पिछले दिनों एक स्टूडेंट का मिलने आना हुआ. वो अपने माता पिता के साथ मिलने आई थी. जज बन चुकी है और पोस्टिंग को भी कई महीने बीत चुके. मुझे लगा शायद कुछ सीरियस मैटर है.
जब भी स्टूडेंट्स का सिलेक्शन होता है तो अधिकतर से मेरी फ़ोन पर बात हो जाती है और मिलना भी हो जाता है. लेकिन इस स्टूडेंट से ना तो मेरी बात ही हो पाई थी और ना ही मिलना. उसका कारण ये है कि बाजारवाद के इस दौर में मैं सलेक्टेड कैंडिडेट को कॉल लगाकर बात करने से बचना चाहता हूँ. जहां हर कोई सफलता का बाप बनने की कोशिश कर रहा हो तो वहाँ मैं उन स्टूडेंट्स के साथ खड़ा हो जाना ठीक समझता हूँ, जो किसी कारण से रह गये. ऐसे में मैंने कॉल नहीं किया और उसका भी कॉल नहीं आया.
बेहद सौम्य मुस्कान वाली ये लड़की जब 2021 में पढ़ने आई थी तो बेहद शांत और घबराई सी रहती थी एक बार मैंने किसी बात पर ज़ोरदार डाँट दिया था तो आँसू बह निकले थे, और फिर मुझे ही अपना रूमाल देना पड़ा था… उसे देखकर सारी पुरानी बातें याद आ गई.
आते ही उसने पाँव छुए और बोली सर मैं आपसे माफ़ी माँगने आई हूँ. क्यूँकि सिलेक्शन के बाद मैं अभी आ रही हूँ और आपसे बात भी नहीं की.
मैं- अरे किस बात को माफ़ी अब तो तुम “जज” हो बधाई लेने का समय है ये ना कि माफ़ी माँगने का.
उसके पिता भी मेरे पाँव छूने के लिए झुके और मैंने उनका हाथ थाम लिया, मैंने कहा- ना ना आप बड़े हैं आप तो आशीर्वाद दीजिए.
हाथ जोड़े बैठे पिता ने बताया कि वो चाय का ठेला लगाते हैं और माता जी भी घरों में काम करती है.
लड़की बोली सर आपको याद है जब मैं पढ़ने आई थी तो आपने ही हौसला बढ़ाया था कि तुम थोड़ी मेहनत करो तो जज बन सकती हो, आपकी डाँट से मैं तो रो पड़ती थी लेकिन मेरा फ़ोकस भी उसके कारण ही बढ़ा. आपने अपनी किताबें भी मुझे पढ़ने के लिए दी, आप हर एक स्टूडेंट का ख़्याल रखते हैं.. आप मेरा नाम लेकर क्लास में कहते थे जागो तो मुझे तो स्पेशल फील होता था. आपके लिखाए नोट्स आज भी मेरे काम आ रहे हैं और आपके लेक्चर्स तो मैं आज भी मिस करती हूँ. उसकी आँखों में फिर आंसू थे.
मैंने माहौल हल्का करने के लिए बात बदली, चाय के लिए कमल को बोला और फिर पूछा ये बताओ सिलेक्शन के बाद क्यूँ नहीं आई, कॉल तक नहीं किया.
वो बोली- बात ये है कि मैं फ़ोन पर बात नहीं करना चाहती थी. आपसे मिलकर आशीर्वाद लेना चाहती थी. बताना चाहती थी कि आपने रास्ते के पत्थर को तराशकर अनमोल हीरा बना दिया है. दूसरी बात ये कि आप सलेक्टेड लोगों का सम्मान करते हैं जबकि सम्मान आपका होना चाहिए. मेरे पास पैसे नहीं थे कि आपको कुछ दे पाती… ख़ाली हाथ आने का मन नहीं था… सोचा था पहली सैलरी मिलते ही आपके चरणों में रख दूँगी लेकिन काम में ऐसी उलझी की आने वक्त ही नहीं मिला. लेकिन मैंने पहली सैलरी निकाल कर रख ली थी जो आज लेकर आई हूँ .
उसने आग्रह पूर्वक मेरी ओर नोटों से भरा लिफ़ाफ़ा बढ़ाते हुए कहा स्वीकार कीजिए और आशीर्वाद दीजिए. मैंने लिफ़ाफ़ा लिया अब मेरी आँखें नम थीं, भावनाओं का ज्वार उमड़-घुमड़ रहा था, कितनी दुआएँ दूँ इस बच्ची को!! ये कृतघ्नता का दौर है आज के समय में बच्चे माँ बाप को क्रेडिट नहीं देते और देखो तो क्या ही प्यारे संस्कार हैं कि ये अपनी मेहनत और सफलता का श्रेय मुझे दे रही है.
मैंने उसमें से एक पाँच सौ का नोट निकाला कमल को बुलाकर कहा कि मिठाई ले आओ और लिफ़ाफ़ा माता जी के हाथों में थमा दिया और कहा कि इसपर पहला हक़ माँ का है. बोली सर माँ का हक़ तो सब पर है ये आप रखिए.
मैंने लिफ़ाफ़ा उसके पर्स में डाल दिया क्यूँकि जो सुख और अनुभूति का एहसास मैं कर रहा था उसके सामने सारे संसार की संपदा भी तुच्छ मालूम पड़ रही थी…. लगा जैसे वो बच्ची ही नहीं सफल हुई मेरा शिक्षक होना भी सफल हुआ.
“कर दिया ख़ुद को समुंदर के हवाले हम ने
तब कहीं गौहर-ए-नायाब निकाले हम ने
ज़िंदगी नाम है चलने का तो चलते ही रहे
रुक के देखे न कभी पाँव के छाले हम ने”
✍️एमजे
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