प्रिय अभ्यर्थियों,
विगत 18 फरवरी को जो कुछ भी घटा वह नया नहीं है. आयोग के प्रश्न पत्र में
त्रुटियों का होना और उसके पश्चात आंसर शीट भी त्रुटी
पूर्ण होना आयोग की कार्यशैली का हिस्सा है. तो इस बार ऐसा क्या घटा जो गहन चिंता
और चिंतन दोनों का ही विषय है?? आयोग ने
आपत्तियां मंगाई हैं और उसके साथ ही आपत्ति दर्ज कराने हेतु शुल्क की मांग भी की
है. मतलब ये कि आप गलती भी करो और उस पर तुर्रा ये कि गलती करने का इनाम भी पाओ.
अगली बार आयोग जान बुझ कर पचास प्रश्न गलत कर देगा और कमाई कई गुना बढ़ जाएगी. ये
बात न तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों पर खरी उतरती है और न ही सामाजिक न्याय के.
इन दिनों, मैं कुछ पारिवारिक समारोहों के चलते व्यस्त चल रहा हूँ. लगातार मुझे विभिन्न माध्यमों से सन्देश प्राप्त हो रहे हैं. अभ्यर्थी पूछ रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए. एक अभ्यर्थी का मेसेज कल रात 9 बजे मैंने देखा. मेसेज का सार यह था कि उसके पिता ने अपना खेत गिरवी रख कर उस इंदौर पढने भेजा था. ऐसे माहोल में वह क्या करे?? उसने मुझे भी झकझोरा है. वह पूछता है कि सर, क्या शिक्षक का धर्म केवल पढ़ा देने भर से पूरा हो जाता है ? क्या विद्यार्थी की लड़ाई में उसे सहभागी नहीं होना चाहिए. आप इस विवाद पर कुछ क्यूँ नहीं कह रहे ?
तो उन मित्र को और उनके माध्यम से सभी प्रतिभागियों को मैं यह सन्देश देना चाहता हूँ कि मैं आपके साथ खड़ा हूँ. शिक्षक होने से पहले मैं एक रजिस्टर्ड अधिवक्ता हूँ और उससे भी पहले आप सभी का मित्र. मैं इस मुद्दे पर आप सभी की ओर से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने को तैयार हूँ और वो भी नि:शुल्क. मैं किसी संस्था के बैनर के साथ नहीं हूँ. व्यक्तिगत रूप से मैं आपके साथ हूँ.
अगर आप चाहते हैं कि हम एक पिटीशन लगाएं (जिसके बिंदु/ कण्डिका हम मिल बैठ कर तय
करेंगे), तो इस सन्देश को अधिकतम अभ्यर्थियों तक पहुँचाना आपकी ज़िम्मेदारी है. कमेंट बॉक्स में लिख कर
या Connect.mmjoshi @gmail.com पर आप मुझे
अपने सुझाव भेज सकते हैं. आप के कमेंट और ईमेल मुझे संबल देंगे . मुझे यह तय करने
में मदद मिलेगी की कहाँ तक ये लड़ाई लड़नी है. लड़नी है भी या नहीं.
आपका मित्र
मन मोहन जोशी
मन मोहन जोशी
अधिवक्ता
Connect.mmjoshi @gmail.com
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