Diary Ke Panne

रविवार, 5 जनवरी 2025

यक्ष प्रश्न….

 

29 दिसंबर 2024

खैरूआ सरकार के दर्शन करके हम लोग कल शाम को ही लौट आए थे प्रिय सौरभ अपने कुछ मित्रों के साथ मिलने आए हुए हैं. वे यहाँ से कुछ सौ किलोमीटर दूर रहते हैं। जानकारी मिलते ही वो अपने मित्रों के साथ आ पहुँचे। अनमोल के घर पर सबको मिलने बुलाया। कुछ बातों मुलाक़ातों का दौर चला और फिर वो लोग रवाना हुए।

रात के 9:30 बजे प्रियांशु के पिताजी का आना हुआ। बेहद सौम्य और सरल व्यक्तित्व। पता चला कि वो छत्तीसगढ़ में भी रहे हैं। खाने की थाली लग गई है। अनमोल की मम्मी और बहन ने बड़े प्यार से खाना बनाया है.. खीर और कढ़ी के तो क्या ही कहने.. 



बातों-बातों में प्रियांशु के पिताजी ने कहा कि अघमर्षण कुंड ज़रूर जाइयेगा.. मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ये जानकर कि पांडव कालीन वो कुंड यहाँ रीवा से साठ किलोमीटर की दूरी पर ही है।


30 दिसंबर 2024 

हम सुबह ही नहा धो कर निकल गए हैं अघमर्षण कुंड के लिए जो धारकुंडी आश्रम क्षेत्र में आता है.. सोचता हूँ यही वो रास्ते हैं जिनमें आज से हज़ारों वर्ष पहले पांडव भटक रहे थे। वनवास के दौरान, बारहवें वर्ष में वे इसी स्थान पर थे तब उन्होंने एक रोज़ प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश की। पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंप गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे। जलाशय के स्वामी यक्ष ने उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशाय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए।    


अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें भी आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी दिया जिसे सुनकर यक्ष संतुष्ट हो गया। 


महाभारत के वन पर्व में इसका विस्तृत वर्णन है यहाँ केवल कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर दे रहा हूँ जिन्होंने मुझे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया है - 


प्रश्न: मानव जीवन का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: जीवन का उद्देश्य उस चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। 

प्रश्न: जन्म का कारण क्या है?
उत्तर: अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।

प्रश्न: जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर: जिसने स्वयं को, उस आत्म तत्व को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।

प्रश्न: संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर: संसार के दुःख का कारण लालच, स्वार्थ और भय हैं।

प्रश्न: तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर: ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।

प्रश्न: क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
उत्तर: कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष।

प्रश्न: उसका (ईश्वर) स्वरूप क्या है?
उत्तर: वह सत्-चित्-आनन्द है, वह निराकार ही सभी रूपों में अपने आप को व्यक्त करता है।

प्रश्न: यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
उत्तर: वह अजन्मा अमृत और अकारण है।

प्रश्न: भाग्य क्या है?
उत्तर: हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है।

प्रश्न: सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर: सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।

प्रश्न: चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर: इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।

प्रश्न: सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर: स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है।


प्रश्न: आसक्ति क्या है?
उत्तर: प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।

प्रश्न: जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर: जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।

प्रश्न: कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर: यौवन, धन और जीवन।

प्रश्न: स्वयं के  सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
उत्तर: जो सब छोड़ने को तैयार हो।

यक्ष प्रश्न: भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर:  वैराग्य से।

प्रश्न: मुक्त कौन है?
उत्तर: जो अज्ञान से परे है।

प्रश्न: अज्ञान क्या है?
उत्तर: आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।

प्रश्न: वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
उत्तर: माया।

यक्ष प्रश्न: माया क्या है?
उत्तर: नाशवान जगत।

प्रश्न:  परम सत्य क्या है?
उत्तर: ब्रह्म।…!

