Diary Ke Panne

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

प्रसंग वश - जाना "राम" का .....





                   तुमने क्या समझा ??? अरे नहीं मैं तो अयोध्या के राजा राम की बात कर रहा हूँ ... कुछ  लोग हैं जो सोचते हैं कि वही इस संसार के केंद्र हैं. यदि मैंने कहीं किसी ब्लॉग में किसी ऐसे किरदार का ज़िक्र किया जिसमें वो अपने आप को फिट पाते हैं, तो टेंशन में आ जाते हैं कि मनमोहन ने हमारे बारे में कैसे लिख दिया?? या कहीं कुछ नहीं लिखूं तो उनको लगता है कि मनमोहन ने हमारा नाम क्यूँ नहीं लिया?? अरे मुर्ख मैं तो प्रसंगवश अपनी बात कहता हूँ. इन बातों का तुमसे कोई लेना देना नहीं. और हाँ यदि  तुम अपने आपको किसी आलेख के सकारात्मक किरदार में पाते हो तो ये तुम्हारे कर्म हैं, यदि नहीं तो कर्मों को ठीक करो. मुझे आलेख ठीक करने की नसीहत मत दो.

                 बहरहाल विषय प्रवेश करते हैं? क्या राम त्रेतायुग में हुए थे? मेरे देखे नहीं.... राम हर देश काल और परिस्थिति में पैदा होते हैं और वनवास हर युग के राम की नियति है... कई बार लक्ष्मण मित्र के रूप में मिलते हैं.  मंथरा और कैकई ज़रूरी नहीं कि राजा की पत्नी और दासी ही हों ये बिज़नस पार्टनर, रिश्तेदार या अन्य रूपों में हो सकते हैं...

                  खैर राम को वनवास क्यूँ हुआ... वैसे राजा दशरथ ने कैकई से  पूछा भी था कि - “ कहु तजि रोषु राम अपराधू । सबु कोउ कहइ रामु सुठि साधू ॥"  गुस्सा छोड़ कर तुम मुझे राम का अपराध बताओ, कैकई. सब लोग तो कहते हैं कि वह साधू है. तुलसी महाराज ने इस बात का वर्णन नहीं किया है कि कैकई ने राम का क्या अपराध बताया था. मुझे लगता है कैकई ने कहा होगा की राम और लक्ष्मण के द्वारा किये जारहे कार्यों के चलते उसकी लोकप्रियता बढती ही जा रही है, बस एक ही समस्या है, राम कहीं भी इंटरव्यू देने जाता है तो आपका और कौशल्या का ही नाम लेता है मेरा नाम नहीं लेता.

                 खैर राम ने साम्राज्य छोड़ कर वन गमन को स्वीकार लिया इसके दो कारण मुझे दीखते हैं:
    
 1. शायद राम ही अयोध्या छोड़ कर जाना चाह रहे थे.
 2. राम को दशरथ से अगाध प्रेम था और वो पिता के आदेश की अवहेलना नहीं करना चाह रहे थे .

वरना किसकी मजाल थी की एक तीर से समुन्दर को सुखा सकने वाले महा प्रतापी को, जो खेल खेल में शिव का धनुष तोड़ दे, को वन जाने का आदेश दे सके.
     
                   एक कारण और लगता है की राम सालाना पारिवारिक क्लेश से तंग आ गए होंगे तभी तो जैसे ही उन्होंने कुछ समय तक अयोध्या से बाहर रहने की बात सुनी, वो आनंद से भर गए. बकौल तुलसी महाराज:
“मन मुसकाइ भानुकुल भानु। रामु सहज आनंद निधानू॥“

                   अब इस सारे ही प्रसंग में कमाल का किरदार है लक्ष्मण का. लक्ष्मण का किरदार थोडा कम गाया गया है. जितना लक्ष्मण को मैं समझ पाया हूँ. यदि लक्ष्मण से कहा गया होता कि तुम्हें वनवास जाना है तो शायद लक्ष्मण पूछ ही बैठते की महाराज एक से अधिक शादी आपने की है.. साझेदारी की सरकार आप चला रहे हो... बीवियों को आपको खुश करना है. मैं क्यूँ जाऊं. लक्ष्मण विध्वंस मचा देते, प्रलय आ जाता. जैसा कि उन्होंने सीता स्वयंवर के समय राजा जे के सिंह द्वारा ललकारने पर भरे दरबार में कहा था कि पृथ्वी को गेंद भातीं उठा कर फ़ेंक दूँ ऐसा सामर्थ्य है मुझ में. लेकिन वाह रे लक्ष्मण जैसे ही राम ने कहा मैं अयोध्या छोड़ कर यथा शीघ्र चला जाऊँगा... बिना सुख सुविधा के बारे में सोचे लक्ष्मण ने कहा, मैं भी भैया के साथ जा रहा हूँ.... शायद राजा दशरथ ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा कुछ हो जाएगा. मेरे देखे सीता को राम ने सारे क्लेश और छिछालेदर से बाहर रखा होगा नहीं तो वो अकेले ही सारे मामले को निपटाने का सामर्थ्य रखती थी. अगाध प्रेम वश वह राम के निर्णय के साथ ही सुख - दुःख की साथी बनी रही.

                     एक प्रसंग और पढने को मिलता है : जब राम को हनुमान की प्रशंशा करनी थी तो उन्होंने कहा था “तुम मोहि प्रिय भरत सम भाई” विद्वानों ने इसका अर्थ लगाया है कि भाइयों में राम को भरत सबसे प्रिय थे इसीलिए उन्होंने हनुमान की तुलना भरत से की है... मेरे देखे श्री राम ने हनुमान की तुलना भरत से केवल इसीलिए की, क्यूंकि लक्ष्मण अतुलनीय हैं. लक्ष्मण के त्याग और प्रेम की तुलना किसी से नहीं की जा सकती.

                      बहरहाल जीवन में जब कभी भी राम बनने का अवसर मिले बनते रहिये... वनवास को सहज आनंद के साथ स्वीकार करिए... क्यूंकि जब राम अयोध्या में थे तो केवल राम थे और जब वनवास से लौटे तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बन कर लौटे... याद रखने की आवश्यकता है कि वो पत्थर कभी मूर्ति का रूप नहीं ले सकता जो चोटों से डरता हो, वो सोना कभी कुंदन नहीं बनता जो आग में तपना नहीं चाहता और वो लोहा कभी फौलाद नहीं बनता जो अंगारों की तपन नहीं सह सकता.


(
c) मनमोहन जोशी       

  

5 टिप्‍पणियां:

  1. jay hind shreman ji
    kya sandar prasng hai- par itna gussa kabhi hamne aapke sabdo me nahi dekha, pyar se paripurd sabd aaj itne teekhe kataksh kese sir

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  2. डिअर राम,
    मैं तो बस लिखता हूँ। अच्छा,बुरा,प्रेम,ईर्ष्या,नफरत ये सब आपके अपने प्रोजेक्शन्स है। बहरहाल रीड/ शेयर एंड कमेंट दी आर्टिकल्स इफ यु लाइक।

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  3. शानदार जबरदस्त जिंदाबाद। बहुत सुंदर सर,

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