सन्दर्भ जिस पर यह आलेख आधारित है.
|
लेकिन अभी इस मुद्दे पर
लिखने बैठा हूँ और मुझे नहीं पता इस एक लेख के माध्यम से किस-किस की अवमानना होने
वाली है. (आगे स्वयं के रिस्क पर पढ़ें, इस आलेख में व्यक्त सभी विचारों के लिए मैं
पूर्णतः ज़िम्मेदार हूँ.)
बृहदारण्यक उपनिषद् से लिए गए इस श्लोक
"असतो मा सद्गमय॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥" का अर्थ
है -
"(हमें) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर
ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥"
In English:- “Lead us from falsehood to
truth, from darkness to light, from
death to the immortality.”
क्या खूबसूरत प्रार्थना
है! क्या बेहतरीन शब्द हैं! क्या शानदार सोच है!! जब कुछ बुद्धिमान इन्हें साम्प्रदायिक बताने में लगे हैं तो कुछ
महा बुद्धिमान ऐसे भी आ जाएंगे जो कहेंगे इन श्लोकों का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं
है ये तो मानव मात्र की भलाई के लिए हैं.
अरे चतुर सुजानों यह
स्वीकार करने में क्या शर्म है की इसका सम्बन्ध हिन्दू धर्म से है. और शायद हर
किसी को इस बात पर गर्व होना चाहिए की कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जो मनुष्यता के बारे
में सोच रहे थे जो ज्ञान के बारे में सोच रहे थे.
वैसे तो मुझे इन श्लोकों
को पढ़ते हुए यही लगता है कि धर्म, सम्प्रदाय, जाति, लिंग जैसे विभेदों से बहुत ऊपर मानवमात्र के उत्थान के लिए
सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करने वाले वाक्य हैं ये. वसुधैव कुटुंबकम के मूलमंत्र
को अपने जीवन में उतारने वाली सनातन संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों में इस तरह की
अनेक प्रार्थनायें बार-बार मिलती हैं.
परन्तु अब स्वतंत्रता के
कई वर्षों बाद हमें ये बताया जा रहा है कि हमारे जीवन दर्शन का आधार रहे ये सूत्र
देश की धर्मनिरपेक्षता पर चोट करते हैं क्योंकि ये एक धर्म विशेष के प्राचीन ग्रंथ
से लिए गए हैं. क्या मुर्खता है????
आश्चर्य इस पर नहीं कि
किसी बुद्धिमान को इस तरह की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लगाने की सूझी क्योंकि
इस देश की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, मूल्यों, परम्पराओं और हर उस बात
को हानि पहुँचाने के लिए न जाने कितने ही
लोग दिन रात एक किये हुए हैं. आश्चर्य न्याय के उस मंदिर में बैठे स्वघोषित
भगवानों पर है जिनके समक्ष ऐसी याचिका आई और उन्होंने इसे खारिज कर देने के बजाय
इसकी सुनवाई के लिए एक पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ बीठा दिया है.
वह सर्वोच्च न्यायालय
जहां 1 नवम्बर 2017 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 55,259 मामले लंबित थे. जहाँ से
न्याय पाने की उम्मीद में देश के आम आदमी की पीढ़ियाँ गुज़र जाती हैं. वहाँ इस बात
की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ का गठन किया जाना, मेरे देखे जनता के पैसे की बर्बादी है
और यह न्याय तथा न्यायिक हितों का गर्भपात
ही है.
सर्वोच्च न्यायालय में
बैठे न्याय के इन देवताओं को ये पता होना चाहिए कि अगर केवल हिन्दू धर्म के किसी
ग्रन्थ का भाग होने एवं संस्कृत में होने के कारण “असतो मा सद्गमय” जैसा श्लोक देश के
धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर चोट पहुँचाने वाला माना जाएगा और उसके केंद्रीय विद्यालयों
में प्रार्थना में शामिल होने पर प्रश्न खड़े किये जाएंगे तो केरल शासन, बेहरामपुर विश्वविद्यालय
उड़ीसा, उस्मानिया विश्वविद्यालय
आंध्र प्रदेश, कन्नूर विश्वविद्यालय केरल, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी
संस्थान श्रीनगर, आईआई टी कानपुर और सी बी एस ई आदि अनेक संस्थाओं पर भी बैन लगा देना होगा
क्योंकि इन सभी के आदर्श वाक्य भी उपनिषदों से ही लिए गए हैं.
