02 Feb 2017
अक्सर काम करते हुए जब आप एक ढर्रे में सिमट जाते हैं और ठीक-ठाक आमदनी होने लगती है तो मन में "जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ" टाइप के ख्याल आने लगते हैं...... लेकिन परमपिता समय - समय पर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करते हैं कि आपको ये सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या यही आपकी मंजिल है ...क्या यही आपकी नियति है... क्या आप सही जगह पर हैं???
मेरे देखे इसके लिए ईश्वर की अपनी प्लानिंग और तरीके होते हैं कई बार ये आपको ऐसे बॉस के सामने खड़ा कर देते हैं जो कहता है कि कुछ वर्ष और मेहनत करो फिर तुम मेरी तरह बन सकते हो और आपकी नींद हराम हो जाती है ये सोच कर कि क्या मैं इसके जैसा बनना भी चाहता हूं???... या कई बार आपके सहकर्मी के रूप में ऐसे किसी व्यक्ति को ला खड़ा करते हैं जो लगातार आपके काम में बाधक बनता है या भरी सभा में व्यवस्था का चीर हरण करता है और आप सोच में पड़ जाते हैं... जो भी हो मेरे देखे तो ये परमपिता का प्रेम है और अपने प्रिय पुत्र को जगाने हेतु वो ये हथकंडे अपनाते हैं....
एक अध्ययन के मुताबिक कार्य क्षेत्र एक ऐसी जगह होती है जहां आप अपने जीवन के जागते हुए हिस्से का लगभग 75% वक्त बिताते हैं.....मेरे देखे प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में एक बार यह समीक्षा ज़रूर करनी चाहिए कि क्या वो सही लोगों के बीच सही जगह पर अपने जीवन के 75 % हिस्से का निवेश कर रहा है.........
मैंने भिन्न-भिन्न राज्यों में विभिन्न संस्थानों में भाँती भाँती के लोगों के साथ कई तरह के काम किये हैं... याद आता है पहला काम गुरुद्वारे में तबला वादक का मिला था... 10 वीं कक्षा की छुट्टियाँ चल रही थीं और रु. 550 के मासिक वेतन के साथ यह मेरा पहला काम था .... सुबह 1.00 घंटे गुरुबानी के साथ तबला बजाना होता था और हर महीने पैसे मिल जाते थे जिससे जेब खर्च चलता रहता था........ मैंने "विआनी" चर्च में पादरी बनने की ट्रेनिंग लेने वाले बच्चों को फिजिक्स और मैथ्स पढ़ाया... छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचल कांगेर घाटी नेशनल पार्क में आदिवासी बच्चों को कंप्यूटर सिखाया ...... खुद का कोचिंग इंस्टिट्यूट M M Tutorials चलाया.... दूरदर्शन में एनाउंसर का काम किया.... आकाशवाणी में Com-parer का काम किया..... कोर्ट में प्रैक्टिस की.... मल्टीनेशनल कम्पनीज में सेल्स एग्जीक्यूटिव से लेकर Area Head, HR Head जैसे विभिन्न पदों पर रहा.... और वर्तमान में एक शैक्षणिक संस्थान के साथ सीईओ के पद पर कार्यरत हूँ......इन सबके साथ-साथ लेखन, और अन्य रचनात्मक कार्य तो चलते ही रहे.......
उक्त सभी कार्यों में दो बातें समान रहीं :
1) मुझे टीम हमेशा कमाल की मिली : शायद दुनिया की बेहतरीन टीमों के साथ मैंने काम किया है और वर्तमान में भी कर रहा हूँ ...... यही कारण है कि हमेशा परिणाम बेहतर मिले......शुरू से लेकर आज तक के सारे टीम मेम्बेर्स मेरे ज़ेहन में हैं उनमें से अधिकतर के साथ मैं आज भी संपर्क में हूँ...... टॉप ब्रांच हेड से लेकर टॉप एरिया हेड तक के अवार्ड से नवाज़ा गया हूँ और ये सारे अवार्ड मैं अपने टीम मेम्बेर्स को समर्पित करता हूँ.
2) ईश्वर का साथ : हमेशा परम पिता का साथ बना रहा .... मैं लगातार उनकी उपस्थिति महसूस कर सकता हूँ कठिन समय में उनकी उपस्थिति और प्रगाढ़ हो जाती है और भीतर से एक आवाज़ गूंजती है ... मैं हूँ .......सिर्फ इस आवाज़ के चलते मैं जीवन के कठिन समयों में दृढ रहा हूँ और तनाव वाले दौर में आनंद के सागर में ....... कई बार वो कहते हैं बस तेरी ज़रूरत यहीं तक थी अब कुछ दूसरा कर..... मैं किसी एक काम को शिखर तक पहुंचा कर किसी नए तरह के काम में लग जाता हूँ....... कमाल की अनुभूति है....
इसीलिए कभी कोई मेरे वर्क एक्सपीरियंस के बारे में पूछता है तो बरबस ही ये लाइनें याद आ जाती हैं
" मेरी उम्र से मेरे तजुर्बे का अंदाज़ा न लगा ,
यूँ चुल्लू से समंदर न खंगाला जाएगा."
