Diary Ke Panne

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

Random Thoughts....




बहुत दिनों के बाद इस प्लेटफार्म पर वापस लौटा हूँ . इन दिनों जीवन इस त्वरा से गतिमान है कि हर एक जगह उपस्थिति दर्ज करवा पाना संभव भी नहीं हो पा रहा है.... ऐसा नहीं है कि इन दिनों लिख पढ़ नहीं रहा हूँ.... लेकिन निजी जीवन के अनुभवों को सार्वजनिक रूप से दर्ज नहीं कर रहा हूँ. 

रविवार कि इस सुबह मोबाइल से दूर चाय के कप और लैपटॉप  के साथ बैठे - बैठे सोच रहा हूँ कि ये जीवन है क्या ?? आम धारणा के अनुसार हमारे जन्म से मृत्यु के बीच तक की कालावधि ही जीवन कहलाती है ? मैं जीवन कि इस परिभाषा से सहमत नहीं हूँ. मेरे देखे जीवन तो वह है जिसमें जीवन्तता हो.

 हमारा जन्म क्या हमारी इच्छा से होता है? नहीं, यह तो प्रकृति की व्यवस्था का ही परिणाम है. लेकिन जन्म के बाद जीवन्तता का होना हमारी इच्छा और बुद्धिमता का ही परिणाम कहा जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त जीवन का मुख्य अंग एक चेतन तत्त्व है जो जीवन की सभी क्रियाओं का साक्षी होता है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन का तात्पर्य अस्तित्व की उस अवस्था से है जिसमे वस्तु या प्राणी के अन्दर चेष्टा, उन्नति और वृद्धि के लक्षण दिखायी दें. अगर कोई वस्तु चेष्टारहित है तो फिर उसे सजीव या जीवनयुक्त नहीं माना जाना चाहिए.

मेरे देखे जीवन का संबंध जीने से है, सिर्फ अस्तित्व का विद्यमान होना ही जीवन का चिन्ह नहीं है.

वैज्ञानिक नियम अनुसार, जीवन जिसमें ब्रह्मांड, आकाश गंगा, सौर मण्डल, ग्रह और तारे हैं.... और जो निरंतर  अंतरिक्ष में गतिमान हैं. आकाश गंगा एक दूसरे का चक्कर लगा रहे है.....तारे आकाशगंगा के केन्द्र का चक्कर लगा रहे हैं तो ग्रह तारों का चक्कर लगा रहे हैं और उपग्रह ग्रह का चक्कर लगा रहे हैं.  ये सब मुझे किसी भ्रम का ही विस्तार मालूम पड़ते हैं.

मेरे देखे मानव मन ही वह अंतरिक्ष है जहां भ्रम का निर्माण होता है इसमें ही ब्रह्मांड समाया हुआ है और हम इस भ्रम को  ही सत्य मान बैठे हैं.

फिर सत्य क्या है?? मेरी समझ में सत्य भी निरपेक्ष नहीं है. हर किसी का अपना अपना सत्य है. हर कोई अपनी समझ को सच मान कर बैठा है और वास्तविक सत्य का किसी को पता ही नहीं या ये कहूं तो बेहतर होगा कि वास्तविक सत्य जैसा कुछ भी विद्यमान नहीं है. या बेहतर परिभाषा हो सकती है कि प्रेम ही सत्य है...

फिर प्रश्न उठता है प्रेम क्या है?? हम जिसे प्रेम समझ कर बैठे हैं वह स्वार्थ का ही तो एक रूप है... हमें प्रेम उससे ही है जो हमारे किसी फायदे का है. लाभ ख़त्म प्रेम ख़त्म।।

 क्या प्रेम भी निरपेक्ष हो सकता है? या यह भी सापेक्ष ही होता है?? क्या हम एक बार जीते हैं एक बार मरते हैं और एक ही बार प्रेम होता है?? मेरे देखे असली प्रेम तो वही है जो किसी चीज़ का मोहताज नहीं.जो फायदे नुकसान के परे हो...क्या ऐसा प्रेम अस्तित्वमान है शायद हाँ लेकिन यह बताने का कम और महसूसने का विषय ज्यादा है. हर किसी के अपने अनुभव हो सकते हैं.. लेकिन समस्याओं का जन्म होता है अपने अनुभव को ही सच मान लेने से.

मेरे देखे हर दिन एक नया जीवन है इसे बेहतर करते जाना ही मानव मात्र का लक्ष्य होना चाहिए.... सोचते रहें... कुछ नया सीखते रहें.... प्रेम बांटते रहें....

-MJ

7 टिप्‍पणियां:

  1. Ek ansuljhi paheli jindagi ajeeb hi hai roj ek parat khulti hai do parat aur chad jati hai tamam kosis k bad samajh hi nahi ati ....ha ha ha....bahut achcha likhte hai sir ap

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  2. प्रेम शब्द सही नहीं है, इससे भी प्यारा शब्द करूणा है, प्रेम अपने साथ गन्दगी लाता है

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  3. Very nice sir.
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  5. Kbi aapsey miley to hm apni diary jrur share krengey Sir aapsey. ..

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  6. Sir Mai samjhana ye Chahta hu ki yadi apni plot par jo vill lable Ka hai us p uske patidaron dwara ki mag ki jati ho aur usko owner dwara anumati di Ka chuki ho lekin oner chahta hai k estate side aur plot k ak taraf se Jaye but patidar chahte hai k rasta unke plot tak jaane se pahle owner k plot me sidha na hokar thoda right ghuma k let Jaye ye aisa isliye chateau hai k patidar aur owner k plot p ak Chita sa ped hai aur usko with Karna Nahi Chahta jabki usiko taste ki jarurat hai owner ki Nahi owner had halaat me sidha rasta dene ki sahmati Dr Raha ho but patidar kruratapurwak Lena chateau hai rasta so sir iske liye ligal procces kya Hoga

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