प्रश्नः मनुष्य का सच्चा साथ कौन देता है?

उत्तरः धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।

प्रश्न: स्थायित्व किसे कहते हैं? धैर्य क्या है? स्नान किसे कहते हैं? और दान का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:  ‘अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थायित्व है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ही धैर्य है। मनोमालिन्य का त्याग करना ही स्नान है और प्राणीमात्र की रक्षा का भाव ही वास्तव में दान है।’

प्रश्नः भूमि से महान क्या है?
उत्तरः संतान को कोख़ में धरने वाली मां, भूमि से भी महान होती है।

प्रश्नः आकाश से भी ऊंचा कौन है?
उत्तरः पिता।

प्रश्नः हवा से भी तेज चलने वाला कौन है?
उत्तरः मन।

प्रश्नः  घास से भी तुच्छ चीज क्या है?
उत्तरः चिंता।

प्रश्न : विदेश में साथ किसे ले जाना चाहिए?
उत्तरः विद्या को ।

प्रश्न : किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?
उत्तरः अहंभाव के छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है।


 प्रश्न : किस चीज को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
उत्तरः लालच।

प्रश्न : संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?
उत्तरः हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान कल के सपने देखता है और भविष्य की आशा करता है। यही महान आश्चर्य है।


प्रश्नः ऐसा कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन करके बुद्धिमान बना जा सकता है?
उत्तरः ऐसा कोई शास्त्र नहीं है। स्वयं के अनुभव व महान गुरुओं की संगति ही मनुष्य के बुद्धिमान बनने के साधन हैं। 


युधिष्ठिर के विद्वत्तापूर्ण उत्तरों को सुन कर यक्ष प्रसन्न हुए और सभी भाइयों को जीवन प्रदान किया…. 


अद्भुत ऊर्जावान इस क्षेत्र में हमारा होना और भ्रमण करना इस जीवन  की एक उपलब्धि ही कही जाए तो अतिशियोक्ति नहीं होगी। 


अस्तु !


✍️एमजे 

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

खैरूआ सरकार..


खैरूआ सरकार 🙏

पूर्वा फॉल 

प्रिय सत्यम एवं अन्य भक्तगणों के साथ ♥️

28 दिसंबर 2024

रात 2:30 बजे ही बनारस से रीवा वापस आये हैं, अंग्रेजों के अनुसार प्रातः काल में और सनातनियों के हिसाब से ब्रह्मा मुहूर्त में. 3:00 बजे सोया होऊंगा और लो सुबह छ: बजे ही नींद खुल गई. 


नीचे टहल आया और आते वक्त चाय भी भेजने को बोल आया हूँ. यूँ तो चाय पीना मेरी आदत में नहीं रहा लेकिन पिछले कई वर्षों से सुबह की चाय घर पर मैं ही बनाता हूँ.. 


चाय आ गई है और गर्म चाय के प्याले का आनंद लेते हुए मैं ये ब्लॉग लिख रहा हूँ… कल के थकान भरे दिन के बाद आज मैंने सोचा है किसी को भी नींद से नहीं जगाना है. 


सुबह के आठ बज रहे हैं मैं ब्रेकफास्ट कर आया हूँ. हम रीवा के लैंडमार्क प्लाजा नाम के आलीशान होटल में रुके हुए हैं. होटल बहुत ही बढ़िया है, यहाँ का खाना शानदार है और रेस्तरां की मैनेजर ऋतु एक बेहतरीन मैनेजर है. चाय तो वो मेरे मन का बना ही रही है खाना और नाश्ता भी शानदार है. शुरुआत में कुछ समस्याएं आईं थी लेकिन जीएम साहब की तत्परता और फ्रंट ऑफिस मैनेजर गौरव की विनम्रता से सब कुछ सही हो गया. 


अनमोल को फ़ोन लगा कर पूछता हूँ आज का क्या प्लान है?