- मन मोहन जोशी "मन"
अक्सर काम करते हुए जब आप एक ढर्रे में सिमट जाते हैं और ठीक-ठाक आमदनी होने लगती है तो मन में "जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ" टाइप के ख्याल आने लगते हैं...... लेकिन परमपिता समय - समय पर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करते हैं कि आपको ये सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या यही आपकी मंजिल है ...क्या यही आपकी नियति है... क्या आप सही जगह पर हैं???
मेरे देखे इसके लिए ईश्वर की अपनी प्लानिंग और तरीके होते हैं कई बार ये आपको ऐसे बॉस के सामने खड़ा कर देते हैं जो कहता है कि कुछ वर्ष और मेहनत करो फिर तुम मेरी तरह बन सकते हो और आपकी नींद हराम हो जाती है ये सोच कर कि क्या मैं इसके जैसा बनना भी चाहता हूं???... या कई बार आपके सहकर्मी के रूप में ऐसे किसी व्यक्ति को ला खड़ा करते हैं जो लगातार आपके काम में बाधक बनता है या भरी सभा में व्यवस्था का चीर हरण करता है और आप सोच में पड़ जाते हैं... जो भी हो मेरे देखे तो ये परमपिता का प्रेम है और अपने प्रिय पुत्र को जगाने हेतु वो ये हथकंडे अपनाते हैं....
एक अध्ययन के मुताबिक कार्य क्षेत्र एक ऐसी जगह होती है जहां आप अपने जीवन के जागते हुए हिस्से का लगभग 75% वक्त बिताते हैं.....मेरे देखे प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष में एक बार यह समीक्षा ज़रूर करनी चाहिए कि क्या वो सही लोगों के बीच सही जगह पर अपने जीवन के 75 % हिस्से का निवेश कर रहा है.........
मैंने भिन्न-भिन्न राज्यों में विभिन्न संस्थानों में भाँती भाँती के लोगों के साथ कई तरह के काम किये हैं... याद आता है पहला काम गुरुद्वारे में तबला वादक का मिला था... 10 वीं कक्षा की छुट्टियाँ चल रही थीं और रु. 550 के मासिक वेतन के साथ यह मेरा पहला काम था .... सुबह 1.00 घंटे गुरुबानी के साथ तबला बजाना होता था और हर महीने पैसे मिल जाते थे जिससे जेब खर्च चलता रहता था........ मैंने "विआनी" चर्च में पादरी बनने की ट्रेनिंग लेने वाले बच्चों को फिजिक्स और मैथ्स पढ़ाया... छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचल कांगेर घाटी नेशनल पार्क में आदिवासी बच्चों को कंप्यूटर सिखाया ...... खुद का कोचिंग इंस्टिट्यूट M M Tutorials चलाया.... दूरदर्शन में एनाउंसर का काम किया.... आकाशवाणी में Com-parer का काम किया..... कोर्ट में प्रैक्टिस की.... मल्टीनेशनल कम्पनीज में सेल्स एग्जीक्यूटिव से लेकर Area Head, HR Head जैसे विभिन्न पदों पर रहा.... और वर्तमान में एक शैक्षणिक संस्थान के साथ सीईओ के पद पर कार्यरत हूँ......इन सबके साथ-साथ लेखन, और अन्य रचनात्मक कार्य तो चलते ही रहे.......
उक्त सभी कार्यों में दो बातें समान रहीं :
1) मुझे टीम हमेशा कमाल की मिली : शायद दुनिया की बेहतरीन टीमों के साथ मैंने काम किया है और वर्तमान में भी कर रहा हूँ ...... यही कारण है कि हमेशा परिणाम बेहतर मिले......शुरू से लेकर आज तक के सारे टीम मेम्बेर्स मेरे ज़ेहन में हैं उनमें से अधिकतर के साथ मैं आज भी संपर्क में हूँ...... टॉप ब्रांच हेड से लेकर टॉप एरिया हेड तक के अवार्ड से नवाज़ा गया हूँ और ये सारे अवार्ड मैं अपने टीम मेम्बेर्स को समर्पित करता हूँ.
2) ईश्वर का साथ : हमेशा परम पिता का साथ बना रहा .... मैं लगातार उनकी उपस्थिति महसूस कर सकता हूँ कठिन समय में उनकी उपस्थिति और प्रगाढ़ हो जाती है और भीतर से एक आवाज़ गूंजती है ... मैं हूँ .......सिर्फ इस आवाज़ के चलते मैं जीवन के कठिन समयों में दृढ रहा हूँ और तनाव वाले दौर में आनंद के सागर में ....... कई बार वो कहते हैं बस तेरी ज़रूरत यहीं तक थी अब कुछ दूसरा कर..... मैं किसी एक काम को शिखर तक पहुंचा कर किसी नए तरह के काम में लग जाता हूँ....... कमाल की अनुभूति है....
इसीलिए कभी कोई मेरे वर्क एक्सपीरियंस के बारे में पूछता है तो बरबस ही ये लाइनें याद आ जाती हैं
" मेरी उम्र से मेरे तजुर्बे का अंदाज़ा न लगा ,
यूँ चुल्लू से समंदर न खंगाला जाएगा."
- मन मोहन जोशी "मन"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें