Diary Ke Panne

शुक्रवार, 1 जून 2018

सफ़र की बात....... 24-May-2018



जीवनम विला  की बालकनी के बाहर चाय पीते हुए 

श्रीमती जी के साथ सेल्फी 


24 may 2018

              सुबह के 5:30 बज रहे हैं. रात भर से मैं और श्रीमती जी इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एअरपोर्ट के टर्मिनल-1 में सुबह होने का इंतज़ार कर रहे हैं. इतनी ज्यादा कूलिंग कर रखी है कि शरीर ठण्ड से कांपने लगा है. आँख खोल कर पहले मोबाइल में टाइम देखता हूँ और फिर पाता हूँ की मेरे उपर शाल पड़ी हुई है. रात में ठण्ड देख कर श्रीमती जी ने मुझे शाल से ढँक दिया होगा.खैर हम एअरपोर्ट के लाउन्ज में ही फ्रेश हो कर निकल जाते हैं टर्मिनल-2 के लिए जहां से हमें लेह के लिए फ्लाइट पकड़नी है. 

              दिल्ली का यह एअरपोर्ट अपनी सुविधाओं के लिए विश्व के बेहतरीन एयरपोर्ट्स में गिना जाता है. वर्ष 2014 में इस एअरपोर्ट को  विश्व के सबसे बेहतरीन एअरपोर्ट का अवार्ड मिल चुका है.  हर वर्ष लगभग चार करोड़ यात्रियों को यात्रा सुविधा मुहैया करवाने के लिए इस एअरपोर्ट को नंबर वन एअरपोर्ट का अवार्ड दिया गया था.

                1930 में दिल्ली का पहला  एअरपोर्ट सफ़दरजंग विमान क्षेत्र बना था और यही 1962 तक दिल्ली का प्रमुख एअरपोर्ट बना रहा. बढ़ते यातायात के कारण व छोटे रनवे में  बड़े जेट विमानों को उतार पाने में अक्षम होने के कारण 1962 में लगभग सभी नागरिक उड़ान पालम विमान क्षेत्र भेज दी गईं.  पालम विमानक्षेत्र का निर्माण द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्टेशन पालम के रूप में किया गया था. 

              अंग्रेज़ों के जाने के बाद यह 1962 तक वाय़ु सेना स्टेशन के रूप में ही कार्य करता रहा. 1962  में इसका नाम बदल कर इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एअरपोर्ट कर दिया गया. वर्तमान में इसके टर्मिनल- 1,2 और 3 से रेगुलर फ्लाइट्स जाती हैं.

             बहरहाल हम टर्मिनल-1 से बाहर निकलते हैं. सामने ही चाय की एक शॉप है जहां कुल्हड़ में चाय मिल रही है. अगर एअरपोर्ट में आपको ऐसा कोई देशी जुगाड़ दिख जाए तो समझो इसकी कीमत अनाप - सनाप होगी. एक चाय लेकर हम आगे बढ़ जाते हैं शटल की ओर (दिल्ली एअरपोर्ट पर एक टर्मिनल से दुसरे टर्मिनल तक जाने के लिए बस की सुविधा है, जिसे शटल कहा जाता है).
    
             टर्मिनल-2 पर पहुँच कर मित्र को फ़ोन लगाता हूँ. पता चला, जिस मित्र ने जाने की पहल की थी किसी निजी कारण से उनका परिवार नहीं आ रहा है. पहले हमारे ग्रुप में कुल 12 लोग थे लेकिन अब हम 7 ही लोग सफ़र करेंगे. निर्धारित समय पर चेक इन के बाद हम फ्लाइट में बैठ जाते हैं. कुल डेढ़ घंटे की फ्लाइट है.

               आँखें बंद कर बैठता हूँ और खो जाता हूँ लद्दाख के जादुई इतिहास में. लद्दाख में मिले शिलालेखों से पता चलता है कि यह स्थान नव-पाषाणकाल से स्थापित है. यहाँ  के प्राचीन निवासी मोन और दार्द लोगों का वर्णन हेरोडोट्समेगस्थनीजप्लीनीटॉलमी के रचनाओं में और नेपाली पुराणों में भी मिलता है.

