Diary Ke Panne

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

फ़िक्रे दुनिया : वैवाहिक बलात्संग पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला ..



                   मैं कई बार मज़ाक में कहता हूँ की मेरे खून में WBC और RBC की जगह IPC और CrPC बहती है. लॉ पढ़ाते हुए अक्सर मैं स्टूडेंट्स से कहता हूँ कि कानून तीन तरह से पढ़ा और समझा जा सकता है: पहला: यह देखना कि  बेयर एक्ट क्या कहते हैं. दूसरा: इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट का क्या मत है. और तीसरा: हमारी समझ क्या कहती है.

                   कानूनों की व्याख्या करते हुए कई बार मैं कुछ धाराओं पर रूकता हूँ और स्टूडेंट्स से ये चर्चा होती है कि ये प्रावधान क्यूँ सही नहीं है
, या फिर सुप्रीम कोर्ट के फलां निर्णय में क्या बदलाव होने चाहिए थे या अमुक निर्णय क्यूँ सहीं नहीं है आदि. ऐसा ही एक प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में  है जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया है.
            
                  सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध पर आज एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध रेप माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद को  असंवैधानिक घोषित कर दिया है, धारा 375 के अपवाद अनुसार यदि शादीशुदा महिला जिसकी उम्र 15 साल से ज्यादा है, के साथ उसके पति द्वारा जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाया जाता है तो पति के खिलाफ रेप का केस नहीं बनेगा. आईपीसी में रेप की परिभाषा में इसे अपवाद माना गया है. हालांकि, बाल विवाह कानून के मुताबिक शादी के लिए महिला की उम्र 18 वर्ष होनी चाहिए. कोर्ट के अनुसार  यदि नाबालिग पत्नी एक साल के भीतर शिकायत करती है तो पति पर रेप का मुकदमा चलेगा. सुनवाई में बाल विवाह के मामलों में अधिकतम 2 साल के कारावास की सजा पर भी  सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए. सुप्रीम ने केंद्र से कहा था क्या ये कठोर सजा है? दरअसल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बाल विवाह करने पर कठोर सजा का प्रावधान है.
            
                    उल्लेखनीय है कि 1978 में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1929 और हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955  में संशोधन कर लड़की की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी. अब 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी 21 साल से कम उम्र के लड़के के साथ कराना दंडनीय अपराध है जिसके लिए  दो वर्ष तक के  सश्रम कारावास या एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान  है. लेकिन धारा 375 के अपवाद में आज भी यह प्रावधान बना हुआ है कि पत्नी जिसकी उम्र 15 साल से अधिक है, के साथ जबरन यौन सम्बन्ध बलात्कारनहीं समझा जायेगा.

                देश के
योग्य नौकरशाहऔर महान सांसद"  भारतीय दंड संहिता की कुछ धाराओं में संशोधन करना ही भूल गए. दांडिक विधि संशोधन अधिनियम, 2013 के बाद अब भी भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का अपवाद, पति को अपनी 15 साल से अधिक आयु  की पत्नी के साथ बलात्कार करने का कानूनी लाइसेंसदेता है, जो निश्चित रूप से नाबालिग बच्चियों के साथ मनमाना और विवाहित महिला के साथ भेदभावपूर्ण रवैया है.

                   वैसे कुछ लोग ये तर्क भी देते हैं की भारत में नारी का शोषण प्राचीन काल से होता आ रहा है. लेकिन प्राचीन साहित्य को देखने पर ये बात सही नहीं मालूम पड़ती क्यूंकि बलात्कार की जो व्यापक परिभाषा प्राचीन साहित्य में मिलती है समझने लायक है. जैसे: मिताक्षरामें याज्ञवल्यक्य कहते हैं कि किसी पुरुष का किसी स्त्री के साथ मात्र कामसुख के लिए बलात् समागम करना व्यभिचार है और यह  दंडनीय है.

