एलिज़ाबेथ गिल्बर्ट के संस्मरणों
को पेंगुइन बुक्स ने Eat, Pray,
Love के नाम से 2006 में उपन्यास के रूप में प्रकाशित किया था जो एक बेस्टसेलर बुक
है. यदि आप जीवन के अर्थ को तलाश रहे हैं या जीवन में संतुलन को खोज रहे हैं तो तो यह किताब अवश्य पठनीय है.
इस पुस्तक को पढ़ते हुए यकीन
हो चलेगा की आतंरिक ख़ुशी ही सब कुछ है लेकिन वो ख़ुशी है कहाँ ?? समाज में ?? काम
में ?? भोग विलास में ?? आध्यात्म में ?? या प्रेम में ??
इस पुस्तक को रयान मर्फी ने 2010 में
फिल्म का रूप दिया. जूलिया रॉबर्ट्स इसमें एलिज़ाबेथ के किरदार में हैं जिनका नाम
है “लिज़” अद्भुत किताब पर कमाल की फिल्म है यह. और जूलिया रोबर्ट्स तो हैं ही
बेहतरीन.
फिल्म के तीन हिस्से हैं सबसे पहले “ईट” जो की भोग की बात करता है.
फिर है “प्रे” जहां भक्ति या आध्यात्म की बात होगी और फिर “लव”, विशुद्ध प्रेम की बात.
इस कहानी
को पढ़ते या देखते समय यकीन मानें आप एक दूसरी ही दुनिया में खो जायेंगे.
एलिजाबेथ लिखती हैं - हमने अपनी संकुचित मान्यताओं में इश्वर का जो रूप गढ़ा है, शायद ईश्वर उससे कहीं ज्यादा असीम और विशालतम है.
कहानी कुछ ऐसी है कि 34 वर्षीय लिज़ के जीवन में सब ठीक चल रहा होता है. लेकिन वो अपने
वर्तमान जीवन से खुश नहीं है और तलाक के बाद पूरा एक वर्ष दुनिया देखने में बीता
देती है. शुरू के चार महीने वो इटली में बीताती है भोग विलास में (EAT). इसके बाद तीन महीने भारत में
अध्यात्म की तलाश में (PRAY) और फिर वर्ष के अंतिम महीने इंडोनेशिया के बाली द्वीप
में दोनों के बीच संतुलन की तलाश में (LOVE).
मानो प्रेम ही भोग और अध्यात्म के बीच का संतुलन हो.
जब वो इटली में होती है तो
अपने इटैलियन दोस्त जूलियो से पूछती है कि रोम का उद्देश्य क्या है तो वह कहता है
भोग और केवल भोग. जब वो उससे पूछता है कि तुम्हारे जीवन का उद्देश्य क्या है? वो
कहती है - मैं अभी तो नहीं जानती, लेकिन मुझे महसूस हो रहा है कि मेरा उद्देश्य
जल्द ही मेरे सामने आएगा, और जब आएगा तो मैं पहचान लूंगी.
एक रोज़ वह योग पर एक पुराना लेख पढ़ रही होती है. तब उसे संस्कृत शब्द “अंतेवासिन”
मिलता है जिसका अर्थ है: " वो जो सीमा पर गुरु के समीप रहता है." यह उस
व्यक्ति की ओर इशारा करता है जिसने सांसारिक जीवन के दौड़-धूप को छोड़ दिया है और नगर
की सीमा पर वन के समीप जाकर रहने लगा है. न तो वह पूरी तरह से सन्यासी है और न ही
संसारी.
उसे उसके जीवन का उद्देश्य मिल जाता है.
प्रेम में उसने भोग और अध्यात्म के संतुलन को पा लिया है.... वस्तुतः लिज़ एक अंतेवासिन
ही है. जो अंतराल में ठहर गई है.... प्रेम के अद्भुत, खूबसूरत और डरावने वन के समीप लगातार बदलती सीमा पर एक विद्यार्थी के रूप में...
-
- मनमोहन जोशी
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