Diary Ke Panne

रविवार, 21 जनवरी 2018

सखि, वसंत आया !




                          रविवार की सुबह है...आज देर से जागता हूँ... जाग कर भी कुछ देर बिस्तर पर पड़ा रहता हूँ.... कल रात देर तक लिखता रहा था ... दो बजे के आस पास सो पाया.... उस पर भी कई विचार देर तक पीछा करते रहे थे. कानों में कूकर के सिटी की आवाज़... कुछ तो पक रहा है. लाइफ पार्टनर से पता चला इडली बन रही है.

                       चाय पीते हुए अखबार देखता हूँ तो पता चलता है कल वसंत पंचमी है... वसंत ने दस्तक दे दी और पता तक नहीं चला. अभी तक तो आम के पेड़ में बौर भी नहीं आए. कहीं पलास और टेसू के फूल भी नहीं दिखे. इस बार लगता है वसंत ने पिछले दरवाज़े से एंट्री ली है.   

                      सोचता हूँ पहले ऋतुओं के बदलने पर दिनचर्या बदल जाती थी. ऋतु का बदलना हमारे जीवन में प्रतिबिंबित होता था. गीतों और व्यवहार में ढलता था. मशीनी दुनिया में खासकर शहरों से यह अपनापा खो रहा है. अब मौसम केवल कैलेंडर में ही बदलते हैं, जीवन तो एक समान गति से चल रहा है. हमारे जैसे शहरी इंसान का आसमान फ्लैट में ही कैद हो गया है और घर में बौने पेड़ उग आए हैं. कुछ लोग हमारे हिस्से का सूरज भी खा गए हैं. मेरे देखे पौधे ही नहीं अब इंसान भी बोन्साई हो रहे हैं.

                    आज हमारे जीवन से वसंत खो रहा है क्योंकि जीवन का ताना - बाना प्रकृति के दोहन पर खड़ा है. जिन शहरों में आकाश खो रहा है, वहाँ मदमाती वासंती हवा का स्पर्श मिलना कठिन है. नगरों में रहने वालों का हर दिन, हर सुबह एक जैसी ही है. मोनोटोनस जीवन चर्या के चलते लोगों को वसंत की आहट सुनाई नहीं पड़ती. 

                   बहरहाल वसंत से मेरा जुड़ाव ऐसा है कि वसंत की आहट को मैं समय पर महसूस कर सकता हूँ. जगह-जगह टेसू, पलाश खिल जाते हैं, आम के वृक्ष में बौर आ जाते हैं, शीतल मन्द सुरभित हवा हवा बहने लगती है, मन में कुछ प्रसन्न होने लगता है. प्रकृति के साथ साथ भीतर भी कुछ पुनर्जीवित होता हुआ सा महसूस होता है.

                  वसंत को यूँ ही ऋतुराज नहीं कहा गया है. वैदिक साहित्य में भी वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, सन्तुलित शरीर वाला, आकर्षक नैन-नक्श वाला, अनेक फूलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला, मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि गुणों से भरपूर बताया है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में वसंत कहा है.

                 मेरे देखे प्रकृति में होने वाले हर बदलाव का हमारे जीवन पर  सीधा प्रभाव पड़ता है. वसंत हमें जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संदेश देता है. प्रकृति का यह परिवर्तन इस बात की ओर इशारा है कि परिवर्तन ही जीवन है. लगातार अपने में सकारात्मक बदलाव ज़रुरी है. पतझड़ के बाद वसंत का आगमन इस बात का भी परिचायक है कि दुःख की घड़ी में धैर्य धारण करिए, सुख के क्षण आने ही वाले हैं. महसूस करें अपने वसंत को.


महाप्राण निराला के शब्दों में :

सखि, वसंत आया !

भरा हर्ष वन के मन
नवोत्कर्ष छाया
सखि, वसंत आया !

किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय उर तरु-पतिका,
मधुप-वृंद बंदी
पिक-स्वर नभ सरसाया
सखि, वसंत आया !

लता-मुकुल हार गंध-भार भर,
बही पवन बंद मंद मंदतर
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया
सखि, वसंत आया !

आवृत सरसी उर सरसिज उठे
केशर के केश कली के छुटे
स्वर्ण शस्य अँचल
पृथ्वी का लहराया
सखि, वसंत आया !

(c) मनमोहन जोशी  

3 टिप्‍पणियां:

  1. अधुनिक जीवनशैली के कारण प्रकृति से बिछोह का सटीक वर्णन किया है सर अपने । साधुवाद।

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  2. शुक्रिया तीर्थराज।। जुड़े रहें , पढ़ते रहें।।

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