Diary Ke Panne

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

दुनिया मेरे आगे : जैविक घड़ी और ब्रह्माण्डीय घड़ी......




                        प्राणियों में स्वास का चलना, पेड़-पौधों में निश्चित समय पर फूल लगना एवं फल बनना, पतझड़ में पुराने पत्तों का गिरना एवं पौधों का नई कोपलें धारण करना, समय पर अंकुरण होना, मौसम का बदलना, दिन रात का होना, निश्चित समय पर अमावस्या और पूर्णिमा का होना आदि प्रकृति में जो कुछ भी घट रहा है ऐसा मालूम पड़ता है किसी घड़ी से ही संचालित है.
                  
                     हमारी बीमारियाँ, स्वास्थ्य, जीवन के उतार चढाव, मनोदशा, मन में सुख या दुःख के भाव ये सब भी किसी घड़ी से ही संचालित होते मालूम पड़ते हैं, इस घड़ी की खोज कुछ वैज्ञानिकों ने कर ली है जिसे जैविक घड़ी नाम दिया गया है, ऐसा अखबार में पढने को मिला. मनुष्य में जैविक घड़ी का मूल स्थान हमारा मस्तिष्क है. मस्तिष्क मे करोड़ो कोशिकाएं होती है जिन्हे हम न्यूरॉन कहते है. एक कोशिका से दूसरे को सूचना का आदान-प्रदान विद्युत् स्पंदों द्वारा होता है. हम रात को समय विशेष पर सो जाते है तथा सुबह स्वतः ही जाग जाते है. औसतन हम एक मिनट में 15-18 बार सांस लेते है तथा हमारा हृदय 72 बार धड़कता है ये सब जैविक घड़ी से संचालित होता है. मेरे देखे ये जैविक घड़ी ही सब कुछ संचालित करती है अगर ये नहीं होती तो हम सांस लेना भूल जाते और शायद कहीं छपता कि सांस लेना भूलने के कारण इतने लोग मृत पाए गए.
                 
                    अमेरिकी वैज्ञानिकों जेफरी हॉल, माइकल रोजबाश और माइकल यंग ने शरीर की इस जैविक घड़ी पर खोज की है. जिसके लिए इन तीनों को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया है. इन वैज्ञानिकों ने मनुष्य शरीर के जैविक घड़ी के काम करने के तरीके को समझने का प्रयास किया है. बॉडी क्लॉक में बदलाव की वजह से शुरुआत में तो याद्दाश्त संबंधी समस्या पैदा होती हैं, लेकिन इसका बड़ा प्रभाव कई तरह की बीमारियों के रूप में सामने आता है. इनमें  मधुमेह, कैंसर और दिल के रोग शामिल हैं. ऑक्सफ़ॉर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर रसेल फ़ोस्टर ने बीबीसी को बताया कि अगर हम बॉडी क्लॉक से छेड़छाड़ करते हैं तो मेटैबलिज़म पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. उनके मुताबिक शरीर का सिस्टम कैसे काम करता है पहली बार इसकी जानकारी देकर तीनों अमेरिकी वैज्ञानिक इस पुरस्कार के हक़दार बने हैं.
                    
                       एक विज्ञान लेख में मैंने पढ़ा कि जेफरी हॉल और माइकल रोजबाश ने डीएनए के एक खंड को अलग कर बॉडी क्लॉक में लगाया. इसे पीरियड जीन कहते हैं. पीरियड जीन के पास एक तरह के प्रोटीन के निर्माण करने का निर्देश होता है. इस प्रोटीन को पीइआर कहते हैं. जब पीइआर का स्तर बढ़ जाता है, तो वह खुद ही अपने निर्माण संबंधी निर्देशों को बंद कर देता है. इस तरह पीइआर का स्तर 24 घंटे के दौरान घटता-बढ़ता रहता है. ये रात के वक्त बढ़ता है जबकि दिन के वक्त कम हो जाता है. माइकल यंग ने दो जीन खोजे हैं. एक को टाइमलेस तो दूसरे को डबल टाइम नाम दिया गया है. दोनों पीइआर की स्थिरता को प्रभावित करते हैं. अगर पीइआर अधिक स्थिर है, तो बॉडी क्लॉक धीमी गति से चलती है, अगर यह कम स्थिर है तो यह तेज़ काम करती है. यही इंसान को कर्मठ या सुस्त बनाती है.
                   
                       इस जैविक घड़ी से ही हमारे समय का निर्धारण हो रहा है अर्थात हम समय को नहीं भोग रहे हैं समय ही हमें भोग रहा है. वैराग्य शतक में विद्वान भर्तृहरि कहते हैं :                 

भोगो  न भुक्ता वयमेव भुक्ताः। तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।।
कालो न यातं वयमेव याताः। तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः।।
अर्थात : हम समय को नहीं जीते, समय हमें जीता है.

                      मेरे देखे जैविक घड़ी के साथ साथ एक कॉस्मिक घड़ी भी है जिसे ब्रहमांडीय घडी कहा जा सकता है. ये ग्रह, नक्षत्र, चांदतारे, धरतीआकाश और न जाने कितने ब्रह्मांड उसके द्वारा संचालित हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो इस घड़ी को बहती धारा मानते हैं. भूत - वर्तमान और भविष्य की चिरतरंगिणी. अदृश्य प्रवाह जो ब्रह्मांड की समस्त हलचलों, ग्रह - नक्षत्र, निहारिकाओं,  नदियों, महासागरों के साथ - साथ गतिमान है. किसी के लिए वह ब्रह्मांड के भीतर है, किसी के लिए बाहर. ईश्वर का एक नाम "काल" भी है. जिसका अर्थ होता है समय. समय अर्थात घड़ी.


- मनमोहन जोशी MJ

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