29 दिसंबर 2024
खैरूआ सरकार के दर्शन करके हम लोग कल शाम को ही लौट आए थे प्रिय सौरभ अपने कुछ मित्रों के साथ मिलने आए हुए हैं. वे यहाँ से कुछ सौ किलोमीटर दूर रहते हैं। जानकारी मिलते ही वो अपने मित्रों के साथ आ पहुँचे। अनमोल के घर पर सबको मिलने बुलाया। कुछ बातों मुलाक़ातों का दौर चला और फिर वो लोग रवाना हुए।
रात के 9:30 बजे प्रियांशु के पिताजी का आना हुआ। बेहद सौम्य और सरल व्यक्तित्व। पता चला कि वो छत्तीसगढ़ में भी रहे हैं। खाने की थाली लग गई है। अनमोल की मम्मी और बहन ने बड़े प्यार से खाना बनाया है.. खीर और कढ़ी के तो क्या ही कहने..
बातों-बातों में प्रियांशु के पिताजी ने कहा कि अघमर्षण कुंड ज़रूर जाइयेगा.. मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ये जानकर कि पांडव कालीन वो कुंड यहाँ रीवा से साठ किलोमीटर की दूरी पर ही है।
30 दिसंबर 2024
हम सुबह ही नहा धो कर निकल गए हैं अघमर्षण कुंड के लिए जो धारकुंडी आश्रम क्षेत्र में आता है.. सोचता हूँ यही वो रास्ते हैं जिनमें आज से हज़ारों वर्ष पहले पांडव भटक रहे थे। वनवास के दौरान, बारहवें वर्ष में वे इसी स्थान पर थे तब उन्होंने एक रोज़ प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश की। पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंप गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे। जलाशय के स्वामी यक्ष ने उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशाय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए।
अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें भी आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी दिया जिसे सुनकर यक्ष संतुष्ट हो गया।
महाभारत के वन पर्व में इसका विस्तृत वर्णन है यहाँ केवल कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दे रहा हूँ जिन्होंने मुझे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया है -
प्रश्न: मानव जीवन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: जीवन का उद्देश्य उस चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
प्रश्न: जन्म का कारण क्या है?
उत्तर: अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
प्रश्न: जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर: जिसने स्वयं को, उस आत्म तत्व को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
प्रश्न: संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर: संसार के दुःख का कारण लालच, स्वार्थ और भय हैं।
प्रश्न: तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर: ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
प्रश्न: क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
उत्तर: कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष।
प्रश्न: उसका (ईश्वर) स्वरूप क्या है?
उत्तर: वह सत्-चित्-आनन्द है, वह निराकार ही सभी रूपों में अपने आप को व्यक्त करता है।
प्रश्न: यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
उत्तर: वह अजन्मा अमृत और अकारण है।
प्रश्न: भाग्य क्या है?
उत्तर: हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है।
प्रश्न: सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर: सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
प्रश्न: चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर: इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।
प्रश्न: सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर: स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है।
प्रश्न: आसक्ति क्या है?
उत्तर: प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
प्रश्न: जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर: जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
प्रश्न: कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर: यौवन, धन और जीवन।
प्रश्न: स्वयं के सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
उत्तर: जो सब छोड़ने को तैयार हो।
यक्ष प्रश्न: भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर: वैराग्य से।
प्रश्न: मुक्त कौन है?
उत्तर: जो अज्ञान से परे है।
प्रश्न: अज्ञान क्या है?
उत्तर: आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
प्रश्न: वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
उत्तर: माया।
यक्ष प्रश्न: माया क्या है?
उत्तर: नाशवान जगत।
प्रश्न: परम सत्य क्या है?
उत्तर: ब्रह्म।…!
प्रश्नः मनुष्य का सच्चा साथ कौन देता है?
उत्तरः धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।
प्रश्न: स्थायित्व किसे कहते हैं? धैर्य क्या है? स्नान किसे कहते हैं? और दान का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर: ‘अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थायित्व है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ही धैर्य है। मनोमालिन्य का त्याग करना ही स्नान है और प्राणीमात्र की रक्षा का भाव ही वास्तव में दान है।’
प्रश्नः भूमि से महान क्या है?
उत्तरः संतान को कोख़ में धरने वाली मां, भूमि से भी महान होती है।
प्रश्नः आकाश से भी ऊंचा कौन है?
उत्तरः पिता।
प्रश्नः हवा से भी तेज चलने वाला कौन है?
उत्तरः मन।
प्रश्नः घास से भी तुच्छ चीज क्या है?
उत्तरः चिंता।
प्रश्न : विदेश में साथ किसे ले जाना चाहिए?
उत्तरः विद्या को ।
प्रश्न : किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?
उत्तरः अहंभाव के छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है।
प्रश्न : किस चीज को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
उत्तरः लालच।
प्रश्न : संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?
उत्तरः हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान कल के सपने देखता है और भविष्य की आशा करता है। यही महान आश्चर्य है।
प्रश्नः ऐसा कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन करके बुद्धिमान बना जा सकता है?
उत्तरः ऐसा कोई शास्त्र नहीं है। स्वयं के अनुभव व महान गुरुओं की संगति ही मनुष्य के बुद्धिमान बनने के साधन हैं।
युधिष्ठिर के विद्वत्तापूर्ण उत्तरों को सुन कर यक्ष प्रसन्न हुए और सभी भाइयों को जीवन प्रदान किया….
अद्भुत ऊर्जावान इस क्षेत्र में हमारा होना और भ्रमण करना इस जीवन की एक उपलब्धि ही कही जाए तो अतिशियोक्ति नहीं होगी।
अस्तु !
✍️एमजे