Diary Ke Panne

मंगलवार, 17 सितंबर 2024

विदा गीत ❤️


 साल 98 के वसंत की दोपहरी, उस दिन मैं कुछ छोटे बच्चों को पढ़ा रहा था, ख़ुद कक्षा बारह में पढ़ता था लेकिन आस पास के छोटे बच्चों को घर पर ही मैथ्स और इंगलिश पढ़ाता था….

हम जॉइंट फ़ैमिली में रहते थे.. जॉइंट फ़ैमिली के जहाँ अपने फ़ायदे हैं कि आप एक ही छत के नीचे बहुत सारे रिश्ते जी सकते हो और आपको सभी का प्यार मिलता है तो वहीं एक शाश्वत पारिवारिक क्लेश आपके जीवन का भाग हो जाता है.


हमारे इसी बड़े संयुक्त परिवार का हिस्सा थे मेरे ताऊ जी. प्यार से हम उन्हें बाबा कहते थे. उनके बीवी बच्चे नहीं थे.. या कहें हम भाई बहन ही उनके बच्चे थे. वे हनुमान जी के पुजारी थे. साफ़ सफ़ेद कपड़े पहनने का उन्होंने शौक़ था और स्पष्टवादी होने के कारण किसी के भी मुँह पर ही सच बोलने का साहस रखते थे और बोलते भी थे.


वो मुझसे बड़ा स्नेह रखते थे मुझे “बब्बू” बोलकर बुलाते थे.. कहते “बब्बू” तो मेरा भगवान है.. कभी हम भाई कुछ खेल रहे होते और वो वहाँ मौजूद होते तो कहते तुम लोग इसको (मतलब मुझे) नहीं हरा पाओगे ( भले ही मैं हार रहा होता था).. अब कोई जीते कोई हारे मुझे तो मेडल मिल चुका होता.. वो मेरा संबल थे.


बहरहाल चलते हैं उस रोज़ पर… उस दिन भी किसी बात पर घर के लोग आपस में झगड़ रहे थे, जब मैं बच्चों को पढ़ा रहा था.. यूँ तो बाबा की हम बच्चों को छोड़कर किसी से भी नहीं बनती थी लेकिन अधिकतर लड़ाइयों में उनकी कोई ग़लती नहीं होती थी. बस परेशानी ये थी कि वो लगातार बोलते रहते थे और मैं ये बिना जाने कि किसकी ग़लती थी और मुद्दा क्या था बस यही कहता था कि आपस में बैठकर बात कर लो.. चिल्लाओ मत.


सो उस दिन भी मैंने यही किया मैं अपने कमरे से बाहर आया और उनसे झल्लाकर बोला चिल्लाओ मत… मुझे याद है, मैंने ये बात बड़ी नाराज़गी से कही थी और वापस पढ़ाने चला गया कमरे में. 


वो थोड़ी देर बाद मेरे कमरे में आये, बोले मैं गाँव जा रहा हूँ अब नहीं रह पाऊँगा यहाँ ( वो अक्सर ऐसा कहते थे )

मैं - ठीक है जाओ 

वो - देखना मेरे पास कितने पैसे हैं, और बताना कितने टैक्सी वाले को देना है, उतने पैसे अलग कर देना 

(मैंने वैसा ही किया, पैसों को उनके पर्स के अलग- अलग खानों में जमा दिया. टैक्सी वाले को देने के पैसे अलग कर दिए खुल्ले पैसे अलग और बड़े नोट अलग..फिर पर्स उनके हाथ में रख दिया.)

वो - जा रहा हूँ , अब वापस नहीं आऊँगा, देख लेना तुम लोग 

मैं- हाँ हाँ जाओ 

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और फिर वो कभी नहीं आये.. तीन दिन बाद खबर मिली कि वो लापता हैं.. बाद में गाँव के कुएँ से उनकी लाश मिली.. पुलिस वालों का कहना था कि रात में पाँव फिसलने के कारण वो गिर गये होंगे.. आत्महत्या या अपराध जैसी की बात से इनकार किया गया.


कई महीनों तक मेरे कानों में उनकी आवाज़ गूंजती रही.. आज भी बस यही सोचता हूँ कि जाने के पहले एक बार उनके गले लग लिया होता या पाँव छू कर आशीर्वाद ले लिया होता या टैक्सी स्टैंड पर उनको छोड़ आया होता या कम से कम एक बार उनको ये बता पाता कि उनका मेरे जीवन में क्या महत्व है… लेकिन..


