Diary Ke Panne

रविवार, 14 अक्टूबर 2018

दिशा हारा केमोन बोका मोंटा रे ......




संगीत मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा रहा है. जीवन के एक दौर में मैं चौबीसों घंटे संगीत में ही रमता था जटिल राग गायन , बेहतरीन बंदिशें , ग़ज़ल , दादरा, ठुमरी, टप्पा , ख्याल और तराना इन सबको बेहद करीब से देखा, सुना और समझा है.

वैसे तो कहा जाता है कि “म्यूजिक हेज़ नो लैंग्वेज” लेकिन फिर भी मुझे  लगता है कि अगर राग, ताल और शब्दों की समझ हो तो आनंद कई गुना हो जाता है. कई बार इन बारीकियों में उलझने का मन नहीं होता तो कोई ऐसी भाषा का गाना उठा लेता हूँ जो मुझे समझ नहीं आता लेकिन फिर जुट जाता हूँ उस भाषा के शब्दों को समझने और संगीत की बारीकियों को जानने में.

मैं एक डाइवर्सिफाइड लिसनर हूँ कुछ भी  सकता हूँ बस दिल तक उतरना चाहिए... तमिल और तेलुगु मुझे नहीं आती लेकिन इल्या राजा और रहमान की तेलुगु कम्पोजीशन मज़े से सुन सकता हूँ और यहाँ आकर यह धारणा ठीक मालूम पड़ती हैं की “म्यूजिक हेज़ नो लैंग्वेज”.

एक घटना याद आती है – मैं और मित्र सुनील तिवारी एक यात्रा पर थे. जिस शहर हम पहुँचने वाले थे वहां एक पत्रकार मित्र नौशाद खान हमारा इंतज़ार कर रहे थे लंच के लिए. हम जैसे ही शहर में इंटर हुए वो मित्र हमें चौराहे पर ही दिख गए अपनी बाइक के पास खड़े हुए. कार मैं ड्राइव कर रहा था और किशोरी अमोनकर की आवाज में श्री गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ चल रहा था (कभी समय निकाल कर किशोरी अमोणकर को सुनिए आवाज़ दिल को चीरती हुई पार निकल जाएगी आत्मा के, कभी किशोरी पर भी कुछ लिखूंगा). मित्र सुनील जी ने कहा अरे इसे बंद कर दो वो आ रहा है भाई, अच्छा नहीं मालूम पड़ता. लेकिन मैं भी कहाँ मानने वाला था मैंने और वॉल्यूम तेज़ कर दी. क्या संगीत का भी कोई जाती, धर्म होता है?? मेरे देखे तो नहीं?? नौशाद जी आकर गाडी में बैठ गए कुछ देर में अथर्व शीर्ष का पाठ ख़त्म हुआ और जो अगला गाना मेरे खजाने से निकल कर बजा वह नुसरत साहब का गाया नात था बोल थे अल्लाहू -अल्लाहू –अल्लाहू.

 तो मेरे सुनने का कोई पैटर्न नहीं है मैं रिहाना से लेकर एड शीरन तक को सूनता हूँ और स्वानंद किरकिरे से लेकर पंडित कुमार गन्धर्व तक को. मेरे देखे किसी गाने या संगीत में उतर जाने के दो तरीके हैं एक हेड फ़ोन ऑन कर लीजिये और दूसरा कार में सुनिए. हेड फ़ोन में भी मेरे देखे सोनी का हेड फ़ोन सबसे शानदार अनुभव देता है.                     

आजकल मैं एड शीरन के गाने सुन रहा हूँ वैसे तो उनका गाया शेप ऑफ़ यू बहुत फेमस हुआ है लेकिन उनके गाये सारे गाने बेहतरीन हैं “परफेक्ट” सुन कर देखें. मेरे आल टाइम पसंदीदा गानों की लिस्ट बहुत लम्बी है लेकिन स्वानंद किरकिरे के गाए गाने अद्भुत हैं. अपने आप में एक फलसफा लिए उनकी लेखनी और आवाज़ आपको दूसरी दुनिया में ले जाते हैं. जैसे लूटेरा फिल्म ( यह ओ हेनरी के उपन्यास पर आधारित है,कभी इस पर भी कुछ लिखूंगा)  का एक गाना है मोंटा रे...  अमिताभ भट्टाचार्य और स्वानंद किरकिरे ने अपनी आवाज़ दी है और शब्द भी अमिताभ भटाचार्य के ही हैं जिसमें वो बीच बीच में बांग्ला के शब्द भी पिरो देते हैं जिसके कारण गीत और भी मधुर मालूम पड़ता है शब्द हैं -

कागज़ के दो पंख ले के उड़ा चला जाये रे
जहां नहीं जाना था ये वहीं चला हाये रे
उमर का ये ताना बाना समझ ना पाए रे
जुबां पे जो मोह माया नमक लगाये रे
के देखे ना भाले ना जाने ना दाये रे
“दिशा हारा केमोन बोका मोंटा रे”

“दिशा हारा” का अर्थ है भटका हुआ, “केमोन” मतलब किधर चला और “मोंटा रे” का अर्थ है मन रे. गीत कार अपने मन से बात कर रहा है की कागज़ के पंख लेके तू कहाँ भटक रहा है? बुद्धि कहती है जिधर नहीं जाना उधर क्यूँ जाता है?? पूरा गीत सुनें. एक -एक अंतरे पर एक ब्लॉग लिखा जा सकता है, अद्भुत !!   

इसी ज़मीन पर स्वानंद किरकिरे ने फिल्म हजारों ख्वाहिशें ऐसी में एक खूबसूरत गीत लिखा और गाया है बोल हैं -

बावरा मन देखने चला एक सपना
बावरे से मन की देखो बावरी हैं बातें
बावरी सी धड़कने हैं बावरी हैं साँसें
बावरी सी करवटों से निंदिया दूर भागे

सुनें इन बेहतरीन नगमों को और करें आज अपने बावरे मन से कुछ बावरी सी बातें... कौन कहता है आजकल अच्छे गाने नहीं बन रहे या नहीं गाये जा रहे.

-मनमोहन जोशी

4 टिप्‍पणियां:

josephine ने कहा…

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Unknown ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद। गीत अच्छा लगा तो अर्थ की जिज्ञासा
आपने समस्या हल कर दी

Astitvanand ने कहा…

आपको अपने ब्लॉग पर कोई लाइक बटन लगाना चाहिए ताकि जिन्हें कुछ भी अच्छा लगे वो लाइक करके अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सके...आपका ब्लॉग अच्छा लगा मुझे.. स्नेह

बेनामी ने कहा…

Thank you sir