Diary Ke Panne

सोमवार, 30 दिसंबर 2024

मोहन की नगरी…






जब तक मैं छत्तीसगढ़ में रहा तब तक नया साल मतलब घूमने और पिकनिक का समय होता था. मेरे मित्रों के अलग-अलग कई ग्रुप थे. संगीत वाले दोस्तों का एक ग्रुप, लॉ वाले दोस्तों का एक, स्कूल फ्रेंड्स का एक और ऐसे ही अन्य… सभी के साथ वन डे पिकनिक के प्लान बनाते और 31 दिसंबर से लेकर जनवरी के पहले सप्ताह तक तीन चार जगह तो घूम ही आते थे.


फिर कुछ समझदार हुए तो नए साल के दिन निकलना बंद कर दिया क्यूंकि न्यू ईयर सेलिब्रेशन में केवल धक्का-मुक्की और भीड़ ही मिलती है और कुछ नहीं.


फिर जब बेटा हुआ तो तीन चार साल कहीं निकले ही नहीं और अब वो स्कूल में है तो सारी प्लानिंग उसके वेकेशन के हिसाब से ही बनती है.


लंबे समय बाद नए साल के स्वागत में अपने घर से बाहर हूँ. प्लानिंग में था कि बनारस में BHU कैंपस में बुक लांच की सेरेमनी रखी जाएगी… BHU के विभागाध्यक्ष लंबे समय से बुला रहे हैं बस मैं ही समय नहीं निकाल पा रहा…. या ये कहूँ तो बेहतर होगा जो समय वो देते हैं मेरी व्यस्तताएँ रहती हैं और जो समय मैं देता हूँ उस दौरान उनकी.


इस बार भी ऐसा हुआ मैंने 25 से 31 दिसम्बर तक का समय दिया और पता चला कि इस दौरान BHU में विंटर वेकेशंस होंगे. बहरहाल विनीत भाई ने पूरा प्लान सेट किया. 27 दिसंबर का समय तय हुआ. हम सीधे बनारस ना जा कर रीवा में रुके. कुछ मित्रों का आग्रह था. फिर ये भी पता चला कि रीवा से बनारस मात्र तीन घंटे का ही सफ़र है. 


रीवा मध्य प्रदेश का एक खूबसूरत शहर है.. रीवा शहर मध्य प्रदेश प्रांत के विंध्य पठार के एक हिस्से का निर्माण करता है और टोंस, बीहर, बिछिया नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित है. इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश राज्य, पश्चिम में सतना, पूर्व में मऊगंज एवं पूर्व तथा दक्षिण में सीधी जिले स्थित है.  रीवा के जंगलों में ही सफेद बाघ की नस्ल पाई गई हैं. जिले की प्रमुख उपज धान है. यहाँ के ताला नामक जंगल में बांधवगढ़ का ऐतिहासिक किला स्थित है. ये जगह प्राकृतिक नज़ारों से भरपूर सफेद शेर मोहन का घर. और कोई शहर कैसे खूबसूरत होता है? प्रकृति से, और वहाँ के खूबसूरत लोगों से. रीवा में ये दोनों ही प्रचुर मात्रा  है. 


सुबह जैसे ही हम रीवा पहुँचे गुड्डू भैया लेने आ गए… अनमोल ने सारा इंतज़ाम कर रखा था और इस प्लानिंग में जुड़ गए प्रिय प्रियांशु.


पहुँचते ही गरिमा का मेसेज आ गया “सर, आज का भोजन हमारे यहाँ कीजिए!” इतने स्नेह पूर्ण निमंत्रण को मैं अस्वीकार नहीं कर पाया. गरिमा का पूरा परिवार हमारे स्वागत के लिए उपस्थित था. उनकी मम्मी ने विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए थे इसमें ख़ास था रीवा का लोकल फ़ूड “उसना”… हम उनके साथ बात करने में ऐसे खो गए जैसे पहले से ही एक दूसरे को जानते हों.. बेटा और श्रीमती जी ज़्यादा घुल मिल गए.. प्यार भरी मुलाक़ात में फ़ोटो लेना रह गया. 