                      “मनुस्मृतिमें बलात्कार को अपराध ठहराते हुए लिखा गया है कि पर-स्त्री संयोग की लालसा से जो स्त्री को ग्रहण करेगा वह बलात्कार का दोषी है. मनुस्मृतिमें तो यहां तक कहा गया है कि जो पुरूष परस्त्री के साथ रमणीय एकान्त में वार्तालाप करता है तथा उसके अस्पृश्य अंगों स्पर्श करता है वह बलात्कार का दोषी होगा (2013 के दांडिक विधि संशोधन के तहत अब स्त्री के  अस्पृश्य अंगों को स्पर्श करनाशब्दावली को  को IPC की धरा 375 के अंतर्गत बलात्कार की परिभाषा में शामिल कर लिया गया है.)
                    
                       बृहस्पति ने बलात्कार के तीन प्रकार बताए हैं - बल द्वारा, छल द्वारा और अनुराग द्वारा.
                 
                        इसी प्रकार विवाद रत्नाकरमें व्यास ने बलात्कार की तीन श्रेणियां बताई हैं – 1. परस्त्री से निजर्न स्थान में मिलना और उसे आकर्षित करना.  2. विभिन्न प्रकार के उपहार आदि भेजना. 3. एक ही शैया अथवा आसन का प्रयोग करना.
                     
                        इन उदाहरणों से एक बात स्पष्ट होती है कि प्राचीन भारत के विधिशास्त्रियों ने प्रत्येक उस चेष्टा को भी बलात्कार की श्रेणी में रखा जो प्राथमिक रूप में भले ही सामान्य प्रतीत हों किन्तु आगे चल कर बलात् यौनक्रिया में परिवतिर्त हो सकती हो.

                      कात्यायन ने नौ प्रकार के बलात्कारों उल्लेख किया है
1 दूत के हाथों अनुचित अथवा कामोत्तेजक संदेश भेजना.
2 अनुपयुक्त स्थान या काल पर परस्त्री के साथ पाया जाना.
3 पर स्त्री को बलात् गले लगाना.
4 पर स्त्री के केश पकड़ना.
5  पर स्त्री का आंचल पकड़ना.
6  पर स्त्री के किसी भी अंग का स्पर्श करना.
7  पर स्त्री के साथ उसके आसन अथवा शैया पर जा बैठना.
8 मार्ग में साथ चलते हुए अश्लील वार्तालाप करना.
9  स्त्री अपहरण कर उसके साथ यौनक्रिया करना.

                    भारतीय मनीषियों ने बलात्कार को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा और इसके लिए कठोरतम दंड का उल्लेख किया है जैसे:     
बृहस्पति के अनुसार : बलात्कारी की सम्पत्तिहरण करके उसका लिंगोच्छेद करवाना.
कात्यायन के अनुसार : बलात्कारी को मृत्युदण्ड दिया जाए.
नारदस्मृति के अनुसार :बलात्कारी को शारीरिक दण्ड दिया जाना चाहिए.
कौटिल्य के अनुसार : सम्पत्तिहरण करके कटाअग्नि में जलाने का दण्ड दिया जाना चाहिए.
याज्ञवल्क्य के अनुसार : सम्पत्तिहरण कर प्राणदण्ड दिया जाना चाहिए.
मनुस्मृति के अनुसार : एक हजार पण का अर्थदण्ड, निवार्सन, ललाट पर चिन्ह अंकित कर समाज से बहिष्कृत करने का दण्ड दिया जाना चाहिए.

                   
                    लेकिन एक बात जो कहीं पढने में नहीं आई वह यह कि क्या प्राचीन उन्नत सभ्यताओं में विवाहित स्त्री के साथ पति द्वारा बलात सम्बन्ध बनाना भी अपराध था?? क्या पत्नी की सहमती आवश्यक थी?? क्या पति की इच्छा और सहमती के बारे में भी कभी कहीं सोचा गया लगता है  पुरुष लम्पटता का प्रतीक होकर हमेशा ही महिलाओं को अधिसाशित करने की स्थिति में रहे.

                      इन सबके परे आज का उच्चतम न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक है जो
18 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकता है. मेरे देखे उच्चतम न्यायालय ने नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक और मिल का पत्थर स्थापित कर दिया है.



              - मनमोहन जोशी "MJ"

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