Diary Ke Panne

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

धर्म का शोर या शोर का धर्म

24-04-2017





               सोनू निगम के twit के बाद पिछले कुछ दिनों से ट्विटर, सोशल मीडिया व न्यूज़ चैनलों  पर एक ही खबर ट्रेंड कर रही है ..... लोग आपस में बहस कर रहे हैं की सोनू निगम ने ठीक बोला या ग़लत. एक मौलाना ने तो फतवा ही जारी कर दिया था की जो कोई सोनू निगम का सर मुंड कर लाएगा उसे वो दस लाख रुपये का इनाम देंगे आदि आदि आदि....

             मैंने सोचा था कि इस मुद्दे पर कुछ भी न लिखा जाएगा क्यूंकि पता नहीं कौन सी बात से किसी की धार्मिक भावना भड़क जाए .... फिर कुछ ऐसा घटा... कल की ही बात है एक  मित्र ने ई मेल के माध्यम से पूछा है कि अपने पूजा पाठ या अन्य धार्मिक कार्यों  से दूसरों के जीवन में खलल डालना क्या धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा है?? क्या भारत में असहिष्णुता  बढ़ी है ? क्या इन सब से इश्वर प्रसन्न होता है ? क्या सोनू निगम ने जो कुछ किया वो असहिष्णुता है?? आदि पर आप कुछ लिखिए ...

           मेरे देखे समाज वाकई असहिष्णु हुआ है लेकिन मेरा नज़रिया दूसरा है वस्तुतः सोनू निगम ने तो कुछ भी नहीं कहा ....... सैकड़ों वर्षों पहले ही जब की लाउड स्पीकर नहीं होते होंगे तब कबीर ने कहा था –
“कंकर पत्थर जोड़ कर मस्जिद लिया चुनाय ,
ता चढ़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय.” 
अब इसे क्या कहेंगे ?

कबीर मेरे प्रिय हैं और पूजा पाठ की पद्धति के सम्बन्ध में वे और भी खूबसूरत बात कहते हैं :

सब रग तंत रबाब तन विरह बजावे नित्त्त,
और न कोई सुन सके कह साईं के चित्त ||

         कबीर कह रहे हैं की आराधना ऐसी हो जो भक्त और भगवान् के अलावा किसी और को सुनाई भी ना दे .... फिर किसी भी तथाकथित धार्मिक कार्य में ये शोर शराबा क्यूँ??

ये जानने से पहले कि क्या ये क्रियाकलाप धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा हैं ? ये जान लेना ज़रूरी है कि आखिर धर्म क्या है?

        धर्म संस्कृत भाषा का शब्द हैं जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं। "धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यहभी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं।

        जैमिनी के  मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र के अनुसार- “ लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म का लक्षण है।“

       वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में भी आया हैं। जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि का धर्म हैं और प्रजा का पालन और रक्षण राजा का धर्म हैं।

 मनु स्मृति के अनुसार-
“धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:,
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं ||
अर्थात: धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।

 महाभारत के अनुसार -
“धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा:”
अर्थात -जो धारण किया जाये और जिससे प्रजाएँ धारण की हुई हैं वह धर्म हैं।

वैशेषिक दर्शन के कर्ता महा मुनि कणाद के अनुसार -
यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:
अर्थात- जिससे अभ्युदय(लोकोन्नति) और निश्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि होती हैं, वह धर्म हैं।

 स्वामी दयानंद सरस्वती  के अनुसार- जो पक्ष पात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार हैं उसी का नाम धर्म है और उससे विपरीत अधर्म हैं।

                    धर्म , सम्प्रदाय, पंथ आदि शब्दों पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है....


तो फिर क्या हिन्दू, मुस्लिम.... आदि धर्म हैं?? क्या किसी भी कार्य के लिए लाउड स्पीकर या DJ का प्रयोग वर्जित कर दिया जाना चाहिए?? क्या धर्म की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए ?? ये सारे क्रियाकालाप धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा हैं या नहीं के परे इन क्रियाकलापों को धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा होना चाहिए या नहीं ?? ये सारे प्रश्न चिंतन का विषय है. मेरे देखे किसी से भी राटा रटाया उत्तर लेने की बजाय सभी चिंतन करें और विभिन्न निष्कर्षों तक पहुंचें.

              एक विद्यार्थी का धर्म है विद्या अर्जन करना .... नए प्रश्न उठाना और उत्तर की खोज में लग जाना .. मेरे इस धर्म के पालन में तो मुझे सभी तरह के शोर शराबे से परेशानी है.

                                -मन मोहन जोशी “मन”

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