Diary Ke Panne

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

प्रेम न बाड़ी उपजे.......


14 February 2017

                   वैलेंटाइन वीक चल रहा है..... अच्छा है इसी बहाने कम से कम लोग प्रेम के बारे में बात तो करते हैं.... हमारे समाज में प्रेम हमेशा से एक निषिद्ध विषय रहा है और मुर्खता का आलम ये है की एक संगठन विशेष ने इस दिन मातृ-पितृ दिवस मनाने का आह्वान किया है और कुछ संगठन विशेष वैलेंटाइन्स डे का विरोध करने की योजना बना चुके हैं. मेरे देखे इस विरोध का एक कारण यह भी है कि वर्तमान समय में प्रेम का समानार्थी हो गया है केवल शारीरिक आकर्षण और इसके लिए एक शब्द गढ़ दिया गया है  लफड़ा |

              खैर खाप पंचायतों के इस दौर में लगातार ऐसी ख़बरें भी आती रहती हैं की प्रेम विवाह करने के कारण लडके या लड़की वालों ने नव विवाहित दंपत्ति को मौत के घाट उतार दिया | फिर सभ्य समाज ने ऐसे घ्रिणीत कृत्य  के लिए बड़ा ही सुन्दर शब्द भी गढ़ा है “ मान हत्या (honour killing)”....

               सोचता हूँ समाज को हो क्या गया है?? लोगों को ये समझना होगा कि प्रेम किया नहीं जाता है.... ये तो होता है... अगर किया जाता तो शायद लड़का या लड़की पहले एक दुसरे  का इंटरव्यू ले लेते और जब सब चीज़ें ठीक परिवार या समाज के अनुकूल होती तब प्रेम करते | लेकिन संयोग वश ऐसा नहीं है........ हमारा समाज किस तरह बंटा  हुआ है ये जानना हो तो किसी भी अखबार को खोलकर उसका वैवाहिक विज्ञापन देख लीजिये.....

बहरहाल मैंने जितना प्रेम को पढ़ा है उससे कई गुना ज्यादा जिया है ......  मेरे देखे प्रेम तीन तरह का होता है:
       
        1.  Fall in Love: प्रेम में गिरना या प्रेम में पड़ना..... शायद यही वाला प्रेम है जिसे लफड़े की संज्ञा दी जाती है..... यह निकृष्ट कोटि का होता है जिसमें केवल मांग होती है.... ऐसे प्रेम में ही मन में प्रश्न  उठता है do you love me??

         2.   Being in Love: प्रेम में होना.....इस तरह के प्रेम में व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है और चीज़ें छोड़ने लायक हो जाती हैं , यही कारण है की प्रेमी प्रेमिका एक दुसरे को गिफ्ट देते रहते हैं...... प्रेमी कुछ छोड़ता तो है लेकिन हिसाब भी रखता है की बदले में उसे क्या मिला......
         
        3. Rise in Love: प्रेम में उठना.....यह प्रेम का उत्कृष्ट रूप है इस तरह के प्रेम में दूसरा ही महत्वपूर्ण होता है या ये कहना ठीक होगा की इसमें दुई खो जाती है सिर्फ एक ही बचता है...... ऐसे प्रेम के बारे में नारद कहते हैं “सा परम प्रेम स्वरूपा भक्ति.......” या कबीर ने कहा " प्रेम गली ऐसी संकरी जा में दुई न समाई."

              या इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं: पहले किसी को प्रेम होता है फिर वो प्रेम में होता है और अंत में प्रेम ही होता  है व्यक्ति खो जाता है.... बचपन में हम सभी ने कबीर और रहीम को पढ़ा “ ढाई आखर प्रेम का.....”  या  “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो .....” ये कुछ ऐसे पद हैं जो प्रेम की गहनतम अनुभूति में लिखे गए हैं और हिंदी के ऐसे मास्टर हमें मिले जिन्होंने इस अनुभूति को समझाने के बजाय हमें प्रश्नोत्तर रटवा  दिए.... अन्यथा प्रेम , प्रेम ही रहता लफड़ा नहीं बन जाता.....
       
              अब प्रश्न ये उठता है कि कैसे ये समझ में आये कि  वास्तविक प्रेम हुआ है या केवल शारीरिक आकर्षण है... रहीम का एक पद बचपन में पढ़ा था  “अमी झरत बिगसत कँवल चहूं दिसी बास सुबास”..... अर्थात जिस घडी आपको प्रेम होता है उस घडी अमृत की वर्षा होने लगती है, चारों ओर कमल खिलने लगते हैं और एक किस्म की सुगंध फैल जाती है.... ये सब मैंने अनुभव किया है | 

            कबीर के अनुसार प्रेम को परिभाषित नहीं किया जा सकता उन्होंने इसे गूंगे के गुड़ की संज्ञा दी है.... सामान्यतः हर कोई प्रेम को परिभाषित करने से  बचता रहा है.....लेकिन वर्तमान समय के ख्यात गीतकार अनुज “अमन अक्षर” ने प्रेम को बड़ी खूबसूरती से परिभाषित करते हुए कहा है:

”प्यार है बारिशों का भरम पालना, भीगना तो हमें रोज़ भीतर से है |
प्यार संध्या के इक दीप का है सफ़र, बस निकलना हमें रात के डर  से है ||”

              मुझे याद आता है मेरा पहला प्रेम संगीत ही था... एक समय मैं चौबीसों घंटे शास्त्रीय संगीत में ही रमता था.... फिर मेरा परिचय किताबों से हुआ..... दोनों ही प्रेम अनवरत जारी हैं... वर्ष 2005 में मुझे विधिवत एक  लड़की से प्रेम हुआ जो वर्तमान में मेरी धर्म पत्नी है.... प्रेम की गहन अनुभूति के क्षण थे वे.... “ये दिन क्या आये लगे फूल हंसने, देखो बसंती बसंती होने लगे मेरे सपने....” टाइप के विचार मन में आते... ऐसी बातें मन के सागर में हिलोरें लेने लगती जिसे किसी से कह देना चाहता था... लेकिन किसी ने कहा है “कौन कहता है मोहब्बत की जुबां होती, ये हकीक़त तो निगाहों से बयां होती है....” सो किसी से कह तो नहीं पाया लेकिन अनुभूति को अभिव्यक्त करने के लिए डायरी लिखने की शुरुआत की....उम्र के किसी पड़ाव में डायरी के उन अवाचित पन्नों को भी प्रकाशित किया जाएगा...
   
"प्रेम न बाड़ी उपजे , प्रेम न हाट बिकाय |
राजा परजा जेहि रुचे , शीश देई लेई जाय ||"

  प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ |
                                         -मन मोहन जोशी “मन”



6 टिप्‍पणियां:

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Thanx Damini

theabhishekdon ने कहा…

Amazing lines Sir.

Unknown ने कहा…

Beautiful lines sir... You are our inspiration......
.!!!!

MJ Sir Ki Diary ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
MJ Sir Ki Diary ने कहा…

thanx dear.....

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

thanx Shivam... my readers are my inspiration.... keep reading...