वर्तमान दौर का चलन है दिल मिले या ना मिले फोटो खिंचवाते रहिए.. मैं इसमें अभी भी कच्चा हूँ. बहुत सारे मोमेंट कैप्चर ही नहीं हो पाते कैमरे से, लेकिन दिल में जगह बना लेते हैं… शायद यही सही तरीका हो मिलने का 🤔


बहरहाल सत्ताईस दिसंबर की सुबह हम वाराणसी के लिए निकले.. जो भारत का प्राचीनतम बसा शहर है. भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है… इसे ‘बनारस’ और ‘काशी’ भी कहते हैं


प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।”


क्रमशः …..


✍️एमजे 
 

रविवार, 29 दिसंबर 2024

शुक्रिया 2024

 








सुबह घर पर बात कि तो मम्मी से पता चला की जब मैं पाँच बरस का था तो पहली बार पूरे परिवार के साथ बनारस घूमने गए थे.. रेल से सफ़र करते थे और धर्मशाला में रुकते थे. 

घूमने का शौक शायद जीन्स में ही आ गया है. अब हम होटल्स में रुकते हैं और अपनी गाड़ी से ट्रैवल करते हैं. लेकिन ट्रेवलिंग कैसे भी की जाये आपको हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है.

आप ट्रैवल करते समय सस्ते होटल में रुकें या पाँच सितारा में इससे बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता लेकिन सामान उठाने वाले को तुरंत कुछ रुपए निकाल कर टिप्स दे देना, कमरे को साफ रखना, थैंक्स कहना, आहिस्ता बोलना, लोगों से सम्मान पूर्वक बात करना... ये है असल लग्जरी.

मै हमेशा लग्जरी में रहता हूं और रहना पसंद करता हूँ.. मुझे लगता है पाँच सितारा कोई प्रॉपर्टी नहीं होती बल्कि वहाँ सर्विस देने वाले लोग होते हैं और लक्ज़री आपकी तबियत में होती है, आपकी आदतें होती है फ़ाइव स्टार... ये दीवारें, ये फर्नीचर कभी फ़ाइव स्टार नहीं हो सकते. कई बार मैं ऐसी प्रॉपर्टी में भी रुका हूँ जो बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन वहाँ काम करने वाले लोगों ने उस यात्रा को यादगार बना दिया.

घूमने का भी एक कल्चर है..इसके कुछ असूल हैं. पैसों से केवल सुविधा मिल सकती है, तमीज नहीं.  पैसे केवल आपको उस जगह ले जा सकते हैं, आनंद आपको आपकी फितरत से आएगा.  क्लास आपके बिहेवियर से नजर आता है...

बहरहाल बनारस की पाँच सितारा रही इस यात्रा में स्नेहिल मित्रों ने चार चाँद लगा दिए विनीत, नीति, रवि, अमित,सौरभ,अनमोल और प्रियांशु का साथ आनंद को कई गुना कर गया.

बाबा विश्वनाथ, माँ अन्नपूर्णा के दर्शन और गंगा आरती करके हमने 2024 को प्रेमपूर्वक विदा कहा. आशा है 2025 सभी के लिए समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली लेकर आए.

✍️एमजे 

PS: बनारस की यादें, खैरूआ सरकार के दर्शन और रीवा के मित्रों पर बहुत कुछ लिखा है. जिनको अलग-अलग ब्लॉग में जगह दी जाएगी जुड़े रहना. 


रविवार, 15 दिसंबर 2024

हमने यूँ दिल को समझाया

 


कक्षा आठ में था जब पहली बार तबला शब्द सुना. ढोलक पता था देखा था छुआ भी था लेकिन ये तबला क्या होता है ? पापा चाहते थे कि मैं ढोलक बजाना सीखूँ जिसके लिए शहर के सबसे योग्य शिक्षक की तलाश की गई और उन्होंने सुझाया कि मोहन को तबला सिखाओ ढोलक और बाक़ी दूसरे ताल वाद्य तो वो वैसे ही बजा लेगा. 


