रात के 10 बज रहे हैं. प्रयाग राज में रिया, राहुल, महेंद्र और अन्य मित्र इंतज़ार कर रहे हैं.. इंतज़ार करवाना और करना इन दोनों कामों से मुझे नफ़रत है. आशुफ़्ता ने कहा भी है -
“हमें भी आज ही करना था इंतिज़ार उस का
उसे भी आज ही सब वादे भूल जाने थे ॥”
हम वादा तो नहीं भूले लेकिन व्यस्तताओं के चलते सारे वादे पूरे भी नहीं कर पाये. अब प्रयागराज जाना संभव नहीं 8:00 बजे ही मित्रों को सूचना दे दी थी कि हम नहीं आ पाएंगे.
प्रयागराज (जिसे इलाहाबाद नाम से भी जाना जाता है) उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर है. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि 1575 में इसका दौरा करने के बाद, अकबर इस स्थान से इतना प्रभावित हुआ कि उसने एक किले के निर्माण का आदेश दिया और 1584 तक इसका नाम अल्लाहबास रखा, बाद में शाहजहाँ के अधीन इसे बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया. यह जिले का मुख्यालय है और हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ भी है.
अक्टूबर 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस जगह का नाम बदलकर पुनः प्रयागराज कर दिया. मान्यता है कि यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्म ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था. इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और 'याग' अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा . इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु हैं और वे यहाँ वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं. हर बारह वर्ष में यहाँ कुंभ का मेला सजता है जो इस बार जनवरी 2025 में ही होना तय है.
रात में काल भैरव के दर्शन करने में देरी हुई और भीड़ के चलते हम देर से निकल पाये..
सोचता हूँ बनारस इकलौता शहर है जहाँ जीवन और मृत्यु साथ साथ चलते है. "यहाँ एक तरफ दशाश्वमेध पर जीवन और दूसरी तरफ मणिकर्णिका पर मृत्यु दोनों को साथ साथ चलते हुए देखना संभव है ".
महाभारत काल में उल्लेख मिलता है कि काशी भारत के समृद्ध जनपदों में से एक था. भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों अम्बा, अंबिका और अम्बालिका का अपहरण किया था. इस अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई. कर्ण ने भी दुर्योधन के लिये काशी राजकुमारी का बलपूर्वक अपहरण किया था, जिस कारण काशी नरेश महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की तरफ से लड़े थे. कालांतर में गंगा की बाढ़ ने हस्तिनापुर को तबाह कर दिया, तब पाण्डवों के वंशज वर्तमान प्रयागराज में यमुना किनारे कौशांबी में नई राजधानी बनाकर बस गए थे उनका राज्य वत्स कहलाया और काशी पर वत्स का अधिकार हो गया था.
बहरहाल गाड़ी अनमोल चला रहा है और रात के दो बज कर तीस मिनट हो रहे हैं शानदार ठंड और धुंध के बीच हम वापस रीवा लौटे हैं.. इस यात्रा को बेहद सफल कहा जाये तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी बस एक ही कसक दिल में रह गई की सभी मित्रों से मिलना नहीं हो पाया.. अब अगली बार ज़रूर ध्यान रखूँगा कि बैक टू बैक इतने सारे प्लान नहीं बनाने हैं.
क्रमशः…
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