बहुत होते हैं यारो चार दिन भी
ख़ुदा को पा गया वायज़, मगर है
ज़रूरत आदमी को आदमी की
मिला हूँ मुस्कुरा कर उससे हर बार
मगर आँखों में भी थी कुछ नमी-सी"
Read the rich thoughts and life experience of renowned law scholar, social media influencer and the most in demand law educator of India "MJ Sir"
ग़ज़लों की दुनिया से शुरूआती मुलाक़ात घर पर ही हुई . बड़े भाई साहब जगजीत सिंह को सुनते थे और आते जाते कानों में ग़ज़ल पड़ती रहती थी ।। लेकिन पहले पहल जिस ग़ज़ल को ठीक से सूना और समझा वो मेंहदी हसन साहब की गाई हुई ग़ज़ल थी जिसे अहमद फ़राज़ साहब ने लिखा था.... बोल थे-
"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आआ
फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ
माना के मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिये आ
जैसे तुझे आते हैं, न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिये आ "
एक-एक शेर एक-एक मिसरा अद्भुत।।
ग़ज़ल क्या है? इस विषय पर बड़ी चर्चा हो सकती है लेकिन जैसा कि किसी शायर ने कहा है... कही गई बात का सीधे दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है. यानी ग़ज़ल केवल शिल्प नहीं है इसमें कथ्य का होना भी ज़रूरी है. तकनीकी रूप से ग़ज़ल काव्य की वह विधा है जिसका हर शे'र अपने आप में पूर्ण होता है । हर शे'र का अपना अलग विषय हो सकता है. लेकिन एक विषय पर भी गज़ल कही जा सकती है जिसे ग़ज़ले- मुसल्सल कहते हैं।
आज इस आलेख के माध्यम से हम ग़ज़ल की बारीकियों को समझने का प्रयास करते हैं वैसे मैं पहले ही ये स्पष्ट कर दूं कि मैं न तो अरूज़ी हूं (ग़ज़ल के तमाम असूलों की जानकारी को अरूज़ कहते हैं और जानने वाले अरूज़ी) और न ही ग़ज़लकार हूँ.....हाँ इस बात का दावा ज़रूर कर सकता हूँ कि मै साहित्य की इस विधा का प्रेमी हूँ... जगजीत सिंह से लेकर महँदी हसन तक और ग़ुलाम अली से लेकर चंदन दास तक को सुना है और गुना है। जगजीत सिंह , पकज उधास और अहमद मोहम्मद हुसैन को सामने बैठकर सुनने का भी अवसर मिला है। इन दिनों मल्लिका ए ग़ज़ल, बेगम अख्तर साहिबा की दुनियां में हूँ ।।
बहरहाल ग़ज़ल को समझने के लिये इसके अंगों को जानना ज़रूरी है... अगर आपको कुछ बारीकियों के साथ , राग , ताल और शब्द के अर्थ भी पता हों तो ग़ज़ल सुनने का मज़ा कई गुना हो जाता है ।। कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली -
मतला: ग़ज़ल के पहले शे'र को मतला कहते हैं. मतले के दोनो मिसरों मे काफ़िया और रदीफ़ का इस्तेमाल किया जाता है।
मक़्ता : ग़ज़ल का अंतिम शे'र जिसमे शायर अपना उपनाम(तखल्लुस) लिखता है मक़्ता कहलाता है।
शे'र: दो पंक्तियों से मिलकर एक शे'र बनता है। दो पंक्तियों में ही अगर पूरी बात इस तरह कह दी जाये कि तकनीकी रूप से दोनों पदों के वज़्न समान हों तो कहा जाता है कि शेर हुआ।
मिसरा: शे'र कि पंक्पतियाँ स्वतंत्र रूप से मिसरा कहलाती हैं. शे'र की पहली पंक्ति 'मिसरा ऊला' और दूसरी 'मिसरा सानी' कहलाती है । मिसरा ऊला पुन: दो भागों मे विभक्त होती है प्रथमार्ध को मुख्य (सदर) और उत्तरार्ध को दिशा (उरूज) कहा जाता है। "मिसरा सानी" के भी दो भाग होते हैं। प्रथम भाग को आरंभिक (इब्तिदा) तथा द्वितीय भाग को अंतिका (ज़र्ब) कहते हैं। अर्थात दो मिसरे ('मिसरा उला' + 'मिसरा सानी') मिल कर एक शे'र बनते हैं।
