Diary Ke Panne

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

नीड़ का निर्माण.....

17 February 2017








                      शाम के 7:30 बजे हैं ..... श्रीमती जी ने फ़ोन किया है .... फ़ोन उठाते ही कहती हैं.... Happy Anniversary To You...... मैं सोचता हूँ आज कौन सी एनिवर्सरी है... शादी की साल गिरह? नहीं वो तो दिसम्बर में आती है...... क्या आज ही के दिन हम मिले थे ?? वो दिन मुझे याद तो नहीं लेकिन इतना तय है आज की तारिख वो तारिख नहीं है ... फिर क्या ??? मैं पूछता हूँ किस चीज़ की एनिवर्सरी? ..... वो नाराज़ होने की जगह उत्सुकता  से चहकते हुए कहती है याद करो आज ही के दिन हमने  अपने घर में प्रवेश किया था...... राहत की सांस लेता हूँ.....

                    याद आता है बचपन में हम जिस पुश्तैनी मकान में रहते थे उसके पीछे बहुत बड़ा बगीचा था और घर के सामने बहुत बड़ी खाली जगह जिसे हम खेल के मैदान के रूप में उपयोग में लेते थे और चारों ओर बहुत सी खुली जगह.... सारे मित्र खेलने हमारे ही तो घर आते थे | घर मिट्टी और खप्पर का था जिसे हम लगातार रिपेयर करवाते रहते थे.... साल भर कोई न कोई काम चलता ही रहता था... बाद में उसे तुडवा कर छत वाला मकान बनवा लिया गया था...

                   मैं 2005 में काम के सिलसिले में घर से निकला था फिर लौटना नहीं हुआ....”हम तो भये परदेशी”.... लेकिन इन कुछ वर्षों में विभिन्न शहरों में भाँती भाँती  के मकानों में रहा कुछ एम्प्लोयेर्स के दिए हुए फ्लैट्स थे तो कुछ में खुद ही किराये से रहा....”मैं कहाँ हूँ कहाँ वतन मेरा, दश्त मेरा न ये चमन मेरा “......मैं सोचा करता था कि एक दिन ये दुनिया छोड़ कर जाना ही है और जब इस शरीर में ही हम किराएदार हैं तो फिर काहे का खुद का मकान??  मैं कभी स्वयं का मकान नहीं बनवाऊंगा |... ये बात मैंने अपने मन को तो समझा ही रखी थी शादी के बाद पत्नी को भी समझाने में कामयाब रहा ..... कुछ तर्क जो मैं दिया करता था यूँ थे :
       
       1.  किराए के मकान में रहना इसीलिए ठीक है कि जब एक जगह रहने से मन भर जाए तो दूसरी जगह मकान ले कर रहने लगो.
       2.  एक दिन सब कुछ छोड़ कर जाना है.
       3.  फ्लैट नहीं खरीदेंगे ( और बड़ा बंगलो खरीदने का बजट नहीं )
       4.  किश्त चुकाने के लिए थोड़े ही इस दुनिया में आये हैं (क्यूंकि होम लोन की किश्त 20 साल चलती है) | आदि आदि.

            लेकिन नियति ने अपना खेल दिखाया और 2016 की 17 फ़रवरी के दिन शुभ मुहूर्त में हमने अपने फ्लैट में प्रवेश किया...फिर मेरे उसूलों और तर्कों का क्या हुआ?? “उम्र भर काम आये मेरे उसूल, एक एक करके इन्हें बेचा किया |” सारे उसूल और तर्क पत्नी की जिद और पत्नी द्वारा अक्सर दुहराए जाने वाले महा वाक्य “आप कुछ भी कर सकते हो मन” के आगे फीके पड़  गए और घर खरीद लिया गया | इस एहसास के साथ कि :

 “बड़ी कठिन है डगर सफलता की, एक जूनून सा दिल में जगाना पड़ता है|
 पूछा जो चिड़िया से कि घोंसला कैसे बनाया अपना ,
 बोली कई उड़ाने भरनी पड़ती है तिनका तिनका उठाना पड़ता है”

           मेरे साथ अच्छा ये रहा कि तिनका उठाने वाला मैं अकेला नहीं था पत्नी ,परिवार और मित्र हमेशा साथ रहे...ये और बात है कि कुछ तकनीकी करणों के चलते पहले लोन में दिक्कतें आ रही थीं और फिर कुछ और परिस्थितिगत परेशानियों के चलते नीड़ के निर्माण के बाद उसे बेचने का ख्याल भी मन में आया...लेकिन अंत में सब ठीक हो गया और हमने आखिरकार अपना घर खरीद ही लिया.... 

          मैंने घर के आगे अपने नाम का कोई बोर्ड नहीं लगवाया है | घर के  के बाहर जो नाम लिखा है वो है “श्री नारायणम” अर्थात घर तो लक्ष्मी और नारायण का है और हम यहाँ मेहमान हैं.... एक फलसफा मेरे साथ चलता रहता है कि जीवन ही एक सराय है यहाँ रहने के लिए साँसों की किश्त लगातार चुकानी पड़ती है और जिस रोज़ किश्त में चूक हुई आप शरीर से बाहर.... तो जब तक हैं... हँसते रहें, मुस्कुराते रहें ,प्यार बांटते रहें और हाँ सबसे महत्वपूर्ण है साँसों की किश्त चुकाना न भूलें........

बरबस ही श्री हरिवंश राय जी की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं :

   नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुस्कुराती,
घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती;
      एक चिड़िया चोंच में तिनका लि‌ए जो जा रही है,
      वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती!
 नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
     नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर!


                                       -मन मोहन जोशी “मन”

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