कल गणपति विसर्जन करते हुए यही ख़्याल आया कि मिलन का उत्सव तो मनाया ही जाता है.. विदा कितना गौरवपूर्ण हो सकता है अनंत चतुर्दशी इस इस बात के महत्व को रेखांकित करने ही आती है… ये विदा का गीत है… हर एक व्यक्ति गौरवपूर्ण विदाई का हक़दार है.. मेरे देखे विदा गौरवपूर्ण ही होना चाहिए.. अंतिम विदा नहीं हर एक विदा क्यूँकि हमें नहीं पता कि कौन सी विदाई अंतिम है.


मुझे लगता है बिछोह की ऊष्मा का पौधा जब दिल की ज़मीन पर उगे तो उसके पुष्प की ख़ुशबू चेतना के आकाश में किस तरह व्याप जानी चाहिए ये दिखाने आते हैं गणपति. मिलन और जुदाई दोनों ही उल्लास और उत्सव से भरे हों ये बताने आते हैं गणपति.


आइये अपने आस पास भी विदा के इस गीत को उत्सव में बदलने का प्रयास करें ताकि फिर कोई बब्बू अपने बाबा से इस तरह विदा ना हो कि उम्र भर हृदय में विदा का गीत गूंजने कि जगह विदा का शूल चुभता रहे..


✍️एमजे


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रविवार, 15 सितंबर 2024

ईद 🌙





मैं सौभाग्यशाली रहा हूँ कि बचपन से ही मेरी मित्र मंडली में कोई न कोई मुस्लिम मित्र अवश्य ही रहा है जिससे इस्लामिक मान्यताओं और इस्लाम से जुड़े लोगों और त्योहारों को नज़दीक से जानने का अवसर मिला. प्राइमरी स्कूल में इरफ़ान , गुफ़रान और मोतीउर्रहमान से मित्रता हुई. मोती अभी एक मस्जिद में मोमिन है. बाद कॉलेज के दिनों में तो मैंने मोती से बक़ायदा उर्दू की बेसिक शिक्षा भी ली. 


मिडिल स्कूल में भाई समीर क़ुरैशी से मित्रता हुई जो अभी तक अनवरत जारी है. जब इंदौर आया तो सबसे पहले शानू भाई से मित्रता हुई. इमरान भाई कमाल के कपड़े सिलते हैं जिनसे मित्रता के एक दशक से ज़्यादा पूरे हो चुके हैं. हारून हमारा सिक्योरिटी हेड है लेकिन परिवार का सदस्य ही कहना ज़्यादा ठीक रहेगा. जिम जाना शुरू किया तो इलयास भाई से मित्रता हो गई. और स्टूडेंट्स तो कई हैं जिन्हें मैं मित्र कहना ही ठीक समझता हूँ .


आज बड़ी ईद है. जब मैं स्कूल में था तो रियाज़ भाई के यहाँ से न्योता आता था और जब बड़ा हुआ तो भाई समीर के यहाँ से. रियाज़ के यहाँ तो हम सेवइयाँ खाने जाते थे लेकिन समीर के घर तो अम्मी बिना खाना खाए वापस आने ही नहीं देती थी, कहतीं थीं मोहन आया है, कृष्ण कन्हैया, तो भोग लगाए बिना कैसे जाने दूँगी. अलग से मेरे लिये दाल और चाँवल पकाए जाते थे. अपार स्नेह मिलता था.


बहरहाल ईद मिलाद-उन-नबी को ईद-ए-मिलाद के नाम से भी जाना जाता है. इस्लाम धर्म में ईद मिलाद-उन-नबी का त्योहार पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. ईद मिलाद-उन-नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी अल-अव्वल की 12वीं तारीख को मनाया जाने वाला एक खास इस्लामिक त्योहार है. इस दिन मुस्लिम समुदाय में विशेष प्रार्थनाएं, समारोह और जश्न मनाए जाते हैं. लोग मस्जिदों में जाकर प्रार्थना करते हैं, और पैगंबर मुहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद करते हैं.


