Diary Ke Panne

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

संसद भ्रमण - एक संस्मरण






आज 20 नवम्बर 2018 का दिन है दोपहर के 3 बज रहे हैं ... मैं इस समय ट्रेन में हूँ. लॉ स्टूडेंट्स के साथ दिल्ली की यात्रा पर हूँ. मेरे साथ कुछ ऑफिस स्टाफ, रिटायर्ड जज लक्ष्मीकांत भार्गव जी, और भारतीय न्याय पालिका के भविष्य, जो भविष्य के न्यायाधीश हैं, सफ़र कर रहे हैं . या यह कहना उचित होगा कि मैं इन सबके साथ सफर कर रहा हूँ.

हमारी प्लानिंग है कि हम भारतीय संसद और सर्वोच्च न्यायपालिका को निकट से देख सकें और बचे हुए समय में दिल्ली भ्रमण करें. मालवा एक्सप्रेस जो इंदौर से 12.45 बचे छूटती है में हम सवार हो गए हैं . ट्रेन में बैठते ही एक हादसा घटा एक बैग में मेरा पैर पड़ा  और उसका लॉक टूट गया  एक धारदार मोटी लोहे की कील मेरे पैंर में घुस गई स्टूडेंट्स की तत्परता से फर्स्ट ऐड उपलब्ध हो सका. मेरे ऑफिस स्टाफ और स्टूडेंट्स इस यात्रा से क्या पाने वाले हैं ये तो राम जाने लेकिन इतना तय है कि मैं इस यात्रा से बहुत कुछ सीखने वाला हूँ.

अकैडमी से हर वर्ष हम स्टूडेंट्स को एजुकेशन टूर्स पर ले जाते रहे हैं लेकिन मैं कभी भी इस टूर का हिस्सा नहीं बन पाता . पता नहीं क्यूँ? लास्ट मूमेंट पर मैं जाना कैंसिल कर देता हूँ. लेकिन इस बार मैं आ ही गया हूँ.

 बहरहाल हम कुछ चुनिन्दा स्टूडेंट्स को ही साथ लेकर आये हैं . कुल 20 लोगों की टीम दो कम्पार्टमेंट में बंटी हुई है. मैं दोपहर की छोटी सी नींद लेने की बाद उस कम्पार्टमेंट में आ गया हूँ जहां भार्गव साब बैठे हुए हैं. वो खाना खा रहे हैं. भार्गव साब एक बेहद बुद्धिमान और उतने ही विनम्र व्यक्ति हैं 70 के पास उम्र पहुँच रही है लेकिन चेहरे पर ज्ञान की चमक देखते ही बनती है. मेरा उनसे कुछ अलग ही तरह का स्नेह है. मैं उनके साथ बैठ जाता हूँ और देखते ही देखते स्टूडेंट्स भी आकर बैठने लग जाते हैं. अंकिता और मोनिका के घर से बहुत कुछ बन कर आया है वो खिलाती जाती हैं. फिर शमीम, परिधि, रिदम, मनीष , गोविन्द और देवेश आ जाते हैं. ज्ञान चर्चा का दौर चलने लगा है कानून से लेकर अध्यात्म तक की बातें...... ये जान कर अच्छा लगता है कि आप विद्वान विद्यार्थियों के शिक्षक हैं.

21-11-2018
सुबह  6:30  बजे ट्रेन दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुँचती है . हमने ट्रैवलर बुक कर ली है जो हमें सीधे होटल तक ले जाती है.

सुबह के 9:30 बज रहे हैं हम दिल्ली भ्रमण को निकल चुके हैं पहले क़ुतुब मीनार , फिर लोटस टेम्पल, फिर लाल किला और इंडिया गेट होते हुए हम शाम को होटल पहुँचते हैं . कुछ स्टूडेंट्स शाम को शॉपिंग करने के लिए जाना चाहते हैं. चोट के कारण मेरी हिम्मत नहीं हो रही. अभिषेक, माया  और महेंद्र सबकी ज़िम्मेदारी लेकर उनके साथ चल देते हैं.

22-11-2018
सुबह नाश्ते के बाद हम सब संसद भवन और सर्वोच्च न्यायलय की विजिट के लिए निकल पड़ते हैं.               

नियत समय पर संसद भवन में ज़रूरी जांच के बाद हमारी एंट्री होती है. 