उदाहरण के लिए भारतीय
गणतंत्र का “सत्यमेव जयते” मुंडकोपनिषद से लिया गया है. केरल शासन का ध्येय वाक्य “तमसो मा ज्योतिर्गमय” बृहदारण्यक उपनिषद् से
लिया गया है. गोवा शासन का ध्येय वाक्य “सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्” गरुड़ पुराण से लिया गया
है.
भारतीय नौसेना का ध्येय
वाक्य “शं नो वरुणः” तैत्तिरीय उपनिषद से लिया
गया है. भारतीय वायुसेना का ध्येय वाक्य “नभः स्पृशं दीप्तम्” भगवद्गीता से लिया गया है. भारतीय तटरक्षक बल का ध्येय
वाक्य “वयं रक्षामः” बाल्मीकि रामायण से लिया गया है. रिसर्च एन्ड एनालिसिस विंग
(रॉ) का ध्येय वाक्य “धर्मो रक्षति रक्षितः” मनुस्मृति से लिया गया
है.
लोक तंत्र के पवित्र
मंदिर संसद भवन की बात करें तो वह तो ऐसे श्लोकों से पटा पड़ा है कुछ उदाहरण
देखिये:
संसद के मुख्य द्वार पर
लिखा है:-
“लो ३ कद्धारमपावा ३ र्ण ३३
पश्येम त्वां वयं वेरा
३३३३३
(हुं ३ आ) ३३ ज्या ३ यो ३
आ ३२१११ इति।“
यह छान्द्योग्योप्निषद से
लिया गया है जिसका अर्थ है-
"द्वार खोल दो, लोगों के हित में ,
और दिखा दो झांकी।
जिससे प्राप्ति हो जाए,
सार्वभौम प्रभुता
की।"
लोक सभा अध्यक्ष के आसन
के ऊपर अंकित है.
“ धर्मचक्र-प्रवर्तनाय” अर्थात- धर्म परायणता के चक्रावर्तन के लिए.
संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष के द्वार के ऊपर
अंकित है:-
“अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव
कुटुम्बकम्।।“
यह पंचतंत्र से लिया गया
है और इसका हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह है :-
"यह मेरा है , वह पराया है , ऐसा सोचना संकुचित विचार
है। उदारचित्त वालों के लिए , सम्पूर्ण विश्व ही परिवार
है।"
आगे जाने पर लिफ्ट संख्या
1 के निकटवर्ती गुम्बद पर
महाभारत का एक श्लोक अंकित है :-
“न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा,
वृद्धा न ते ये न वदन्ति
धर्मम्।
धर्म स नो यत्र न
सत्यमस्ति,
सत्यं न
तद्यच्छलमभ्युपैति।।“
इसका हिन्दी अनुवाद इस
प्रकार है:-
"वह सभा नहीं है जिसमें वृद्ध न हों,
वे वृद्ध नहीं है जो
धर्मानुसार न बोलें,
जहां सत्य न हो वह धर्म
नहीं है,
जिसमें छल हो वह सत्य
नहीं है।"
ये तो कुछ उदाहरण मात्र
हैं ऐसे अनगिनत संस्थान और संगठन हैं जो या जिनका ध्येय वाक्य भारत की
धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा हो सकता है. लेकिन मेरे देखे ऐसी किसी याचिका को ग्रहण
करने से पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं का ध्येय वाक्य एक बार देख लेना
चाहिए था जो है “यतो धर्मस्ततो जय:” यह भी हिन्दुओं के ही ग्रन्थ महाभारत से ही लिया गया है.
जहां एक ओर दुनिया इन
श्लोकों और ज्ञान की मुरीद हो रही है (गूगल करके देखें) दुनियां भर में जापान से
लेकर अमेरिका तक और चाइना से लेकर स्पेन तक स्कूलों में संस्कृत सीखाया और पढ़ाया
जा रहा है . रूस में तो भगवद गीता स्कूलों में अनिवार्य विषय की तरह शामिल किया जा
चुका है और हम हैं की निरी मूर्खताओं में पड़े हुए हैं.
सुप्रीम कोर्ट को ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने से बचना चाहिए जिससे जनता के समय और पैसे की बर्बादी हो. कुछ लोग केवल ओछी लोकप्रियता के ऐसे मामले कोर्ट तक लेकर आते हैं.