कता : चार मिसरों से मिलकर एक क़ता बनता है जो एक ही विषय पर हों।
रदीफ : रदीफ पूरी ग़ज़ल में स्थिर रहती है। ये एक या दो शब्दों से मिल कर बनती है और मतले मे दो बार मिसरे के अंत मे और शे'र मे दूसरे मिसरे के अंत मे ये पूरी ग़ज़ल मे प्रयुक्त हो कर एक जैसी ही रहती है बदलती नहीं। ज़रूरूई नहीं की हर ग़ज़ल में रदीफ़ हो बिना रदीफ़ के भी ग़ज़ल हो सकती है जिसे गैर-मरद्दफ़ ग़ज़ल कहा जाता है. एक प्यारी सी रदीफ़ वाली ग़ज़ल देखें जिसे अमजद इस्लाम अमजद साहब ने लिखा है-
"कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
वो तिरे नसीब की बारिशें किसी और छत पे बरस गईं
दिल-ए-बे-ख़बर मिरी बात सुन उसे भूल जा उसे भूल जा"
इस ग़ज़ल में "उसे भूल जा" रदीफ़ का प्रयोग किया गया है।।
काफ़िया : इसे एक तरह का तुक कह सकते हैं ।। जिसमें मतले के दोनों मिसरों के आखिरी अक्षर और हर शेर का आखिरी एकाधिक अक्षर समान होते हैं जैसे बशीर बद्र साहब की एक प्यारी ग़ज़ल देखें:
"सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है
मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है
बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है
ज़िंदगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है"
इसमें "डर", "सफर", "घर" , "सर" ये सब काफिये हैं और "लगता है" रदीफ़ है
बहर: इसे एक तरह का फ़ारसी मीटर, ताल या लय कह सकते हैं जो अरकानों की एक विशेष तरक़ीब से बनती है.
अरकान: फ़ारसी भाषाविदों ने आठ अरकान ढूँढे हैं और उनको एक नाम दिया है जो आगे चलकर बहरों का आधार बने। रुक्न का बहुबचन है अरकान.बहरॊ की लम्बाई या वज़्न इन्ही से मापा जाता है।
क्रमश:.......
PS: रात के एक बजे गए हैं इसे लिखते हुए ।। कुछ करेक्शन्स करके सुबह ही पोस्ट करूँगा... पढ़ कर कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं कि आप इस विषय पर और पढ़ना चाहेंगे क्या।। इसके तीन चार भाग और लिखने का मन है।।
कांगेर घाटी राष्ट्रीयउद्यान का नाम कांगेर नदी के नाम पर पड़ा है, जो इसकी लंबाई में बहती है। कांगेर घाटी लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैला है । जिसने 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान की स्थिति प्राप्त की। ऊँचे पहाड़ , गहरी घाटियाँ, विशाल पेड़ और मौसमी जंगली फूलों एवं वन्यजीवन की विभिन्न प्रजातियों के लिए यह अनुकूल जगह है ।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक मिश्रित नम पर्णपाती प्रकार के वनों का एक विशिष्ट मिश्रण है जिसमे साल ,सागौन , टीक और बांस के पेड़ बहुतायत में है। यहाँ की सबसे लोकप्रिय पक्षी की प्रजाति जो अपनी मानव आवाज के साथ सभी को मंत्रमुग्ध करती हैं वह बस्तर मैना है। राज्य पक्षी, बस्तर मैना, एक प्रकार का हिल माइन (ग्रुकुला धर्मियोसा) है, जो मानव आवाज का अनुकरण करने में सक्षम है। जंगल दोनों प्रवासी और निवासी पक्षियों का घर है।