 अनमोल - आज हमें खैरुआ सरकार के दर्शन को जाना है. रास्ते में पूर्वा फाल पड़ेगा वहाँ रुकते हुए जायेंगे. 

 मैं - ओके हम 1:00 बजे तक तैयार रहेंगे.


दोपहर के 1:00 बज रहे हैं.. अनमोल आ गया है, वो बताता है कि आज प्रियांशु को ऑफिस में कुछ काम है इसीलिए वो नहीं आ पाया.


हम तिवारी जी के यहाँ से समोसे का आनंद लेते हुए पहले पूर्वा फाल पहुंचते हैं.. ये एक अद्भुत प्राकृतिक स्थान है.. mesmerisingly beautiful… पूर्वा फाल इतनी खूबसूरत जगह है कि इसकी ख़ूबसूरती पर मैं अलग से एक ब्लॉग लिख सकता हूँ. बहरहाल धुँध के चलते हम इसका पूरा मज़ा नहीं ले सके.. फिर आयेंगे पूर्वा.


दोपहर के 2:00 बज रहे हैं और हम निकल गए हैं खैरूआ सरकार के दर्शन के लिए. यह सतना जिले के अंतर्गत नागौद से कुछेक किलोमीटर दूर प्रकृति की गोद में बसा स्वयंभू हनुमान जी का एक मंदिर है. तिवारी परिवार यहाँ पर लगभग तीन सौ वर्षों से सेवारत हैं… इस परिवार की वर्तमान पीढ़ी के महंत सत्यम तिवारी लॉ ग्रेजुएट हैं और मेरे प्रिय हैं.. सत्यम ने भव्य पूजन का आयोजन किया है. अद्भुत ऊर्जा का केंद्र यह क्षेत्र हनुमत साधकों के लिए अप्रतिम है. पूजन के दौरान अपने भीतर मैं अद्भुत ऊर्जा का संचार महसूस करता हूँ और श्रीमती जी की आँखों से अविरल गंगा की धारा बहने लगती है. अनमोल, हनु को गोद में लिए हुए है और हम अब ऊर्जा के एक दूसरे ही आयाम मैं तैर रहे हैं.


अद्भुत, अप्रतिम, अहा !!


क्रमशः…. 

बुधवार, 1 जनवरी 2025

दास्ताँ कहते कहते…


Banaras 

Pryagraj 
चित्र: गूगल से साभार 
27 दिसंबर

रात के 10 बज रहे हैं. प्रयाग राज में रिया, राहुल, महेंद्र और अन्य मित्र इंतज़ार कर रहे हैं.. इंतज़ार करवाना और करना इन दोनों कामों से मुझे नफ़रत है. आशुफ़्ता ने कहा भी है - 

“हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का

उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे ॥”


हम वादा तो नहीं भूले लेकिन व्यस्तताओं के चलते सारे वादे पूरे भी नहीं कर पाये. अब प्रयागराज जाना संभव नहीं 8:00 बजे ही मित्रों को सूचना दे दी थी कि हम नहीं आ पाएंगे. 


प्रयागराज (जिसे इलाहाबाद नाम से भी जाना जाता है) उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर है. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि 1575 में इसका दौरा करने के बाद, अकबर इस स्थान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने एक किले के निर्माण का आदेश दिया और 1584 तक इसका नाम अल्लाहबास रखा, बाद में शाहजहाँ के अधीन इसे बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया. यह जिले का मुख्यालय है और हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ भी है. 


अक्टूबर 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस जगह का नाम बदलकर पुनः प्रयागराज कर दिया. मान्यता है कि यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्म ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था. इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और 'याग' अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा . इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु हैं और वे यहाँ वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं. हर बारह वर्ष में यहाँ कुंभ का मेला सजता है जो इस बार जनवरी 2025 में ही होना तय है.


रात में काल भैरव के दर्शन करने में देरी हुई और भीड़ के चलते हम देर से निकल पाये.. 