मेरा सोचना यह है कि क्या
सुप्रीम कोर्ट को ऐसी बातों पर ध्यान देना चाहिए? क्या ये बात देश और समाज हित में इतने
महत्वपूर्ण हैं ?? क्या इन श्लोकों को न गाने से मानव जीवन में परिवर्तन हो
जाएगा??
इंतज़ार करते हैं उच्चतम
न्यायलय के इस मुद्दे पर निर्णय का.
- मनमोहन जोशी
- अपने विचारों से कमेंट बॉक्स में अवगत कराएं
29 टिप्पणियां:
यथार्थ लिखा है, गुरुदेव 🙏
भारतीय संस्कृति को मिटाने की साजिश चल रही है, पर मेरे लिए व्यक्तिगत हर्ष का विषय यह है कि आप जैसे बुद्धिजीवी इस विषय पर जागरुक हैं।
आदरणीय अग्रज हम सब को अपनी गौरवशाली संसकृति को संजोये रखने के लिए एकजुट होने की आवश्यकता है। आपके श्रेष्ठ विचारों के लिए हृदय से धन्यवाद����।
लोकसभा स्पीकर की कुर्सी के पीछे लिखा धर्म चक्र प्रवर्तनाय वो भी गलत है ? न्याय की हत्या दिन प्रतिदिन की जा रही है बोलने वालो को न्यायालय की अवमानना झेलना पढ़ सकता है कोर्ट मे इतने मामले विचारित है लेकिन उनको सुनना वही है फालतू के.... आगे लिखना कठिन है.... सब देख रहे है बोलना कोई नहीं चाहता
मुझे तो यह समझ मे नही आता कि इतने धार्मिक मुद्दे है जो पहले से पड़े पड़े न्याय की राह देख रहे है उनको भूल के एक और मुद्दा ले आये। अभी हाल ही में लोयोला कॉलेज में हुई प्रदर्शनी में जो हिन्दू देवी देवताओं की शर्मनाक तस्वीर लगायी गयी उन्हें सिर्फ माफी मांगने से सब ठीक हो गया, और अगर यही काम किसी अन्य धर्म के साथ होता तब मामला ही कुछ और होता। इतने संगीन मुद्दे है और जिनके आंकड़े भी इतने आश्चर्यजनक है, और जिनपर देश की जनता उच्चतम न्यायालय से आस लगाए बैठी है कि वह उसपर जरूर निर्णय लेगी लेकिन वहाँ पर सिर्फ यह सुनने को मिलता है अगली सुनवाई इतने तारीख को होगी। शायद उच्चतम न्यायालय यह सिद्ध करने पर तुला है कि भइया कानून तो अंधा होता है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपने इस विषय पर लेख लिखा।
अति सुंदर लेखनी सर
हमें गर्व है कि हमने आप से शिक्षा प्राप्त की बिल्कुल सही विश्लेषण....
"तरसो मा ज्योतिर्गमय" इस सुत्र को हमारे पूर्वज सहस्त्राब्दियो तक "बबडते" आये थे फिर भी कभी उजाले की ओर नहीं जा पाये, तो फिर इस भाववाक्य से इतना "अंधालगाव" क्यों?!
क्या इस भाववाक्य से शुरु होती प्रार्थना के पश्चात होनेवाली पढ़ाई से "लथबथ" हुआ विद्यार्थी सरकारी तंत्रमें घूंसे, व्यापारी बने, उद्योगपति बने, भाडे का लेखापाल, इंजीनियर, या राजनेता, राजद्वारी, या मीडिया या तो न्याय पालक बनेगा तो भ्रष्टाचारी नहीं होगा इसकी खातरी है?!
दया कीजिए भाई देश पर, अगर किसीने कोई बात को लेकर मुद्दा बनाया तो बनाया, आप उसमें पेट्रोल डाल कर आग को मत बुलाईए, आप जिसे सद्, ज्योति, या विद्या जो भी कहते है उससे तो केवल देशके शायद दस फीसदी लोग लाभ पाते आये और अब तकमें पा रहे है, बाकीके हम जैसे नब्बे प्रतिशत आज भी आपकी उसी ही सद्गमयता, ज्योति, और विद्या के पिछवाड़े के वही अंधेरोमें अपना जीवन निर्वहन कर रहे है, इस लिए देश को भड़का कर उस भडक की आग पर अपनी कोई "रोटीया" पकाने की साजिश ना करो, क्युं की हमे तो हर रोज खाने के लिए हर रोज कमाना है, और हमे मिलने वाली वही रोटी हम हमारे यहि सहस्त्राब्दियो पुराने अंधेरोमें बैठकर खाये या आपकी उपनिषदीय सुत्रपाति ऊर्जा की ओर देखकर खाये क्या तफावत बनने वाला होगा??!!!
