Diary Ke Panne

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

आए हैं समझाने लोग......

20 September 2017



                  कल एक बुद्धिमान से सामना हुआ.... साधारणतः मैं बुद्धिमानों से मिलने से बचता हूँ. क्यूंकि अधिकतर बुद्धिमान, बुद्धिमान होते नहीं हैं उन्हें केवल भ्रम ही होता है अपनी बुद्धिमत्ता का. और इस भ्रम के चलते वो दुनिया को सीख देते रहते हैं. बिना अनुभव रटी हुई बातों को दोहराते रहना ही उनका दैनिक कर्म है. और अगर उन्हें कोई अवधारणा देनी भी हो तो वो उनके फायदे से निकल कर आती है.... अच्छा, साधारणतः ऐसे लोग  वास्तविक बुद्धिमानों से अधिक लोकप्रिय होते हैं क्यूंकि नकली नोट अक्सर असली को चलन से बाहर कर देते हैं .

                 वर्ष 2008 में जब मैं एक MNC में एरिया हेड के पद पर कार्यरत था, हमने राजस्थान के एक शहर में  एक फ्लैट किराए पर लिया था जिसके मालिक तथाकथित बुद्धिमान ही थे ... शाम के समय चाय पर उनसे मुलाक़ात हुई तो उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रदर्शन किया. आधे घंटे तक बोलते रहे. उनकी चाय मुझे महंगी पड़ी. अति तब हुई जब वो मुझे बताने लगे की एक बाबा उनके गुरु हैं और उनके ही कहने पर वो लोगों को उनके उपदेश सुनाते रहते हैं ( रटी हुई बातों को दोहराना). अधिकतर लोग यही कर रहे हैं जो बात पालन करने की है उसका पालन करने की जगह लोगों को सुनाते रहते हैं. मेरे देखे लोग अपनी लम्पटता को छुपाने के लिए ही सज्जनता का चोला ओढ़े रहते हैं.... मैंने सुना बाद में किसी लम्पट कार्य के लिए उनकी पिटाई  हुई थी... उन बाबा के कहने पर ही आज कल 14 फ़रवरी मातृ – पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है और बाबा आज कल जेल में हैं.

                 शोध का विषय है कि जो व्यक्ति लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलता रहता है (कुछ करता नहीं) कहीं तो  ऐसा नहीं कि उसे भ्रष्टाचार का अवसर नहीं मिला इसी लिए लगातार खिलाफ ही बोल रहा हो या जो लगातार सज्जनता का चोला ओढ़कर घूमते रहते हैं कहीं ऐसा तो नहीं की उन्हें लम्पटता का अवसर ही न मिला हो  या जो महिला किसी और महिला के पहनावे या आचरण पर टिका टिपण्णी करती है कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे ऐसा आचरण या पहनावे का अवसर नहीं मिला .... मेरे देखे जैसे ही अवसर मिलेगा ये आदमी भ्रष्टाचार का या लम्पट होने का अवसर हाथ से नहीं जाने देगा या ऐसी महिला आचरण या पहनावे को अपनाने से नहीं चुकेगी...

             बहरहाल जिस बुद्धिमान से मेरा सामना हुआ वो मुझे कह रहे थे की आपका पिछला आर्टिकल “कर्म क्षेत्रे” पढ़ा उसमें जो आपके न्याय की अवधारणा है वो बिलकुल ग़लत है. जयद्रथ को माफ़ किया जाना चाहिए था. या कम से कम निर्णय लेने से पहले ध्रितराष्ट्र की सलाह लेनी ही चाहिए थी. मैंने पूछा... तो फिर गुरमीत सिंह वाले मामले में जो सांसद साक्षी महाराज ने कहा आपके अनुसार वो भी सही होगा?? बोले, हाँ! अव्यवस्थाओं लिए तो कोर्ट ही पूरी तरह से ज़िम्मेदार है. ऐसे लोगों को मैं अच्छी  तरह से जानता हूँ ये लोग परेशानी आने पर छुप जाते हैं, शेर का सामना करने की हिम्मत तो नहीं होती लेकिन शिकार करने के बाद शिकारी को सलाह देने ज़रूर पहुँच जाते हैं....

              ऐसे लोगों को मैं “रीढ़ की हड्डी” विहीन मानता हूँ. मानव शरीर रचना में 'रीढ़ की हड्डी' या मेरुदंड (backbone) पीठ की हड्डियों का समूह है जो मस्तिष्क के पिछले भाग से निकलकर गुदा के पास तक जाती है। इसमें 33 खण्ड होते हैं. “रीढ़ की हड्डी” का होना दृढ व्यक्तित्व का परिचायक है. लोग जो निर्णय की घडी में सामने नहीं आते.... लोग जिनके अनुसार न्याय वह है जो सर्वस्वीकार्य हो या न हो, जिसमें पीड़ित को राहत मिले न मिले बस स्वयं का फायदा हो, ऐसे रीढ़ विहीन लोग क्या तो समाज को दिशा देंगे ???

बरबस ही बच्चन याद आते हैं :

तुम हो कौन, कहो जो मुझसे सही ग़लत पथ लो तो जान
सोच सोच कर
, पूछ पूछ कर बोलो, कब चलता तूफ़ान
सत्पथ वह है
, जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीर
मैं हूँ उनके साथ
, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार
कभी नही जो सह सकते हैं
, शीश नवाकर अत्याचार
एक अकेले हों
, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़
मैं हूँ उनके साथ
, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार
जिनकी जिह्वा पर होता है
, उनके अंतर का अंगार
नहीं जिन्हें
, चुप कर सकती है, आतताइयों की शमशीर
मैं हूँ उनके साथ
, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

जो अपने कन्धों से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैं
पथ की बाधाओं को जिनके पाँव चुनौती देते हैं
जिनको बाँध नही सकती है लोहे की बेड़ी जंजीर
मैं हूँ उनके साथ
, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

जिनको यह अवकाश नही है, देखें कब तारे अनुकूल
जिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्रा
, कब दिक्शूल
जिनके हाथों की चाबुक से चलती हें उनकी तकदीर
मैं हूँ उनके साथ
, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

-          मनमोहन जोशी “MJ“

14 टिप्‍पणियां:

Deependra Udeniya ने कहा…

sir lagta hai ... logo ka karma aur uske fal se vishwas uthta ja raha hai..... jab koi pap ya apradh hoga to uska fal to milega hi ..... adalat to uska jariya matra hai..... Bahut umda sir....

RACHIT PATHEKAR ने कहा…

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
शानदार, ज़िंदाबाद, जबरदस्त ��
आपकी ही प्रेरणा से हम जैसो का व्यक्तित्व बदलता है और समाज में एक सही संदेश जाता है।

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Yea u r right dear deependra... keep reading

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Shukriya....

Unknown ने कहा…

Nice Sir

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Thanx Pawan

Unknown ने कहा…

Great article sir, Specially starting

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Thanx Gaurav... keep reading

Vikash Parashar VP ने कहा…

Shandar sir

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Thanx Vikash... keep reading

Nitesh mewada ने कहा…

कबीर दास जी ने कहा है की इस संसार मेने ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे.''प्रणाम गुरुजी''

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Thanx a lot for your valuable comment dear Nitesh...

Mayur Suryavanshi ने कहा…

Padh kar achha laga sir...

MJ Sir Ki Diary ने कहा…

Thanx Mayur... Keep reading.