मैंने पैग़म्बर साहब को खूब पढ़ा है. आइये आज के दिन उनकी कुछ शिक्षाओं को याद करें -


  1. पड़ोसियों का ख्याल
    वो इंसान कहलाने के लायक़ नहीं है जिसका पेट भरा हो, जबकि उसके पड़ोसी भूखे सो रहे हों.
  2. सादा जिंदगी
    उन लोगों को देखो जो आपसे कमतर हैं, न कि उन लोगों को जो अपने से बेहतर हैं.
  3. खुश रहना                                                                      खुश रहो और सबको सकारात्मक महसूस करवाओ.
  4. साफ-सफाई                                                                           साफ-सफाई और अच्छी सेहत को पैग़म्बर साहब ने इस्लाम का अहम हिस्सा बताया है.
  5. सदका                                                                               कमाई का 2.5 फीसद दान करना फर्ज है
  6. अच्छा व्यवहार (अखलाक)                                               पैग़म्बर साहब के अनुसार सब से अच्छा व्यवहार करना इंसानियत का पहला उसूल है.


ईद मुबारक़🌙🌙

✍️एमजे


ओणम और साद्या ❤️

केले का पत्ता बिछ गया अब पकवान परोसे जायें 

जोशी परिवार ओणम फेस्टिवल में 

 

ओणम केरल का एक प्रमुख त्योहार है। दस दिनी यह उत्सव इस वर्ष 5 सितंबर को शुरू हुआ और आज 15 सितंबर को इसका आख़िरी दिन है।


दिन की शुरुआत केरलियन मित्रों को शुभकामनाएँ देने से हुईं और रात हमने ओणम स्पेशल भोजन जो कि पारंपरिक केरल का भोजन होता है और यह केले के पत्ते पर ही परोसा जाता है , के साथ पर्व मनाया। इस विशेष थाली में कुल 26 व्यंजन परोसे जाते हैं जिसे साद्या कहा जाता है इसमें मेरे पसंदीदा अड़ा पायसम और रसम होते हैं वहीं श्रीमती जी को बेसिबीले खिचड़ी, उत्पम् और विभिन्न प्रकार की चटनियाँ पसंद आती हैं ।


अड़ा पायसम गुड़ की खीर होती है ।इसके अलावा इस थाली में मैदे से बनाई जाने वाली खीर जिसे पलाड़ा कहते हैं, गेहूं से बनने वाली खीर, जिसे गोदम्ब कहते हैं और अरहर की दाल सें बनने वाली खीर, जिसे पझम कहते हैं, भी शामिल होती है। इसके अलावा चावल, परिप्पु करी, पच्चड़ी, पुलुस्सरी, ओलन, कालन, चेन , खट्टा रायता, नारियल के पकवान , नीर डोसा और उत्तपम प्रमुख होते हैं ।


ओणम का उत्सव भगवान वामन की जयन्ती और राजा बलि के स्वागत में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है जो दस दिनों तक चलता है। उत्सव त्रिक्काकरा में केरल के एक मात्र वामन मन्दिर से प्रारम्भ होता है। ओणम में प्रत्येक घर के आँगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर सुन्दर रंगोलिया डाली जाती हैं जिसे पूकलम कहा जाता है । युवतियां उन रंगोलियों के चारों ओर वृत्त बनाकर उल्लास पूर्वक नृत्य (तिरुवाथिरा कलि) करती हैं। इस पूकलम का प्रारम्भिक स्वरुप पहले (अथम के दिन) तो छोटा होता है परन्तु रोज़ इसमें एक और वृत्त फूलों का बढ़ा दिया जाता है। ऐसे बढ़ते बढ़ते दसवें दिन यह पूकलम बड़े आकार को धारण कर लेता है। इस पूकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा बलि तथा उसके अंग-रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिटटी से बनायीं जाती है। ओणम में नौका दौड़ जैसे खेलों का आयोजन भी होता है। 


ओणम एक सम्पूर्णता से भरा हुआ त्योहार है जो सभी के घरों को सुखों से भर देता है।


यह अथम से शुरू होता है और थिरुवोनम के साथ समाप्त होता है. आठ अन्य उत्सव के दिन चिथिरा, चोडी, विशाकम, अनिज़म, थ्रिकेता, मूलम, पूरादम और उथ्रादोम हैं.


मेरे मन में है कि किसी वर्ष इन दस दिनी उत्सव के दौरान केरल में रहूँ और ओणम को जी भर कर जी लूँ । समझूँ इस समृद्ध संस्कृति को और संजो लूँ इस विरासत को। 


✍️एमजे


मंगलवार, 10 सितंबर 2024

ग्रेविटी से ज़्यादा शक्तिशाली क्या है ?