Bahut achha lekh hai...
ऐसी याचिका धर्म निरपेक्षता की आड़ में भारत की एकता और अखंडता पर सीधा प्रहार करती है......... उच्चतम न्यायालय से यही उम्मीद है की वो सबों के हित में निर्णय ले............
And your blog is really outstanding
The more I read ur blogs, the deeper becomes the respect 4 u........
Thank u sir
तथास्तु देवराज।।
Thanx a lot for your valuable comment...
शुक्रिया।। जुड़े रहें पढ़ते रहें।।
Stay blessed dear Abhishek...
Thanx for your valuable comment..
खूब खुश रहो नंदकिशोर ।। सोचते रहो। पढ़ते रहो। लिखते रहो।
आप और हम सोच भी रहे हैं और बोल भी रहे हैं।। बदलाव आएगा। ज़रूर आएगा।।
शुक्रिया।।
शुभाशीष।।
यह पढ़कर मुझे बहुत प्रसनता हुई कि कोई तो है जो देश के बारे में सोच रहा है वरना आजकल भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास भी समय नही है आपकी बातों से मेरे व्यकितत्व पर गहरा प्रभाव पड़ा है मैं खुशकिस्मत हूँ जो कि मुझे आप जैसा टीचर,बड़ा भाई और एक दोस्त मिला आप ऐसे ही हमेसा खुश रहिए और हमे अच्छी अच्छी बातें सिखाते रहिए और हमे हँसाते रहिए बहुत बहुत धन्यबाद मेरे प्यारे सर मनमोहन जोशी जी
न्यायपालिका पिछले कुछ वर्षों से अनावश्यक विषयों पर हस्तक्षेप करती है वजाय महत्वपूर्ण लम्बित मामलों के सुनवाई में। बहुत बहुत धन्यवाद इतनी रोचक जानकारी देने आपका लेख अदुतीय है ।
Hum apni jimmedari nibhayenge desh ki akhandata ki raksha hum sab ko krni hai pratyek bhartiya ko apni sanskriti pr garv krna chahiye .
Sir ap bahut achcha likte hai iswer apki kalam ko takat de .facts ka upyog apki lekhni ko valuable bana deti hai
o my god , blog is perfect answer to petitioner . waiting for sc decision.
thanks for enlightening us .
see you in next blog , have a nice day
perfect sir , waiting to sc decision
thanks
sir your biggest fan after seeing your dairy ,, and this is true hinduism is not a religon it is a routine ..
Bohot khub
श्री जोशी सर जी आपको मेरा शत शत नमन. जो आम आदमी कानून की किताबे खरीद नही सकता, और उन्हे पढकर समज नही सकता ऐसे हजारो लोगों के लिए हे आपके विदिक शिक्षा व्हिडिओज बहुत उपयोगी हो सकते है .आपका कार्य सामाजिक और बहुत ही प्रशंसनीय है .आपके कार्य के लिए खूप खूप शुभकामनाये देता हु. कृपया हमे इस जानकारी चाहिए कि लोक अदालत में जो दावे निपटाए या बंद किये जाते है ,उनको उपरी अदालत मे क्या नही अपील किया जा सकता है और वो कौन से कानून कि तहत चलाए जाते है. कृपया हो सके तो इसके बारे मे आप व्हिडिओ के माध्यम से प्लीज
बताये.
राजेंद्र कुंडलिक कदम उस्मानाबाद महाराष्ट्र.
आपने 100% सही बात कही है की हमारी संस्कृति को हानि पहुचाने का प्रयास बहुत ज्यादा और बहुत लंबे समय से किया जा रहा है । और यह कहना की वो असफल रहे भी गलत होगा बहुत हद तक वो लोग सफल हो रहे हैं । वो लोग सनातन के खिलाफ हैं वो अपना काम अथक कर रहे हैं । लेकिन जो सनातनी होने की दुहाई देते हैं उनसे रोष है कि वो तर्क कि गहराइयों मे उसे समझ ना सके और भारतियों को टूटने दे रहे अपने बच्चो को टूटने दे रहे हैं । या ना टूटे इस के लिए आक्रामक हो रहे । अफसोस
एक टिप्पणी भेजें