वन्यजीवन और पौधों के अलावा, यह राष्ट्रीय उद्यान तीन असाधारण गुफाओं का घर है- कुटुम्बसर, कैलाश और दंडक-स्टेलेग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स के आश्चर्यजनक भूगर्भीय संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय उद्यान ड्रिपस्टोन और फ्लोस्टोन के साथ भूमिगत चूना पत्थर की गुफाओं की उपस्थिति के लिए जाना जाता है। स्टेलेग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स का गठन अभी भी बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय उद्यान में गुफा, वन्यजीवन की विभिन्न प्रजातियों के लिए आश्रय प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय उद्यान के पूर्वी हिस्से में स्थित भैंसाधार में रेतीले तट देखे जाते हैं जहां मगरमच्छ (क्रोकोड्लस पालस्ट्रिस) इसका उपयोग मूलभूत उद्देश्यों के लिए करते हैं।
बहरहाल हम बात कर रहे थे पिकनिक टू कैलाश के बारे में ।। तो हम सुबह समय पर निकल गए और गुफा भी घूम आए । लेकिन इससे पहले की गुफा से बाहर निकल कर मैदानी इलाके तक पहुंचते जहां हमें खाना पकाना और खाना था , तेज़ बारिश शुरू हो गई। हमारी गाड़ी जंगल के बीच फंस गई और हम सब बेतहाशा भीगने लगे ।
"ढलता सूरज , फैला जंगल, रस्ता गुम, हमसे पूछो कैसा आलम होता है? " *
हम घने जंगल मे एक दिशा में चलते रहे । शाम घिर आई थी और जल्द ही रात होने वाली थी। हमने दिन भर से कुछ भी नहीं खाया था और पूरी तरह से भीग गए थे लेकिन चल रहे थे । ये नेशनल पार्क जंगली जानवरों का घर था और हमारे साथ लड़कियां और महिलाएं भी थीं।।
रात घिरते ही अचानक घने जंगल के बीच हमें एक झोपड़ी दिखाई देती है।। हम सब उसमें समा जाते हैं और ये जानकर अच्छा लगता है कि ड्राइवर ने गाड़ी से डीज़ल का कंटेनर निकाल कर रख लिया था और हम साथ कुछ पैक्ड स्नेक्स भी ले आये थे।। बड़ी मुश्किल से आग जलाई जाती है।। रात के 10 बज रहे हैं बारिश थमने का नाम नहीं ले रही । कुछ लोग बीमार हो गए हैं बुखार और उल्टी।। लग रहा था अब हम लोग बचेंगे नहीं । सबकी बात सुनते हुए आग तापते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।।
उस समय मोबाईल फ़ोन नहीं हुआ करते थे कि किसी को फ़ोन करके मदद मंगा सकें । लग रहा था हम लोग अब बचेंगे नहीं ॥ कई तरह के ख़्याल दिमाग़ में दौड़ रहे थे मैं सोच रहा था काश कहीं से पापा आ जाएँ, वो मेरे सूपर हीरो जो थे लगता था कुछ भी कर सकते हैं ॥ और ये सब सोचते सोचते नींद आ गई॥
सपने में देखा की पापा कई गाड़ियाँ लेकर हमें ढूँढने निकल पड़े हैं … और हमें ढूँढ भी लिया है मेरे कानों में ज़ोर से उनकी आवाज़ पड़ी । एक दमदार आवाज़ जिसमें प्रेम की पुकार थी । झोपड़ी की गीली ज़मीन पर लेटा हुआ मैं आँख खोलता हूँ तो क्या पाता हूँ कि रात के अंतिम प्रहर में पापा सामने खड़े हैं मैं उनसे लिपट जाता हूँ ॥ पापा बहुत सारा कुछ खाने का लाए हैं चोकलेट मिठाइयाँ, केक , ब्रेड वग़ैरह वग़ैरह और ये अब हक़ीक़त में हो रहा है .. हाँ ये सपना नहीं ॥ पापा कई गाड़ियों में हमें बचाने आए थे हम सब बच गए हैं ॥
और एक शानदार पिकनिक समाप्त होती है ॥
✍️MJ