सोचता हूँ बनारस इकलौता शहर है जहाँ जीवन और मृत्यु साथ साथ चलते है. "यहाँ एक तरफ दशाश्वमेध पर जीवन और दूसरी तरफ मणिकर्णिका पर मृत्यु दोनों को साथ साथ चलते हुए देखना संभव है ".


महाभारत काल में उल्लेख मिलता है कि काशी भारत के समृद्ध जनपदों में से एक था. भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अम्बा, अंबिका और अम्बालिका का अपहरण किया था. इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर  की शत्रुता हो गई. कर्ण ने भी दुर्योधन के लिये काशी राजकुमारी का बलपूर्वक अपहरण किया था, जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे. कालांतर में गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को तबाह कर दिया, तब पाण्डवों के वंशज वर्तमान प्रयागराज में यमुना किनारे कौशांबी में नई राजधानी बनाकर बस गए थे उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर वत्स का अधिकार हो गया था.


बहरहाल गाड़ी अनमोल चला रहा है और रात के दो बज कर तीस मिनट हो रहे हैं शानदार ठंड और धुंध के बीच हम वापस रीवा लौटे हैं.. इस यात्रा को बेहद सफल कहा जाये तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी बस एक ही कसक दिल में रह गई की सभी मित्रों से मिलना नहीं हो पाया.. अब अगली बार ज़रूर ध्यान रखूँगा कि बैक टू बैक इतने सारे प्लान नहीं बनाने हैं.


क्रमशः…

बासा करो बनारस में…

27 दिसंबर ।। सुबह 7:30 बजे 






















सुबह के ठीक साढ़े सात बज रहे हैं.. हम रीवा से निकल चुके हैं वाराणसी के लिए.. प्लानिंग ऐसी है कि 11:30 तक हम बनारस पहुँचेंगे सीधे काशी विश्वनाथ के दर्शन करेंगे. 1:00 बजे से 3:00 बजे तक एक बुक शॉप में बुक साइनिंग सेरेमनी का आयोजन किया गया है. 3:00 बजे से पाँच बजे तक कुछ मित्रों से मिलने और थोड़ी शॉपिंग करने का प्लान है 5:00 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे तक अस्सी घाट पर विशेष गंगा आरती में शामिल होने का प्लान है. ये प्लानिंग बनाई है मित्र विनीत और रवि ने..


बनारस पहुंचते ही मुझे समझ आ गया था कि ये प्लानिंग काम में नहीं आने वाली…  कार मैं ही ड्राइव कर रहा था. अनायास ही अष्टभुजा शुक्ल याद आ गए. बनारस का परिचय करवाते हुए वो लिखते हैं- 


ठगों से ठगड़ी में

संतों से सधुक्कड़ी में

लोहे से पानी में

अँग्रेज़ों से अँग्रेज़ी में

पंडितों से संस्कृत में

बौद्धों से पालि में

पंडों से पंडई

गुंडों से गुंडई में

और 

निवासियों से भोजपुरी में

बतियाता हुआ यह बनारस है…


 बनारस पहुँचते ही हमने जीपीएस से अन्नपूर्णा मंदिर पार्किंग का पता जानना चाहा.. पता चला ये जगह केवल 80 मीटर दूर है लेकिन वहाँ पहुँचने में 27 मिनट लगेंगे. इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितना ज़ोरदार ट्रैफिक रहा होगा. विनीत भाई से जानकारी मिली कि उन्होंने अस्सी घाट पर कुछ मित्रों को पहले ही मिलने बुला लिया है.. कुछ मित्र बुक शॉप पर इंतज़ार कर रहे हैं..अभी दोपहर के बारह बजे और हम पहुँचे हैं अन्नपूर्णा मंदिर में.


