                          मैं पूछता हूँ सुकरात बताओ - क्या कुछ कर्मचारियों द्वारा ऑफिस के किसी एक कर्मचारी को पीटने के सबूत मिल जाने के बाद भी उनको सजा न देना न्याय है?? क्यूंकि बॉस को ये लगता है कि यह अधिकतम लोगों को नहीं जंचेगा या क्यूंकि पीटने वालों कि संख्या अधिक थी तो उन सभी को दंड देने से कार्य प्रभावित होगा..... या कुछ लोग जयद्रथ के नेतृत्व में आधी रात को अभिमन्यु की हत्या कर उसे शरीर रुपी घर से निकल जाने को मजबूर कर दें  और न्यायी राजा  यह कहे कि हत्या तो हुई है लेकिन पहले कारण पता कर लो ऐसा तो नहीं की मरने वाले की ही गलती थी या हत्यारों को सजा ऐसी दी जाए जो अधिकतम को जंचे  या जिससे व्यवस्था न बिगड़े.

                           मैं दोनों को महाभारत का एक प्रसंग सुनाता हूँ  - महाभारत में जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे. और रिश्ते में पांडवों के बहनोई लगते थे. महाभारत का भयंकर युद्ध चल रहा था. अर्जुन लड़ते लड़ते रणक्षेत्र से दूर चले गए  थे. अर्जुन की अनुपस्थिति में पाण्डवों को पराजित करने के लिए द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की. अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गया...... उसने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के छः चरण भेद लिए, लेकिन सातवें चरण में उसे दुर्योधन, जयद्रथ आदि सात लोगों ने  घेर लिया और उस पर टूट पड़े. जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर ज़ोरदार प्रहार किया. वह वार इतना तीव्र था कि अभिमन्यु उसे सहन नहीं कर सका और  अभिमन्यु की मृत्यु हो गई   उसकी मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन क्रोध से पागल हो उठा. उसने प्रतिज्ञा की कि यदि अगले दिन सूर्यास्त से पहले उसने जयद्रथ का वध नहीं किया तो वह आत्मदाह कर लेगा.

                        श्री कृष्ण ने यह नहीं कहा कि अर्जुन तुम अपनी मनमानी कर रहे हो.... या यह नहीं कहा कि कल अपने साथ धृतराष्ट्र को भी ले जाओ क्यूंकि जब तक युद्ध का निर्णय नहीं हो जाता राजा वही है, वो अँधा देखेगा कि गल्ती किसकी थी.... या यह नहीं कहा कि दंड देने से पहले  देखना तुम्हारे द्वारा दिया जा रहा दंड अधिकतम को स्वीकार्य हो. अपितु श्री कृष्ण ने कहा, तुम्हारी प्रतिज्ञा कल के ही रण क्षेत्र में पूरी 
होगी पार्थ, मैं तुम्हारे साथ हूँ. और रही बात रिश्तेदारी की तो न्यायार्थ 
अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है.

मैथली शरण गुप्त याद आते हैं :

वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही जय जानकी जीवनकहो,
फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो।
दुख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो,
होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।

दोनों मेरी बात को गंभीरता से सुन रहे थे और मेरी नींद टूट गई .... उम्मीद करता हूँ फिर कभी इन विद्वानों से मुलाकात होगी और साथ में "प्लेटो" भी होंगे.......

                - मनमोहन जोशी " MJ " 

24 टिप्‍पणियां:

  1. अनयाय, अत्याचार और अधर्म के विरुद्ध युद्ध ही सबसे बड़ा धर्म है

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  2. सर ऐसे ही ब्लाग का इंतजार रहेगा day by day
    Welcome back sir

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  3. Aapne bhut sarthak or shi baat kahi h Sir, great and necessariable thoughts 🙏🙏

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  4. अति सुन्दर गुरुजी पॉजिटिव think आपने बहुत अच्छी बात कही h sir

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  5. I want to talk with you it's urgent sir

    -adv.Uma Mishra from Varanasi

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  6. Great sir, itni gambhirta se apne samjhaya sachmuch yeh wahi kar sakte h jo vidhi ko padhte nhi hai balki jeete hai, aur muze yeh samaz aata hai ki aap vidhi ko jeete hai.....

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  7. पढ़कर अच्छा लगा गुरुजी❤️💯 , आशा करता हूं, आपकी इस लेखनी से और भी कुछ सीखने य जानने को मिले।।

    आपका शिष्य
    -उत्तम पाण्डेय
    भोपाल

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  8. सर बहुत ही सुंदर प्रयास हमें आपके ऐसे लेखों का सदैव इन्तजार रहेगा।🙏🙏

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  9. Yes Sir justice is justice and offender is offender... Bleessed to have a teacher and dreamer like you....,🙏🙏🙏

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  10. Wowwww sir आपका जबाब नहीं 👏🏻🙏🏻

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  11. 🙏Pranam Gurudevji 🙏 Adbhut lekhan yaisa laga ki jaise Mahabharat ke yudh mai pohoch gaye ho jaha anyay atyachar our adharm hota hai vahipe yudh anivarya hai our jeet to dharm ki hi honi hai shree krishnaji jaise sarthi ho vaha arjunji ki jeet nishchit hai iss lekh ki ye line bahot hi khubsurat hai "Apitu shree krishnaji ne kaha tumhari pratidnya kal hi kurukshtr mai puri hogi parth mai tumhare sath hu our rahi bat rishtedar ki to yatharth apane badhu ko bhi dand dena Dharm hai'shree krishnaji ne Dharm ke path par arjunji ka hath our sath diya isaliye Mahabharat mai jeet dharm ki hui our adharm har gaya Anyay karne valo se jyada doshi anya sehnewala hota hai adharm ki aayu dharm ke tulya kam hi hoti hai kalyug mai to bandhu hi badhu ka ghat karta hai kash ke ab bhi shree krishnaji aaye our dharm ka sath de adharm ko mita de nyay ka sath de aapke iss lekh mai to padhane wala kho hi jata hai Adbhut superb great Gurudevji Tank u very mouch 👏👌👍👍👍🥰🌹❤️🇮🇳Jai hind🇮🇳❤️🌹 Gudavji 🌺🌸🌺🌸🌺🙏

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