             बौद्ध यात्री ह्वेनसांग के लेखों में इस क्षेत्र का वर्णन मिलता है जिसके अनुसार पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण राज्य का हिस्सा था. बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में कश्मीर से लद्दाख में फैला.

              आठवीं शताब्दी में लद्दाख पूर्व से तिब्बती प्रभाव और मध्य एशिया से चीनी प्रभाव के टकराव का केन्द्र बन गया था. इस प्रकार इसका आधिपत्य बारी-बारी से चीन और तिब्बत के हाथों में आता रहा. सन 842 में एक तिब्बती शाही प्रतिनिधि न्यिमागोन ने तिब्बती साम्राज्य के विघटन के बाद लद्दाख को कब्जे में कर लिया और पृथक लद्दाखी राजवंश की स्थापना की. राजवंश ने उत्तर-पश्चिम भारत, खासकर कश्मीर से धार्मिक विचारों और बौद्ध धर्म का खूब प्रचार किया. इसके अलावा तिब्बत से आये लोगों ने भी बौद्ध धर्म को फैलाया.

              17वीं शताब्दी में लद्दाख का एक कालक्रम तैयार किया गयाजिसका नाम “ला ड्वाग्स रग्याल राब्स” है. जिसका अर्थ है लद्दाखी राजाओं का शाही कालक्रम. कालक्रम का प्रथम भाग 1610 से 1640 के मध्य लिखा गया और दूसरा भाग 17वीं शताब्दी के अन्त में. इसे ए. एच. फ्रैंक ने अंग्रेजी में अनुवादित किया जिसका प्रकाशन वर्ष 1926 हुआ.

                उपलब्ध साहित्य से पता चलता है कि 13वीं शताब्दी में जब दक्षिण एशिया में इस्लामी प्रभाव बढ रहा थातो लद्दाख ने धार्मिक मामलों में तिब्बत से मार्गदर्शन लिया. लगभग दो शताब्दियों बाद सन 1600 तक ऐसा ही रहा. उसके बाद पड़ोसी मुस्लिम राज्यों के हमलों से यहां आंशिक धर्मान्तरण हुआ.

              अचानक श्रीमती जी की आवाज़ से जागता हूँ. आँखें खोलता हूँ तो खिड़की के बाहर का अद्भुत नज़ारा मन को प्रफुल्लित कर देता है. आंखों पर यकीन नहीं हो रहा है कि इतनी खूबसूरती इसी धरती पर है. ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्र कार है?? सहसा भरत व्यास जी की लिखी पंक्तियाँ याद आती हैं :

“ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है
हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल फूल से किया श्रृंगार है
ये कौन चित्रकार है ,ये कौन चित्रकार 
है

कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इनके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमका दो आज लालिमा अपने ललाट की
कण कण से झनकती तुम्हीं छबी विराट की
अपनी तो आँख एक है
,  इसकी हज़ार है
ये कौन चित्रकार है ,ये कौन चित्रकार 
है

तपस्वियों सी हैं अटल ये पवर्तों कि चोटियाँ
ये बर्फ़ कि घुमावदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा से ये खड़े हुए हैं वृक्ष देवदार के
गलीचे ये गुलाब के बगीचे ये बहार के
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है "

               बर्फ से ढंके हुए पहाड़ बहुत ही खूबसूरत दिखाई पड़ रहे हैं. हम पिक्चर्स क्लिक करने लगते हैं. अब हमारे सामने बिना बर्फ के रंग बिरंगे पहाड़ आ गए हैं. फ्लाइट हिचकोले खा रही है. हम लैंडिंग के लिए तैयार हैं.  
फ्लाइट लैंड कर चुकी है. 

