होटल के रूम में फ़ोन
की घंटी की आवाज़ से जागता हूँ. आज 26 मई है सुबह के 7:30 हो रहे हैं. फ़ोन पर
डोल्मा है .. कह रही है ब्रेक फ़ास्ट का टाइम हो गया है नीचे आ जाइए . फिर याद
दिलाती है की आज आपको नुब्रा वैली जाना है, समय पर निकलना ठीक होगा.
नुब्रा घाटी एक तीन
भुजाओं वाली घाटी है जो लद्दाख के
उत्तर-पूर्व में स्थित है, यह श्योक और नुब्रा नदियों के संगम से बनती है. श्योक नदी उत्तर पश्चिम की ओर बहती है और नुब्रा
नदी एक न्यूनकोण बनाते हुए इसमें उत्तर-उत्तर पश्चिम से आ कर मिलती है. श्योक नदी
आगे जाकर सिन्धु नदी में मिलती है. इस घाटी की ऊँचाई लगभग 10,000 फीट है. यहाँ के स्थानीय लोगों के अनुसार इसका प्राचीन नाम डुमरा
(फूलों की घाटी) था. जो कालांतर में नुब्रा नदी के नाम पर नुब्रा ही पड़ गया. यहाँ पहुँचने के लिये लेह के खर्दुन्गला दर्रे
से होकर जाया जाता है.
सुबह के 8:30 बज रहे हैं. हम नाश्ता करके तैयार हैं, आज की रोमांचक यात्रा के लिए. आज
हमारे साथ गाइड के रूप में गेल्सन हैं जो लेह के ही रहने वाले हैं. दो बोट्टल्स पानी
और कुछ सुखा नाश्ता साथ में लेकर हम चल देते हैं नुब्रा की ओर. हम सूमूर नामक एक
गाँव में पहुँच कर कैंप में ठहरते हैं. दुसरे दिन सुबह उठ कर हम चल पड़ते हैं
नुब्रा घाटी घुमने.
लेह से नुब्रा तक की यात्रा बहुत आकर्षक है.
सबसे पहला आकर्षण खारदुंग ला दर्रा है. यह हिमालय स्थित एक दर्रा है
जो समुद्र तल से लगभग 18,380 फीट की ऊँचाई पर स्थित है. यह परिवहन योग्य, विश्व का
सबसे ऊँचा दर्रा है, परन्तु इसकी ऊँचाई विवादित है. लद्दाख क्षेत्र में लेह के पास स्थित
यह दर्रा “श्योक” और “नुब्रा” घाटियों को जोड़ता है. यहाँ पर साल भर कई मोटर साइकिल रैलीयाँ होती
रहती हैं.
खारदुंग ला में दुनिया का सबसे ऊंचा कैफ़े भी स्थित है.... जैसे ही हम खारदुंग ला पहुँचते हैं. ठण्ड के मारे हालत खराब होने लगती है. हम कैफ़े में नूडल्स और गरमागरम चाय लेकर थोड़ी राहत महसूस करते हैं. फिर दौर शुरू होता है फोटोग्राफी का... चारों ओर बर्फ से ढंके हुए पहाड़ और खूबसूरत वादी के बीच हम अतिशय ठण्ड का आनंद लेने लगते हैं. बदन को काटने वाली तेज़ ठंडी हवाएं हमें गुदगुदा रही हैं. हम फोटोग्राफी के बाद चल देते हैं अपने अगले पड़ाव की ओर .
खारदुंग ला में दुनिया का सबसे ऊंचा कैफ़े भी स्थित है.... जैसे ही हम खारदुंग ला पहुँचते हैं. ठण्ड के मारे हालत खराब होने लगती है. हम कैफ़े में नूडल्स और गरमागरम चाय लेकर थोड़ी राहत महसूस करते हैं. फिर दौर शुरू होता है फोटोग्राफी का... चारों ओर बर्फ से ढंके हुए पहाड़ और खूबसूरत वादी के बीच हम अतिशय ठण्ड का आनंद लेने लगते हैं. बदन को काटने वाली तेज़ ठंडी हवाएं हमें गुदगुदा रही हैं. हम फोटोग्राफी के बाद चल देते हैं अपने अगले पड़ाव की ओर .
इस यात्रा में हमारा अगला पड़ाव है, दिस्कित
मोनेस्ट्री .
इस मोनेस्ट्री की स्थापना चोंगज़ेम सिरेब झांगपो ने 14 वीं
शताब्दी में की थी. यह मठ लेह में स्थित है.”तिब्बत समर्थन समूह” के
सहयोग से यह मठ तिब्बती बच्चों के लिए एक स्कूल भी चलाता है. दलाई लामा अपने कुछ
दिन की यात्रा पर जब भारत आये थे,
तब उन्होंने यहाँ स्थित 120 फुट की ऊंची “मैत्रेय” की
प्रतिमा का उद्घाटन किया था,
जो इस मठ के आकर्षण का केंद्र है. इस मूर्ति का निर्माण
बौद्ध संघ और लद्दाख के पर्यटन कार्यालय द्वारा मिलकर करवाया गया है.
