Diary Ke Panne

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

गणतंत्र की अवधारणा ........

           

                 


                   गणतंत्र दिवस आने को है. पिछले कई दिनों से विभिन्न माध्यमों से मेसेज प्राप्त हो रहे हैं कि गणतंत्र पर कुछ लिखिए. राकेशनाम के एक पाठक ने विशेष आग्रह किया है कि मैं अपने लेख में इस बात पर भी प्रकाश डालूं कि वास्तविक रूप में गणतंत्र की शुरुआत कहाँ से हुई है? क्या भारत में गणतंत्र की अवधारणा सबसे पहले आईतो सोचा चलो कुछ लिखा जाए.
  
                    गणतंत्र दिवस की बात करूँ तो कक्षा 12 तक मैंने गणतंत्र दिवस का कोई कार्यक्रम टीवी पर नहीं देखा था. क्यूंकि कक्षा 4 और 5 में मैं पीटी करते हुए, कक्षा 6 और 7 में स्काउट गाइड में शामिल होकर, कक्षा  8 और 9 में NCC कैडेट के रूप में तथा कक्षा 10, 11 और 12 में संगीत प्रस्तुति देने हेतु गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होता रहा. बहरहाल अधिकाँश लोग गणतंत्र और लोकतंत्र में अंतर नहीं कर पाते. तो शुरुआत यहीं से करते हैं कि  इन दोनों में क्या भेद है. तो गणतंत्र”, शासन की ऐसी प्रणाली है जिसमें राष्ट्र के मामलों को सार्वजनिक माना जाता है. राष्ट्र का मुखिया वंशानुगत नहीं होता है. उसको प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित या नियुक्त किया जाता है. जबकि लोक तंत्र में जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता का साशन किया जाता है.
  
                     आधुनिक अर्थो में गणतंत्र से आशय सरकार के उस रूप से है जहां राष्ट्र का मुखिया वंशानुगत नहीं होता है. जहां तक मुझे जानकारी है, वर्तमान में दुनिया के 206 संप्रभु राष्ट्रों में से 135 देश आधिकारिक रूप से अपने नाम के साथ रिपब्लिकशब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं.
   
                   उपलब्ध तथ्यों की बात करें तो मध्ययुगीन उत्तरी इटली में कई ऐसे राज्य थे जहां राजशाही के बजाय कम्यून आधारित व्यवस्था थी. सबसे पहले इतालवी लेखक गिओवेनी विलेनीने इस तरह के प्राचीन राज्यों को लिबर्टिस पापुलीअर्थात स्वतंत्र लोगकहा. 15वीं शताब्दी में  इतिहासकार लियोनार्डो ब्रूनीने इस तरह के राज्यों को रेस पब्लिकानाम दिया. लैटिन भाषा के इस शब्द का अंग्रेजी में अर्थ है पब्लिक अफेयर्सअर्थात सार्वजनिक मामले. माना जाता है कि इसी से रिपब्लिक शब्द की उत्पत्ति हुई है जिसे हिंदी में गणतंत्र कहा जाता है.
   
                  भले ही इतिहासकार गणतंत्र शब्द की उत्पत्ति पश्चिम में मानते रहे हों लेकिन भारत के प्राचीनतम साहित्यों में लगातार गणतंत्र शब्द आता रहा है. वैदिक साहित्य में, विभिन्न स्थानों पर किए गए उल्लेखों से यह जानकारी मिलती है कि उस काल में अधिकांश स्थानों पर गणतंत्रीय व्यवस्था थी. मुझे लगता है कालांतर में गणतंत्रीय व्यवस्था में कुछ दोष उत्पन्न हुए होंगे और राजनीतिक व्यवस्था का झुकाव राजतंत्र की तरफ होने लगा होगा.
  
                 महाभारत के सभा पर्व में अर्जुन द्वारा अनेक गणराज्यों को जीतकर उन्हें करदेने वाले राज्य बनाने का उल्लेख मिलता है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में लिच्छवी, बृजक, मल्लक, मदक और कम्बोज आदि गणराज्यों का उल्लेख मिलता है. यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने भी क्षुदक, मालव और शिवि आदि गणराज्यों का उल्लेख अपने लेखन में किया है. ऋग्वेद में भी गण और जन का बराबर उल्लेख मिलता है.  महाभारत के शांतिपर्व में युधिष्ठिर ने शरशैय्या पर पड़े भीष्म से पूछा - आदर्श गणतंत्र की परिभाषा क्या है?” गणतंत्र के मूल शब्द गण की अवधारणा अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य और आचार्य पाणिनी की रचनाओं में भी वर्णित है. तब समाज के प्रतिनिधियों के दलों को गण कहा जाता था और यही मिलकर सभा और समितियां बनाते थे. विदेशियों को गण नहीं माना जाता था.

