Diary Ke Panne

रविवार, 24 जून 2018

झींगुर गान ......







             पिछले कुछ दिनों से हमारे घर एक महान संगीतज्ञ ठहरे हुए हैं. श्रीमती जी कहती हैं उसे भगाओ या मार डालो. मैं कहता हूँ ये पर्यावरण जितना हमारा है उतना ही उसका भी और वैसे भी उसके होने से कोई नुकसान नहीं. और फिर वो रात भर संगीत परफोर्मेंस दे रहा है वो भी फ्री ऑफ़ कास्ट. ये संगीतज्ञ महाशय हैं झींगुर.
  
            झींगुर द्वारा उत्पन्न संगीत को ही झींगुर गान कहते हैं . झींगुर गानशब्द का उपयोग हमेशा किसी कर्कश ध्वनि के सम्बन्ध में मुहावरे के रूप में भी किया जाता है. या ऐसे व्यक्तियों के लिए भी जो अनर्गल बात करते रहते हैं, कहा जाता है, झींगुर गानहो रहा है.

           बहरहाल झींगुर एक बरसाती कीट है जो महान संगीतज्ञ कीटों की श्रेणी में आते हैं. झींगुरों द्वारा संगीत उत्पन्न करने की इस प्रक्रिया को स्ट्रिडुलेशनकहा जाता है. इन्हें एक और करामात आती है जिसे वेन्ट्रीलोक्विजमकहते हैं. यह एक ऐसी आश्चर्यजनक क्षमता है जिससे आवाज को उसके निकलने के मूल स्थान के बजाय किसी और स्थान से निकलने का आभास होता है. यही कारण है कि जब भी कोई झींगुर आवाजें निकाल रहा हो तो उसे आसानी से ढूंढ नहीं सकते क्योंकि आवाज कहीं और से निकलती मालूम पड़ती है.


           झींगुर की ही तरह अन्य बहुत से कीट, संगीतज्ञ होते हैं. कीट वाणीहीन होते हैं, इसलिए इनका संगीत वाद्य संगीत होता है. इसे नाद संगीत भी कहते हैं. नाद का शाब्दिक अर्थ होता है ध्वनि या आवाज. संगीत के आचार्यों के अनुसार अग्नि और वायु  के संयोग से नाद उत्पन्न होता है.  जहाँ प्राण (वायु) की स्थिति रहती है उसे ब्रह्मग्रंथि कहते हैं. संगीतदर्पण में लिखा है कि आत्मा के द्वरा प्रेरित होकर चित्त शरीर की  अग्नि पर आघात करता है और अग्नि ब्रह्म ग्रंथि  में स्थित प्राण को प्रेरित करती है. अग्नि द्वारा प्रेरित प्राण फिर ऊपर चढ़ने लगता है इससे ही नाद की उत्पत्ति होती है. संगीत दामोदर में नाद तीन प्रकार का माना गया हैप्राणिभव, अप्राणिभव और उभयसंभव. जो अंगों से उत्पन्न किया जाता है वह प्राणिभव, जो वीणा, सितार , संतूर  आदि वाद्यों से निकलता है वह अप्राणिभव और जो बाँसुरी, सेक्सोफोन, क्लार्नेट जैसे वाद्यों  से निकाला जाता है वह उभय-संभव कहलाता है .  फिर ये कौन सा नाद है जो झींगुर बजा रहा है?? कहाँ से सीखा होगा इसने??? कौन है इसका गुरु?? हमें ही क्यूँ सुना रहा है ???

           विज्ञान की पड़ताल करें तो पता चलता है, ये कीट केवल प्रौढ़ावस्था में पहुँच कर ही संगीतज्ञ  होते हैं. प्राय: नर कीट ही संभवत: मादा को आकर्षित करने के लिए या शत्रुओं को खुद से दूर रखने के लिए संगीत उत्पन्न करते हैं. संगीत उत्पन्न करने की दो विधियाँ है. एक भाग को दूसरे भाग पर रगड़कर ध्वनि उत्पन्न की जाती है या   शरीर किसी अंग को सिकोड़कर और और छोड़कर कम्पन्न उत्पन्न किया जाता है. झींगुर, कीटों के ऑर्केस्ट्रा का एक महत्वपूर्ण सदस्य है जो अपने आगे के आरीनुमा पंखों को रगड़ कर ( वायलिन बजाने की तरह ) यह संगीत उत्पन्न करते हैं.


एक कहानी मैंने कभी सुनी  थी जो कुछ ऐसी है:

मुंबई के ट्रैफिक वाले इलाके में दो मित्र घूम रहे थे. शाम का वक़्त था और भीड़ ज्यादा थी. चारों ओर से गाड़ियों के हॉर्न, ब्रेक, सायरन की आवाजें आ रहीं थीं. साथ चलते हुए व्यक्ति की बातें सुन पाना भी मुश्किल लग रहा था.
  
ऐसे में एक  मित्र ने  पूछा – “तुम्हें झींगुर की आवाज़ सुनाई दी?”

दूसरा – “कैसी बात करते हो! इतने शोरगुल में तुम्हें झींगुर की आवाज़ सुनाई दे रही है!

मैं यकीन से कह सकता हूँ कि मैंने झींगुर की आवाज़ सुनी है.

तुम्हारे कान खराब हो गए हैं” – मित्र ने कहा.

पहला मित्र एक पल के लिए रूका . फिर वह सड़क के पार एक दूकान के पास गया जहाँ कुछ पौधे उगे हुए थे. उसने उन  पौधों के आगे-पीछे देखा और उसे एक छोटा सा झींगुर दिखाई दिया. दूसरा मित्र यह देखकर अचंभित था.

कमाल की बात है!” – मित्र ने कहा – “तुम्हारे कान तो बिलकुल कुत्ते के कानों की तरह हैं!

नहीं यार!” – पहला मित्र बोला – “मेरे कानों में और तुम्हारे कानों में कोई अंतर नहीं है! असल में जो कुछ हम सुनना चाहते  हैं हमें वही सुनाई देता है”. देखो, मैं तुम्हें बतलाता हूँ कैसे”.

उसने अपनी जेब से दो सिक्के निकाले और उन्हें फूटपाथ पर गिरा दिया. उन्होंने देखा कि चारों ओर जारी शोर के बावजूद फूटपाथ पर करीब चल रहे लगभग हर व्यक्ति ने ठिठककर देखा कि कहीं उनके सिक्के तो नहीं गिर गए हैं.


जावेद अख्तर याद आते हैं :

आवारा भँवरे जो हौले हौले गाये
फूलों के तन पे हवाएं सरसराएं

कोयल की कुहू कुहू
पपीहे की पिहू पिहू
जंगल में झींगुर की झाँय झाँय
नदिया में लहरें आयें
बलखायें छलकी जायें
भीगी होंठों से वो गुनगुनाएं

रात जो आये तो सन्नाटा छाये तो
टिक-टिक करे घड़ी, सुनो
दूर कहीं गुज़रे रेल किसी पुल पे
गूँजे धड़धड़ी, सुनो
संगीत है ये, संगीत है
मन का संगीत सुनो

-       - मनमोहन जोशी

2 टिप्‍पणियां:

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