19-February-2017
स्वामी विवेकानंद एअरपोर्ट, माना, शाम 5.00 बजे ....... अनाउंसमेंट सुनाई पड़ती है की इंदौर के लिए उड़ान भरने
वाले यात्री जो उड़ान संख्या 6E
708 से उड़ान भरने वाले हैं गेट नंबर 6 पर पहुँच जाएं...... मैं गेट नंबर 6 पर पहुँच गया हूँ.... सामने कुछ लोग हैं और पीछे भी लम्बी लाइन है.... पीछे से कुछ
लड़कों के हंसने की आवाजें आ रही हैं... शायद कॉलेज का कोई ग्रुप है.... सामने एक
लड़की को CISF का सिपाही रोक लेता है... पीछे से लड़कों का कमेंट आता है मैडम की
स्पेशल चेकिंग चल रही है क्या ???... गार्ड कहता है कि आपके बैग में जो टैग लगा है
उसमें सील नहीं लगी है आप सील लगवा आयें... फिर लड़कों का एक तीखा कमेंट और ज़ोरों
से हंसने की आवाज़... मुझे नहीं पता की उस लड़की तक लड़कों की आवाज़ पहुंची या नहीं... मुझ तक तो पहुंची... मैं पीछे मुड़कर
उनको घूरता हूँ... लड़कों के कमेंट तो बंद हो गए हैं लेकिन रूक-रूक
कर उनकी जोर से हंसने की आवाजें आ रही हैं... मैं अपनी सीट पर पहुँच गया हूँ... सोचता
हूँ इतनी टाइट सिक्यूरिटी और एअरपोर्ट जैसी जगह पर जो लड़के कमेंट करने से नहीं चूक
रहे वो किसी एकांत गली में “बेंगलुरु” करने से भी नहीं चुकेंगे |
हम सबने पढ़ा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवताः” मेरे
मन में हमेशा प्रश्न उठता रहा है, तत्र क्यूँ रमन्ते देवता ??? देवता वहां क्यूँ
निवास करते हैं जहां नारी की पूजा होती है ?? मुझे लगता है देवताओं को वहाँ
होना चाहिए जहां नारी मात्र का अपमान हो रहा हो ताकि नारी के सम्मान की रक्षा की
जा सके...
बहरहाल क्या इन सबके पीछे कोई पुरुषवादी मानसिकता जैसी चीज़ है? मेरे देखे नहीं यहाँ सिर्फ एक ही सिद्धांत काम करता है वो है अधिक ताकतवर द्वारा कम ताकतवर को दबाने की कोशिश... अभी पुरुषों का वर्चश्व है तो महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है | जब महिलाओं का वर्चश्व होगा तो पुरुषों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा....सिंपल है| एक उदाहरण से समझते हैं..... हम जब बॉयज स्कूल में पढ़ते थे तब लड़कों का एक समूह किसी ऐसे लड़के को परेशान करने में लगा रहता था जो कमजोर है या जो किसी ग्रुप का भाग नहीं है..... लड़के कमेंट करने के लिए लड़कियों को ढूंढने नहीं जाते थे.... ये जो कम ताकतवर को दबाने या डराने की मानसिकता वाले लोग हैं ऐसे लोगों के बारे में ही खलील जिब्रान ने कहा है कि इनके अंदर घास फूस भरा होता है | ऐसे लोगों को काक भगोड़े की संज्ञा दी है महान दार्शनिक ने | क्यूंकि डराने का काम तो काक भगोड़ा ही करता है....
आज कल टीवी पर एक विज्ञापन दिखाया जा रहा है जिसका पञ्च लाइन है
जितनी ज्यादा महिलायें होंगी समाज उतना ज्यादा सुरक्षित होगा.... फिर एक ग़लत बात
लोगों के दिमाग में डाली जा रही है..... मेरे देखे कोई भी व्यक्ति किसी लिंग, जाति, धर्म, भाषा, देश या समुदाय विशेष से आने
के कारण अच्छा या बुरा नहीं हो जाता....
उसका अच्छा या बुरा होना केवल उसकी मानसिकता पर निर्भर करता है |
कहा भी गया है: “न सूरत बुरी है न सीरत बुरी है , बुरा है वही जिसकी नियत बुरी है....
-मन मोहन जोशी "मन"
कहा भी गया है: “न सूरत बुरी है न सीरत बुरी है , बुरा है वही जिसकी नियत बुरी है....
-मन मोहन जोशी "मन"
2 टिप्पणियां:
बिलकुल सही फरमाया महाशय आपने॥ मानसकिता बदलने मे अभी और कुछ समय लगेगा॥ क्यू न की मेरा मनाना है कि समय ही एकमात्र साधन है परिवर्तन के लिए ,, अभी तो मात्र 70 साल ही हुये है,, शायद 70 वर्ष और लगेंगे जब एक बड़े समूह मे महिलाओ के लिए इज्ज़त देखी जा सकेगी,, और यह समस्या केवल भारत के कुछ ही हिस्सो मे ही है॥ क्यूकि बंगाल असम अरुणाचल मेघालय मणिपुर मिजोरम त्रिपुरा केरल तमिलनाडु जैसे कुछ राज्य है जहा क्रूततम पुरुष भी महिलाओ को इज्ज़त की नज़र से देखता है,,,
Thanx a lot for ur valuable comment.
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