अन्नपूर्णा मंदिर के महंत जी से मिलना अद्भुत रहा. ये मंदिर अपने आप में अलौकिक है. माँ अन्नपूर्णा को तीनों लोकों की माता माना जाता है… कहा जाता है कि इन्‍होंने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था. इस मंदिर की दीवार पर कई चित्र लगे हुए हैं. एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई हैं. अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण में कुछ एक मूर्तियाँ स्थापित है, जिनमें माँ काली,शंकर पार्वती,और नरसिंह भगवान का मंदिर है. अन्नकूट महोत्सव पर माँ अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा का दर्शन एक दिन के लिए भक्तगण कर सकते हैं.


मैंने कहीं पढ़ा था कि जब आद्य शंकराचार्य सैकड़ों वर्ष पूर्व इस स्थान पर आए तो अनायास ही उनके मुख से निकल पड़ा -


नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी

निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।

प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥


इस स्थान पर ही उन्होंने अन्नपूर्णा स्तोत्र की रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी… अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती.


यहाँ से हम बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए मंदिर प्रांगण पर पहुँचे. अब दोपहर के एक बज चुके हैं कई सारे मित्र बुक साइनिंग सेरेमनी के लिए इंतज़ार कर रहे हैं जो इंतज़ार ही करते रह गए क्यूँकि मंदिर से निकलते हमको 3:00 बज गए हैं. ईश दर्शन के साथ ही मुख्य महंत और सीईओ से भी मिलना हुआ.. कई सारे और मित्र यहाँ भी मिल गए जिनके साथ मुलाक़ात की, फोटो और सेल्फ़ीज़ भी ली गईं.


शाम के 4:00 बज हम बोट से हम लोग अस्सी घाट पहुँचे पता चला यहाँ लगभग ढाई लाख लोग आज पहुँचे हुए हैं गंगा आरती और दर्शन के लिए…


अस्सी घाट, का सही उच्चारण असीघाट है यह गंगा के बायें तट पर उत्तर से दक्षिण फैली घाटों की शृंखला में सबसे दक्षिण की ओर का अंतिम घाट है. इसके पास कई मंदिर और अखाड़े हैं.


इसका नामकरण असी नामक प्राचीन नदी के गंगा के साथ संगम के स्थल होने के कारण हुआ है. पौराणिक कथा है कि युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद दुर्गा देवी ने दुर्गाकुंड के तट पर विश्राम किया था ओर यहीं अपनी असि यानी “तलवार” छोड़ दी थी जिसके गिरने से असी नदी उत्पन्न हुई. असी और गंगा का संगम विशेष रूप से पवित्र माना जाता है.. यहाँ प्राचीन काशी खंडोक्त संगमेश्वर महादेव का मंदिर है. अस्सी घाट काशी के पांच प्रमुख तीर्थों में से एक है.


यहाँ पहले से ही कई मित्र इंतज़ार कर रहे हैं पता चला कि नीति और उनका पूरा परिवार सुबह ग्यारह बजे से हमारे इंतज़ार में घाट पर ही हैं. मित्र अमित ने बताया कि वे दो दिनों से मिलने की प्रतीक्षा में थे. कई मित्रों से मिलना हुआ लेकिन ठीक से बात नहीं हो पाई क्यूंकि घाट पर तेज आवाज़ में भजन और आरती चल रही थी. भाई प्रशांत बजरंगी और अखिलेश से मिलना अद्भुत रहा.


गंगा सेवा समिति के अध्यक्ष और सदस्य गणों से सम्मानित होना ईश्वरीय कृपा से ही संभव है.. हमने गंगा पूजन किया और विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती में शामिल हुए… जिसके बाद हमने बाबा भैरव के दर्शन किए लाखों की भीड़ को छेड़ते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना और दर्शन पूजन कर पाना रवि भाई के कारण ही संभव हो पाया. सभी मित्रों का जितना शुक्रिया किया जाये उतना कम है.


बहरहाल यहाँ से निकलकर हमें प्रयागराज जाना है रिया और उनका परिवार वहाँ हमारा इंतज़ार जो कर रहे हैं…


क्रमशः….