                बौद्ध साहित्य में सफल गणराज्य के सात आधारों का उल्लेख मिलता है जो निम्न लिखित है : 1) सभाएं करना जिसमें अधिक से अधिक सदस्यों का भाग ले सकें.  2) राज्य के कामों को मिलजुल कर पूरा करना. 3) कानूनों के पालन को सुनिश्चित करना.  4) वृद्धों के विचारों का सम्मान करना. 5) महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार न करना. 6) स्वधर्म में दृढ़ विश्वास रखना. तथा 7) कर्तव्य  पालन करना.

                गणतंत्र की बात करें और प्लेटो तथा उनकी कृति रिपब्लिकका उल्लेख न हो तो ग़लत होगा. प्लेटो ने रिपब्लिकमें गणको कुल तीन भागों में विभाजित किया है. पहला- दास. दूसरे- दस्तकार, हस्तशिल्पी जैसे काष्ठकार, बुनकर, चर्मकार, दुकानदार, छोटे व्यवसायी, जो उत्पादन विपणन के लिए जिम्मेदार होते हैं. और तीसरे संरक्षक वर्ग. यह व्यवस्था कुछ कुछ भारत की वर्ण व्यवस्था की तरह मालूम पड़ती है .

                प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य के सर्वोच्च शासनाधिकारी के रूप में दार्शनिक सम्राटको रखा है. सम्राट केवल वही बन सकता है जो बुद्धि, विवेक, साहस, ज्ञान, समानता,दयालुता, निष्पक्षता आदि मानवीय गुणों से संपन्न हो. यह बात समझने लायक है कि प्लेटो अपनी कृतियों  रिपब्लिकएवं दि स्टेट्समेनमें एक ओर जहां राष्ट्र प्रमुख के रूप में दार्शनिक सम्राट का उल्लेख करते हैं तो वहीं दूसरी ओर अपनी कृति लॉजमें वह संरक्षक वर्ग में से चुने गए प्रतिनिधि मंडल को राज्य की बागडोर सौंपने का समर्थन करते पाए जाते हैं. मेरे देखे लॉजतक आतेआते प्लेटो को लगने लगा होगा कि कुछेक व्यक्तियों के हाथ में सत्ता का सिमटना घातक हो सकता है , इसके निदान के लिए वह प्रतिनिधि मंडल के हाथों में सत्ता सौंपने का विचार प्रस्तुत करते हैं. जो वर्तमान गणतंत्र की अवधारणा के निकट मालूम पड़ती है.

                वैसे इतिहास मेरा विषय नहीं रहा है लेकिन कहीं पढ़ा था कि सन् 1929 में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज सरकार द्वारा 26 जनवरी 1930 तक भारत को ब्रिटिश साम्राज्य में ही स्वशासित इकाई नहीं बनाया जाता, तो भारत अपने को पूर्णतः स्वतंत्र घोषित कर देगा.

                  26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ कर दिया. उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा. इसके पश्चात स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया. संविधान निर्माण हेतु एक संविधान सभा का गठन किया गया जिसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1946 से आरम्भ किया.

                संविधान सभा में कुल 22 समितीयां थीं. प्रारूप समिति जिसके अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर थे, ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में भारतीय संविधान का निर्माण किया और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 26 नवम्बर 1949 को भारत का संविधान सौंप दिया.  इसलिए 26 नवम्बर को भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है. 

                 संविधान सभा ने संविधान निर्माण के समय कुल 114 दिन बैठक की. इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी. अनेक सुधारों और बदलावों के बाद सभा के 308 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कॉपियों पर हस्ताक्षर किये. इसके दो दिन बाद 26 जनवरी को यह देश भर में लागू हुआ. 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए इसी दिन को तब से गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जा रहा है.


(C) मनमोहन जोशी {MJ}



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