पिछले
दिनों बच्चों से जुड़े दो कार्यक्रमों में शिरकत करने का सुअवसर मिला. पहला श्री
कैलाश सत्यार्थी जी द्वारा आयोजित “बचपन बचाओ , भारत
यात्रा” और दूसरा “कौटिल्य एकेडमी” द्वारा आयोजित “नन्ही
खुशियाँ”. पहला बच्चों से जुडी विभिन्न समस्याओं के प्रति जन जागरूकता फैलाने
से सम्बंधित था और दूसरा बच्चों को एक दिन विलासिता की जीवन शैली के माध्यम से
खुशियाँ प्रदान करने के लिए था. वैसे बच्चों से जुड़े कई संगठनों के साथ मैं लम्बे
समय से काम कर रहा हूँ. उनमें से एक संगठन है “वर्ल्ड
विज़न इंडिया.”
दुनिया भर
के बुद्धिजीवी, बचपन बचाने के लिए संघर्ष रत हैं जिनमें भारत के कैलाश सत्यार्थी
अग्रणी हैं. लेकिन आम भारतीय एक कदम आगे सोचता है, बच्चे
होंगे तभी तो बचपन बचाया जायेगा. अतः हम एकमेव प्रक्रिया में लगे हुए हैं बच्चे
पैदा करने के. 2012 में किसी संस्था द्वारा इकठ्ठा किये गए 10
वर्ष के आंकड़ों के शोध से एक डरावना सच
सामने आया कि भारत में औसतन 6700 बच्चे हर वर्ष केवल रोड एक्सीडेंट में
मर जाते हैं. किसे फिक्र है ??? लाखों बच्चों के पास उचित जीवन स्तर
नहीं है. करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और पूरा देश आबादी बढ़ाने के एकसूत्रीय
कार्यक्रम में लगा हुआ है. पिछले वर्ष तक
सरकार केवल एक ही बात पर जोर दे रही थी कि दूसरा बच्चा कब..... पहला स्कूल जाए तब.
भला हो वर्तमान सरकार का जिसने इस एड को
हटा दिया है. अब दूरदर्शन पर एड आ रहा है पहले साल में बच्चा, बच्चों का काम है.
हाल ही में कैंब्रिज के एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि विवाह की सही आयु टीन एज है. लेकिन हमने विवाह का एक गलत अर्थ लगा लिया. हमने समझा विवाह का मतलब बच्चा. और यह बात लोगों के मन में ऐसे घर कर गई है कि अगर विवाह के पहले साल बच्चा नहीं हुआ तो लोग यह समझने लगते हैं कि कहीं कोई प्रॉब्लम होगी. इसका कारण यह है कि अधिकतर लोगों के यहाँ बच्चे किसी परेशानी की वजह से ही नहीं हैं. अन्यथा प्रयास रत तो वे पहले दिन से ही हैं. बहुत कम समझदार लोग हैं जो परिवार नियोजन अपनाकर संतान विहीन हैं. समाज शास्त्रियों को इस सामाजिक मनोविज्ञान पर शोध करना चाहिए. मेरे देखे शोध का विषय तो यह भी है की एक कमरे के मकान में पति पत्नी और सास-ससुर रहते हैं पति पत्नी दिन भर पेट पालने के लिए मजदूरी करते हैं और इनके एक के बाद एक पांच बच्चे हो जाते हैं कैसे? मेरे देखे ये गणित का भी प्रश्न है. गणितज्ञों को भी सोचना चाहिए कि इस मामले में गणित का कौन सा फार्मूला काम कर रहा है ? सारे गणितज्ञ अभी भी इसी गणना में लगे हुए हैं की एक पानी की टंकी में दो छेद हैं जिनसे पानी बाहर गिर रहा है . ये दोनों छेद टंकी को एक घंटे में खाली कर देते हैं नल टंकी को तीन घंटे में भर सकता है. गणना करो की टंकी कितनी देर में भरेगी. मेरे देखे पहले छेद बंद कर दो प्रश्न अपने आप हल हो जाएगा. गणितज्ञों को कुछ और काम दिया जाना चाहिए . देश की बड़ी उर्जा इन मुर्खता पूर्ण सवालों को हल करने में खराब हो रही है.
बचपन क्या है इस पर कई शोध हुए हैं. यह तर्क दिया जाता रहा है कि बचपन एक प्राकृतिक घटना न होकर समाज की रचना है. इतिहासकार फिलिप एरीस ने अपनी पुस्तक "सेंचुरीज़ ऑफ़ चाइल्डहुड" में इस बात पर विस्तार से चर्चा की है. इस विषय को “कनिंघम” ने अपनी पुस्तक इनवेन्शन ऑफ़ चाइल्डहुड में आगे बढ़ाया जो मध्यकाल से बचपन के ऐतिहासिक पहलुओं पर नज़र डालता है. एरीस के पेंटिग, समाधि-पत्थर, फ़र्नीचर तथा स्कूल-अभिलेखों के अध्ययन को 1961 में प्रकाशित किया गया था. उन्होने पाया कि 17वीं शताब्दी से पहले किसी मनुष्य को वयस्क तथा अल्प-वयस्क के दो आयु वर्गों में विभाजित किया जाता था . एरीस के पहले “जार्ज बोआस” ने अपनी कृति “दी कल्ट आफ़ चाइल्डहुड” में बचपन पर विस्तार से चर्चा की है.
