06 September 2017
देखो हमारी कॉलोनी में कौन आया है... सुबह श्रीमती जी ने आवाज़ देकर उठाया... आँख मलता हुआ उठता हूँ कौन आया है भई ?? कौवा आया है अभी एक दिखा था और एक ऊपर छत पर बैठा है देखो, वो कौवे को दिखाते हुए कहती है... हम्म, मैं कहता हूँ, इसका मतलब न्यू रानी बाग़ का ईको सिस्टम ठीक है क्यूंकि पुरे इंदौर शहर में कौवे नहीं दीखते... वो कहती है कौवे का दिखना इसलिए भी खास है क्यूंकि आज से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है और कहते हैं की पितृ गण कौवे के रूप में आते हैं.
बात चल ही रही थी की ऑफिस से कॉल आता है, “सर,
शेर सिंग (ऑफिस का चौकीदार) बेहोश हो गया है”... मैं कहता हूँ उसे हॉस्पिटल ले जाओ मैं थोड़ी देर में आता हूँ..
जल्दबाजी में नहाने जाता हूँ... जैसे ही बाथ रूम से बाहर आता हूँ फ़ोन की
घंटी बजनी शुरू हो जाती है... एक कॉल मैंने मिस कर दिया है... फिर से कॉल आ रहा
है... मित्र सुनील तिवारी लाइन पर हैं कहते हैं शेर सिंह नहीं रहा... तुरंत
गुर्जर हॉस्पिटल में आ जाओ.
मैं जल्दी से कपड़े पहन कर निकल जाता हूँ ... कल ही तो मिला था शेर
सिंह, हमेशा की तरह हँसता हुआ... कल मिला तो बोला- “सर,
आज शिक्षक दिवस है आशीर्वाद दीजिये.” और
आज वो हमारे बीच नहीं है.... यही है जीवन की क्षणिकता.
अटल जी की कविता के कुछ शब्द याद आ रहे हैं :
अटल जी की कविता के कुछ शब्द याद आ रहे हैं :
" जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं।"
मुझे याद आता है, मृत्यु से मेरा परिचय बहुत पुराना है.
किशोर से युवा होते हुए कई लोगों की मृत्यु को करीब से देखा. दादी, नाना , नानी, बाबा (ताऊ जी) उनमें ख़ास थे... और इन सबमें भी बाबा मेरे सबसे करीब
थे जिनके जाने के बाद मैं कई रातों तक
नहीं सोया... मुझे नींद में लगता जैसे वो
मुझे पुकार रहे हैं “बब्बू”.... यही वो नाम था जिससे वो मुझे पुकारते
थे. उनकी मृत्यु गाँव के कुँए में डूब कर हुई थी... वहाँ से उनकी लाश दूसरे दिन निकाली जा सकी थी...मृत्यु से दो दिन पहले किसी बात पर झगड़ कर वो गाँव जा रहे थे... उनके झगडे
से होने वाले कोलाहल से मैं परेशान था... जाने से पहले मुझसे मिलने आये कहा गाँव
जा रहा हूँ ये पैसे कितने हैं गिन दो, जो गाडी वाले को देना है वो अलग कर दो
और बाकी पैसा अलग... मैंने वैसा कर दिया... लेकिन ठीक से बात नहीं की.. वो बोले
मैं जा रहा हूँ अब वापस नहीं आऊंगा... मैंने बैठे ही बैठे कहा था ठीक है मत आना...
और वो चले गए कभी ना आने के लिए...
वो कहते थे कि “बब्बू”
मेरा भगवान् है... मैं भाइयों में सबसे छोटा था खेल में अक्सर मेरी
हार होती थी. लेकिन अगर वो खेल के बीच में आ जाएँ तो मेरा संबल कई गुना हो जाता था
क्यूंकि वो कहते, तुम इसको हरा ही नहीं सकते भले मैं हार रहा होऊं, वो कहते थे यही जीतेगा...
उनके जाने के पश्चात् मैंने लगातार मृत्यु और उसके रहस्य को जानने की कोशिशें की... पुट्टपर्ती के सत्य साईं बाबा के पास (जब वो जीवित थे ) आश्रम में एक माह रहा. रजनीश की मैं "मृत्यु सीखता
हूँ" और "कठोपनिषद" कई बार पढ़ी... “मृत्यु के पार”, “आत्मा रहस्य” , “गरुड़
पुराण” और न जाने कितनी ही किताबें पढ़ डालीं... भगवद्गीता पढता रहता हूँ
जिससे रहस्य कुछ खुलता हुआ सा मालूम पड़ता है.....
एक बात तय है जो जन्मा है वो मरेगा.. जो बना है वो मिटेगा... इसीलिए जब भी किसी से मिलें ऐसे मिलें जैसे अंतिम बार मिल रहे हों... प्रेम पूर्वक , श्रद्धा पूर्वक... श्रीकृष्ण कहते हैं :
“ जातस्य ही ध्रुवो मृत्यु, ध्रुवम् जन्म मृतस्य च |
तस्माद् अपरिहार्येर्थे, न त्वम् शोचितुमर्हसि ||”
अर्थात: “ जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है । और मृत्यु के बाद जन्म अवश्य होता है । जिसमें कोई परिवर्तन न हो सके ऐसी यह कुदरती व्यवस्था है । अतः किसी की मृत्यु पर शोक करना तेरे लिए उचित नहीं है । ”
जो भी हो मेरे देखे जीवन की खूबसूरती मृत्यु से है... कमाल यह है की जाने का समय तय नहीं है... और उस पर तुर्रा यह
की सब कुछ यहीं छोड़ कर जाना है... सब कुछ मतलब सब कुछ!!!!!
- मनमोहन जोशी " Mj"
1 टिप्पणी:
Nice
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