सिक्यूरिटी ऑफिसर श्री खुमान जी हमारे गाइड हैं. वो हमें बताते चलते हैं कि संसद एक ऐसा स्‍थान है जहाँ राष्‍ट्र के समग्र क्रियाकलापों पर चर्चा होती है और कानूनों का निर्माण होता है. संसद परिसर में बात करना मना है. जैसे ही हम मुख्य द्वार पर पहुँचते हैं मेरी निगाहें एक अद्भुत श्लोक पर पड़ती है:-
“लो ३ कद्धारमपावा ३ र्ण ३३
पश्येम त्वां वयं वेरा ३३३३३
(हुं ३ आ) ३३ ज्या ३ यो ३
आ ३२१११ इति।“

इस श्लोक से मैं परिचित हूँ यह छान्द्योग्योप्निषद से लिया गया है जिसका अर्थ है-
"द्वार खोल दो, लोगों के हित में ,
और दिखा दो झांकी।
जिससे प्राप्ति हो जाए
,
सार्वभौम प्रभुता की।"

भवन में प्रवेश करने के बाद दाहिनी ओर लिफ्ट संख्या 1 के पास हमें लोक सभा की धनुषाकार लॉबी दिखाई पड़ती है. यहाँ से मुड़ते ही सेन्ट्रल हॉल के मार्ग के गुम्बद पर अरबी भाषा का एक उद्धरण दिखाई पड़ता है :-
“इन्नलाहो ला युगय्यरो मा बिकौमिन्।
हत्ता युगय्यरो वा बिन नफसे हुम।।“

इसका  शब्दशः अनुवाद कुछ ऐसा होगा-

"खुदा ने आज तक उस कौम की हालत नहीं बदली,
न हो जिसको ख्याल खुद अपनी हालत बदलने का।" 

संक्षेप में कहूं तो ये बहुत ही खूबसूरत उद्धरण है जिसका अर्थ है कि आप स्वयं ही अपने भाग्य के निर्माता हैं।

हम लोक सभा चैम्बर के भीतर प्रवेश करते हैं जहां खुमान जी हमें उस चैम्बर के कोने कोने के बारे में विस्तार से समझाते हैं. मेरा ध्यान अध्यक्ष के आसन के ऊपर अंकित शब्द पर जाता है. लिखा है : धर्मचक्र-प्रवर्तनाय अर्थात "धर्म परायणता के चक्रावर्तन के लिए".

 हम यहाँ से निकल कर संसद भवन के द्वार संख्या 1 से केन्द्रीय कक्ष की ओर बढ़ते हैं तो उस कक्ष के द्वार के ऊपर अंकित पंचतंत्र के निम्नलिखित संस्कृत श्लोक की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट होता है:-
“अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।“

एक स्टूडेंट के पूछने पर मैं बताता हूँ की यह पंचतंत्र से लिया गया है और इसका हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह है :-
"यह मेरा है , वह पराया है ,
ऐसा सोचना संकुचित विचार है।
उदारचित्त वालों के लिए ,
सम्पूर्ण विश्व ही परिवार है।"

आगे जाने पर लिफ्ट संख्या 1 के निकटवर्ती गुम्बद पर महाभारत का एक श्लोक अंकित पाता हूँ :-
“न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा,
वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्।
धर्म स नो यत्र न सत्यमस्ति
,
सत्यं न तद्यच्छलमभ्युपैति।।“

इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है:-
"वह सभा नहीं है जिसमें वृद्ध न हों,
वे वृद्ध नहीं है जो धर्मानुसार न बोलें
,
जहां सत्य न हो वह धर्म नहीं है
,
जिसमें छल हो वह सत्य नहीं है।"

इन सभी श्लोकों और भवन की खूबसुरती के बीच खोया हुआ मैं जब अपने विद्यार्थियों के साथ राज्य सभा भवन में पहुँचता हूँ तो एक खूबसूरत घटना घटती है हमारे ड्रेस कोड (सफ़ेद शर्ट और ब्लैक कोट) को देख कर सिक्यूरिटी ऑफिसर खुमान जी पूछते हैं “फ्रॉम व्हिच डिपार्टमेंट यू आल आर?” मैं कहता हूँ हम लोग कौटिल्य अकैडमी इंदौर से आये हैं.. माय नाम इस मनमोहन जोशी एंड दे आर माय स्टूडेंट्स, प्रिपेयरिंग फॉर जुडिशल सर्विसेज”. वो एक दम जोश से कहते हैं सर हमने आपको you tube पर सुना है. और राज्य सभा में उपस्थित लोगों को वो एकेडमी और इसके कोर्सेज के बारे में बताने लगते हैं. गर्व से सीना फूला हुआ है.

 लेकिन असली गर्व का दिन वह होगा जब इन स्टूडेंट्स में से कोई एक भविष्य में किसी दिन सुप्रीम कोर्ट में शपथ ग्रहण कर रहा होगा या कर रही होगी .........

क्रमश:         

-मनमोहन जोशी          

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही उम्दा चित्रण सर जी आशा करता हूं कि आपके साथ कभी किसी यात्रा पर जाने का मौका मिलेगा....

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