नवजागरण काल के दौरान, यूरोप में बच्चों का कलात्मक प्रदर्शन नाटकीय रूप से बढ गया था. “जीन जैक्स रूसो” को बचपन की आधुनिक धारणा की उत्पत्ति का श्रेय दिया जाता है. जान लॉक तथा अन्य 17वीं सदी के अन्य उदार विचारकों के विचार के आधार पर रूसो ने बचपन को वयस्कता के ख़तरों और कठिनाइयों से मुठभेड़ से पहले की लघु अवधि कहा है. रूसो ने कहा है कि "शुरुआती बचपन के जल्दी निकल जाने वाले दिनों को कड़वाहट से बचाना होगा , जो दिन न उनके लिए और ना ही आपके लिए कभी लौट कर आने वाले हैं?"
विक्टोरिया काल को बचपन की आधुनिक संस्था के स्रोत के रूप में जाना जाता है . जब कि इस काल की औद्योगिक क्रांति ने बाल श्रम को बढ़ा दिया था. चार्ल्स डिकेन्स तथा अन्य समाज सुधारकों के प्रयासों के चलते बाल मजदूरी उत्तरोत्तर कम होती गई और 1802-1878 के कारख़ाना अधिनियम द्वारा समाप्त हुई . भारत में अभी तक नहीं हो पाई .
“एल.किन्चेलो”
और “शर्ली आर.स्टीनबर्ग” ने बचपन और बचपन की शिक्षा पर एक
आलोचनात्मक सिद्धांत का प्रतिपादन किया है
जिसे “किंडरकल्चर” के नाम से जाना जाता है. किन्चेलो और स्टीनबर्ग ने बचपन के अध्ययन के
लिए कई अनुसंधान और सैद्धांतिक विमर्शों का उपयोग विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर
किया. और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आधुनिक काल ने बचपन के नए युग में प्रवेश किया
है. इस नाटकीय परिवर्तन के साक्ष्य सर्वव्यापी हैं . जब किन्चेलो और स्टीनबर्ग ने
किंडरकल्चर का पहला संस्करण लिखा, "दी कोर्पोरेट कल्चर ऑफ़ चाइल्डहुड" तब
दुनिया भर में लोग इस परिवर्तन के साक्षी बन रहे थे. किन्चेलो और स्टीनबर्ग का
मानना है कि सूचना प्रौद्योगिकी ने अकेले
ही बचपन के एक नए युग का सूत्रपात नहीं किया है अपितु कई सामाजिक, सांस्कृतिक,
राजनीतिक और आर्थिक कारकों ने इस तरह के परिवर्तनों को संचालित किया
है. किंडरकल्चर का मुख्य प्रयोजन, सामाजिक, सांस्कृतिक,
राजनीतिक और आर्थिक रूप से बचपन की बदलती ऐतिहासिक स्थिति को स्थापित
करना तथा उन कारकों को विशेष रूप से जांचना
है जिसे किन्चेलो तथा स्टीनबर्ग "नया बचपन" कहते हैं.
वर्तमान इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के युग में बच्चे घर के बाहर कम समय बिता रहे हैं यह प्रवृत्ति खतरनाक है जिसे एक विकार के रूप में देखा जा रहा है. “रिचर्ड लउ” ने अपनी कृति “लास्ट चाइल्ड इन द वुड्स” में इस विकार को “नेचर डेफ़िसिट डिसार्डर” का नाम दिया है जो बच्चों द्वारा घर से बाहर कम समय व्यतीत करने की कथित प्रवृत्ति को निर्दिष्ट करता है. इस विकार के परिणामस्वरूप विभिन्न व्यवहारपरक समस्याएं उत्पन्न होती हैं. बच्चों में संवेदनहीनता बढती जा रही है . पर्यावरण के प्रति उनकी समझ कम होती जा रही है. वे आभासी दुनिया में ज्यादा और वास्तविक दुनिया में कम समाय बिता रहे हैं. कंप्यूटर, वीडियो गेम, इंटरनेट और टेलीविज़न के आगमन के साथ, बच्चों को बाहर की छानबीन से अधिक, घर के अंदर रहने के अनेक कारण मिल गए हैं. माता-पिता भी बच्चों का (बढ़ते हुए ख़तरों से संबंधित भय के कारण, उनकी सुरक्षा की दृष्टि से) घर के भीतर ही रहना ठीक मान रहे हैं .
अक्सर बुद्धिजीवी यह पूछते हुए मिल जाते हैं कि क्या हम आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छी पृथ्वी छोड़ कर जा रहे हैं?? मैं ये पूछता हूँ कि क्या हम भविष्य की पृथ्वी के लिए संवेदनशील/समझदार/ अच्छे बच्चे छोड़ कर जा रहे हैं ???
सोचिये ------
(c) मनमोहन जोशी "MJ"
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