              हम फ्लाइट से बाहर आकर देखते हैं कि चारों ओर रेतीले भूरे पठार व वैसे ही भूरे पहाड़ से एअरपोर्ट घिरा हुआ है. हवा में अच्छी-खासी ठंडक घुली हुई है. इस ठण्ड के साथ ही हमें यकीं हो गया है कि हमारे लाये हुए गर्म कपडे यहाँ काम में नहीं आने वाले.

               हम बैगेज काउंटर पर पहुँचते हैं. अभी बैग नहीं आये हैं. हम बेल्ट के पास इंतज़ार कर रहे हैं . अनाउंसमेंट सुनाई पड़ती है, “ जुले! लेह में आपका स्वागत है. अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण आपको सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. पहला दिन आराम करें! लगातार पानी पीते रहें. अधिक समस्या होने पर डॉक्टर से संपर्क करें. जुले!!

             हम बैग लेकर एअरपोर्ट से बहार आते हैं. बाहर कई लोग हाथों में तख्ती लिए यात्रियों का इंतेज़ार कर रहे हैं . मैं उस आदमी को खोज रहा हूँ जिसके पास मेरे नाम की तख्ती है. मैं उस आदमी के सामने हूँ. उसे कहता हूँ जुले! तुम हमारे ग्रुप का इंतज़ार कर रहे हो. ड्राईवर का नाम थिम्पे है, वह  हमारा सामान एक ट्रैवलर में रख देता है.

             दोपहर के बारह बज रहे हैं. हम एअरपोर्ट के पास ही एक खूबसरत विला में पहुँचते हैं. इस जगह का नाम जीवनम विला है. हमारे रूकने और खाने का इंतज़ाम यहीं है. जिस कमरे में हम ठहरे हैं यहाँ से बाहर का नज़ारा बेहद ही ख़ास है. एक ओर  ITBP का कैंप दिख रहा है और दूसरी और बर्फ से ढंकी हुई खूबूसरत काराकोरम पहाड़ी श्रृंखला.

              ऑक्सीजन लेवल काफी कम है और हम ये स्पष्ट महसूस कर पा रहे हैं. शरीर को वहां के वातावरण में एड्जस्ट करने हेतु 24 घंटे आराम  करने की सलाह दी गई है. यदि शरीर ने यहाँ के वातावरण को एक्सेप्ट नहीं किया तो सिरदर्दचक्करउल्टी व सांस की तकलीफ से पूरा टूर चौपट हो सकता है. भोजन करने के बाद हम आज का दिन आराम करते हुए ही बिताना चाहते हैं. 
बहरहाल मैं तो चला सोने...... जुले !!!
 ----- क्रमशः

-       - मन मोहन जोशी   



प्लेन की खिड़की से एअरपोर्ट का दृश्य
प्लेन की खिड़की से लिया गया विहंगम दृश्य 

लेह एअरपोर्ट

जीवनम  विला की बालकनी से लिया गया शाम का दृश्य 

जीवनम विला 





जीवनम विला में हमारी हर छोटी बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखने वाला - राहुल  






7 टिप्‍पणियां:

  1. Thank you sir, aapke blog ko padhte hue esa lag rha hai jaise ham bhi aapke sath hai, aapke dvara bataya hua sara vritant ankhon ke saamne ke samne spasht roop se chitrit hota hai, again thank you sir for share your travel experience with us.😊

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    1. क्या आपको अपने बिलों का भुगतान करने, घर खरीदने, पुनर्वित्त या कार खरीदने के लिए एक नया व्यवसाय, व्यक्तिगत ऋण बनाने के लिए तत्काल ऋण की आवश्यकता है ?? आदि।
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  2. किसी भी पाठक के लिए यात्रा की इन रंग-बिरंगी तस्वीरों को देखने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक तथ्यों को पढ़ना अपने आप में सुखद अनुभूति रहेगी जैसी इस समय मुझे हो रही है ... बेहद शानदार

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    1. शुक्रिया प्रिय अमित आप इस ब्लॉग के पाठक हैं जानकर खुशी हुई।।

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