पिताजी के साथ योग्य गुरु से मिलने पहुँचे, तो उन्होंने कहा कि रोज़ एक घंटे की क्लास लगेगी और घर पर भी कम से कम एक घंटे रियाज़ करना होगा मैं हाँ में हाँ मिलाता रहा. और हम रामदास गुरुजी के यहाँ से लौट आए. मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कि पूछता तबला कैसा होता है? उससे मिलवाइये ना सही कम से कम शक्ल ही दिखा दीजिए. 


बहरहाल सीखना शुरू हुआ और मुझे घर पर रियाज़ करने के लिए तबला ख़रीदना था. माता जी से कहा तो बोली हर महीने कुछ पैसा जमा करके ख़रीदलेना एक साथ ढाई हज़ार रुपए नहीं दे सकती. घर का सारा बजट वही देखती थी. पैसों के मामले में एकदम सुलझी. हमने कभी उनको फ़िज़ूल खर्ची करते नहीं देखा. 


खैर घर पर हमारे एक जर्सी गाय पाल रखी थी. मैं रोज़ एक घर में दूध की डिलीवरी करने जाता जहाँ से हर महीने 400 रुपए मिलते. पूरे पैसे जमा करता अपने गुल्लक में और कुछ महीनों के भीतर ही मेरे पास 2800 रुपए जमा हो चुके थे. तबला ख़रीदने विशेष रूप से रायपुर गया और वहाँ से ख़ूबसूरत सा तबला ख़रीद लाया.


कुछ वर्षों बाद जब मैं भी कमाने लगा था और मेरी तबले की विधिवत शिक्षा पूरी हो चुकी थी और उच्च शिक्षा के लिए गुरुदेव छोटेलाल व्यास के सान्निध्य और सेवा में लगा था तब मेरे एक मित्र थे उधौ चतुर्वेदी (गुरु जी हमें उधौ और माधौ कहते थे) के साथ हैदराबाद तबला ख़रीदने गया और उसी जगह से तबला ख़रीदकर लाया जहाँ से उस्ताद ज़ाकिर हुसैन तबला बनवाते थे.  ये वो समय था जब तबले और शास्त्रीय संगीत के प्रति मेरी दीवानगी अपने चरम पर थी. लगता था जैसे यही जीवन है. 


इस समय तक मन ही मन एक और व्यक्ति को गुरु मान चुका था उस्ताद ज़ाकिर  हुसैन.. इनके कैसेट हमारे घर पर थे… और दूरदर्शन पर यदा कदा  उनके दर्शन हो जाया करते थे. उस्ताद जी से एक ही बार संयोग से मिलना हुआ वो भी तब जब मैंने तबला बजाना छोड़ दिया था. राजस्थान के जोधपुर शहर में एक कार्यक्रम का आयोजन था जहाँ मुझे भी श्रोता के रूप में निमंत्रित किया गया था.. मंत्रमुग्ध कर देने वाले तबला वादन को सुनने के बाद ग्रीन रूम में उनसे मिलने पहुंचा, मैंने कहा उस्ताद जी प्रणाम, बोले उस्ताद बड़े लोग होते हैं मुझे ज़ाकिर ही कहो. बेहद सादा दिल महान कलाकार.. उन्होंने पूछा क्या अभी तबला बजाते हो ?? मैंने कहा नहीं बस आपको सुनता रहता हूँ तबला बजाना छोड़ दिया है… 


बहरहाल कल शाम से ही मन असहज था पता नहीं क्यों रात नींद ही नहीं आ रही थी. बेचैनी का कोई कारण तो ना था लेकिन मन बेचैन था सुबह उठा तो उस्ताद जी के नहीं रहने की खबर पढ़ कर मन अवाक् रह गया.. फिर ख्याल आया कि आत्मा के आकाश से तारा जो टूटा था, मन कैसे बेचैन ना होता??


हमने ये सुन के दिल को समझाया 

कि जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं… 


उस्ताद ज़ाकिर साहब 🙏 मेरे गुरु थे. उनका जाना अपूरणीय है.


✍️एमजे