सिनेमा देखने की शुरुआत कब और कैसे हुई ये
तो याद नहीं लेकिन मेरी कई “hobbies” में से एक फ़िल्में देखना भी है जो शायद कम ही
लोग जानते हैं. जब हम छोटे थे तो दूरदर्शन का दौर आया. रविवार के दिन हम तैयार
होते थे फ़िल्में देखने के लिए. मम्मी कंघी करके, पाउडर लगाकर तैयार कर देती थी. हम
भाई पास की ही शॉप से जिसे “हनुमान दुकान” के नाम से जाना जाता था चोकलेट लेकर आते थे और शुरू होता था फिल्मों
का दौर. फ़िल्में देखने की कोई चॉइस नहीं होती थी. हम सभी तरह की फ़िल्में देख डालते
थे. प्रादेशिक भाषा की फ़िल्में भी... मज़े की बात है दूरदर्शन में प्रादेशिक भाषा
की फ़िल्में उसी भाषा के subtitle के साथ आती थीं.
फिर
वीसीआर और विसीपी का दौर आया. तीज त्यौहार
में हम बड़े भैया के नेतृत्व में पैसे इकठ्ठा करते थे और विडियो केसेट्स किराए पर
लाये जाते थे. चाचा जी के पास एक केसेट थी “हर हर महादेव” और पापा ने एक केसेट
खरीद रखी थी “रेखा हो रेखा“. दोनों ही केसेट को लगाए बिना सिनेमा देखने के हवन की
पूर्णाहूति नहीं होती थी. यही कारण है कि मुझे आज भी रेखा के सभी हिट गाने शब्दशः
याद हैं.
सिनेमा को देखने का नज़रिया तब डेवेलप हुआ जब हम
थिएटर में जाकर सिनेमा देखने लगे. घर आते ही पापा पूछते थे क्या शिक्षा मिली?? अब
उन्हें कौन समझाता कि हम तो शिक्षा ग्रहण करने स्कूल जाते हैं. या फिर उन्हें ये
भी पूछना चाहिए था बताओ आज स्कूल में मज़ा आया?? बहरहाल संयुक्त परिवार था और सबके
अपने प्रश्न होते थे, तो मूवी पूरे ध्यान से देखनी होती थी. मम्मी स्टोरी सुनती थी
और बाकी लोग विभिन्न तरह के प्रश्न के उत्तर. जैसे हीरो कौन था ? डायरेक्टर कौन था
? कोई एक गाना सुनाओ आदि. इन सब बातों का प्रभाव यह हुआ की आज भी कोई फिल्म देखते
समय सारी चीज़ें अनायास ही याद रह जाती हैं.
विवाह के बाद फ़िल्में देखने का क्रम जारी रहा. विवाह के शुरूआती दिनों में मेरे पास टी वी नहीं था तो हम पति पत्नी कोई भी मूवी
थिएटर में लगती तो देखने जाते थे. एक लेनेवो का लैपटॉप था जिसमें एंटरटेनमेंट के
नाम पर पाईरेटेड डीवीडीस देखी जाती थी. फिर मैंने फुल साइज़ सैमसंग स्मार्ट एल इ डी
पर्चेस कर ली. अब हम रोज़ मूवीज देखने लगे. हम दोनों घंटों मूवीज पर बातें कर सकते
हैं, विशेषकर हॉलीवुड मूवीज पर.
याद आता
है एक रविवार को हम सुबह नाश्ता करके मूवी देखने बैठे. स्टीवन स्पीलबर्ग की ऑस्कर
विनिंग फिल्म “बैक टू द फ्यूचर” जो तीन पार्ट में रिलीज़ हुई है, मैं लेकर आया था.
अद्भुत फिल्म है... तीनों ही पार्ट एक दुसरे से इस खूबसूरती से जुड़े हैं की एक साथ
तीनों को देखने का ही आनंद है. हम बैक टू बैक तीनों ही पार्ट देख गए. कमाल की
अनुभूति .. बेहतरीन अनुभव.
हॉलीवुड
मूवीज को इंग्लिश में ही देखने का अलग मज़ा है.याद आता है- वर्ष 2002
में बड़े भैया के साथ मैं विशाखापत्तनम गया हुआ था वहाँ हमने जगदम्बा टाकीज़ में
अर्नाल्ड स्वेज़नेगर की फिल्म कोलेटरल डैमेज इंग्लिश में देखि थी. शायद वही मेरे
द्वारा इंग्लिश में देखि गई पहली हॉलीवुड मूवी थी. पिछले वर्ष स्टार सेलेक्ट HD
में मूवीज की एक सीरीज आई थी “फिल्म्स टू सी , बिफोर यू डाई” रोज़ रात 9 बजे हम एक
बेहतरीन फिल्म देखते.... उन चुनिन्दा फिल्मों में से मेरे कुछ पसंदीदा हैं जिन पर
इस ब्लॉग में मैं लिखता रहूँगा.
बहरहाल रात के 11 बज गए हैं और मैं देखने जा रहा हूँ क्रिस्टोफर नोलान की इंटरस्टेलर.......
1 टिप्पणी:
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