बौद्ध
मान्यताओं के अनुसार मैत्रेय भविष्य के बुद्ध हैं. कुछ बौद्ध ग्रन्थों, जैसे अमिताभ सूत्र और सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र में इनका एक नाम “अजीत”
भी मिलता है. "मैत्रेय" शब्द संस्कृत के "मित्र" अथवा "मित्रता"
से निकला है. पालि भाषा में यह "मेत्तेय" है. पालि शाखा के दीघ निकाय और
बुद्धवंश नामक ग्रन्थ में इनका उल्लेख मिलता है. बौद्ध परम्पराओं के अनुसार,
मैत्रेय एक बोधिसत्व हैं जो पृथ्वी पर भविष्य में अवतरित होंगे और
बुद्धत्व प्राप्त करेंगे तथा विशुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे.
मोनेस्टरी
घूमते हुए हमारी मुलाक़ात एक लामा से होती है जो बताते हैं कि आमतौर पर मैत्रेय
बुद्ध को बैठी हुई अवस्था में निरूपित किया जाता है. उन्हें सिंहासन पर, या तो दोनों पाँव धरती पर रखे हुए अथवा एक पाँव घुटने से मुड़ा हुआ दूसरे
पाँव पर रखे हुए, अपने समय की प्रतीक्षा में बैठा हुआ निरूपित किया जाता है. यहाँ जो मूर्ति
स्थापित है उसमें इन्हें सर पर स्तूपाकार मुकुट धारण किये हुए दिखाया गया है. यह
स्तूप गौतम बुद्ध के अवशेषों का निरूपण करता है, जिनके द्वारा मैत्रेय अपने उत्तराधिकारी
होने की पहचान साबित करेंगे और श्वेत कमल पर रखे धर्मचक्र को पुनः प्राप्त करेंगे.
मैत्रेय
की खूबसूरत विशालकाय प्रतिमा और दिस्कित मोनेस्टरी के साथ बहुत सारी फोटो खिंचवाने
के बाद हम अगले पड़ाव की ओर बढ़ते हैं.
गेल्सन
हमें बताता है कि अगले पड़ाव में हम ATB राइड्स के लिए जा रहे हैं. ATB एक
किस्म की चार पहिया बाइक होती है जो रेत, बर्फ, कीचड़ और पथरीली ज़मीन पर भी आसानी
से चल सकती है. मैं और श्रीमती जी दोनों ही ATB चलाने का आनंद लेते हैं. ATB की
रोमांचक राइड के बाद हम चल पड़ते हैं अगले आकर्षण की ओर दो कूबड़ वाले ऊंटों की
सवारी के लिए.
दो कूबड़ वाले ऊंट को
जीव विज्ञान में camelus bactrianus कहते हैं. आम भाषा में इन्हें बैक्ट्रियन
ऊंट कहा जाता है. यह लगभग 40 - 50 साल तक जीता है. वयस्क ऊंट के कूबड़ तक की ऊंचाई
दो मीटर से ऊपर भी जा सकती है. सिर्फ कूबड़ ही 30 इंच तक का हो जाता है. इसका वजन
सात सौ से लेकर एक हजार किलो तक हो सकता है. रेगिस्तान का ये जहाज 60 - 65 किमी
प्रति घंटे की दौड़ भी लगा लेता है. घाटी में नदी के किनारों पर हरियाली है जहां ये
दो कूबड़ वाले ऊंट चरते हुए देखे जा सकते हैं.
ऊँट कैमुलस जीनस के
अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है. अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के
दो कूबड़ होते हैं. अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि
बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया में पाए जाते हैं. ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर
पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों के लिए किया जाता है, इनमें से दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे
जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना कहलाते हैं.
भारत में ये दो कूबड़ वाले ऊँट केवल लद्दाख की नुब्रा घाटी में ही पाए जाते
हैं. वैसे भी दुनिया में दो कूबड़ वाले ऊंट कम ही स्थानों पर पाए जाते हैं और ये
सभी स्थान ठन्डे रेगिस्तान हैं. वे स्थान जहां दो कूबड़ वाले ऊँट पाए जाते हैं, गोबी मरुस्थल मंगोलिया, अल्ताई
पहाड़ियां रूस और तक्लामाकन मरुस्थल चीन, हैं.
इन ऊंटों को देखना और इनकी सवारी करने का रोमांच मुझसे नहीं संवर रहा
था. हम गाड़ी से उतर कर सीधे ऊंटों के मालिक के पास पहुँचते हैं. कई ऊंटों के समूह
यहाँ हैं जिनके अलग –अलग मालिक हैं . हम जिससे मिल रहे हैं उसका नाम अब्दुल है. वो
हमें ऊंटों के एक समूह के पास ले जाता है. इसमें से एक ऊँट की और मैं बढ़ता हूँ और
उसकी लगाम पकड़ कर बैठ जाता हूँ. सभी मित्र अलग – अलग ऊंटों पर सवार हो जाते हैं.
मैं अब्दुल से पूछता हूँ जिस ऊँट पर मैं बैठा हूँ उसका नाम क्या है?? अब्दुल बताता
है साहब इसका नाम है “ओत्मा खुखुर”.
-------------क्रमश:
-मनमोहन जोशी
P.S.
नुब्रा घाटी का मनोहारी दृश्य |
राहुल मैं और डोल्मा |
मित्रों के साथ |
मैत्रेय बुद्धा की 120 फीट ऊंची मूर्ती |
1 टिप्पणी:
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