 मैं और श्रीमती जी इंटरस्टेलर नामक फ़िल्म देख रहे थे. क्रिस्टोफ़र नोलन के सिनेमा में कुछ जादू है कि जितनी बार देखो उतना ही जादुई मालूम पड़ता है. फ़िल्म का हीरो कूपर अपनी बेटी को छोड़कर फिफ्थ डायमेंशन में जाता है जहां से आना असंभव है. वह एक ऐसे ग्रह में भी फँस गया था जहां पर एक घंटे का बीतना पृथ्वी पर सात घंटे के बीत जाने के बराबर है.

उसने अपनी बेटी से वादा किया है कि वो वापस आएगा और वो वापस आता है. जब वो पृथ्वी से गया था तब उसकी उम्र कोई 35 बरस की थी और उसकी बेटी मात्र 10 बरस की लेकिन जब वो वापस आया है तो उसकी उम्र नहीं बढ़ी है लेकिन उसकी बेटी मर्फ़ 94 बरस की हो गई है और मरणासन्न है. लेकिन वो वापस आया है.

अपने जीवन के अंतिम समय में कूपर को देख उसकी बेटी कहती है - कोई मेरा विश्वास नहीं करता था लेकिन मुझे पता था, आप एक दिन वापस जरूर आओगे…

कूपर पूछता है - कैसे?

बेटी रुँधे गले से कहती है - क्योंकि मेरे पिता ने मुझसे वादा किया था. 

फ़िल्म बताती है कि ग्रेविटी एकलौती चीज है, जो समय और आयामों के बीच सफर कर सकती है, पर मेरे देखे यह एकलौती चीज नहीं है. तो फिर ऐसा क्या है जिसने ग्रेविटी को भी मात दे दी है??

ऐसी ही एक बेहद प्यारी कहानी पढ़ने को मिलती है आदिशंकराचार्य के बारे में. जब वे मात्र 8 बरस के थे तब संन्यासी होकर चल दिये थे ज्ञान की खोज में. उस समय उनकी माँ ने उनसे वचन लिया था कि वो मृत्यु के पहले एक बार ज़रूर उनसे मिलने आये.

भारत भ्रमण पर निकले शंकर ने सम्राट सुधन्वा के साथ मिलकर कापालिकों की समस्या का समाधान किया और अपने सभी शिष्यों को श्रृंगेरी भेजते हुए कहा कि मैं कालड़ी जा रहा हूँ, मेरी माता ने मुझे याद किया है. मैंने उन्हें वचन दिया था कि अन्तिम समय में उनके साथ रहूँगा. जब वे घर पहुँचे तो माता आर्याम्बा मृत्युशैय्या पर थीं. शंकर ने उन्हें आत्म तत्व का उपदेश दिया और ठीक दोपहर के समय उन्होंने शरीर त्याग दिया.


शंकर ने उनकी प्रदक्षिणा की और शव के मुख में अक्षत  डालते हुए उनके सब्र का बाँध टूट गया.. उनके रूँधे कंठ से फूट पड़ा - 


मुक्तामणि त्वं नयनं ममेति 

राजेति जीवेति चिर सुत त्वम्।

इत्युक्तवत्यास्तव वाचि मातः 

ददाम्यहं तण्डुलमेव शुष्कम् ॥


अर्थात् हे माँ! जिस मुख से तुम मुझे अपनी आँखों का तारा कहा करती थीं.. मेरे राजदुलारे सदा जीते रहो, कहते हुए तुम कभी न अघाती थीं, मेरा दुर्भाग्य है कि उस मुख में मैं शुष्क तंडुल डालने के सिवा कुछ और न कर सका…


सोच रहा हूँ वो क्या है जो कूपर को उसकी बेटी मर्फ़ तक खींच लाया ? वो क्या है जो शंकर को उनकी माता तक खींच लाया ?? ये वही शक्ति है जो ग्रेविटी से ज़्यादा ताकतवर है… तारों से ज़्यादा चमकीली और डार्क मैटर से ज़्यादा सघन है… ये नदी से ज़्यादा चंचल है और ब्लैकहोल से ज़्यादा ख़तरनाक. ये इस कॉस्मोस से ज़्यादा विशाल है और परमाणु से ज़्यादा सूक्ष्म… ये प्रेम है ❤️


✍️एमजे