आज ट्विटर ओपन किया तो देखा कि प्रिंस हैरी और मेगन मार्कल की फोटो
ट्रेंड कर रही है. इसमें प्रिंस हैरी डायस पे खड़े हैं और मेगन छाता लेकर खड़ी हैं.
थोड़ा इन्टरनेट खंगालने पर पता चला कि प्रिंस हैरी और उनकी पत्नी मेगन मार्कल हाल
ही में न्यू साउथ वेल्स गए थे जहां प्रिंस हैरी स्पीच दे रहे थे और बारिश शुरू हो
गई. जहां वो खड़े थे उस जगह पर कोई शेड नहीं था. मेगन छाता लेकर पहुँच जाती हैं और
स्पीच ख़त्म होते तक वहीं खड़ी रहती हैं, मुस्कुराती हुई. उनके चेहरे पर कोई शिकन
नहीं है और विडियो देख कर आपको ये अहसास होगा कि उनको ये करने में आनंद मिल रहा
है.
लोग TWEET
करके अपनी ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे
हैं. कुछ लोगों को आश्चर्य है कि कोई राजघराने की किसी संभ्रांत महीला ने ऐसा पहली
बार किया है. मेरे देखे स्त्री मन को समझना कठिन है. वस्तुतः स्त्री प्रेम करती है
तो ऐसे ही करती है. पुरुष के प्रेम में ही सभी तरह के गुणा भाग होते हैं. स्त्री
तो निस्वार्थ मन से बिना कुछ सोचे कूद पड़ती है प्रेम में, भिड़ जाती है यमराज से,
छोड़ देती है महलों का वैभव.
प्रेम एक अद्भुत अहसास है, शारीरिक आकर्षण के परे, दिव्य. यह अनेक भावनाओं का एक ऐसा मिश्रण है जिसे व्यक्त नहीं किया
जा सकता. कबीर ने इसे गूंगे का गुड़ कहा है. रातों की नीदों का उड़ जाना इसका एक
आरंभिक लक्षण है.
प्राचीन ग्रीक लोगों ने चार तरह के प्रेम को पहचाना है. ये हैं -
रिश्तेदारी, दोस्ती, वासना और दिव्य प्रेम. प्रेम को अक्सर वासना समझा जाता है या शारीरिक
आकर्षण, लेकिन यह एक रसायन है. जिन्होंने अनुभव किया है वह सहमत होंगे क्योंकि यह
यंत्र नहीं विलयन है जिसमें द्रष्टा और दृष्टि एक हो जाते हैं. सभी तरह की दुई खो
जाती है. मन, शरीर और आत्मा एक हो जाते हैं. कोई मांग नहीं रह जाती.
सूफ़ियों ने इस प्रेम की अनुभूति की है. किसी सूफ़ी फ़क़ीर ने कहा है - “तुझ हरजाई की बाँहों में और प्रेम परीत की राहों में / मैं सब कुछ
बैठी हार वे.” सब कुछ हार देना ही होता है तभी जीत मिलती है. अल्लामा इक़बाल ने कहीं
लिखा है कि “ये बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहे लगा दो डर कैसा.”
तो मेरे देखे ये अनुभूति हर किसी को नहीं होती है. ये किसी साधारण व्यक्ति का अनुभव नहीं हो सकता. अतीव
साहसी लोग जीवन में इसका अनुभव करते हैं. आम लोग तो शारीरिक आकर्षण या मोह या
आसक्ति को ही प्रेम मानकर चलते हैं. किसी शायर ने लिखा भी है ,
“इश्क के लिए कुछ ख़ास दिल मखसूस होते हैं,
ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता."
ये वो नगमा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता."
स्त्री स्वाधीन मन के साथ ही जन्म लेती है. आवश्यकता है कि पुरुष और समाज
उसकी स्वाधीनता को अक्षुण्ण रहने दें. स्त्री का स्वाधीन मन और समर्पित प्रेम उसे
स्वयं परेशानी में रह कर अपने प्रेमी को सुरक्षा प्रदान करने को प्रेरित करता है.
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि सीता, राम के साथ वन जाने की
जिद करती है. राम पूछते हैं तुम मेरे साथ वन आकर क्या करोगी? वह कहती हैं – “अग्रतस्ते गमिष्यामि मृद्नन्ती कुशकण्टकान्” अर्थात- "मैं
तुम्हारे रास्ते के कुश काँटे रौंदती हुई आगे-आगे चलूँगी." यही स्त्री का प्रेम है.