Diary Ke Panne

सोमवार, 1 जनवरी 2018

मेरे मन की ....




                    कुछ दिनों के लिए मेरी सास इंदौर आई हुई हैं... वो दोनों पैरों से लाचार हैं साधारण तौर पर ऐसे लोगों के लिए विक्लांग शब्द का उपयोग किया जाता रहा है. अब उनके लिए नया शब्द गढ़ लिया गया है दिव्यांग. मेरे देखे विक्लांगता कोई दैवीय उपहार नहीं है यह एक अभिशाप ही है. दिव्यांग  जैसे शब्दों के इस्तेमाल से मुझे आपत्ति है क्यूंकि ऐसे शब्द गढ़ लेने भर से ही विक्लांगों के साथ भेदभाव खत्म नहीं किया जा सकेगा.

                    मेरे देखे इस सम्मानजनक संबोधन से उनकी समस्याओं में कोई कमी नहीं आयी है. अधिकतर सार्वजनिक जगहों पर उनके लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है. आधुनिक होने का दावा करने वाला समाज अब तक विकलांगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है. ये लोग मज़ाक या हंसी के पात्र हैं. अधिकतर लोगों के मन में विक्लांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है.. यह दोनों भाव  स्वाभिमान पर चोट करते हैं. दिव्यांग कह भर देने से इनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा. यह केवल छलावा है. मेरे देखे विक्लांगों के प्रति अपनी सोच और मानसिकता को बदलने का समय आ गया है. पिछले दिनों विक्लांगों से सम्बंधित योजनाओं के क्रियान्वयन की सुस्त चाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को फटकार लगायी है.

                    भारत में लगभग ढाई करोड़ लोग विक्लांगता से जूझ रहे हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी परेशानियों को समझने और उन्हें जरूरी सहयोग देने में सरकार और समाज दोनों नाकाम दिखाई देते हैं. हमने विक्लांगों और थर्ड जेंडर के अस्तित्व को अस्वीकार सा कर दिया है.

                    विक्लांगता की समस्या से दो चार हो रहे लोगों के लिए जो न्यूनतम आवश्यक सुविधाएं सार्वजानिक जगहों पर होनी चाहिए, उसका अभाव लगभग सभी शहरों में है. अस्पताल, शिक्षा संस्थान, पुलिस स्टेशन जैसी जगहों पर भी उनके लिए टॉयलेट या व्हील चेयर या कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं.

                    मोदी सरकार के एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन' यानी सुगम्य भारत अभियानके तहत किए गये एक सर्वे में मुंबई के 51 सार्वजानिक स्थानों की पड़ताल की गयी. लगभग अस्सी फीसदी स्थानों पर रैम्प नहीं पाया गया. किसी भी बिल्डिंग में विकलांगों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था नहीं थी. जबकि अधिकतर इमारतों में निर्धारित मानकों के अनुसार विक्लांगों के लिए शौचालय तक नहीं पाया गया. एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन के जरिये सरकार विक्लांगों के लिए सक्षम और बाधारहित वातावरण तैयार करने पर जोर दे रही है. इस अभियान के तहत जुलाई 2018 तक राष्ट्रीय राजधानी और राज्य की राजधानियों की कम से कम 50 सरकारी इमारतों को दिव्यांगों के लिए पूरी तरह उपयोग' लायक बनाए जाने का प्रावधान है.

                   मेरे देखे विक्लांग को दिव्यांग कह देने भर से समस्याएँ समाप्त नहीं होंगी.अवरोध मुक्त वातावरण के निर्माण के लिए सरकार को यथा शीघ्र निम्नलिखित सुझावों को अपनाना चाहिए:

 1. सार्वजनिक भवन, परिवहन सुविधाएं, सड़क, फुटपाथ, रेलवे प्लेटफॉर्म, बस स्टॉप,बंदरगाह, हवाई अड्डे, बसट्रेनवायुयान तथा जहाजों, खेल के मैदानखुले स्थान इत्यादि को विक्लांगों के लिए आसानी से पहुंच लायक बनाया जाए.

2 संकेत भाषा को बुनियाद शिक्षा में शामिल किया जाए.

3. विक्लांगों के लिए अवरोध मुक्त भवन बनाने हेतु इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में सुधार लाया जाए.

4  सार्वजनिक भवनों में व्यापक सुधार कर उन्हें  अवरोध मुक्त किया जाए.

5  राज्य परिवहन उपक्रम, अपने वाहनों में विक्लांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक परिवर्तन लाएं.

6. रेलवे योजनाबद्ध तरीके से अवरोध मुक्त कोचों की शुरुआत करे.

 7. दृष्टि विक्लांगों को सूचना प्रदान करने के लिए ब्रेल, टेप-सर्विस, बड़े प्रिंट तथा अन्य उचित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाए.

                    इन उपायों को यथाशीघ्र अमल में ला कर ही हम सही मायनों में विकास के पथ पर आगे बढ़ सकेंगें.....सरकार के साथ हमें भी संवेदनशील होना होगा... सोचता हूँ कि sensodyne के अधिक इस्तेमाल से ही तो हमारी संवेदनशीलता नहीं मर गई है????

(c) मनमोहन जोशी, MJ

3 टिप्‍पणियां:

  1. सर बहूत अच्छा सुझाव हैं, इसका उपयोग किया जाना चाहिए ... जय हिन्द

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