सुबह घर पर बात कि तो मम्मी से पता चला की जब मैं पाँच बरस का था तो पहली बार पूरे परिवार के साथ बनारस घूमने गए थे.. रेल से सफ़र करते थे और धर्मशाला में रुकते थे.
घूमने का शौक शायद जीन्स में ही आ गया है. अब हम होटल्स में रुकते हैं और अपनी गाड़ी से ट्रैवल करते हैं. लेकिन ट्रेवलिंग कैसे भी की जाये आपको हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है.
आप ट्रैवल करते समय सस्ते होटल में रुकें या पाँच सितारा में इससे बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता लेकिन सामान उठाने वाले को तुरंत कुछ रुपए निकाल कर टिप्स दे देना, कमरे को साफ रखना, थैंक्स कहना, आहिस्ता बोलना, लोगों से सम्मान पूर्वक बात करना... ये है असल लग्जरी.
मै हमेशा लग्जरी में रहता हूं और रहना पसंद करता हूँ.. मुझे लगता है पाँच सितारा कोई प्रॉपर्टी नहीं होती बल्कि वहाँ सर्विस देने वाले लोग होते हैं और लक्ज़री आपकी तबियत में होती है, आपकी आदतें होती है फ़ाइव स्टार... ये दीवारें, ये फर्नीचर कभी फ़ाइव स्टार नहीं हो सकते. कई बार मैं ऐसी प्रॉपर्टी में भी रुका हूँ जो बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन वहाँ काम करने वाले लोगों ने उस यात्रा को यादगार बना दिया.
घूमने का भी एक कल्चर है..इसके कुछ असूल हैं. पैसों से केवल सुविधा मिल सकती है, तमीज नहीं. पैसे केवल आपको उस जगह ले जा सकते हैं, आनंद आपको आपकी फितरत से आएगा. क्लास आपके बिहेवियर से नजर आता है...
बहरहाल बनारस की पाँच सितारा रही इस यात्रा में स्नेहिल मित्रों ने चार चाँद लगा दिए विनीत, नीति, रवि, अमित,सौरभ,अनमोल और प्रियांशु का साथ आनंद को कई गुना कर गया.
बाबा विश्वनाथ, माँ अन्नपूर्णा के दर्शन और गंगा आरती करके हमने 2024 को प्रेमपूर्वक विदा कहा. आशा है 2025 सभी के लिए समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशहाली लेकर आए.
✍️एमजे
PS: बनारस की यादें, खैरूआ सरकार के दर्शन और रीवा के मित्रों पर बहुत कुछ लिखा है. जिनको अलग-अलग ब्लॉग में जगह दी जाएगी जुड़े रहना.
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